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सीहोर की इंदिरानगर बस्ती, जहां कचरे के धुंए के बीच बीत रही है लोगों कि ज़िंदगी

सीहोर की इंदिरानगर बस्ती, जहां कचरे के धुंए के बीच बीत रही है लोगों कि ज़िंदगी
सीहोर की इंदिरानगर बस्ती, जहां कचरे के धुंए के बीच बीत रही है लोगों कि ज़िंदगी

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आशा देवी जब सुबह-सुबह अपने घर की खिड़की खोलती हैं तो पास में मौजूद कचरा खंती से उठ रहा धुंआ उनके घर के अंदर आ जाता है। 4 महीने की उनकी पोती खांसने लगती है। आशा देवी कहती हैं

“इस धुंए ने हमारी ज़िंदगी नर्क बना दी है। लोग सुबह-सुबह अपने घर में सुगंधित अगरबत्ती लगाते हैं, लेकिन हमारे नसीब में यह बदबू और ज़हरीला धुंआ लिखा है जो सुबह शाम हमारे बीच रहता है।”

Indira nagar Sehore
आशा देवी अपने घर की खिड़की से अंदर आता धुंआ दिखाते हुए, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

आशा देवी सीहोर शहर में इंदिरानगर बस्ती के वॉर्ड नंबर दो में रहती है, यह बस्ती उस कचरा खंती के बेहद करीब है जहां सीहोर शहर के लोगों द्वारा हर दिन पैदा किया जाने वाला 89.89 मीट्रिक टन कचरा रखा जाता है। सीहोर में 28 कचरा गाड़ियां हर घर से गीला और सूखा कचरा कलेक्ट करती हैं और भोपाल-इंदौर बायपास पर स्थित इस कचरा खंती में डाल देती हैं। अभी तक इस कचरे को निपटाने के लिए यहां कोई व्यवस्था नहीं थी जिसकी वजह से यहां करीब 2 लाख 74 हज़ार टन पुराना कचरा भी इकट्ठा हो चुका है।

जब हमारी टीम इस जगह पर पहुंची तो देखा कि कचरे के बड़े-बड़े पहाड़ लगे हुए हैं और हर तरफ गंदगी, बदबू फैली हुई है। कचरे के ढेर में आग भी लगी हुई थी जिससे लगातार धुंआ निकल रहा था, जिसकी वजह से सांस लेना मुश्किल हो रहा था। इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि यहां से केवल 1 किलोमीटर दूर स्थित इंदिरानगर बस्ती और देवनगर कॉलोनी में रहने वाले करीब 4 हज़ार लोगों का क्या हाल होता होगा।

सीहोर में शुरु हुए सोलिड वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट से उम्मीद

हर रोज़ यहां आने वाले कचरे और 2 लाख 74 हज़ार टन लेगेसी वेस्ट को ट्रीट कर खाद बनाने के लिए यहां एक सॉलिड वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट लगाया गया है, जिसने 27 अक्टूबर को ही आधिकारिक रुप से काम करना शुरु किया है। यह प्लांट वैसे तो अप्रैल माह में शुरु होना था लेकिन लेटलतीफी के चलते यह अब अक्टूबर में शुरु हो पाया है। यह वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट 24 घंटे में 30-35 टन कचरे का निपटान कर सकता है।

sehore waste management processing unit starts
सीहोर में लगी कचरे को प्रोसेस करने वाली मशीन, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

माना जा रहा है कि लेगेसी वेस्ट के प्रोसेस हो जाने के बाद यहां कचरे का ढेर नहीं लगेगा और इंदिरानगर बस्ती के लोगों को बदबू और धुंए से आखिरकार निजात मिल जाएगी। लेकिन वर्षों से इस कचरे के धुंए में सांस ले रहे लोगों की सेहत किस कदर खराब हुई होगी, इसका आंकलन करने की चेष्टा आज तक इस शहर में नहीं की गई है। इंदिरानगर बस्ती में रहने वाली संतोष बाई कहती हैं कि

“बरसों से यहां कचरा जल रहा है, मोहल्ले में ज्यादातर लोगों की तबीयत खराब रहती है, सांस की बीमारी है, आंखों में जलन रहती है। आए दिन डॉक्टर को दिखाने जाना पड़ता है। हमारी कोई खबर लेने नहीं आया, जो इतने सालों में हमारी सेहत को नुकसान हुआ है उसकी भरपाई कौन करेगा?”

इंदिरानगर वासी राजेंद्र कहते हैं कि

“कचरे की वजह से यहां हर समय मक्खियां रहती हैं, ये मक्खियां कचरा खंती से आती हैं और हमारे खाने में बैठती है, जिससे हम बीमार होते हैं। अगर आप सुबह 6 बजे यहां आएंगे तो आपको हर तरफ धुंआ ही दिखाई देखा।”

sehore landfill site
सीहोर की कचरा खंती में जलता हुआ कचरा जिससे धुंआ निकलता रहता है, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

आपको बता दें कि खंती के कचरे के पानी और हवा के संपर्क में आने से ज़हरीला और हानिकारक लिचेड (Leachate) निकलता है। लिचेड हानिकारक रसायन जैसे माइक्रो प्लास्टिक, लैड, आयरन, निकिल, कैडमियन, जिंक, मैग्नीश, मर्करी, आर्सेनिक, कोबाल्ट, फिनॉल और अनेकों कीटनाशकों का मिश्रण है, जो भूरे काले रंग का होता है। ये सभी रसायन कैंसर कारक हैं, जो मिट्टी में मिलकर सब्जी-फसल को ज़हरीला और भूजल या नदी-तालाबों के पानी में मिलकर उन्हें प्रदूषित कर देते हैं। कचरा खंती में आग लगने से फ्यूरन डॉईऑक्सिन, कार्बन मोनोऑक्साइड व कार्बन डाईऑक्साइड जैसी जहरीली गैसे निकलती हैं जिससे इंसानों और पशुओं की सेहत को नुकसान होता है। इसी तरह की समस्याएं भोपाल की आदमपुर छावनी स्थित कचरा खंती में भी हैं, इसे ग्राउंड रिपोर्ट ने विस्तार से कवर किया है।


सीहोर कचरा खंती में रखा लैगेसी वेस्ट जलकर खाक हो चुका है, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

नियमों का उल्लंघन

एनजीटी की गाईडलाईन्स के मुताबिक शहर में जहां भी कचरा इकट्ठा किया जाता है उसके आसपास वृक्षारोपण किया जाना चाहिए ताकि वायु प्रदूषण को कम किया जा सके। लेकिन सीहोर शहर में जहां कचरा खंती और वेस्ट प्रोसिसिंग प्लांट हैं वहां पौधे तो लगाए गए हैं लेकिन उसी के ऊपर कचरा डाल दिया गया है। साथ ही कचरा जहां इकट्ठा किया जा रहा है उसके नीचे कंक्रीट का मोटा प्लैटफॉर्म बनाना और उसपर लाईनर बिछाना अनिवार्य होता है ताकि हानिकारक रसायन ज़मीन में न जा सकें। लेकिन यहां ज़मीन पर ही कचरा अभी तक डाला गया और अभी भी कोई इंतेज़ाम नहीं किया गया है। कचरा खंती के आसपास किसानों के खेत भी है, साथ ही पशुपालकों की गाय भी यहां चरने के लिए आती हैं। आप यहां गायों को कचरा खाते देख सकते हैं। पूरी तरह से बाउंड्रीवॉल का काम न होने की वजह से मवेशी इस कचरा खंती में घुस आते हैं।

आशा देवी अपने घर की खिड़की बंद कर लेती हैं, वो चाहती हैं कि अगली बार जब वो यह खिड़की खोलें तो इससे स्वच्छ और ताज़ी हवा घर के अंदर आए।

देखिए वीडियो रिपोर्ट

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Author

  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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