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बुधनी मिडघाट: वन क्षेत्र में ट्रेन की तेज़ रफ्तार ले रही बाघों की जान

बुधनी मिडघाट: वन क्षेत्र में ट्रेन की तेज़ रफ्तार ले रही बाघों की जान
बुधनी मिडघाट: वन क्षेत्र में ट्रेन की तेज़ रफ्तार ले रही बाघों की जान

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भारत में टाइगर स्टेट का तमगा लिए मध्यप्रदेश राज्य से एक और बाघ की मृत्यु की खबर आई है। यह घटना रातापानी अभ्यारण्य के पास से गुजरने वाली मिडघाट और चौका स्टेशन सेक्शन रेलवे लाइन के पास हुई है। सोमवार 15 जुलाई को मिडघाट के पास एक ट्रेन की चपेट में आने की वजह से 1 शावक की मृत्यु हो गई है, और 2 अन्य शावक घायल हो गए हैं। ऐसे में वन क्षेत्र में बिछाई जा रही रेलवे लाईन और वन क्षेत्र में तेज़ रफ्तार से चल रही ट्रेन सवालों के घेरे में हैं। आइये जानते हैं क्या है ये पूरा मामला। 

ट्रेन की चपेट में आए शावक 

सोमवार की सुबह बुदनी के मिडघाट के निकट 3 शावक एक चलती हुई ट्रेन के चपेट में आ गए। इस घटना की सूचना मिलने के बाद वन विभाग का एक दस्ता वहां पहुंचा। जब वन विभाग की टीम शावकों को बचाने का प्रयास कर रही थी, उसी दरमियान उन शावकों की मां वहां पहुंच गई। शेरनी ने अपने बच्चों के घावों को चाटना शुरू किया, और जोर-जोर से दहाड़ने लगी। इस कारण वनकर्मी शेरनी के घायल शावकों के निकट नहीं जा पाए। लेकिन जब स्थिति सामान्य हुई तब उन्होंने पाया कि एक शावक की मृत्यु हो गई है, और बांकी के दो शावक बुरी तरह से घायल हो गए हैं। इसके बाद मृत शावक को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया, और घायल शावकों को बचाने की जद्दोजहद शुरु हुई। 

घायल शावकों को रेस्क्यू कर भोपाल लाने के लिए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने पश्चिम रेलवे से सिंगल कोच विशेष ट्रेन बुधनी के मिडघाट सेक्शन भेजने को कहा। घायल शावकों को ट्रेन से रेस्क्यू कर भोपाल के वन विहार लाया गया है, जहां इनका इलाज चल रहा है। टाईम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक शावकों को मल्टीपल फ्रैक्चर्स हुए हैं, ऐसे में उनकी जान बचाना आसान नहीं होगा।

मुख्यमंत्री द्वारा विशेष ट्रेन के प्रबंध किये जाने की खूब तारीफ हो रही है, लेकिन मूल सवाल इस बीच दब गया है कि वन क्षेत्र में पश्चिम रेलवे की ट्रेन तेज़ रफ्तार में क्यों चल रही थी?

घायल शावक 

वन्यजीवों के आवास के बीच में पड़ता है बरखेड़ा-बुधनी ट्रैक 

26.5 किमी लंबा बरखेड़ा-बुदनी ट्रैक, भोपाल-इटारसी खंड की तीसरी लाइन निर्माण के हिस्से के रूप में रेलवे बोर्ड द्वारा 2011-12 में स्वीकृत किया गया था। इस परियोजना में हबीबगंज-बरखेड़ा ट्रैक का 41.42 किमी और बुदनी-इटारसी ट्रैक का 25 किमी हिस्सा भी शामिल है। 

दरअसल इस ट्रैक के खंड 1 और 3 मैदानी क्षेत्र में हैं और इनमें वन्यजीव या वन संबंधी कोई मुद्दा नहीं है। लेकिन समस्या खंड 2 यानि बरखेड़ा-बुदनी खंड के साथ है। यहाँ मौजूदा ट्रैक रातापानी वन्यजीव अभ्यारण्य या इसके पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। 

यह घटना कोई अपवाद नहीं है। इससे पहले मार्च 2022 में सीधी के संजय डुबरी में भी एक शेरनी अपने नवजात शावकों के साथ रेल लाइन पार करते वक्त ट्रेन की चपेट में आ गई थी। इसी क्रम में उसकी मृत्यु हो गई थी और कुछ ही दिनों के बाद उसके एक शावक की भी मृत्यु हो गई थी। 

ट्रेन की तेज गति से हो रही है बाघों की मृत्यु 

रेलवे अधिकारियों के आश्वासन के बावजूद, सुधारात्मक उपायों को पूरी तरह से लागू नहीं किया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हाल के वर्षों में बरखेड़ा-बुदनी ट्रैक पर छह से अधिक तेंदुए और इतनी ही संख्या में बाघ मारे गए हैं। 

जानकारों का मानना है कि अगर इस रुट पर ट्रेन की रफ्तार 25 किमी प्रति घंटा तक कम होती तो वन्यप्राणियों की जान बचाई जा सकती है। शायद 15 जुलाई को भी बाघिन अपने शावकों को आराम से ट्र्रैक पार करवा पाती। 

पश्चिम मध्य रेलवे ने पूर्व में वन अधिकारियों को आश्वासन दिया था कि वन्यजीव क्षेत्र से गुजरते समय ट्रेनें 25 किमी/घंटा से अधिक गति में नहीं चलेंगी। लेकिन इस आश्वासन पर रेलवे अमल नहीं कर रहा है, वंदे भारत जैसी ट्रेनें भी इस रुट पर तेज़ रफ्तार से निकल रही हैं। 

इस पूरे मामले को लेकर वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे ने सरकार से जवाब मांगा है। उन्होंने भोपाल के CCF राजेश खरे द्वारा एक मीडिया संस्थान को दिए गए बयान का संदर्भ दिया है। इस बयान में उन्होंने कहा था की कि ट्रेन की गति 80 किमी/घंटा थी, जो कि निर्धारित गति 25 किमी/घंटा से काफी तेज है। 

अजय दुबे कहते हैं कि उन्हें स्थानीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि

 “मध्यप्रदेश वन विभाग ने रातापानी अभ्यारण से रेलवे लाईन निकालने की मंजूरी कई शर्तों के साथ दी है, जिनका मूल्यांकन होना चाहिए। ट्रेनों की ओवरस्पीड को नियंत्रित करने की भी वन विभाग के पास कोई व्यवस्था नहीं है। नई रेलवे लाईन में वन्य प्राणियों के लिए अंडर पास बनाए गए हैं लेकिन इसके बावजूद बाघ और अन्य वन प्राणियों की ट्रेन की टक्कर से मौत हो रही है। इस सब बातों की सख्ती से जांच होनी चाहिए।”

यह एक आम सावधानी है कि जब भी रेल वन्यजीव क्षेत्र से निकले तो उसकी गति धीमी (25 किमी/घंटा) रखी जाए, ताकि वन्यजीव इसका शिकार न हों। लेकिन यदि ट्रेन कि गति सीमा से अधिक तेज होती है तब इस प्रकार की घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है, जिसके हालिया उदहारण मौजूद भी हैं। 

जंगलों में बढ़ती पटरियां और वन्यजीवों की मृत्यु

कुछ साल पहले वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट गिरिधर कुलकर्णी ने आरटीआई के माध्यम से देश भर में रेल व सड़क दुर्घटना के कारण हुई बाघों की मृत्यु का आंकड़ा बताया था। इन आंकड़ों के अनुसार 2010 से 2021 तक 26 बाघ रेल और सड़क दुर्घटनाओं की भेंट चढ़े हैं। इनमें से 12 बाघों ने सड़क और 14 बाघों ने रेल दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवाई है। 

इस तरह की सर्वाधिक 10 घटनाएं महाराष्ट्र में देखी गई है। ‘टाइगर स्टेट’ मध्यप्रदेश इस सूची में दूसरे स्थान पर है जहां इस तरह की घटनाओं से 6 बाघों की मृत्यु हुई है। उत्तराखंड में भी 5 बाघ इस दौरान इन दुर्घटनाओं के शिकार हुए हैं। साथ ही उत्तर प्रदेश में 2 और बिहार और आंध्र प्रदेश में 1 बाघ की मौत इन कारणों से हुई है। बाघ वन्य जीव संरक्षण अधिनयम के शेड्यूल एक का प्राणी है, और बाघ की इस प्रकार से लगातार मृत्यु चिंताजनक हैं। 

रेलमार्ग और हाईवे के वन्य क्षेत्र के बीच में गुजरने और इसे लेकर हुई लापरवाहियों के कारण देश भर में वन्य जीवों की बड़ी मौतें हुई हैं। उदाहरण के लिए संजय डुबरी के समीप स्थित रेलवे ट्रैक में पिछले 14 सालों में 50 से अधिक वन्य जीव घायल हुए हैं। इन वन्य जीवों में बाघ के अलावा भालू, लकड़बग्घे जैसे जीव शामिल हैं। 

तकनीक की मदद से रोकी जा सकती है ये घटनाएं

आपको बता दें कि हाल ही में भारतीय रेलवे ने ट्रेन हादसों में होने वाली हाथियों की मौत को रोकने के लिए इंट्रूशन डिटेक्शन सिस्टम लगाने की बात कही थी। इसके लिए तमिलनाडू, केरल, पश्चिम बंगाल और झारखंड में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस इनेबल्ड सिस्टम लगाने के लिए स्थानों का चयन किया गया है। ज़रुरत है कि मध्यप्रदेश के इस रुट पर भी ऐसा ही कोई सिस्टम लगाया जाए जिससे लगातार हो रही वन्यप्राणियों की मौत को कम किया जा सके। 

ऐसा ही एक प्रयोग कनाडा में किया गया है। कनाडा में हुई एक पहल ने पशु-ट्रेन टकराव को कम करने का प्रयास किया है – इस प्रयास में ट्रेन के आने की चेतावनी देने के लिए पटरियों के किनारे विभिन्न स्थानों पर जल-बुझ लाइट्स और घंटियां लगाई गई थीं। ये लाइट्स और घंटियां ट्रेन के आने के 30 सेकंड पहले चालू हो जाती थीं – इन संकेतों का उद्देश्य जानवरों में इन चेतावनियों और ट्रेन आने के बीच सम्बंध बैठाना था।

चेतावनी प्रणाली युक्त और चेतावनी प्रणाली रहित सीधी और घुमावदार दोनों तरह की पटरियों पर कैमरों ने ट्रेन आने के प्रति जानवरों की प्रतिक्रियाओं को रिकॉर्ड किया। देखा गया कि बड़े जानवर, जैसे हिरण परिवार के एल्क और धूसर भालू चेतावनी प्रणाली विहीन ट्रैक पर ट्रेन आने से लगभग 10 सेकंड पहले पटरियों से दूर चले जाते हैं, जबकि चेतावनी प्रणाली युक्त ट्रैक पर ट्रेन आने से लगभग 17 सेकंड पहले। (यह अध्ययन ट्रांसपोर्टेशन रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ है।) 

इसके बारे में आप विस्तार से यहां पड़ सकते हैं 

हाथियों की मदद के लिए कृत्रिम बुद्धि

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  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

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