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मड हाउस को फिर से मुख्यधारा में लाना चाहते हैं पुणे के ध्रुवांग और प्रियंका

मड हाउस को फिर से मुख्यधारा में लाना चाहते हैं पुणे के ध्रुवांग और प्रियंका
मड हाउस को फिर से मुख्यधारा में लाना चाहते हैं पुणे के ध्रुवांग और प्रियंका

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सेंटर फॉर साईंस एंड इंवायरमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में भारत ने 365 में से 314 दिन चरम मौसम घटनाओं का सामना किया। आने वाले वर्षों में यह स्थिति और गंभीर होगी ऐसे में सस्टेनेबल जीवनशैली ही इंसान को इससे लड़ने में मदद करेगी। अपने जीवन को लोग पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए कई प्रयास कर रहे हैं, उसी में एक है सस्टेनेबल और इको फ्रेंडली घर का निर्माण। सस्टेनेबल और पारंपरिक तकनीक से बने घर इस तरह से बनाए जाते हैं कि इसमें भीषण गर्मी में भी व्यक्ति बिना एसी के रह सकता है और सर्दियों में इनमें हीटर की ज़रुरत नहीं होती। साथ ही चक्रवात और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं में भी एक हद तक ये घर टिके रहते हैं।

एक ऐसा घर जो प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना बनाया गया हो, और जिसके चलने में कम से कम प्राकृतिक स्त्रोत का दोहन हो। ऐसे घर बनाने में लोगों की मदद कर रहे हैं महाराष्ट्र के पुणे में रहने वाले ध्रुवांग हिंगमिरे और प्रियंका गुंजीकर।

ध्रुवांग और प्रियंका ने साल 2014 में रचना संसद एकैडमी ऑफ आर्किटेक्चर से अपना ग्रैजुएशन पूरा कर करियर के रूप में सस्टेनेबल और पारंपरिक तकनीक से घर बनाने का रास्ता चुना, उनके प्रोफेसर मलकसिंह गिल ने घर निर्माण के लिए पारंपरिक-स्थानीयकृत तकनीकों में उनकी रुचि आकर्षित की। अभी तक वो ऐसे कई घर बना चुके हैं जिनका निर्माण पूरी तरीके से स्थानीय स्तर पर मौजूद कंस्ट्रक्शन मटीरियल और पारंपरिक तकनीक से किया गया है।

तकनीक

वो अपने घरों का निर्माण पारंपरिक सामग्रियों और तकनीकों से करते हैं। यह प्रक्रिया मौजूदा वास्तुकला, डिजाइन, संस्कृति और सामग्री की उपलब्धता को समझने के लिए आस-पास के क्षेत्र/क्षेत्रों के सर्वेक्षण से शुरू होती है। जैसा कि ध्रुवांग जोर देकर कहते हैं, सर्वेक्षण उनकी प्रक्रिया का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके अलावा, वे घर को सौंदर्यपूर्ण बनाने के लिए उसमें स्थानीय कला को शामिल करते हैं।

Priyanka inspecting one of her projects
अपने प्रोजेक्ट साईट पर प्रियंका| Image Source:
Eco-friendly sun-dried mud bricks
ईको फ्रेंडली, सूरज की रौशनी में सूखती मिट्टी की ईंटे | Image Source:

इन घरों में मेटल रॉड की जगह वुड, भट्टी में बनी ईंट की जगह धूप में सुखाई हुईं ईंट, सीमेट की जगह मिट्टी-क्ले और रेत के स्थान पर सुरखी (ईंट का चूरा) का इस्तेमाल किया जाता है। वे मिट्टी/क्ले जैसी स्थानीय रूप से प्राप्त सामग्री का उपयोग करते हैं जिसमें सीमेंट या एल्यूमीनियम की तुलना में काफी कम कार्बन फुटप्रिंट है। इतना ही नहीं, पारंपरिक घरों में उपयोग की जाने वाली अन्य सामग्री की तुलना में कार्बन फुटप्रिंट कम है।

इसके अलावा, उन्हें मानसून के साथ-साथ निर्माण की समय-सीमा का भी प्रबंधन करना होता है, यानी एक घर को पूरा करने में लगभग डेढ़ साल का समय लगता है।

क्या मिट्टी के घर मज़बूत होते हैं?

model of a mud house
मिट्टी के घर का एक मॉडल | Image Source:

मिट्टी से बने घरों के बारे में जो पहला सवाल लोगों के दिमाग में आता है वो यह है कि घर मज़बूत नहीं होगा और मेंटेनेंस ज्यादा होगी। इसे मिथक बताते हुए ध्रुवांग कहते हैं कि

“सीमेंट का आविष्कार 100 साल पहले ही हुआ है, इससे पहले तक हमारे किलों की दीवार मिट्टी और लाईम से चुनवाई जाती थी। मैं इस बात को नहीं मानता कि सीमेंट से बने घर ज्यादा मज़बूत होते हैं, यह सिर्फ सीमेंट के विज्ञापन का नतीजा है जिसने हमारे ज़हन में यह बात फिट कर दी है कि सीमेंट ही घर को मज़बूत बनाती है। रही बात मेंटेनेंस और रखरखाव की तो हर घऱ की यह ज़रुरत होती है, लेकिन मिट्टी के घरों का रखरखाव व्यक्ति खुद ही कर सकता है वो भी कम से कम खर्चे में।”

ध्रुवांग आगे कहते हैं कि “घर बनाते हुए हमारी प्राथमिकता यही होती है कि वो मज़बूत हो, इसके लिए हम घर की नींव और छत पर सबसे ज्यादा ध्यान देते हैं। वुडन फ्रेमवर्क घर को बांधने का काम करता है, एक कंक्रीट के घर में जो काम मेटल रॉड से बने बीम का होता है वो काम मड हाउस में वुडन पिलर्स करते हैं।”

The wood framework on the roof of a house
घर की छत के लिए किया गया लकड़ी का काम | Image Source:

ध्रुवांग कहते हैं कि “पहली बार हम अरब की खाड़ी में ऐसे चक्रवात देख रहे हैं जो पहले कभी नहीं देखे गए, निसर्ग और बिपरजॉय इसके उदाहरण हैं। ऐसे में पारंपरिक शैली से बने घरों का महत्व बढ़ जाता है, क्योंकि वो टाईम टेस्टेड हैं। निसर्ग तूफान के दौरान हमने यह खुद देखा की जो घर पारंपरिक शैली से बने थे उन्हें कंक्रीट की तुलना में नुकसान कम हुआ था।”

एक सवाल जो ध्रुवांग और प्रियंका से बात करते हुए हमारे ज़हन में उठा वो यह था कि क्या मिट्टी और लकड़ी से बहुमंज़िला इमारत बनाई जा सकती हैं? इस पर जो एक दिलचस्प जवाब हमें ध्रुवांग से मिला वो यह था कि हमें खुद से पूछना चाहिए कि हमें बहुमंज़िला इमारत की ज़रुरत क्यों और कहां है?

स्थानीय लोगों को मिलता है रोज़गार

पारंपरिक तकनीकों के साथ ध्रुवांग और प्रियंका का काम कई स्थानीय लोगों को रोजगार देता है। उनके अनुसार, घर बनाने के लिए देशी तकनीकों का उपयोग करने से उन्हें स्थानीय लोगों को रोजगार देने की सुविधा मिलती है। हालाँकि, कुछ बाधाएँ हैं। प्रियंका कहती हैं कि “हमारे काम में सबसे ज्यादा मुश्किल पारंपरिक घर बनाने वाले कारीगरों को ढूंढना होता है, इसमें भी लकड़ी का काम जानने वाले कार्पेंटर का मिल जाना किस्मत की ही बात होती है। नई पीढ़ी के कार्पेंटर घर बनाने का काम नहीं करना चाहते उनके लिए फर्नीचर बनाना ज्यादा आसान है।”

Volunteers and local workers engaged in the construction of a mud house
मड हाउस बनाते स्थानीय लोग और वॉलंटियर्स | Image Source:

ध्रुवांग इसी में एक बात जोड़ते हुए कहते हैं कि “गांव की महिलाएं इस तरह के घर बनाने में ज्यादा दक्ष होती हैं, वो सदियों से अपने घरों में लिपाई छपाई का काम करती आ रही हैं, लेकिन उनके काम को कभी स्किल्ड लेबर का दर्जा नहीं मिला। महिलाएं जब काम करती हैं तो लोकगीत गाते हुए काम करती हैं, उस समय प्लास्टर करते हुए उनके हाथ की लय देखने लायक होती है”

मिट्टी के घर और कंक्रीट के घर की लागत के बीच मुख्य अंतर सामग्री-से-श्रम अनुपात का है। कंक्रीट के घर में निर्माण सामग्री की लागत 70% और श्रम 30% है, जबकि मिट्टी के घर में लागत 70% श्रम और 30% निर्माण है।

मिट्टी का घर बनाने में खर्च कितना आता है?

मिट्टी का घर बनाने की लागत इस बात पर निर्भर करती है कि किस प्रकार का घर बनाया जाना है और क्च्चा माल कहां उपलब्ध है। ध्रुवांग के अनुसार-

“यदि स्थानीय मिट्टी और स्थानीय श्रम का उपयोग किया जाए, तो लागत लगभग 1200 से 1500 प्रति वर्ग फुट होगी। अधिक फिनिश-उन्मुख कार्य के लिए जाते समय, लागत 2000 से 3000 प्रति वर्ग फुट के बीच हो सकती है – लेकिन यह कई चीज़ों पर निर्भर करता है जो घर की लोकेशन के हिसाब से बदल सकते हैं।”

One of the beautiful mud houses constructed by Dhruvang and Priyanka
ध्रुवांग और प्रियंका द्वारा तैयार किया गया एक सुंदर मड हाउस | Image Source:

उनके अनुसार, मिट्टी से घर बनाने का प्रयास एक टिकाऊ पहलू है। लेकिन, यह कोई बुरा पेशा भी नहीं है। हालाँकि, उन्हें लगता है कि शुरुआती पेशेवरों को कड़ी मेहनत करनी होगी और वित्त प्रबंधन के लिए कुछ परियोजनाओं में खुद को सलाहकार के रूप में नियुक्त करना होगा, ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने किया था। आशावादी पक्ष पर, ध्रुवांग को लगा कि स्थिति अधिक टिकाऊ आवास की ओर बढ़ रही है, इसलिए इस क्षेत्र में शुरुआती पेशेवरों के लिए अधिक पैसा होगा।

चलते-चलते

ध्रुवांग और प्रियंका व्यक्तिगत तौर पर साल में केवल 4 से 5 प्रोजेक्ट पर ही काम कर पाते हैं। लेकिन वो मड हाउस बनाने के लिए उत्सुक लोगों से अपना अनुभव और तकनीक साझा करने के लिए समय ज़रुर जुटाते हैं। अगर आप भी ध्रुवांग और प्रियंका से कंसल्टेशन चाहते हैं तो उनकी वेबसाईट के ज़रिए उनसे संपर्क कर सकते हैं।

मिट्टी के घर या मड हाउस बनाने का चलन धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहा है, लोग इनका महत्व समझ रहे हैं, लेकिन यह अभी मुख्यधारा से नहीं जुड़ सका है। शहरों में लोग अपने फार्महाउस और सेकेंड होम के तौर पर मड हाउस में रुची दिखा रहे हैं, वहीं ग्रामीण इलाके जहां पारंपरिक घर बहुतायत में हुआ करते थे वहां कंक्रीट पैर पसार रहा है। इसका एक मुख्य कारण हर सिर पक्की छत का सपना भी है जिसके विज्ञापन में पक्की छत कंक्रीट और लोहे की तारों की बनी दिखाई जाती है।

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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