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छतरपुर: क़र्ज़ से तंग आकर मज़दूर ने की आत्महत्या

छतरपुर: क़र्ज़ से तंग आकर मज़दूर ने की आत्महत्या
छतरपुर: क़र्ज़ से तंग आकर मज़दूर ने की आत्महत्या

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एडिटर नोट – इस ख़बर में आत्महत्या का विवरण शामिल है।

छतरपुर जिले से 15 किमी दूर खडगांय में भज्जू अहिरवार नाम के मजदूर (Labour) ने रविवार 3 मई को अपने ही घर में फांसी लगाकर आत्महत्या (suicide) कर ली। बताया जा रहा है कि मृतक कई दिनों से मानसिक दबाव में था जिसके चलते उसने यह कदम उठाया है। भज्जू के छोटे भाई कन्हैया अहिरवार ने बताया कि उनका भाई अप्रैल से ही क़र्ज़ के चलते परेशान था। लेकिन वह इस तरीके से फांसी लगा लेगा, यह अंदाजा कन्हैया को नहीं था। 

भज्जू दिल्ली से अपनी साली की शादी के लिए गांव आया हुआ था। यहां शनिवार 3 मई को वह शादी में शामिल हुआ। मगर अगले ही दिन शादी से वापस लौटकर शाम 5:30 बजे के आस-पास उसने फांसी लगा ली। उसके चचेरे भाई गजराज ने बगल वाले कमरे का ताला तोड़कर देखा तब वह फांसी पर झूल चुका था। इसके बाद गजराज ने मातगुंवा थाने में सूचना दी। इसके बाद तीन पुलिसकर्मी मौके पर पहुंचे। यहां तूफान चलने की वजह से बिजली की व्यवस्था नहीं हो पाई तो पुलिस कमरे पर ताला लगाकर वापस चली गई और फिर अगले दिन सोमवार को सुबह उस शव को फंदे से उतारा गया। इस लापरवाही की जानकारी मिलते ही डीसीपी ने एसआई वीरेंद्र रायकवार समेत दो सिपाहियों को सस्पेंड कर दिया है। 

सोमवार सुबह गजराज के गांव के एक ट्रैक्टर में लाश रखकर छतरपुर पोस्टमार्डम के लिए लेकर आया। लगभग 2 बजे पोस्टमार्डम से फ्री होकर लाश को वापस गांव लेकर पहुंचा। शाम के तीन बजे से ही आंधी के चलते दाह संस्कार को टालना पड़ा। जब शाम को हवा शांत हुई इसके बाद दाहसंस्कार किया गया। इसके बाद सरपंच धनीराम अहिरवार समेत पांच लोग आग न फैले इसलिए तीन-चार घंटे तक दाह संस्कार वाली जगह रुके रहे। 

suicide farmer
भज्जू के बाद संपूर्ण परिवार की ज़िम्मेदारी अब उनके भाई कन्हैया पर आ गयी है। Photograph: (Manvendra Singh Yadav/Ground Report)

पिता कैंसर से पीड़ित

मृतक भज्जू के पिता सरजू अहिरवार कैंसर से पीड़ित हैं। अप्रैल के आखिरी सप्ताह में आई बायोप्सी रिपोर्ट में उन्हें मुंह के कैंसर की पुष्टि हुई थी। उसके परिजनों ने ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए बताया कि पिता की बिमारी के चलते वह और ज़्यादा परेशान रहने लगा था। चूंकि भज्जू तीसरी कक्षा तक ही पढ़ा था इसलिए वह अपने जीजा के साथ पिता का इलाज करवाने जाता था। वे शुक्रवार को ही भोपाल से इलाज में आगे की प्रक्रिया जानकर वापस लौटे थे।

भज्जू का भाई कन्हैया अप्रैल में ही दिल्ली से लेह की फ्लाइट लेकर काम करने गए थे। वह लद्दाख में राज मिस्त्री का काम करते हैं। कन्हैया ने बताता, 

“भाई पिछले माह से ही चिंता में था। मैंने लद्दाख से फोन किया था जब उसने कर्ज की बात बताई। साफ-साफ नहीं बताया कितने और किसको देने हैं। मैंनें कहा मिलकर चुका लेगें। लेकिन पता नहीं था वो ऐसा कर लेगा।” 

कन्हैया अपने भाई के अचानक चले जाने से दुखी हैं। अब उनके ऊपर ही पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी है। उनके परिवार में कुल 7 बच्चे, माता-पिता, भाभी और कन्हैया की पत्नी शामिल है। इस चक्र में फंसे कन्हैया को फिलहाल बहुत ज़्यादा साफ रास्ता नहीं दिखाई दे रहा।

वह कहते हैं कि गांव में क़र्ज़ देकर जमीन हड़प लेने की खासी परंपरा है। रिश्तेदारों का ऐसा अनुमान है कि भज्जू भी इसी फेर में फंस गया था। परिजन अनुमान लगाते हुए कहते हैं कि किसी ने दबाव बनाया होगा तो उसने ये कदम उठा लिया और जीवन समाप्त कर दिया।

गांव में घुसते ही सवर्णों के घरों के सामने पक्की सड़क से होते हुए बाएं को मुड़ने पर कच्ची सड़क पर भज्जू का घर है। यह घर पुरानी ईंटों का बना हुआ है। इस मकान में ही माता-पिता रहते हैं। जब भज्जू और कन्हैया दोनो छोटे थे तब उनके पिता सरजू कमाने के लिए दिल्ली, पंजाब, हरियाणा के बड़े-बड़े शहरों में मजदूरी करने जाते थे। फिर एक समय के बाद जब उनका शरीर जवाब देने लगा तो उन्होंने बाहर जाकर कमाना छोड़ दिया। कुछ बकरियां खरीद कर उन्हें चराने लगे और खेती करते रहते। गांव में खेती में मिलने वाली मजदूरी भी कर लेते हैं।

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  • Manvendra Yadav, an IIMC Dhenkanal alumnus with a Post Graduate Diploma in English Journalism, brings stories from Bundelkhand to life. His deep connection to the region fuels his passion for amplifying untold regional narratives.

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