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बड़वानी में नहर फूटने से किसान बेहाल, कपास और मिर्च की फ़सल हुई प्रभावित

बड़वानी में नहर फूटने से किसान बेहाल, कपास और मिर्च की फ़सल हुई प्रभावित
बड़वानी में नहर फूटने से किसान बेहाल, कपास और मिर्च की फ़सल हुई प्रभावित

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बड़वानी ज़िले के तलून गाँव में नहर फूटने से किसान के खेत में पानी भर गया. इससे यहाँ के किसान राहुल जाट की 12 एकड़ में लगी फ़सल ख़राब हो गई. यह नहर इंदिरा सागर बाँध परियोजना का हिस्सा है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह नहर पहली बारिश में ही फूट गई जबकि अभी पूरा मानसून का सीज़न बचा हुआ है.

यहाँ के किसानों ने बताया कि बीते 23 जून को हुई बारिश के बाद नहर में अत्यधिक पानी भरने के बाद यह फूट गई. इसके बाद यहाँ के कई खेतों में पानी भर गया. इनमें सबसे ज़्यादा नुकसान राहुल जाट नाम के किसान का हुआ है.

किसानों को हुआ नुकसान

राहुल जाट ने अपने 12 एकड़ खेत में कपास और मिर्च बोई थी. मगर बुवाई के लगभग डेढ़ महीना गुज़रने के बाद 23 जून को हुई बारिश में उनकी पूरी फ़सल बर्बाद हो गई. राहुल का खेत तलहटी में नीचे की ओर स्थित है. ऐसे में नहर के फूटने पर इन खेतों में जाने वाला पानी भी बहकर उन्हीं के खेत में आ गया. वह कहते हैं,

“मेरा खेत दलदल बन गया था. अभी ज़मीन धूप के कारण सूखकर ठोस हो गई है. मगर कपास और मिर्च के पत्ते पीले पड़ गए हैं. कुछ भी नहीं बचा है.”

राहुल बताते हैं कि उन्हें प्रति एकड़ 40 हज़ार रूपए का खर्च आया था. इस प्रकार उन्हें 4 लाख 80 हज़ार का नुकसान हुआ है. यह उनकी इस वर्ष की मुख्य फ़सल थी जो नहर की भेंट चढ़ गई. 

इसी प्रकार धीरज नागोरे जो 35 एकड़ में खेती करते हैं, भी इस घटना से प्रभावित हुए हैं. वह 24 एकड़ में केले की और बाकी हिस्से में मक्का की खेती करते हैं. हालाँकि उनकी फ़सल बहुत ज़्यादा प्रभावित नहीं हुई है मगर वह बताते हैं कि इस घटना से उनके खेत की मिट्टी बड़ी मात्रा में बह गई है.    

क्या थी इंदिरा सागर परियोजना?

यह नहर असल में इंदिरा सागर परियोजना का हिस्सा है. बड़वानी से लगभग 196 किमी दूर स्थित इंदिरा सागर बाँध खण्डवा ज़िला के पुनासा तहसील के अंतर्गत आता है. यह बाँध 2698 मिलियन यूनिट वार्षिक विद्युत उत्पादन करता है. 

मगर इस परियोजना का एक अन्य उद्देश्य खण्डवा, खरगोन और बड़वानी के 1.69 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित करना भी था. हालाँकि फ़रवरी 2012 के आँकड़ों के अनुसार यह बाँध केवल 41 हज़ार 727 हेक्टेयर भूमि को ही सिंचित कर रहा है.     

पहले भी फूटती रही है नहरें

बड़वानी स्थित मंथन अध्ययन केंद्र में जलाशयों पर लगातार अध्ययन करने वाले रेहमत कहते हैं कि यह पहली बार नहीं है कि कोई नहर फूटी हो, ऐसा अक्सर हो रहा है. खुद राहुल जाट भी इसी बात को दोहराते हैं. वह बताते हैं कि यह तीसरी बार है जब नहर फूटी है.

“दो साल पहले जब इसका निर्माण कार्य चल ही रहा था तब भी यह नहर धँस गई थी. तब ठेकेदारों ने इसे सुधारने की बात कही थी मगर वह काम बीच में ही छोड़कर चले गए.”

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किसानों के अनुसार यह पहली बार नहीं है जब नहर फूटी है, फ़ोटो – राजेन्द्र जोशी वाया X/rajendrabarwani 

वहीँ 2023 में भी इसी परियोजना की एक नहर फूटने से सड़कें पानी से भर गई थीं. धीरज नागोरे कहते हैं कि उनके द्वारा 2019 से ही इस नहर की मरम्मत के लिए प्रशासन को कहा जा रहा था. मगर उनकी शिकायत को अनदेखा करके उल्टा उन्हें ही नोटिस दे दिया गया.

“प्रशासन ने सवाल उठाने पर मुझे ही नोटिस देकर आरोप लगाया कि हमने नहर के रास्ते को ख़राब किया है.”

वहीँ राहुल ने भी इस बारे में कई बार सीएम हेल्पलाइन में भी शिकायत की मगर अब तक कुछ नहीं हो पाया है.

क्या गड़बड़ है नहरों में?

रेहमत इन नहरों के निर्माण और रख-रखाव (maintenance) दोनों पर ही प्रश्नचिन्ह लगाते हैं. वह कहते हैं,

“पहले जो नहर बनती थीं उनमें 4 इंच की ब्रिक लाइन होती थी. अब तो 1.5 इंच की ही कंक्रीट लाइन बनाते हैं. यह कैनाल मई-जून में बनाई जाती हैं जिनको पक्की करने के लिए पर्याप्त तराई (सीमेंट को पक्का करने के लिए दिया जाने वाला पानी) नहीं की जाती जिससे यह कमज़ोर रह जाती हैं.”

वहीँ बड़वानी के वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र जोशी भी इन निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार की बात मानते हैं. वह इन नहरों के निर्माण कार्य को ‘घटिया किस्म का’ करार देते हैं. उनका कहना है कि इन नहरों की कभी कोई निगरानी नहीं होती इसलिए निर्माण कार्य भी मनमानी तरीके से होता है और बाद का रखरखाव भी “भगवान भरोसे रहता है.”

तलून गाँव के किसानों ने बताया कि नहर में अब मजबूत जड़ों के पेड़ उग आए हैं जिससे नहर की दीवारें चटक गई हैं. उनका कहना हैं कि नहर का रखरखाव करने वाला कोई भी नहीं है.  

क्या नहरें हो पा रहीं अपने उद्देश्य में सफल?

चूँकि इन नहरों का मुख्य उद्देश्य किसानों का हित करना था ऐसे में यह देखना ज़रूरी है कि क्या वाकई यह नहरें अपने उद्देश्य में सफल हैं? जोशी कहते हैं कि इन नहरों का विस्तार वहीँ तक है जहाँ पहले से ही पानी था. जबकि सूखे इलाकों को अब भी इनका इंतज़ार है.

“वास्तव में इन परियोजनाओं से किसानों को कितना फ़ायदा हो रहा है यह अब भी सवाल ही है. ज़िले के पाटी, सेंधवा और पानसेमल विकासखण्ड अपेक्षाकृत ज़्यादा सूखे हैं मगर यहाँ के किसानों को इनका लाभ नहीं मिल रहा है.”

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उपेक्षा के चलते इन नहरों में अब पेड़ भी उग आए हैं

वहीँ राहुल कहते हैं कि उन्होंने इस नहर से आज तक एक बूंद पानी भी इस्तेमाल नहीं किया है. उनके खेत में मौजूद कुँए से ही वह अपनी खेती करते रहे हैं. हालाँकि वह यह भी मानते हैं कि इस नहर से उनके आस-पास के किसान पानी ज़रूर लेते हैं मगर उनके पास भी सिंचाई के साधन पहले से उपलब्ध हैं. अतः वह भी नहर पर पूरी तरह से निर्भर नही हैं.

“मुझे इस नहर से लाभ तो नहीं हुआ मगर घाटा ही हुआ है.”

वहीँ धीरज नागोरे तो इस परियोजना को कोसते हुए कहते हैं कि जब यह परियोजना नहीं आई थी तब वह ज़्यादा सुखी थे. रेहमत भी इन परियोजनाओं को ‘राजनीतिक परियोजना’ करार देते हुए कहते हैं, “यह परियोजनाएँ केवल सपने दिखाने वाली परियोजनाएँ बनकर रह गई हैं.”

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  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

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