...
Skip to content

कानून और कला की ‘लिखंदरा’ सीमा अलावा

कानून और कला की ‘लिखंदरा’ सीमा अलावा
कानून और कला की ‘लिखंदरा’ सीमा अलावा

REPORTED BY:

मध्य प्रदेश की राज्य पुलिस सेवा की अधिकारी डॉ. सीमा अलावा अपनी प्रशासनिक कुशलता के लिए जानी जाती हैं. डिपार्टमेंट में उनकी छवि एक कर्मठ अधिकारी के रूप में है. मगर वह एक ‘लिखंदरा’ भी हैं. लिखन्दरा यानि वह कलाकार जो पिथौरा कला बनाते हैं. अलावा ने झाबुआ में अपनी पोस्टिंग के दौरान यह कला सीखी और बाद में वह जहाँ भी गईं यह कला उनके साथ चलती गई. खण्डवा के विभिन्न सरकारी भवनों में लगे उनके चित्र उनकी कलाकारी का नमूना हैं.

मर्डर केस की तफ्तीश के दौरान हुआ कला से परिचय

यह 2015 कि बात है. उस वक़्त डॉ. अलावा झाबुआ में बतौर एडिशनल एसपी कार्यरत थीं. इसी दौरान एक मर्डर केस में तफ्तीश के दौरान उनका एक गाँव में जाना हुआ. यहाँ उनकी नज़र घरों की दीवारों में बनी चित्रकारी पर पड़ी. उनकी नज़र वहीँ ठहर गई. वह कहती हैं कि उन्हें पहली नज़र में यह वर्ली कला जैसी दिखाई पड़ीं. “मगर जब गौर से देखा तो उसमें घर और गाँव के जीवन से सम्बंधित आकृतियाँ दिखाई पड़ीं. ऐसा आर्ट मैंने भीमबेटका में देखा था. ऐसे में सवाल उठा कि यह क्यों बनाया गया होगा?” डॉ. अलावा कहती हैं. 

मगर काम के दौरान हुआ यह परिचय अधूरा ही रहा. डॉ. अलावा तफ्तीश पूरी करके वापस अपने ऑफ़िस आ गईं. मगर उनका जिज्ञासु मन अभी भी वहीँ अटका हुआ था. आम तौर पर घरों को पेंटिंग्स से सजाने का शौख शहरी अभिजात्य वर्ग में देखने को मिलता है. ऐसे में ग़रीबी की मार झेल रहे इस समाज के लोगों द्वारा घरों को सजाने के लिए किए जा रहे इस उपक्रम के बारे में उन्होंने बाद में और जाना. 

Pithora Art Seema Alawa

ग़रीबी और कला का सम्बन्ध

डॉ. अलावा बताती हैं कि जब वह इस कला के बारे में जानने की कोशिश कर रही थीं तब उनकी मुलाक़ात कुछ पुराने कलाकारों से हुई. सुदूर गाँव में रहने वाले इन कलाकारों ने उन्हें बताया कि पहले वह इस कला को बनाने के लिए दूसरे गाँव तक भी जाया करते थे. इसे बनाने में अमूमन 3 से 4 दिन का समय लगता था. इसके लिए उन्हें एक हज़ार से 2 हज़ार के बीच मेहनताना मिलता था. मगर 4 दिनों में मज़दूरी से मिलने वाले मेहनताने से यह राशि कम थी. इसलिए बहुत से कलाकारों ने इसे करना छोड़ दिया. 

क्यों बनाते हैं पिथौरा?

पिथौरा भले ही अब कैनवास में उतारी जाने लगी हो. मगर यह आम शहरी चित्रकारी के शौख से जुदा है. पिथौरा राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के भील, भिलाला और राठवा जनजाति के भगवान हैं. यह चित्र उन्हीं को दर्शाते हैं. मान्यता के अनुसार दीपावली के बाद जब फ़सल पकने लगती है तब भील अपने भगवान का आह्वाहन करते हैं. इसे बनाना किसी उत्सव जैसा है. इस दौरान एक व्यक्ति जिसे बड़वा कहते हैं, अपने आराध्य के लिए गीत गाता है. चूँकि आदिवासी समुदाय के आराध्य प्रकृति से सम्बंधित हैं अतः इस कला में भी प्रकृति से सम्बंधित कलाकृतियाँ दिखाई देती हैं. कुछ लोग यह भी मानते हैं कि यह असल में पानी लाने की एक कथा का दर्शन है. चित्रों में बने घोड़े बाब देव का प्रतीक हैं. 

Pithora Art Seema Alawa

परम्परा को आगे बढ़ातीं डॉ अलावा

डॉ. अलावा ने उन कलाकारों से न सिर्फ इस कला को सीखा बल्कि इसे आगे भी बढ़ाया. वह कहती हैं कि जब भी वह ट्रांसफर होकर कहीं जाती हैं अपने कार्यालय में एक पेंटिंग ज़रूर लगाती हैं. बाकी अधिकारी इसे जिज्ञासा से देखते हैं. वह इस कला की कहानी बताती हैं. इस तरह डॉ. अलावा की बनाई यह पेंटिंग्स अब खण्डवा के कलेक्ट्रेट और अन्य सरकारी भवनों से निकल कर, मध्य प्रदेश के राजभवन और दोहा के भारतीय दूतावास तक पहुँच चुकी हैं. वह कहती हैं कि अपनी नौकरी की व्यस्तता के बीच वह इस कला से जुड़े हुए ग्रामीण कलाकारों को आगे बढ़ाने में पर्याप्त सहयोग नहीं कर पाई हैं. मगर आने वाले दिनों में वह इस हेतु भी प्रयास करेंगी.

अवसाद के दिनों में कला बनी सहायक

डॉ. अलावा की ज़िन्दगी हमेशा इतनी सरल नहीं रही. कोरोना में अपने पति की असमय मृत्यु के बाद वह अवसाद में भी गईं. यह वह समय था जब उन्हें सब कुछ कठिन लगने लगा. मगर अपने बच्चों और इस कला के सहयोग से वह अवसाद से बाहर निकलने में सफल रहीं. उन दिनों के बारे हमने बताते हुए वह कहती हैं, “पहले तो मैं शौख से पेंटिंग करती थी. उस दौरान मैंने ज़िद से पेंटिंग की. जब तक पेंटिंग कर रहे हैं तब तक कोई और विचार मन में नहीं आता था.” समय ने जिन रंगों को उनसे दूर किया वह रंग उन्होंने अपनी कला में उतार दिए. मगर उनकी कला का सफ़र अभी लम्बा है. वह कहती हैं, “मेरा मन है कि मैं दुनिया की सबसे बड़ी पिथौरा बनाऊ. मैंने खण्डवा की पुलिस लाइन में 41 फ़ीट लम्बी पिथौरा बनाई है. मेरा मन है कि इसी तरह से मैं पिथौरा के ज़रिए एक रामायण बनाऊं. वह कैसे करेंगे कब करेंगे यह नहीं पता मगर करेंगे ज़रूर.”

Keep Reading

पहचान और बाज़ार के लिए तरसती झाबुआ की गुड़िया कला

महँगे ज़री लहँगों के पीछे के कारीगरों के हाथ ख़ाली हैं

Follow Ground Report for Environmental News From India. Connect with us on FacebookTwitterKoo AppInstagramWhatsapp and YouTube. Write us on GReport2018@gmail.com and subscribe our free newsletter

Don’t forget to check out our climate glossary, it helps in learning difficult environmental terms in simple language.

Author

  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins