...
Skip to content

बिना ब्याज पर ऋण, फिर भी क़र्ज़ क्यों नहीं चुका पाते किसान?

apex bank society farmer loan
बापूलाल के अनुसार फसलें लगातार ख़राब हो रही हैं जिसके चलते किसान पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।

किसान खरीफ के सीजन की कटाई पूरी करके अपनी फसल बेचने के बाद रबी के सीजन के लिए खेत तैयार कर रहे हैं। इसी के साथ मध्य प्रदेश में खाद के संकट की भी खबरें आने लगी हैं। 25 अक्टूबर को दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर के अनुसार प्रदेश के लगभग 4.5 लाख किसान खाद से वंचित रह जाएंगे। मगर इसका कारण खाद की किल्लत नहीं है। इन किसानों द्वारा जिला सहकारी समितियों से लिया हुआ लोन न चुका पाना। 

प्रकाशित खबर के अनुसार 4.50 लाख किसानों के ऊपर लगभग 4 हज़ार करोड़ से भी अधिक की बकाया राशि है। सबसे ज्यादा 43,296 किसान राजगढ़ ज़िले में हैं जिन पर 185.76 करोड़ रूपए बकाया हैं। जबकि सबसे ज्यादा 593.22 करोड़ रूपए की राशि खरगोन के किसानों पर बकाया है।  

आपको बता दें कि किसान हर सीजन से पहले सहकारी बैंकों से क़र्ज़ लेते हैं। इन्हें एक तय तारीख़ में चुकाना होता है। खरीफ के सीजन के दौरान लिए गए क़र्ज़ को 28 मार्च और रबी के सीजन के दौरान लिए गए क़र्ज़ को 15 जून तक चुकाना होता है। अगर किसान इन तय तारीखों तक ब्याज़ सहित मूलधन नहीं चुका पाते तो उन्हें डिफाल्टर घोषित कर दिया जाता है।       

ख़ास बात ये है कि प्रदेश सरकार 2023 में किसानों का ब्याज़ माफ़ कर चुकी है। ऐसे में सवाल है कि आखिर क्या वजह है कि किसान मूल राशि भी नहीं चुका पाते?

farmer crop loan defaulter
किसानों का कहना है कि उन्हें समय से खाद नहीं मिलने पर उनकी आगामी फसल भी प्रभावित होगी। फ़ोटो: अब्दुल वसीम अंसारी

खाद और क़र्ज़ का संकट

राजगढ़ की ब्यावरा तहसील के अंतर्गत आने वाले माल्याहेड़ी के महेश सौंधिया 30 बीघा ज़मीन पर खेती करते हैं। इसमें से 7 बीघा महेश, 5 बीघा उनकी मां लालता बाई और 11 बीघा पिता के नाम से दर्ज है। इसके अतिरिक्त ज़मीन अन्य लोगों के नाम से दर्ज है।

महेश बताते हैं कि उनके पिता रामरतन सौंधिया के नाम से सहकारी समिति का 50 हज़ार, मां पर 20 हज़ार और इतना ही उनके खुद के नाम से दर्ज है।

“अभी हमे खाद की जरूरत थी तो हमारे जितने भी सोसाइटी में कृषि ऋण थे हमने इधर-उधर से उधार लेकर वो पैसा चुकाया।” 

दरअसल महेश आगामी फसल के लिए अपना खेत तैयार कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने स्थानीय साहूकार से 2% की ब्याज दर कुल 90,000 रूपए उधार लिए हैं। इसका कारण बताते हुए वह कहते हैं, “(सहकारी समिति में) खाद की कीमत 266 रुपए है और बाजार में 350 से 500 रुपए तक एक बोरी मिलती है।” 

वह कहते हैं कि अगर खाद नहीं मिलेगा तो फसल की गुणवत्ता और उत्पादन कम हो जाएगा। इसका सीधा असर फसल से होने वाली कमाई पर पड़ेगा और फिर उन पर आर्थिक दबाव बढ़ जाएगा।

उनके अनुसार किसानों को उपज का पूरा दाम न मिलना और मौसमी घटनाओं के चलते फसल बर्बाद होना क़र्ज़ न चुका पाने का सबसे बड़ा कारण होता है। “एक साल ऋण लेने के बाद जब वो लागत नहीं निकाल पाता तो मूल रकम कहां से जमा करेगा?”

defaulter farmer in MP
महेश ने सोसाइटी का बकाया चुकाने के लिए साहूकार से 2% ब्याज़ पर क़र्ज़ लिया है। फ़ोटो: अब्दुल वासिम अंसारी

जिले के एक अन्य किसान विष्णु प्रसाद अपनी 4 बीघा ज़मीन पर रबी के सीजन में गेहूं और चने की फसल करते हैं। इसकी लागत के लिए वह खरीफ के सीजन में होने वाली सोयाबीन की फसल पर निर्भर रहते हैं। पिछले साल उन्होंने खाद और बीज के लिए सोसाइटी के माध्यम से 10 हजार रुपए का ऋण लिया था। उन्हें उम्मीद थी कि इस बार उन्हें लगभग 16 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त होगा। उन्होंने इसके लिए 6 हज़ार रूपए प्रति बीघा लागत लगाई थी। 

मगर फसल बोने के बाद असमय बारिश और पीला मोजैक वायरस के चलते उनकी फसल बुरी तरह प्रभावित हुई। इसके चलते उन्हें केवल 2 क्विंटल उत्पादन ही मिला जिसका भाव 3 हज़ार रूपए प्रति क्विंटल के हिसाब से ही मिले। ऐसे में उनके लिए सोसाइटी से लिया हुआ क़र्ज़ चुकाना नामुमकिन हो गया और वह डिफाल्टर घोषित कर दिए गए। 

डिफॉल्टर घोषित होने के कारण उन्हें रबी सीजन में बोवनी के लिए सोसाइटी से खाद नहीं दिया गया। आर्थिक घाटे से जूझ रहे विष्णु के लिए अधिक दाम देकर निजी दुकानों से भी खाद खरीदना मुमकिन नहीं है। ऐसे में उन्होंने अपने खेत में बिना खाद के ही गेहूं और चने की बोवनी शुरू कर दी। 

soyabean defaulter farmer loan
इस सीजन में सोयाबीन ख़राब होने के चलते किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ा है। फ़ोटो: अब्दुल वासिम अंसारी

डिफाल्टर किसान योजनाओं से भी दूर

हाल ही में प्रदेश सरकार द्वारा सोयाबीन की खरीद के लिए भावांतर योजना लागू की गई है। इस योजना के तहत अगर किसी भी किसान की सोयाबीन की फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर बिकती है तो एमएसपी और किसान की फसल के भाव का अंतर सरकार भुगतान करेगी। यह योजना सोयाबीन की फसल को हुए भारी नुकसान के बाद लागू की गई है। 

मगर कई किसान अब भी इसके पंजीयन से बच रहे हैं। दरअसल यह डिफाल्टर घोषित हो चुके किसान हैं। इन्हें डर है कि वह योजना में पंजीयन करेंगे तो डिजिटल भुगतान के दौरान ऋण का पैसा काट लिया जाएगा और उनके हाथ कुछ भी नहीं आएगा। साथ ही पंजीयन कराने वाले किसानों को लगभग 4 दिन अपनी फसल के मूल रुपयों का इंतेज़ार करना पड़ा,जबकि उन्हें भावांतर की राशि 15 दिनों के बाद भुगतान की जाएगी।

पिपल्या ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले भादवाखेड़ा गांव के किसान बापूलाल 8 बीघा के किसान हैं। वह शहर में स्थित स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया की शाखा में हाल ही में सरकार द्वारा डाली गई मुआवजा राशि की जानकारी लेने आए हैं। सरकारी योजना और आर्थिक असुरक्षा को लेकर बात करते हुए वह कहते हैं,

“किसान अगर 1 लाख का ऋण लेता है और उसकी 50 हजार की फसल निकलती है तो वो क्या ऋण अदा करेगा और क्या अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करेगा?” 

वह बताते हैं कि उनके गांव के कई परिचित किसान इस कारण पंजीयन नहीं कराते कि उनकी लोन की राशि फसल की राशि से कट जाएगी। 

tracter soyabean loan defaulter farmer
क़र्ज़ के चलते ही कई किसान सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ नहीं लेते। फ़ोटो: अब्दुल वासिम अंसारी

राजगढ़ जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के एक कर्मचारी भास्कर में प्रकाशित आंकड़ों की पुष्टि करते हैं। नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर वह कहते हैं,  

“यदि किसान डिफॉल्टर घोषित हो जाता है तो पुराना ऋण चुकाने तक बैंक उसके साथ लेनदेन और खाद देना बंद कर देता है।” 

वह इस बात की भी पुष्टि करते हैं कि किसान द्वारा सरकारी योजना में पंजीयन करवाने की दशा में फसल का भुगतान होने पर उनके खाते से ऋण की राशि काट ली जाती है। मगर वह जोड़ते हैं कि योजना का लाभ लेने के लिए “ऐसे किसान अक्सर अपने परिवार के किसी अन्य सदस्य का रजिस्ट्रेशन कराते हैं।”

इस मामले पर ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए कृषि कार्यकर्ता मनीष दांगी कहते हैं कि किसान अपनी मर्जी से या जानबूझकर डिफॉल्टर नहीं होते। वह फसल बीमा योजना में अपर्याप्त क्लेम मिलने की शिकायत दोहराते हुए कहते हैं कि सरकारी अनियमितता, प्राकृतिक मार और कम भाव के चलते किसान घाटे में रहता है जिससे उसके लिए ऋण चुकाना कठिन हो जाता है।

भारत में स्वतंत्र पर्यावरण पत्रकारिता को जारी रखने के लिए ग्राउंड रिपोर्ट को आर्थिक सहयोग करें।

यह भी पढ़ें

भावांतर योजना: 2017 से 2025, योजना के आने, जाने और वापस लागू होने की कहानी

नुकसान के बाद भी मुआवजे की लिस्ट से बाहर राजगढ़ के किसान


ग्राउंड रिपोर्ट में हम कवर करते हैं पर्यावरण से जुड़े ऐसे मुद्दों को जो आम तौर पर नज़रअंदाज़ कर दिए जाते हैं।

पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर फॉलो करें। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें। रियल-टाइम अपडेट के लिए हमारी वॉट्सएप कम्युनिटी से जुड़ें; यूट्यूब  पर हमारी वीडियो रिपोर्ट देखें।


आपका समर्थन अनदेखी की गई आवाज़ों को बुलंद करता है– इस आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए आपका धन्यवाद। 

Author

  • Abdul Wasim Ansari is an independent journalist based in Rajgarh, Madhya Pradesh, bringing nearly a decade of experience in journalism since 2014. His work focuses on reporting from the grassroots level in the region.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins