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अरावली की परिभाषा को लेकर हुए बदलाव क्यों हैं चिंताजनक?

यह ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ के डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट का 76वां एपिसोड है। गुरूवार, 27 नवंबर को देश भर की पर्यावरणीय ख़बरों के साथ पॉडकास्ट में जानिए अरावली (Aravalli) की परिभाषा में विवादित बदलाव और चावल की नई वैराइटी के बचाव में सरकारी तर्कों के बारे में।


मुख्य सुर्खियां

बाढ़ और लैंड स्लाइड्स के चलते इंडोनेशिया के सुमात्रा आईलैंड में 10 लोगों की मौत हो गई और 6 लोग लापता हो गए।


यूनियन कैबिनेट ने बुधवार को 7,280 करोड़ रुपये के खर्च से रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट की मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए एक स्कीम को मंज़ूरी दी। इसका मकसद हर साल 6,000 मीट्रिक टन की कैपेसिटी विकसित करना है। इस स्कीम में ग्लोबल कॉम्पिटिटिव बिडिंग प्रोसेस के ज़रिए कुल कैपेसिटी को हिस्सों में पांच बेनिफिशियरी को देने का लक्ष्य है। हर बेनिफिशियरी को 1,200 MTPA तक की कैपेसिटी दी जाएगी।


बाढ़ में हुए नुकसान के मुआवजे को बढ़ाने, MSP की क़ानूनी गारंटी और इलेक्ट्रीसिटी अमेंडमेंट बिल 2025 को रद्द करने की मांग के साथ हज़ारों किसानों ने चंडीगढ़ में प्रदर्शन किया। बुधवार को आयोजित इस प्रदर्शन का आयोज संयुक्त किसान मोर्चा ने किया था। 


बुधवार को SIR से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए देश के चीफ जस्टिस सूर्यकान्त ने कहा कि बीते दिन जब वह एक घंटे के की सैर पर निकले थे तो उनकी तबियत बिगड़ने लगी थी। उन्होंने दिल्ली में प्रदूषण को देखते हुए सुनवाइयों को वर्चुअल मोड में शिफ्ट करने की सम्भावना जताई है।


एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 749 जिलों में से 447 जिलों की हवा में पीएम 2.5 का सालाना औसत राष्ट्रीय मानक से अधिक है। 90% ज़िले तो केवल मानसून में ही मानक रेंज में आ पाते हैं।


दिल्ली में रविवार को प्रदूषण के खिलाफ हुए प्रदर्शन के हिंसक हो जाने से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली की एक कोर्ट ने 6 लोगों को 3 दिन की पुलिस कस्टडी में भेजा है।


PM1, यानी एक माइक्रोन से भी छोटा पार्टिकुलेट मैटर, भारत की ज़हरीली हवा में एक जानलेवा एयर पॉल्यूटेंट है। दुनिया भर में, साइंटिस्ट्स ने चेतावनी दी है कि यह बहुत बारीक हिस्सा PM2.5 और PM10 से कहीं ज़्यादा गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है, फिर भी यह भारत के रेगुलेटरी फ्रेमवर्क से पूरी तरह बाहर है। चीन के हार्बिन में 2020 में हुई साइंटिफिक रिपोर्ट्स की एक स्टडी में पाया गया कि PM1 पार्टिकल्स में खतरनाक केमिकल्स और हेवी मेटल्स होते हैं, जिनमें लेड, कैडमियम, क्रोमियम और निकल शामिल हैं, और ये सभी दिल की बीमारी और कैंसर कारक हो सकते हैं। इस मामले में विस्तार से डाउन टू अर्थ की प्रीथा बनर्जी ने 26 नवंबर को प्रकाशित एक रिपोर्ट में लिखा है।


केंद्रीय कृषि शिवराज सिंह चौहान ने खरीफ सीजन की मुख्य कृषि फसलों के उत्पादन का प्रथम अग्रिम अनुमान जारी किया। इसके अनुसार, खरीफ की प्रमुख फसलों के उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि का अनुमान है, कुल खाद्यान्न उत्पादन 38.70 लाख टन बढ़कर 1733.30 लाख टन अनुमानित हैं। चौहान ने बताया कि देश में कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा ने फसलों को प्रभावित किया, लेकिन ज्यादातर क्षेत्रों को अच्छे मानसून से काफी लाभ हुआ है वर्ष 2025-26 के दौरान खरीफ चावल उत्पादन 1245.04 लाख टन अनुमानित है, जो गत वर्ष के उत्पादन से 17.32 लाख टन ज्यादा है। वहीं खरीफ मक्का का उत्पादन 283.03 लाख टन अनुमानित है, जो गत वर्ष के खरीफ मक्का उत्पादन से 34.95 लाख टन अधिक है।


मध्य प्रदेश के सीहोर में स्थित VIT यूनिवर्सिटी में छात्रों ने हिंसक प्रदर्शन किया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 4000 छात्रों ने कथित तौर पर कैंपस में खड़ी गाड़ियों और यूनिवर्सिटी की अन्य प्रोपर्टी को नुकसान पहुंचाया। छात्रों का आरोप है कि दूषित पानी और गन्दगी के चलते उन्हें पीलिया हो रहा है मगर इस पर शिकायत करने के बाद भी यूनीवर्सिटी प्रशासन ने कोई संज्ञान नहीं लिया उल्टा छात्रों के साथ ही बदसलूकी की गई। 


मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भोपाल बैरसिया मार्ग पर पेड़ काटे जाने को लेकर स्वतः संज्ञान लेते हुए एक बार फिर दोहराया कि NGT द्वारा गठित हाई पॉवर कमिटी की अनुमति के बिना कोई भी पेड़ नहीं काटा जाएगा। कोर्ट ने विधानसभा को निर्देश दिया कि वह यह बताए कि एमएलए क्वार्टर्स के लिए कितने पेड़ काटे गए और अभी कितने और काटे जाने हैं। कोर्ट ने कहा कि जो अधिकारी पेड़ काटने की अनुमति दे रहे हैं वह कुछ दिनों के लिए प्रदूषित प्रदेशों में जाकर रहेंगे तो उन्हें पता चलेगा कि पेड़ों की अहमियत क्या है?

विस्तृत चर्चा

अरावली परिभाषा विवाद (पल्लव जैन के साथ)

अरावली हिल्स दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान होते हुए गुजरात तक फैली हुई है, और यह थार डेजर्ट की रेत को इंडो-गैंगेटिक प्लेन्स में आने से रोकने वाला एक महत्वपूर्ण बैरियर है। यह दिल्ली में बारिश और इकोलॉजी को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

परिभाषा का परिवर्तन: दशकों से अवैध निर्माण और माइनिंग के कारण अरावली के कई हिस्से काट दिए गए हैं या गायब हो चुके हैं। पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से अरावली की एक यूनिफॉर्म परिभाषा बनाने को कहा था, क्योंकि मौजूदा परिभाषाएं अलग-अलग थीं जैसे फारेस्ट सर्वे ऑफ़ इंडिया 3 डिग्री स्लोप मानता था, और एक टेक्निकल कमेटी 30 मीटर हाइट और 4.57 डिग्री स्लोप।

पर्यावरण मंत्रालय का नया प्रस्ताव: पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित एक पैनल ने अरावली की नई परिभाषा प्रस्तावित की, जिसके अनुसार, केवल 100 मीटर तक ऊंचे लैंड मास को ही अरावली माना जाए, और इसमें स्लोप की डिग्री को शामिल नहीं किया गया। 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस सुझाव को स्वीकार कर लिया।

गंभीर पर्यावरणीय परिणाम: द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि केवल 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले लैंडफॉर्म को ही अरावली माना जाता है, तो 90% अरावली हिल्स संरक्षित श्रेणी से बाहर हो जाएगी। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) की रिपोर्ट के अनुसार, अरावली का केवल 8.7% एरिया ही 100 मीटर या उससे ज्यादा एलिवेशन का है। यह नई परिभाषा बचे हुए क्षेत्रों को माइनिंग और कंस्ट्रक्शन के लिए खोल देगी, जिससे गंभीर पर्यावरणीय नुकसान होंगे। FSI ने चेतावनी दी है कि अरावली के विनाश से थार डेजर्ट की रेत इंडो-गैंगेटिक प्लेन्स तक उड़कर आएगी, जिससे किसानों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी और दिल्ली जैसे राज्यों में प्रदूषण की स्थिति और ज्यादा गंभीर हो जाएगी। पॉडकास्ट में इस बात पर निराशा व्यक्त की गई कि पर्यावरण मंत्रालय की कमेटी आर्थिक हितों के लिए ऐसा ‘मजाक’ कर रही है, जब देश का चीफ जस्टिस भी दिल्ली में सांस लेने में दिक्कत महसूस कर रहा है।


जीन-एडिटेड चावल पर ICAR का जवाब (चंद्रप्रताप तिवारी के साथ)

यह चर्चा धान की दो नई जीन एडिटेड वैरायटीज—पूसा डीएसटी वन और डीआरआर धान 100 ‘कमला’—के फील्ड टेस्ट को लेकर उठे विवाद से संबंधित है। कोलेशन फॉर जीएम फ्री इंडिया संगठन ने आरोप लगाया था कि 2023-24 के दौरान इन किस्मों का ट्रायल डाटा पक्षपाती (बायस्ड) है और गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने दावा किया कि पूसा डीएसटी वन की पैदावार कई साइट्स पर उसके पैरेंट लाइन (एमटीयू 1001) के बराबर या उससे कम रही, और कमला ने बहुत मामूली बेहतर प्रदर्शन किया।

ICAR का खंडन और स्पष्टीकरण: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने आधिकारिक जवाब जारी करते हुए इन आरोपों को सिरे से खारिज किया। ICAR ने अपनी प्रक्रिया का बचाव करते हुए कहा कि वे लंबे समय से तय मानक प्रक्रिया (एआईसी आरपीआर) का पालन करते हैं, जिसमें ब्लाइंड कोडेड एंट्रीज को कई जगहों पर सालों तक टेस्ट किया जाता है।

कोलेशन पर पलटवार: ICAR ने कोलेशन पर डाटा का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगाया, कहा कि कोलेशन ने सभी ज़ोनों का एवरेज निकाला है, जिससे झूठा निष्कर्ष निकला है।

पूसा डीएसटी वन पर जवाब: ICAR ने स्पष्ट किया कि पूसा डीएसटी वन एक आइसोजेनिक लाइन है, इसलिए सामान्य कंडीशन में इसका प्रदर्शन पैरेंट के बराबर ही रहता है। हालांकि, इसे विशेष रूप से तनावपूर्ण स्थितियों (स्ट्रेस सिचुएशंस) (जैसे एल्कलिनिटी या सेलेनिटी) के लिए डिज़ाइन किया गया है, और ऐसे क्षेत्रों (जैसे जोन फोर) में इसने ज्यादा पैदावार दी है।

कमला पर जवाब: ICAR ने कहा कि कमला का टारगेट ज़ोन (जोन सिक्स) था, जहां उसकी पैदावार सांख्यिकीय रूप से अच्छी रही और उसने जल्दी पकने की क्षमता दिखाई। ICAR ने आरोप लगाया कि कोलेशन ने रवि 2023-24 सीजन के डाटा को पूरी तरह से इग्नोर किया।

डेटा चयन पर सफाई: सेलेक्टिव डाटा दिखाने के आरोप पर ICAR ने कहा कि केवल उन्हीं स्थलों को डाटा में शामिल किया गया जहां स्ट्रेस सिचुएशंस थीं और ट्रायल की निगरानी सही ढंग से हुई थी, क्योंकि यह एक तय प्रक्रिया है।

गुणवत्ता पर जवाब: दाने और पकाने की गुणवत्ता में अंतर के आरोप पर ICAR ने कहा कि यह अंतर सांख्यिकीय रूप से स्वीकृत सीमा (statistically accepted limit) के अंदर था।

संक्षेप में, ICAR ने अपनी ट्रायल प्रक्रिया का बचाव किया और कहा कि विशिष्ट साइट्स का चयन इसलिए आवश्यक था ताकि इन जीन एडिटेड वैरायटीज का प्रदर्शन उनकी लक्षित तनाव स्थितियों के तहत सत्यापित किया जा सके।

यह था हमारा डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट। ग्राउंड रिपोर्ट में हम पर्यावरण से जुडी हुई महत्वपूर्ण खबरों को ग्राउंड जीरो से लेकर आते हैं। इस पॉडकास्ट, हमारी वेबसाईट और काम को लेकर आप क्या सोचते हैं यह हमें ज़रूर बताइए। आप shishiragrawl007@gmail।com पर मेल करके, या ट्विटर हैंडल @shishiragrawl पर संपर्क करके अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं।

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We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

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