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गंगा का पानी दिल्ली को देने से क्यों डर रहा है यूपी?

पर्यावरण आज के 83वे ऐपिसोड में आज हमने बात की देश के प्रमुख अखबारों में छपी पर्यावर्णीय खबरों के साथ यमुना नदी के प्रदूषण को कम करने के लिए गंगा नदी के पानी को डायवर्ट करने की योजना में आए अवरोध पर। जानिए किस डर से उत्तर प्रदेश ने गंगा का पानी दिल्ली को देने पर जताई है आपत्ति।

विस्तृत हेडलाइंस

सिंगरौली में पेड़ों की कटाई पर सुनवाई: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में अडानी ग्रुप के कोल ब्लॉक के लिए प्रस्तावित 6 लाख पेड़ों की कटाई के मामले में सुनवाई होगी, जिसकी पहली तारीख 17 दिसंबर तय की गई है।


बीएलओ के लिए अतिरिक्त स्टाफ: सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) का काम का बोझ कम करने के लिए अतिरिक्त स्टाफ उपलब्ध कराया जाए। यह आदेश बीएलओ के सस्पेंशन और आत्महत्या से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान दिया गया।


भारत में ई-वेस्ट उत्पादन और रीसाइक्लिंग: 2024 में भारत ने 13,97,000 मीट्रिक टन से अधिक ई-वेस्ट पैदा किया, जिसमें से लगभग 11,600 मीट्रिक टन के करीब रीसाइकल किया गया।


गंगा-यमुना डायवर्जन पर उत्तर प्रदेश की चिंता: उत्तर प्रदेश सरकार ने गंगा के पानी को यमुना में डायवर्ट करने की योजना पर चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि अगर गंगा के 500 क्यूसेक पानी को डायवर्ट किया जाता है और किसानों को इसके इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जाती, तो वे इस योजना का विरोध करेंगे।


चार लेन हाईवे के लिए देवदार के पेड़: उत्तराखंड में गंगोत्री तक बनने वाले चार लेन हाईवे प्रोजेक्ट के लिए 7000 देवदार के पेड़ काटे जाने हैं। इसके विरोध में पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी समेत कई लोग 7 दिसंबर को प्रदर्शन करेंगे।


ला नीना का असर: वर्ल्ड मेटेरोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन (WMO) ने बताया है कि मार्च 2026 तक ला नीना के चलते भारत के कई हिस्सों, विशेष रूप से उत्तर भारत में, सर्दियां ज्यादा रह सकती हैं


सरकारी अस्पतालों में पैथोलॉजी सेवाओं पर आरोप: मध्य प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में पैथोलॉजी सेवाएं दे रही एक कंपनी ने 4 साल में 12 करोड़ से अधिक लोगों की जांच की और सरकार से ₹943 करोड़ वसूले। इस कंपनी पर बिल बढ़ाने, अनुचित टैक्स और ज्यादा रेट लगाने के आरोप हैं।

चर्चा

पॉडकास्ट की मुख्य चर्चा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गंगा का पानी यमुना में डायवर्ट करने की योजना पर जताई गई चिंता पर केंद्रित थी, हमारे पत्रकार पल्लव जैन ने इस विषय पर अपनी समझ हमारे साथ साझा की।

मामले की पृष्ठभूमि: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने जनवरी 2015 में आदेश दिया था कि यमुना नदी के बहाव (फ्लो) को मार्च 2017 तक सुधारा जाए। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के एक अध्ययन के अनुसार, यमुना में प्रति सेकंड 23 क्यूबिक मीटर पानी का बहाव होना चाहिए, जबकि वर्तमान में यह केवल 10 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड है।

योजना और आपत्ति: दिल्ली में यमुना के बहाव को बढ़ाने और प्रदूषण को कम करने के लिए, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अपर गंगा कैनाल से 500 क्यूसेक पानी को यमुना नदी में छोड़ने की योजना बनाई गई थी। यह एक अस्थायी समाधान था। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस पर आपत्ति जताई है क्योंकि यह डायवर्ट किया गया पानी यूपी के तीन जिलों से होकर गुजरेगा। यूपी सरकार को आशंका है कि अगर गंगा का पानी दिल्ली को दिया जाता है और यूपी के किसानों को इन नहरों से पानी इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी गई, तो वे विरोध करेंगे। इस योजना के लिए देवबंद कैनाल की क्षमता बढ़ाने के लिए आईआईटी रुड़की से स्टडी करने को कहा गया है, जिससे पता चलता है कि इसमें बड़े इंजीनियरिंग कार्य की आवश्यकता है।

स्थायी समाधान और नीति पर सवाल: यमुना के बहाव को बनाए रखने का स्थायी समाधान नदी के ऊपरी क्षेत्रों में तीन बांधों का निर्माण करना है ताकि मानसून के दौरान पानी जमा किया जा सके। हालांकि, अभी तक केवल एक ही बांध पर काम शुरू हुआ है और इसकी डेडलाइन 2036 के आसपास रखी गई है।

चर्चा के अंत में, वक्ताओं ने इस तरह के समाधानों की आलोचना की जो प्रदूषण के मूल स्रोत का समाधान करने के बजाय केवल पानी को बढ़ाकर प्रदूषण को कमजोर (डाइल्यूट) करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी नीतियां अपर्याप्त हैं और इस बात पर जोर दिया कि किसानों से अक्सर बांधों के लिए जमीन ली जाती है, लेकिन उन्हें सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है, जैसा कि बर्गी बांध और अन्य क्षेत्रों की कहानियों में देखा गया है। बड़े प्रोजेक्ट्स (जैसे कि प्रदूषित कान नदी को शिप्रा में मिलने से रोककर गंभीर नदी में डायवर्ट करना) समस्या को बाईपास करते हैं, समाधान नहीं देते।


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