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भोपाल वेस्टर्न बायपास का नया रूट भी पर्यावरणविदों को संतुष्ट नहीं कर सका

Western Bypass Bhopal
भोपाल सीहोर बायपास के बीच फंदाकला रोड जहां नया रिंग रोड कनेक्ट होगा

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मध्य प्रदेश सरकार ने विवादास्पद वेस्टर्न बायपास रोड परियोजना के नए डिजाइन को मंजूरी दे दी है, लेकिन पर्यावरणविदों का कहना है कि यह बदलाव महज दिखावा है और भोपाल के प्राकृतिक स्वरूप पर मंडराता खतरा अभी भी बना हुआ है।

नया रूट, पुरानी समस्याएं

मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एमपीआरडीसी) ने परियोजना का रूट 40.90 किलोमीटर से घटाकर 35.6 किलोमीटर कर दिया है। इससे लागत भी 3000 करोड़ से घटकर 2600 करोड़ रुपए हो गई है। अब यह सड़क मंडीदीप के इटायाकलां के बजाय 11 मील के पास प्रतापपुर से शुरू होकर इंदौर रोड पर फंदा जोड़ से आगे तक जाएगी।

एमपीआरडीसी के प्रबंध निदेशक भरत यादव का कहना है, “यह बदलाव भूमि अधिग्रहण से जुड़े विवादों और पर्यावरणीय चिंताओं को कम करने के लिए किया गया है।”

नए डिजाइन में रातापानी टाइगर रिजर्व के महाबड़िया स्थित बफर क्षेत्र और समसगढ़ शिवमंदिर को बाहर रखा गया है। कोलांस नदी पर 500 मीटर का ओवरब्रिज और वन क्षेत्र में 12 फीट ऊंची तारबंदी के साथ 12 वायडक्ट्स (माइनर ब्रिज और एनिमल अंडरपास) बनाने की योजना है। इस 6-लेन सड़क के बनने से डेढ़ घंटे की यात्रा महज 30 मिनट में पूरी हो सकेगी।

अर्बन टाइगर की चुनौती

भोपाल अर्बन टाइगर कॉरिडोर के संरक्षण को लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में याचिका दायर करने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर खान चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं, “भोपाल एकमात्र ऐसा शहर है जहां नगर निगम सीमा के भीतर बाघ रहते हैं और दिखाई देते हैं। दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र उनके प्रजनन के लिए अहम है। अंडरपास और ऊंचे पुल कुछ मदद कर सकते हैं, लेकिन इस क्षेत्र में ट्रैफिक और निर्माण का बढ़ना वन्यजीवों को बुरी तरह प्रभावित करेगा।”

बायपास का लगभग 5.45 किलोमीटर हिस्सा अभी भी बाघों के विचरण क्षेत्र से होकर गुजरेगा। यह क्षेत्र वन्यजीवों के आवागमन, आवास और प्रजनन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। हालांकि एनजीटी में वन विभाग ने भोपाल सामान्य वनमंडल के वन क्षेत्र में कोई अधिसूचित बाघ कॉरिडोर होने से इनकार किया है, परंतु कई अध्ययनों में इस क्षेत्र की महत्ता स्थापित हो चुकी है।

भोज वेटलैंड पर मंडराता खतरा

Kulas River Bhoj Wetland

पर्यावरण कार्यकर्ता सुभाष सी पांडे स्थिति की गंभीरता को समझाते हुए कहते हैं, “रूट का 12 किलोमीटर क्षेत्र इतना संवेदनशील है कि यदि वहां सड़क बनेगी तो कैचमेंट बर्बाद होगा ही। नदी का पानी तालाब तक नहीं पहुंच पाएगा और बड़ा तालाब जख्मी हो जाएगा।”

बायपास का संशोधित मार्ग अभी भी भोज वेटलैंड के जलग्रहण क्षेत्र के 12 गांवों से होकर गुजरता है और कोलांस व उलझावन नदियों को प्रभावित करता है। पर्यावरणविदों का तर्क है कि सड़क निर्माण से वर्षा का पानी बड़े तालाब तक पहुंचने में बाधा आएगी, जिससे इसकी जल आपूर्ति खतरे में पड़ जाएगी और अन्य क्षेत्रों में बाढ़ जैसे हालात बनेंगे।

इस मुद्दे पर एमपीआरडीसी के अधिकारियों का कहना है कि कोलांस नदी पर ओवरब्रिज बनाने की तैयारी है और इसका सर्वे काम किया जा रहा है। ब्रिज बनने से पानी नीचे निकलकर तालाब में आएगा।

वृक्षों की कटाई का विवाद

परियोजना में पेड़ों की कटाई का मुद्दा भी बरकरार है। आधिकारिक आंकड़े 3259 पेड़ों की कटाई बताते हैं, जबकि पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आरोप है कि परियोजना में 8 से 20 हजार पेड़ काटे जाएंगे।

नागरिक आंदोलन की आवाज

साउथ वेस्टर्न मूवमेंट बायपास रोड स्टीयरिंग कमेटी के नेतृत्व में पर्यावरणविद् और नागरिक लगातार इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। कमेटी के सदस्य डॉ. राजीव जैन बताते हैं, “ग्रामीण कैचमेंट, जो वेटलैंड कैचमेंट का करीब 80 प्रतिशत हिस्सा है, अब तक अप्रभावित है, जिससे भोज वेटलैंड संरक्षित रहा है। परंतु नया बायपास कोलांस नदी जैसी मुख्य जलधारा को बाधित करेगा। इससे जल-गुणवत्ता, भूजल, प्रवासी पक्षी और स्थानीय जलवायु प्रभावित होगी।”

पर्यावरण कार्यकर्ता अजय दुबे ने चेतावनी देते हुए कहा, “हम इस परियोजना पर बारीकी से नजर बनाए हुए हैं। यदि सरकार ने इस विनाशकारी परियोजना को बंद नहीं किया तो हम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।”

कानूनी अड़चनें

सरकार ने नए रूट की मंजूरी भले ही दे दी हो, परंतु परियोजना भोज वेटलैंड नियम 2022 के दायरे में उलझ गई है, जो नदी के दोनों ओर 250 मीटर के निर्माण पर प्रतिबंध लगाता है। इससे बचने के लिए एमपीआरडीसी के अधिकारी मैदान में उतरकर सर्वे कर समाधान तलाशने में जुटे हैं।

भविष्य की राह

भोपाल वेस्टर्न बायपास रोड परियोजना विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच नाजुक संतुलन की मांग करती है। पर्यावरणविदों का मानना है कि केवल रूट बदलने या कुछ ओवरब्रिज बनाने से समस्या का स्थायी समाधान नहीं होगा। उनकी मांग है कि इस परियोजना को बंद कर भोपाल के पूर्वी छोर पर बने बायपास को 6 लेन करने जैसे वैकल्पिक समाधानों पर विचार किया जाए।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार पर्यावरणविदों और कार्यकर्ताओं की चिंताओं को गंभीरता से लेते हुए इस परियोजना पर पुनर्विचार करेगी या फिर झीलों के शहर की पहचान दांव पर लगाकर विकास के नाम पर यह विवादास्पद सड़क बनाने में आगे बढ़ेगी।

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