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मिलिए वर्षा जल संचय के अनोखे तरीके खोजने वाले सुभाजित मुखर्जी से

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मिलिए वर्षा जल संचय के अनोखे तरीके खोजने वाले सुभाजित मुखर्जी से
मिलिए वर्षा जल संचय के अनोखे तरीके खोजने वाले सुभाजित मुखर्जी से

मुंबई के सुभाजित मुखर्जी भूजल संरक्षण के लिए अनूठे प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कुछ छोटी लेकिन बेहद उपयोगी तकनीकों के माध्यम से भूजल संरक्षण को सुनिश्चित करने का प्रयास किया है। बड़ी इमारतों वाली रहवासी सोसाइटी हो या फिर छोटे घर, उनके पास हर किसी के लिए भूजल संरक्षण के लिए तकनीक उपलब्ध है। 

केन्द्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तरी भारत के कई राज्यों में भूजल का दोहन एक बड़ी समस्या है। रिपोर्ट में दिए गए आँकड़ों के अनुसार 2023 में कुल 449.08 बिलियन क्यूबिक मीटर (bcm) पानी भूजल के रूप में संचयित हुआ था। मगर इसी साल 241.34 बीसीएम भूजल की खपत भी की गई।   

सुभाजित का मानना है कि बारिश के पानी का संरक्षण कर और दैनिक कार्यों में इस्तेमाल में आने वाले पानी (Grey Water) का पुनः उपयोग करके भूजल संकट को ख़त्म किया जा सकता है।

पानी को बचाने के आसान और अनोखे उपाय

सुभाजित ने बताया कि अरसे पहले खराब हवा के चलते उनकी तबियत बिगड़ गई थी। इसके बाद साल 2010 से उन्होंने वृक्षारोपण को लेकर काम करना शुरू किया। लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या पानी की आ रही थी। उनसे लोग कहते थे कि उन्हें अपने उपयोग के लिए टैंकर मंगवाना पड़ता है, ऐसे में पेड़ों की देखभाल अधर में अटक जाती है। 

साल 2015 के दौरान सुभाजित ने इस समस्या पर काम करना शुरू किया। उन्होंने इस पर आईआईटी बॉम्बे के सहयोग से रिसर्च की और समाधान खोजे। सुभाजित अंततः इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि, पानी के किफायती उपयोग, रीसाइक्लिंग, और वर्षा जल संचय कर के एक बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। 

सुभाजित ने इन सभी के लिए उपकरण बनाए और लोगों तक इसकी जानकारी पहुंचाई। सुभाजित ने इस काम को काफी आसान तरीके से और घरेलू उपकरणों के उपयोग से किया, ताकि आम लोग भी इसे अपना सकें।  

रिसाइकल्ड नहीं, ‘न्यू वाटर’

सुभाजित का मानना है पीने के अतिरिक्त उपयोग किये गए पानी (ग्रे वाटर) को साफ करके दोबारा उपयोग किया जा सकता है। सुभाजित ने बर्तन, कपड़े धोने और दैनिक प्रक्रिया में उपयोग किये गए पानी को दोबारा उपयोग लायक बनाने के लिए प्लास्टिक के छोटे ड्रम, पाइप, और आम कपड़ों के इस्तेमाल से उपकरण बनाए हैं। इसमें गंदा पानी जाकर फिल्टर होता है। इस पानी का उपयोग हम फ्लश, गाड़ियों की धुलाई, और पौधों को सींचने में करते हैं, और इसे बनाना बहुत ही आसान है। 

इसे सुभाजित बायो-माइक्रोन वाटर फिल्टर कहते हैं। इसे बनाने का कुल खर्च तक़रीबन 4 हजार आता है। इसमें लगभग 100 लीटर की क्षमता का एक कनस्तर होता है। इस कनस्तर के अंदर पीवीसी पाइप से जुड़ा हुआ एक फिल्टर लगा होता है। यह फिलटर एक विशेष कपड़े, जियोफैब्रिक का बना होता है जिसमें रसायन भरे हुए होते हैं। 

इस तकनीक में हम अपने सिंक के पाइप को कनस्तर में लगे पीवीसी पाइप से जोड़ देते हैं। इसके बाद पानी साफ होता है, और नीचे जमा होता रहता है। कनस्तर के नीचे एक नल लगा होता है जिससे हम अपने उपयोग के अनुसार पानी निकाल सकते हैं। 

सुभाजित ने कहा कि आम तौर पर लोगों का नजरिया रिसाइकल्ड पानी को लेकर नकारात्मक रहता है। लेकिन सुभाजित इसे रीसाइकल्ड वाटर न कह कर न्यू वाटर कहते हैं। सुभाजित मानते हैं कि,

जब दुनिया भर में पानी की इतनी किल्लत है, ऐसे में साफ पानी को फ्लश में बहाना एक क्रिमिनल एक्ट है।

वर्षा जल संचयन के आसान और टिकाऊ तरीके 

सुभाजित का दूसरा बड़ा काम भूजल स्तर को बढ़ाना है। इसे सुभाजित आसान भाषा में बैंक कहते हैं, जहां पानी हमेशा के लिए सुरक्षित रहता है। सुभाजित ने भूजल संग्रहण के लिए भी जगह और जल ग्रहण क्षमता के हिसाब से 2 मॉडल और उपकरण बनाए हैं। 

पहला मॉडल एक छोटे से प्लास्टिक ड्रम का है। इसमें ड्रम में छेद करके गड्ढे में डाल दिया जाता है, और गड्ढे को भरकर पत्थरों की एक परत बिछा दी जाती है। इसके बाद पाइप के माध्यम से वर्षा का जल इसमें पहुंचाया जाता है। 

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इन ड्रम की क्षमता दस हजार लीटर प्रतिदिन की होती हैं। उन्होंने हमें बताया कि यह ड्रम 10 साल बिना किसी शिकायत के काम करते हैं। ये काफी किफायती भी हैं, बकौल सुभाजित इसे लगाने में मजदूरी मिलाकर 5000 का खर्च आता है। सुभाजित इन उपकरणों को छोटी, कम क्षमता वाली इमारतों, और बोरवेल में रिचार्ज के लिए प्रयोग करते हैं।       

बड़े ऑफिस काम्प्लेक्स, और इमारतों के लिए सुभाजित ने दूसरा मॉडल तैयार किया है। इन जगहों पर सुभाजित सीमेंट की 3 से 4 फुट व्यास की रिंग का प्रयोग करते हैं। सुभाजित इमारतों के नीचे एक बड़ा गड्ढा कर के उसमें सीमेंट के रिंग डाल देते हैं, और गड्ढे को भर देते हैं। इसके बाद पीवीसी पाइप के माध्यम से वर्षा का जल इस गड्ढे में पहुंचाया जाता है।

सुभाजित ने बताया कि कई बार इमारतों में जगह की कमी के कारण समस्याएं आती हैं। इसके लिए सुभाजित यह मॉडल बिल्डिंग के पार्किंग स्पेस में लगाते हैं, और उसे सीमेंट से कवर कर देते हैं। इससे पार्किंग का स्पेस भी बचा रहता है, और जल संचयन भी होता है। सुभाजित बताते हैं कि इस रिंग मॉडल को लगाने में लगभग 10 हजार का खर्च आता है। एक बार लगने के बाद यह मॉडल बिना किसी समस्या के कम से कम 25 साल तक काम करता है। 

किरण बेदी ने भी अपनाया वर्षा जल संचय का यह मॉडल 

सुभाजित का साथ देने के लिए एक 12 लोगों की टीम है। इन्हें सुभाजित ‘लीडर’ बुलाते हैं। सुभाजित ने बताया कि उनके पास इलाहाबाद, गुड़गांव, कलकत्ता, और देश के कई हिस्सों से इन मॉडल को लगवाने के लिए फोन आते हैं। इसके बाद सुभाजित की टीम का एक सदस्य उस शहर जाकर वहां के स्थानीय श्रमिकों की सहायता से  इनका स्थापन करवाता है। सुभाजित के काम से प्रभावित होकर पूर्व आईपीएस किरण बेदी ने भी अपने घर में यह मॉडल लगवाया है और सुभाजित के काम की तारीफ की है।  

प्रधानमंत्री मोदी ने भी की काम की तारीफ   

सुभाजित इन ड्रम और रिंग को 300 से अधिक स्कूल, और 100 से अधिक दफ्तरों में लगा चुके हैं। इसके अलावा बीएमसी के 450 से अधिक गार्डन में सुभाजित जल संचयन के ये उपकरण लगा चुके हैं।

सुभाजित कहते हैं कि वह लोगों को इन तकनीकों की सम्पूर्ण विधि के बारे में विस्तार से बताते हैं। इस तरह वह अन्य लोगों को भी इसके स्थापन का तरीका बता रहे हैं। उनका मानना है कि इस तरह अन्य लोग भी इसको खुद से स्थापित करना सीख जाते हैं।   

इसे लेकर सुभाजित ने देश-विदेश में कई सेमिनार और वेबिनार किये हैं। सुभाजित के काम की सराहना करते हुए उद्योगपति आनंद महिंद्रा, और प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट भी किया है। 

सुभाजीत ने अपने प्रयास से जल संरक्षण की ऐसी तकनीकों को समाज के सामने रखा है जिन तक लोगों की पहुँच आसान है। यह सुविधा संरक्षण को और सुगम कर देती है। इसे लोग खुद से भी लगा सकते हैं यानि इसके लिए उन्हें किसी विशेषज्ञ की जरूरत नहीं है। सुभाजित कहते हैं,

हर इंसान जो पानी का इस्तेमाल करता है, उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वो पानी बचाए। हर आदमी इसमें सक्षम है और ऐसा वो अपनी सहूलियत के हिसाब से कर सकता है।

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  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

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