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IUCN Report: दुनिया के 50 फीसदी से अधिक मैंग्रोव खतरे में

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IUCN Report: दुनिया के 50 फीसदी से अधिक मैंग्रोव खतरे में
IUCN Report: दुनिया के 50 फीसदी से अधिक मैंग्रोव खतरे में

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN)  ने अपने पहले वैश्विक मैंग्रोव मूल्यांकन के आंकड़े जारी किये हैं। इन आंकड़ों के अनुसार दुनिया के आधे से अधिक मैंग्रोव (Mangrove) पारिस्थितिकी तंत्र के ढहने का खतरा है। दुनिया के पांच में से लगभग एक मैंग्रोव पारिस्थितिकी को गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है। आइये जानते हैं क्या कहती है ये रिपोर्ट। 

आईयूसीएन की रेड डाटा लिस्ट का उपयोग करके किए गए अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्र के एक तिहाई (33 प्रतिशत) को खतरा है। इसके लिए IUCN ने दुनिया के मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को 36 अलग-अलग क्षेत्रों में बांटा, और प्रत्येक क्षेत्र में खतरों और पतन के जोखिम का आकलन किया। इसके लिए IUCN ने 44 देशों में 250 से अधिक विशेषज्ञों की सक्रिय भागीदारी के साथ कार्य का नेतृत्व किया।

क्या है मैंग्रोव पारिस्थितिकी के ढहने के खतरे 

निष्कर्षों से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन और समुद्र के स्तर में वृद्धि के परिणामस्वरूप 2050 तक 1.8 बिलियन टन संग्रहीत कार्बन (मैंग्रोव में संग्रहीत कुल वर्तमान कार्बन का 16 प्रतिशत) का नुकसान होगा। दुनिया के मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के एक-तिहाई हिस्सा समुद्र के स्तर में वृद्धि की वजह से गंभीर रूप से प्रभावित होंगे। इसके साथ ही अगले 50 वर्षों में वैश्विक मैंग्रोव क्षेत्र का 25 प्रतिशत जलमग्न होने का भी खतरा आंका गया है। इस आकलन में कहा गया है कि उत्तर पश्चिमी अटलांटिक, उत्तरी हिंद महासागर, लाल सागर, दक्षिण चीन सागर और अदन की खाड़ी के तट विशेष रूप से गंभीर रूप से प्रभावित होने की आशंका है।

Source: IUCN

मैंग्रोव का संरक्षण क्यों है आवश्यक 

मैंग्रोव में लगभग 11 बिलियन टन कार्बन जमा होता है, जो समान आकार के उष्णकटिबंधीय जंगलों द्वारा संग्रहीत कार्बन की मात्रा का लगभग तीन गुना है। ये पारिस्थितिकी तंत्र तटीय आपदाओं से प्रति वर्ष 15.4 मिलियन लोगों और 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर की संपत्ति की रक्षा करते हैं। जनसंख्या वृद्धि और संपत्ति मूल्यों में वृद्धि के कारण 2050 में यह संख्या बढ़कर 15.5 मिलियन लोगों की और 118 बिलियन अमेरिकी डॉलर की हो सकती है।

भारत में क्या है मैंग्रोव की स्थिति 

भारत में मैंग्रोव बंगाल की खाड़ी, गुजरात, अंडमान और उड़ीसा के भितरकनिका (Bhitarkanika) में पाए जाते हैं। भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2021 के अनुसार देश में मैंग्रोवे का कुल आवरण 4992 वर्ग किलोमीटर अनुमानित है, जो कि 2019 की स्थिति से 17 वर्ग किमी की शुद्ध वृद्धि दर्शाता है। भारत का मैंग्रोव वन सुंदरबन (Sundarban), यूनेस्को (UNESCO) की धरोहर में भी शामिल है। 

आईयूसीएन की इस रिपोर्ट में बंगाल की खाड़ी के मैंग्रोव वनों को लीस्ट कंसर्नड की कैटेगरी में रखा गया है। लेकिन दक्षिण भारत के मैंग्रोवे की ओवरऑल स्थिति क्रिटिकली इंडेंजर्ड की है। अजैविक घटकों और भौगोलिक वितरण में परिवर्तन दक्षिण भारत के मैंग्रोव के लिए बड़ा खतरा देखा जा रहा है। 

आईयूसीएन की रिपोर्ट में माना गया है कि वनों की कटाई, विकास, प्रदूषण और बांध निर्माण मैंग्रोव के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। साथ ही बढ़ते समुद्र के स्तर और जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर तूफानों की बढ़ती आवृत्ति के इन पारिस्थितिक तंत्रों के लिए खतरा और भी बढ़ा रही है। दुनिया भर में मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखना जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए बहुत जरूरी है। स्वस्थ मैंग्रोव समुद्र के स्तर में वृद्धि से बेहतर ढंग से निपटने में सक्षम होते हैं और तूफान, टाइफून और चक्रवातों के प्रभावों से अंतर्देशीय सुरक्षा भी प्रदान करते हैं।

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  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

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