...
Skip to content

राजस्थान के बीसलपुर में बारिश के पानी को सहेजने के लिए अनोखा प्रयोग

राजस्थान के बीसलपुर में बारिश के पानी को सहेजने के लिए अनोखा प्रयोग
राजस्थान के बीसलपुर में बारिश के पानी को सहेजने के लिए अनोखा प्रयोग

REPORTED BY

Follow our coverage on Google News

यूं तो देश में मानसून अमूमन किसानों के लिए आशा की किरण लेकर आता है। लेकिन देश में राजस्थान का एक बड़ा क्षेत्र है जो पर्याप्त बारिश से वंचित रह जाता है। अपनी विशेष भौगोलिक दशाओं और सीमित जल उपलब्धि के कारण यहां की कृषि भी प्रभावित होती है। इन सब के बीच ही राजस्थान के पाली जिले का बीसलपुर गांव एक उदाहरण की तरह उभर कर आया है। 

बीसलपुर में ग्राम पंचायत ने सरकारी योजनाओं के सही क्रियान्वयन और स्थानीय सहयोग की मदद से जल सुरक्षा को प्राप्त किया है। इसके साथ ही किसानों की उपज में भी महत्वपूर्ण इजाफा दर्ज हुआ है। इसी सिलसिले में ग्राउंड रिपोर्ट ने की बीसलपुर ग्राम पंचायत के रोजगार सहायक रमेश पारंगी से बात की और समझा इस पूरी प्रक्रिया और परिणाम के बारे में। 

संरक्षण के लिए बनाते हैं छोटी नालियां और ट्रेंच 

रमेश बताते हैं कि उनके क्षेत्र में सीमित वर्षा होती थी और पानी की कमी रहती थी। इस वजह से इलाके में काफी जमीन बंजर पड़ी रहती थी। इसके समाधान के तौर पर रमेश और पंचायत के सदस्यों ने छोटी-छोटी नालियां और ट्रेंच बनाने शुरू किये। शुरुआत में यह काम ट्रायल एंड एरर तरीके से शुरू किया गया। उनकी टीम छोटी नालियां बना कर पानी को ट्रेंच में इकठ्ठा करने का काम करती थी। इसके बाद ट्रेंच में पानी बढ़ने के बाद बाद उसे नालियों के माध्यम से दूसरी तरफ डायवर्ट करने का प्रयास किया जाता था। 

ट्रेंच बनाते मनरेगा श्रमिक 

रमेश बताते हैं की वो ट्रेंच बनाने के लिए जगह का चुनाव सावधानी पूर्वक करते हैं। जहां का किनारा पथरीला होता है वहां ट्रेंच का निर्माण किया जाता है। ये ट्रेंच आमतौर पर 20 से 25 फुट के होते हैं जो कि मिट्टी से बने होते हैं। रमेश ने अपने ग्राम पंचायत में कम से कम ऐसी 25 से 30 व्यवस्थाएं बनवाई हैं। 

गांव की उपलब्धि 

इस पूरे काम का सबसे सकारात्मक प्रभाव गांव की कृषि पर पड़ा है। रमेश बताते हैं पहले उन के क्षेत्र के कुंओं में पानी का स्तर 70 फुट तक रहता था। गाँव के किसानों को सिंचाई में समस्या जाती थी। लेकिन वर्षा जल संग्रहण के बाद गांव का ग्राउंड वाटर रिचार्ज हुआ है। अब गांव के कुओं में 15 से 20 फुट में ही पानी उपलब्ध हो जाता है। इससे गांव में कृषि आसान हुई है गांव के किसानों की उपज भी बढ़ी है। रमेश बताते हैं कि बारिश के बाद इतना जल इकठ्ठा हो जाता है, जो कम से कम अगले 10 महीनों तक गांव वालों को उपलब्ध रहता है। 

हमने इस सिलसिले में बीसलपुर के ही एक किसान प्रवीण सिंह से बात की। प्रवीण बाजरा, अरण्डी, गेहूं की खेती करते हैं, और उनके खेत में एक कुआं है। अपने  संरक्षण के बाद कृषि में आए बदलावों को लेकर प्रवीण कहते हैं कि,

पहले की अपेक्षा वर्तमान में वाटर लेवल काफी बढ़ गया है। पहले हम मोटर लगाते थे तो वह मुश्किल से 1 घंटे चलकर बंद हो जाया करती थी। लेकिन कोरोना के समय से ही स्थिति में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है। अब हमारी मोटर जब तक बिजली रहती है तब तक बिना रुके चलती है, और हमारी उपज भी अच्छी होती है।

रमेश का कहना है की ये काम कई समस्याओं को एक साथ लक्षित करता है। चूंकि यह काम मनरेगा के अंतर्गत होता है, इससे गांव के लोगों को रोजगार मिलता है। दूसरा ये नालियां और ट्रेंच गांव के साथ जंगलों में भी फैले हुए हैं, इससे मवेशी और जंगली जानवरों को भी पानी उपलब्ध हो पाता है। इसके अलावा इन नालियों के आस पास वृक्षारोपण भी किया जाता है। रमेश ने बताया की 3 साल पहले यहां अलग-अलग किस्म के 1000 पौधे लगाए गए थे जिनमें से अभी तक 650-700 पौधे जीवित हैं। 

बीसलपुर के जल संरक्षण कार्यक्रम की सराहना

रमेश का कहना है कि ये काम एक आदर्श टीम वर्क की मिसाल हैं। जहां ग्राम प्रधान से लेकर सचिव व अन्य लोगों ने सही दिशा में प्रयास किये हैं। रमेश के पंचायत की आबादी तकरीबन साढ़े आठ हजार की हैं, और मात्र जल संरक्षण के लिए उनके क्षेत्र में सालना 60 से 70 लाख का काम होता है। रमेश का मानना है कि इस काम के बाद गांव में पानी की स्थिति में बहुत अधिक बदलाव आया है। रमेश के गांव में यह काम पिछले 10 सालों से चल रहा है। इस काम के शुरूआती समय को याद करते हुए रमेश बताते हैं कि,

हम हमेशा देखते कि थोड़ी देर बारिश हुई और उसके बाद पानी न जाने कहां गायब हो गया। इसे देख कर हमने पानी को रोकने के लिए छोटे बांध बनाकर देखे। फिर हमने जगह के अनुसार नालियां और ट्रेंच बनाकर पानी रोकने के प्रयास किया। यह एक प्रयोग था जो अब सफल हो रहा है।    

bisalpur.ramesh
रोजगार सहायक रमेश पारंगी (बाएं)

बीसलपुर ग्राम पंचायत 10-12 वर्षों से जल संरक्षण का यह कार्यक्रम चला रहा है। बीसलपुर का  संरक्षण का काम अब एक मॉडल बन गया है जिसे बड़े अधिकारीयों ने भी सराहा है, और अन्य गाँव वाले भी इसे अपनाने का प्रयास कर रहे हैं। बीसलपुर ग्राम पंचायत में जल संरक्षण का प्रयास इस बात की स्पष्ट मिसाल देता है कि, अंततः सरकारी योजनाओं की नियति उसके क्रियान्वयन और समुदाय के निश्चय पर ही निर्भर करती है।    

यह भी पढ़ें

पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुकट्विटरइंस्टाग्रामयूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।

Author

  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins