...
Skip to content

गर्मी से पहले नल जल योजनाएं अटकीं, 102 ट्यूबवेल में पानी नहीं मिला

गर्मी से पहले नल जल योजनाएं अटकीं, 102 ट्यूबवेल में पानी नहीं मिला
गर्मी से पहले नल जल योजनाएं अटकीं, 102 ट्यूबवेल में पानी नहीं मिला

REPORTED BY

Follow our coverage on Google News

गर्मियां शुरू होने के पहले ही मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में पानी की किल्लत सामने आने लगी है। जिले में जल जीवन मिशन के अतंर्गत चलने वाली नल जल योजना के लिए बोरवेल किए जा रहे हैं। जिनमें जल आपूर्ति  के लिए पर्याप्त पानी ही नहीं निकल रहा है। 

टीकमगढ़ जिले के 102 गांवों में पानी की सप्लाई शुरू करने के लिए बोरवेल किए गए थे। लेकिन इन बोरवेल्स में पानी की मात्रा 2 इंच से भी कम है, जो कि इन गांवों में जल आपूर्ति के लिए अपर्याप्त है। इन 102 गांवों में से 90 गांवों में नए सिरे से योजना का काम शुरू किया जाना है, जबकि 12 गांवों में पुरानी लाइन को बेहतर कर योजना का काम शुरू किया जाना है। इन 102 गांवों की सूची में 41 गांव पलेरा, 20 गांव बल्देवगढ़, 28 गांव जतारा और 4 गांव टीकमगढ़ ब्लॉक के शामिल हैं।

दरअसल गांव की आबादी के हिसाब से ही बोरवेल की सप्लाई क्षमता की आवश्यकता होती है। नल जल योजना के तहत 1 हजार की आबादी के लिए जल आपूर्ति के लिए बोरवेल में कम से कम 4 इंच पानी की जरूरत होती है। वहीं 2 हजार की आबादी के लिए 5 इंच पानी मिलने पर ही आपूर्ति की जा सकती है। कुछ बोरवेल में 2 इंच पानी भी नहीं मिल रहा है। ऐसे में हैंडपंप तो चलाए जा सकते हैं, लेकिन नल जल योजना के लिए यह पर्याप्त नहीं है।

जल जीवन मिशन पोर्टल के अनुसार टीकमगढ़ के चार ब्लॉकों में कुल 1,97,824  घर हैं। अब तक इनमें से केवल 1,10,518 घरों तक ही पानी पहुंचाया जा सका है। जबकि 80 हजार से भी ज्यादा घरों तक पानी पहुंचाने का काम बाकी रह गया है।

नल जल योजना को लेकर सामने आ रहे पानी के संकट से निपटने के लिए विभाग की प्रतिक्रिया पता लगाई तब पीएचई के कार्यपालन यंत्री अनिल कुमार लगरखा कहते हैं, 

विभाग धसान और जामनी नदी से पानी लाने पर विचार कर रहा है। इस पर सर्वे शुरू किया जा चुका है। नल जल योजनाएं तो सेंक्शन ही हैं, पानी का इंतजाम भी जल्द हो जाएगा।

टीकमगढ़ जिले में कुल 610 गांवो में जल जीवन मिशन के तहत जल संरचनाएं तैयार की जानी हैं।  इस मिशन का लक्ष्य साल 2024 तक नल जल योजना को पूरा कर गांवों के हर घर तक पानी पहुंचाना था। लेकिन जल संरचनाएं तैयार न होने की वजह से जल जीवन मिशन को 2028 तक पूरा करने के लिए समय दिया गया है।

भारत में स्वतंत्र पर्यावरण पत्रकारिता को जारी रखने के लिए ग्राउंड रिपोर्ट को आर्थिक सहयोग करें।

यह भी पढ़ें

वायु प्रदूषण से घुटते गांव मगर सरकारी एजेंडे से गायब

कचरे से बिजली बनाने वाले संयंत्र ‘हरित समाधान’ या गाढ़ी कमाई का ज़रिया?

पातालकोट: भारिया जनजाति के पारंपरिक घरों की जगह ले रहे हैं जनमन आवास

खेती छोड़कर वृक्षारोपण के लिए सब कुछ लगा देने वाले 91 वर्षीय बद्धु लाल

पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुकट्विटरइंस्टाग्रामयूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।

पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिल शब्दावली सरल भाषा में समझने के लिए पढ़िए हमारी क्लाईमेट ग्लॉसरी।

Author

  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins