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खेती छोड़कर वृक्षारोपण के लिए सब कुछ लगा देने वाले 91 वर्षीय बद्धु लाल

खेती छोड़कर वृक्षारोपण के लिए सब कुछ लगा देने वाले 91 वर्षीय बद्धु लाल
खेती छोड़कर वृक्षारोपण के लिए सब कुछ लगा देने वाले 91 वर्षीय बद्धु लाल

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बद्धु लाल कोरी जनवरी की सुबह की धूप के बीच अपने बगीचे में बरगद के पेड़ से बात कर रहे हैं। पेड़ की पत्तियों को सहलाते हुए वह कह रहे हैं,  

“आज तेरी पत्तियां इतनी रूखी-रूखी क्यों लग रही हैं..पानी चाहिए न?”

यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। वह हर रोज़ अपने बगीचे में आते हैं और पेड़ों को पानी देने और उनका ख्याल रखने में ही दिन व्यतीत करते हैं। 

बद्धु लाल कोरी हाल ही में अपनी उम्र के 91वें पड़ाव तक पहुंचे हैं। इतनी लंबी उम्र में उन्होंने कई बदलाव देखे हैं। देश को स्वतंत्रता के लिए लड़ते हुए, आज़ाद होते हुए और फिर लोकतंत्र आबाद होते हुए देखा। भूमंडलीकरण का दौर उनकी प्रौढ़ अवस्था में भारत में शुरू हुआ। इसी दौरान दुनिया भी जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीर दिखना शुरू हुई।

इन सारी घटनाओं ने कोरी की चेतना को काफी प्रभावित किया। यही कारण है कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 540 किमी दूर सतना ज़िला के एक छोटे से गांव नदना में रहते हुए उन्होंने अपनी जमा पूंजी प्रकृति के नाम कर दी है।

एक आम किसान के रूप में जीवन शुरू करने वाले बद्धु लाल ने न केवल अपने गांव, बल्कि पूरे समाज के लिए हरियाली की विरासत छोड़ने का कार्य किया है। उनका संघर्ष, परिश्रम, और प्रकृति के प्रति गहरी निष्ठा उनकी कहानी को असाधारण बनाती है।

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कोरी ने 1 एकड़ में शौकिया तौर पर वृक्षारोपण शुरू किया था मगर आज यह 15 एकड़ का एक हरित आवरण बन गया है। Photograph: (Ground Report)

स्वाभिमान से शुरू हुआ प्रकृति बचाने का सफ़र

बद्धु लाल कोरी को उनके पिता से 3 एकड़ ज़मीन पैत्रिक संपत्ति के रूप में मिली थी। मुख्य मार्ग से लगी इस ज़मीन पर वह पारंपरिक तरीके से गेहूं और चना की खेती करते थे। वह बताते हैं कि उनका जीवन शुरू से ही संघर्षों से भरा रहा है। 14 साल की उम्र में उन्होंने रेलवे में मजदूरी करना शुरू कर दिया था। यहां उन्हें मज़दूरी के रूप में 1.50 रुपए प्रतिदिन मिलते थे। इसके बाद उन्होंने गाय-भैंस चराने का काम भी किया।

खेती से होने वाली आमदनी के बारे में पूछने पर वो कहते हैं,

“3 एकड़ की जमीन में बस इतना हो पाता था कि मेरे चारों बच्चों का पेट भर जाए।”

वह बताते हैं कि एक बार उनके दोनो बेटे पड़ोसी के बगीचे में आम तोड़ रहे थे। उनका बड़ा बेटा कमलेश कोरी तब 8 साल का था। वहीं उनका छोटा भाई 6 साल का था। इस दौरान बगीचे के मालिक ने उनके बेटों को डांटते हुए दो-चार झापड़ जड़ दिए। सामाजिक तौर पर पिछड़े वर्ग से आने वाले कोरी को इस घटना ने बहुत प्रभावित किया। वह कहते हैं,

“इस घटना के बाद मैंने तय किया कि अब से मेरे बेटे किसी के यहां आम के लिए हाथ नहीं फैलाएंगे।” 

बद्धधु लाल ने उस घटना के बाद अपनी खेती और जीवन में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए। इस अपमानजनक अनुभव ने उन्हें पारंपरिक गेहूं और चना की खेती तक सीमित न रहने के लिए भी प्रेरित किया। इसके बाद उन्होंने बागवानी की ओर कदम बढ़ाने का फैसला लिया।

उन्होंने अपनी 3 एकड़ जमीन के एक हिस्से में आम के पौधे लगाए ताकि उनके बच्चे कभी किसी और के बगीचे में आम तोड़ने न जाएं। इसी के साथ लगभग 50 साल पहले बद्धु लाल कोरी ने प्रकृति के प्रति अपनी निष्ठा के साथ एक अनूठा अभियान शुरू किया।

एक एकड़ से 15 एकड़ तक का सफ़र

उन्होंने अपनी 1 एकड़ जमीन में 50 पेड़ लगाकर बागवानी की शुरुआत की। प्रारंभिक दिनों में यह काम केवल शौकिया तौर पर शुरू किया गया था। धीरे-धीरे उन्होंने खेती के अन्य तरीकों में भी बदलाव किए और सब्जियों एवं फलों की खेती शुरू की। इससे उनकी आय में भी वृद्धि होने लगी जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई।

अपने बगीचे में बच्चों को खेलता देख उन्हें ख़ुशी होती थी। मगर जल्द ही उन्होंने अपने आस-पास बदल रहे मौसम को महसूस करना शुरु किया। वह जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग जैसे शब्दों से परिचित नहीं थे। मगर खुद किसान होने के नाते उन्हें अनियमित बारिश, ओले गिरना और साल दर साल गर्मी का बढ़ना समझ आ रहा था।

गर्मी के दिनों में जब अपने घर में रहना कठिन हो जाता था तो वह इस बगीचे में आ जाते थे। इस अनुभव ने उन्हें बागवानी के पेशे को प्राकृतिक संरक्षण में बदलने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद वह अपनी मेहनत से जोड़े हुए पैसों से जो भी भूमि खरीदते उनमें पारंपरिक खेती की जगह वृक्षारोपण ही करते।

इसके लिए उन्हें सामाजिक तौर पर आलोचना और हास्य का शिकार भी होना पड़ा। मगर वह इन बातों से बिलकुल भी प्रभावित नहीं होते। 6 साल पहले पत्नी सुमित्रा के निधन के बाद भी उन्होंने हरियाली के प्रति अपने समर्पण को कम नहीं होने दिया। इसी प्रेरणा का ही फल है कि एक एकड़ से हुई यह छोटी शुरुआत आज 15 एकड़ के हरियाली क्षेत्र में बदल गई है। उनके द्वारा रोप गए 15 एकड़ के बगीचे में 400 से अधिक वृक्ष फल-फूल रहे हैं।

उनके लगाए गए पेड़ों में पीपल, नीम, बरगद, सागौन, आम, जामुन, अमरूद, केला और नींबू जैसे कई फलदार और छायादार वृक्ष शामिल हैं। इन वृक्षों ने न केवल पर्यावरण को शुद्ध किया है, बल्कि गांव को एक सूखा-रोधी क्षेत्र में बदलने में भी मदद की है।

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पानी के सीमित संसाधन होने के चलते इस उम्र में भी कोरी 2 किमी से पानी लाकर अपने पेड़ों को जीवित रखे हुए हैं Photograph: (Ground Report)

“खेती से आनाज मिल सकता है, पेड़ जीवन देते हैं”

हमने उनसे बात करते हुए यह पूछा कि वह भी अन्य लोगों की तरह इस ज़मीन पर खेती क्यों नहीं करते? इसका जवाब देते हुए वह कहते हैं,

“खेती से अनाज मिल सकता है, लेकिन पेड़ जीवन देते हैं। हवा, छाया, और पर्यावरण का संरक्षण पेड़ों के बिना संभव नहीं।”

आज भी उनके लिए इन पेड़ों की देखभाल करना आसान नहीं है। 15 एकड़ की ज़मीन में उगे इन पेड़ों को पानी देने के लिए उनके पास पर्याप्त साधन नहीं है। फिर भी बद्धु लाल सुबह 6 बजे से अपनी दिनचर्या शुरू करते हैं। 2 किलोमीटर दूर से पानी लाते हैं और फिर इन पेड़ों की सिंचाई करते हैं। उनका यह प्रयास दिखाता है कि दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ कोई भी कार्य असंभव नहीं है।

एक ओर जहां कई बड़ी कंपनियां केवल ग्रीन क्रेडिट के लिए पौधा रोपण कर रही हैं वहीं दूसरी ओर कोरी ने अपनी संपत्ति और जीवन दोनों प्रकृति के नाम कर दिया है। उनका मानना है कि अगर हर घर एक पेड़ लगाए, तो पूरी पृथ्वी हरी-भरी हो सकती है।

कोरी अपनी ज़मीन के साथ ही गांव के अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। वह गांव के लोगों से बात करके उनकी खाली ज़मीन पर पौधारोपण करते हैं और फिर खुद ही उसका ख्याल रखते हैं। संग्राम टोला गांव के हिम्मत सिंह बताते हैं,

“नदी के तट पर करीब एक एकड़ जमीन थी जिसमें कुछ उपज नहीं हो रही थी। इस पर बद्धु ने सागौन के पौधे लगा दिए। अब इनकी देख-रेख भी वही कर रहे हैं।” 

वहीं मप्र जैव विविधता बोर्ड के सेवानिवृत्त सदस्य सचिव जे एस चौहान कहते हैं, 

“संसाधनों के अभाव में भी बद्धु अपने प्रयासों को जारी रखे रहे. यह उनके दृढ़ संकल्प का ही परिचायक है। उनका ये भागीरथी प्रयास निश्चित ही आने वाली पीढ़ी को प्रेरित करेगा”

खेती से महरूम कोरी समाज

जिस कोरी जाति से बद्धु आते हैं। वह आज भी पिछड़ी हुई है। अधिकांश के पास जमीन तक नहीं है। ये अपने इलाक़ों के बड़े किसानों के यहां मजदूरी करते मिलते हैं या गांव में ही छोटी-मोटी दुकान चलाते हैं। युवा पीढ़ी तो गांव छोड़ कर काम की तलाश में बड़े शहरों में बस गई है। खुद बद्धु के दोनों बेटे मज़दूरी करते हैं।

मध्य प्रदेश में कोरी अनुसूचित जाति में आती हैं। यह बघेलखंड के जिलों सतना, रीवा, सीधी, शहडोल और पन्ना में ज्यादा पाई जाती है। इनका मुख्य काम पूर्व में जुलाहे का था। जनगणना 2011 के अनुसार मध्यप्रदेश में इनकी जनसंख्या 6 लाख 56 हजार 5 सौ 59 है। जिसमें ग्रामीण आबादी 3 लाख 58 हजार 609 है जबकि शहरी आबादी 2 लाख 97 हजार 960 है।

ऐसे में बद्धु का यह प्रयास और भी विशेष हो जाता है। उनकी विरासत के बारे में पूछने पर बद्धु कहते हैं,

“मैंने जीवन में जो कुछ कमाया वह सब पेड़ों को दे दिया। जहां तक जमीन थी उसमें में भी पेड़ लगा दिए। अब यही मेरी पूंजी हैं। बच्चों के लिए यही छोड़ जाऊंगा।”

  बद्धु  लाल कोरी का नदना गांव आज हरियाली का प्रतीक बन गया है। उनके प्रयासों ने गांव को एक नई पहचान दी है। उनकी कहानी यह सिखाती है कि छोटे-छोटे प्रयास भी बड़े बदलाव ला सकते हैं। यहां के कई किसानों ने बद्धु  कोरी की मदद से सागौन आदि के पेड़ भी लगा रखें हैं।

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