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“यहाँ 40 परसेंट बेकरी बंद हो चुकी हैं”, क्या हैं भोपाल के बेकरीवालों के चुनावी मुद्दे?

“यहाँ 40 परसेंट बेकरी बंद हो चुकी हैं”, क्या हैं भोपाल के बेकरीवालों के चुनावी मुद्दे?
“यहाँ 40 परसेंट बेकरी बंद हो चुकी हैं”, क्या हैं भोपाल के बेकरीवालों के चुनावी मुद्दे?

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मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल का पुराना भोपाल वाला हिस्सा ऐतिहासिक रूप से नवाबों और बेग़मों की रिवायत के लिए मशहूर है. जितनी यहाँ की ताज-उल-मस्जिद जैसी पुरानी इमारतें प्रसिद्द हैं उतना ही यहाँ के लोगों का खाने का शौक. भोपाल का यह इलाका बेकरी के उत्पादों के लिए मशहूर है. यहाँ लगभग 100 से भी ज़्यादा साल पुरानी बेकरी हैं. यहाँ काम करने वालों और यह उत्पाद बेचने वालों से बात करने पर पता चलता है कि इस इंडस्ट्री में काफी बदलाव हो चुके हैं. 

Bhopal Bakers Problem in MP Elections 2023

चौथी पीढ़ी काम कर रही है

इब्राहिमपुरा इलाके में स्थित नन्ने भाई टोस्ट कॉर्नर अभी खुलने को है. यहाँ मौजूद काशिफ खान एक-एक करके अलग-अलग तरह के टोस्ट काउंटर में सजा रहे हैं. काशिफ़ अपने घर की चौथी पीढ़ी के रूप में यह काम संभाल रहे हैं.

“हमें बेकरी का काम करते हुए क़रीब 100 साल हो चुके हैं. हमारे दादा के दादा (great grandfather) ने यह काम शुरू किया था.” काशिफ़ हमें बताते हैं. खुद काशिफ़ बीते 5 सालों से अपना पुश्तैनी काम संभाल रहे हैं.

बाकरखानी है विशेषता      

Bhopal Bakers Problem in MP Elections 2023

न्यू भोपाल बेकरी साल 1978 से स्थापित है. यह बेकरी अब किसी ब्राण्ड की तरह मशहूर है. यहाँ मौजूद दानिश अली बताते हैं, “भोपाल की बेकरी शीरमाल और बाकरखानी के लिए मशहूर हैं.” दानिश कहते हैं कि पुरानी दिल्ली और लखनऊ में भी यह काम होता है मगर बाकरखानी के लिए भोपाल की बेकरी ज़्यादा मशहूर हैं. काशिफ़ और दानिश दोनों इस बात को दोहराते हैं कि यह पूरी इंडस्ट्री कारीगरों द्वारा ही चलाई जाती है. दानिश कहते हैं,

“कितने मैदे में कितना सोडा डलेगा से लेकर ओवन में उसे कितनी देर पकाना है यह सब कारीगर मज़दूर ही समझता है. इस इंडस्ट्री में मशीन के रूप में केवल ओवन बस है बाकी पूरी इंडस्ट्री मज़दूर चलाता है.”

कारीगरों की दिक्कत

समय के साथ जहाँ एक ओर महंगाई बढ़ी है वहीँ दूसरी ओर इस इंडस्ट्री में मज़दूरों की संख्या कम हुई है. काशिफ़ मानते हैं कि प्रदेश में रोज़गार के अवसर कम होने के कारण लोग बाहर पलायन कर रहे हैं जिसके कारण कारीगरों का मिलना मुश्किल हो गया है. वहीँ दानिश कहते हैं,

“पहले यहाँ जितनी बेकरी थीं उनमें से 40 प्रतिशत बंद हो गई हैं. उनमें जो काम करते थे वो बेरोजगार हो गए. पहले वो लोग बाहर गए फिर उनको देखकर अगली पीढ़ी ने भी यह काम करने से परहेज कर लिया. इसलिए कारीगर कम हो गए है.”

बढ़ती लागत सिकुड़ता बाज़ार

ये लोग बताते हैं कि बीते 5 सालों में ही उत्पादों की कीमत दोगुनी हो गई है. दानिश के अनुसार इसकी वजह लागत का बढ़ना है.

“मान लीजिए अगर पहले 140 का रिफाइन ऑइल आता था तो वो अब 240 का आ रहा है. मैदा का भाव भी इसी तरह बढ़ा है. इसलिए लागत बढ़ गई है और भाव भी बढ़ गए हैं.” दानिश कहते हैं.

वह आगे बताते हैं कि जो बाकरखानी 5 साल पहले 40 रूपए की मिलती थी अब उसी को वह 80 रूपए में बेचते हैं. 

Bhopal Bakers Problem in MP Elections 2023

मगर बढ़ती महंगाई के साथ इस इंडस्ट्री का बाज़ार सिकुड़ गया है.

“जो ग्राहक पहले 5 किलो टोस्ट ले जाता था अब 250 ग्राम ले जाता है. क्योंकि यह टोस्ट उसके बजट के बाहर हो गया है.”

इसी बात को दोहराते हुए काशिफ़ कहते हैं कि पहले वह दिन भर में 10 हज़ार का धंधा कर लेते थे मगर वह अब घट कर 5 हज़ार रह गया है.                  

क्या हैं चुनावी मुद्दे

काशिफ़ कहते हैं कि सरकार को सबसे पहले बेरोज़गारी दूर करने के बारे में सोचना चाहिए. “लोगों के पास रोज़गार होगा तब उनके पास पैसा होगा. पैसा होगा तो हमारा समान ख़रीदने के लिए उनको सोचना नहीं पड़ेगा.”

वहीँ दानिश के अनुसार पार्टियों की प्राथमिकता महँगाई कम करना होना चाहिए. वह कहते हैं कि उनके उत्पाद लोगों की ‘ग्रोसरी बकेट’ का हिस्सा हैं मगर बजट से बाहर होने पर यह उत्पाद ही सबसे पहले बकेट से बाहर किए जाते हैं. दानिश कहते हैं, “सरकार महंगाई कम करेगी तो हमें भी माल सस्ता मिलेगा फिर हम भी अपने रेट कम करके ग्राहकों को बेच सकेंगे.”

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  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

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