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दिवाली के बाद देवउठनी ग्यारस क्यों मनाई जाती है?

दिवाली के बाद देवउठनी ग्यारस क्यों मनाई जाती है?
दिवाली के बाद देवउठनी ग्यारस क्यों मनाई जाती है?

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मध्यप्रदेश में दिवाली के बाद देवउठनी ग्यारस का पर्व बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग अपने घरों में ईख की झोपड़ी बनाकर उसमें तुलसी की पूजा करते हैं। देवउठनी ग्यारस को देवोत्थान एकादशी, देवउठनी एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी के नामों से भी जाना जाता है।

इस वर्ष 2022 में यह पर्व पूरे देश में 4 नवंबर को मनाया जाएगा।

मध्यप्रदेश समेत पूरे उत्तर भारत में इस त्यौहार का कफी महत्व है। कहते हैं इस दिन भगवान विष्णु लंबी निद्रा से जागते हैं, इसीलिए इसे देव उठनी ग्यारस कहते हैं। ग्यारस के बाद से हिंदू धर्म में विवाह कार्य संपन्न होते हैं, इससे पहले शादी का महुर्त नहीं होता।

देवउठनी ग्यारस की कथा

हिंदू मायथोलॉजी में इससे जुड़ी एक प्रचलित कथा है, जिसके अनुसार एक शंखासुर नाम का राक्षस हुआ करता था। उसने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उनसे अमर होने का वरदान प्राप्त किया था। ब्रह्मा जी के कहने पर उसने बदरीवन जाकर धर्मध्वज की पुत्री तुलसी से विवाह करने को कहा था। दरअसल शंखासुर के अमरत्व की वजह तुलसी ही थी।

अमर होने के बाद शंखासुर ने तीनों लोक में काफी कोहराम मचा दिया था। देवताओं ने तंग आकर ब्रह्मा जी से शंखासुर के वध का उपाय मांगा तो उन्होंने देवों को शिवजी के पास भेजा।

भगवान शिव और शंखासुर का भीषण युद्ध होता है, लेकिन अमर होने के कारण शंखासुर का वध असंभव हो जाता है। तब भगवान विष्णु को एकादशी के दिन नींद से जगाया जाता है और उनसे उपाय पूछा जाता है।

भगवान विष्णु बताते हैं कि पहले शंखासुर की पत्नी तुलसी का व्रत तोड़ना होगा। देव छल से तुलसी का व्रत तुड़वाते हैं, तब जाकर शंखासुर का वध हो पाता है।

तुलसी आक्रोश में आकर भगवान विष्णु को पत्थर बनकर पृथ्वी पर रहने का
श्राप देती है लेकिन भगवान विष्णु तुलसी को पूजनीय पौधा बनने का वरदान देते हैं और कहते हैं कि मैं पत्थर रुप में शालीग्राम बनकर रहूंगा।

देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन शालीग्राम और तुलसी का विवाह भी संपन्न होता है।

तभी से देवउठनी ग्यारस के दिन से हिंदू धर्म में मांगलिक कार्य शुरु हो जाते हैं। लोग देवों को उठाकर और तुलसी विवाह करवाकर इस पर्व को मनाते हैं।

इस दिन लोग अपने घरों में ग्यारह दीपक जलाते हैं और ईख की झोपड़ी में मौसमी फल और सब्जी ऱख तुलसी विवाह की रस्म पूरी करते हैं।

लोग झोपड़ी की परिक्रमा करते हुए कहते हैं ” बोर भाजी आंवला उठो देव सांवला’ यानी हे भगवान विष्ण हम आपके लिए बोर, भाजी और आंवला प्रसाद के रुप में लाए हैं, उठिए और इन्हें ग्रहण कीजिए।

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Author

  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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