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मध्यप्रदेश में खनन क्षेत्रों में नहीं हो रहा DMF Fund का सही उपयोग

मध्यप्रदेश में खनन क्षेत्रों में नहीं हो रहा DMF Fund का सही उपयोग
मध्यप्रदेश में खनन क्षेत्रों में नहीं हो रहा DMF Fund का सही उपयोग

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मध्यप्रदेश एक खनिज बहुल राज्य है। यहां कोयला और बाक्साइट जैसे जरूरी खनिज बहुतायत से पाए जाते हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2024 की फरवरी तक मध्यप्रदेश का खनिज उत्पादन मूल्य 3,558,602,000 रुपये तक पहुंच गया था। वहीं खनन प्रदेश की जीडीपी में 3.18 फीसदी का योगदान देता है।  हालांकि इस भारी भरकम आंकड़े का एक दूसरा पहलू भी है जो काफी गंभीर है। 

इन खदानों के इर्द गिर्द बसने वाली आबादी इस खनन से काफी प्रभावित होती है। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा डीएमएफ (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन) की स्थापना की गई है। डीएमएफ के माध्यम से खदानों से प्रभावित आबादी के लिए शिक्षा, पानी, स्वास्थ आदि को बेहतर करने के लिए परियोजनाएं चलाई जानी थी। लेकिन साल 2023 में सीएजी की एक रिपोर्ट में मध्यप्रदेश में डीएमएफ के क्रियान्वयन  में काफी अनियमितताएं पाईं गई हैं, जो कि 206 करोड़ से भी अधिक हैं। आइये जानते है क्या होता है डीएमएफ, और क्या हैं इसके क्रियान्वयन में अनियमितताएं? 

मध्यप्रदेश में डीएमएफ में आर्थिक विसंगतियां 

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने मध्य प्रदेश के खनिज संसाधन विभाग के प्रशासन और निधियों के उपयोग पर एक ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत की है। यह रिपोर्ट 2021 तक की है जिसमें बालाघाट, छिंदवाड़ा, कटनी, सतना, और सिंगरौली जैसे प्रमुख 22 जिलों के डीएमएफ का अध्ययन किया गया। 

इस ऑडिट के दौरान, राजस्व की कम कटौती, कार्यों में देरी, मशीनरी के गैर-उपयोग पर वसूली न होना, और गलत दरों के कारण अतिरिक्त लागत जैसी विभिन्न अनियमितताएँ पाई गईं। इन अनियमितताओं का कुल आर्थिक प्रभाव 206.21 करोड़ था, जिसमें DMF नियमों के तहत निर्धारित योगदान की अनुपालन में कमी और कार्यों के निष्पादन में विभिन्न प्रकार की खामियां शामिल थीं। 

उदहारण के तौर पर सिंगरौली सहित 6 जिलों में डीएमएफ में अनियमितताएँ पाई गईं, जिसमें 25 पूर्ण किए गए कार्यों के लिए स्वीकृत राशि 42.16 करोड़ थी। इस राशि में से केवल 32.96 करोड़ का उपयोग किया गया, जिससे 9.20 करोड़ की वसूली योग्य राशि शेष रह गई। यह अनियमितता 2018-19 से 2020-21 की अवधि के दौरान हुई, जिससे यह स्पष्ट होता है कि DMF फंड का प्रभावी उपयोग नहीं किया गया। 

नीमच और सिंगरौली डीएमएफ को छोड़ कर 7 डीएमएफ ने भुगतान की हुई राशि और बकाया राशि का रजिस्टर तक नहीं तैयार किया गया था। वहीं रीवा, जबलपुर, और भोपाल के 3 फर्म में सामान की नियत कीमत से अधिक भुगतान किया गया है। इन फर्मों में 1.06 करोड़ से अधिक का अतिरिक्त भुगतान किया गया है, जो कि अनुचित है। स्वयं ऑडिट रिपोर्ट में इस विषय से संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने की बात कही गई है।  

इस रिपोर्ट में एक और ट्रेंड देखा जा सकता है कि डीएमएफ फंड में कुल प्राप्तियां 2019-20 की तुलना में 2020-21 में 3.21 प्रतिशत बढ़ गई थीं, हालांकि इसी अवधि के दौरान, फंड से व्यय 30.94 प्रतिशत कम हो गया था। 31 मार्च, 2021 तक प्रदेश के 22 जिलों के डीएमएफ में, 2353.16 करोड़ के कुल उपलब्ध डीएमएफ फंड का केवल 49.43 फीसदी हिस्सा खर्च किया गया था। यानी 1,189.88 करोड़ की बड़ी धनराशि उपयोग में नहीं लाइ जा सकी।

मध्यप्रदेश में डीएमएफ के क्रियान्वयन को लेकर आई अनियमितताएं 

डीएमएफ के नियमों यह स्पष्ट किया गया है कि, एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 2 बोर्ड मीटिंग, और 4 कार्यकारी समिति की बैठकें होनी चाहिए। इसके अलावा कानून में डीएमएफ के पांच साल का पर्स्पैक्टिव प्लान, वार्षिक बजट इत्यादि तैयार किये जाने का भी जिक्र किया गया है। लेकिन मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं हुआ। 

ऑडिट द्वारा 3 वर्षों के दरमियान हुई पड़ताल से पता चलता है कि नौ चयनित DMFs के रिकॉर्ड की जांच के दौरान, केवल 18 बोर्ड बैठकें आयोजित की गईं जबकि आवश्यक 54 बैठकें होनी चाहिए थीं। वहीं केवल 33 कार्यकारी समिति की बैठकें आयोजित की गईं जबकि आवश्यक 108 बैठकें होनी चाहिए थीं।

मध्यप्रदेश के नौ चयनित डीएमओ के रिकॉर्ड की जांच के दौरान पाया गया कि केवल पांच डीएमएफ कार्यकारी समिति ने परस्पेक्टिव प्लान तैयार किया गया था। यह भी पाया गया कि कटनी में डीएमएफ फण्ड से 11 कार्य कराये गये लेकिन उन्हें परस्पेक्टिव प्लान में शामिल नहीं किया गया। 

सिंगरौली को छोड़कर किसी भी डीएमएफ द्वारा हर साल वार्षिक कार्य योजना तैयार नहीं की जाती थी। सिंगरौली में वर्ष 2018-19 एवं 2019-20 में वार्षिक कार्य योजना तो तैयार की गयी लेकिन बोर्ड से अनुमोदित नहीं करायी गयी। जबकि वर्ष 2020-21 में न तो वार्षिक कार्य योजना तैयार की गई और न ही इसे बोर्ड से अनुमोदित कराया गया। यह भी देखा गया कि किसी भी डीएमएफ ने अपना वार्षिक बजट तैयार नहीं किया था। 

हालांकि मध्यप्रदेश में डीएमएफ को लेकर यह पहला मामला नहीं है जहां विसंगतियां देखने मिली हों। इससे पहले भी 2018 मध्यप्रदेश में हुए के अध्ययन में पाया गया कि मध्यप्रदेश में उच्च प्राथमिकता के कार्यों को नजरअंदाज करते हुए, फंड सड़क इत्यादि के निर्माण पर खर्च किया गया। अब ये 2021 तक का हाल बताती सीएजी की रिपोर्ट बड़े पैमाने पर प्रशासनिक अनुपालन की कमी, फंड प्रबंधन में विसंगतियाँ, कार्य निष्पादन में अनियमितताएँ, और सूचना की पारदर्शिता का अभाव दर्शा रही है।

मध्यप्रदेश के प्रमुख खदानों वाले जिले 

मध्य प्रदेश के सिंगरौली, सतना, छिंदवाड़ा, बालाघाट, और अनूपपुर प्रमुख जिले हैं जहां बड़े पैमाने में खनन की गतिविधि होती है। सिंगरौली में मुख्य रूप से कोयला का खनन होता है, और यहां एनटीपीसी का सिंगरौली सुपर थर्मल पावर स्टेशन प्लांट स्थित है, जो ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सतना में सीमेंट के लिए कच्चे माल का खनन किया जाता है। सतना में प्रिज्म, बिड़ला, और मैहर सीमेंट प्लांट है। 

छिंदवाड़ा में लौह अयस्क का खनन होता है, जबकि बालाघाट में तांबा और जस्ता के खनन की गतिविधियाँ हैं। अनूपपुर में भी खनिज संसाधनों का समृद्ध भंडार है, जिसमें कोयला और अन्य खनिज शामिल हैं। इन सब के अतरिक्त सीधी, कटनी इत्यादि जिलों में पर्याप्त मात्रा में खनन होता है। 

क्यों ज़रुरी है डीएमएफ? 

डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन (डीएमएफ) एक महत्वपूर्ण अलाभकारी ट्रस्ट है जिसे 2015 में भारत के खनिज और खनन कानून में संशोधन के माध्यम से स्थापित किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य खनन से प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे का विकास करना है। 

इस फंड का 70% उच्च प्राथमिकता वाली परियोजनाओं जैसे अस्पताल, स्कूल और स्वच्छ पानी की व्यवस्था पर खर्च किया जाता है, जबकि शेष 30% अन्य विकास कार्यों पर। डीएमएफ मुख्य रूप से खनन प्रभावित समुदायों के जीवन स्तर में सुधार लाने और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किया गया है। 

सीएजी के ऑडिट के अनुसार मध्यप्रदेश में डीएमएफ के क्रियान्वयन में आर्थिक विसंगतियों और प्रशाशनिक अनियमितताओं की भरमार हैं। इसका आलम यह है कि, मध्यप्रदेश में खनन से सीधे तौर पर प्रभावित जिलों की सूची तक नहीं तैयार की गई है। इसके जवाब के तौर सीएजी से कहा गया है कि, 2022 में आई  PMKKKY स्टेट गाइडलाइन के बाद पूरे राज्य को ही प्रत्यक्ष प्रभवित क्षेत्र घोषित किया गया है।  ये आंकड़े साफ तस्वीर पेश करते हैं कि डीएमएफ का सही इस्तेमाल खनन से प्रभावित आबादी के हित के लिए नहीं किया गया है। भारत सरकार ने हाल ही में डीएमएफ को लेकर नई गाइडलिने जारी की है, जिसके बारे में आप यहां पढ़ सकते हैं। 

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