...
Skip to content

सेठानी घाट पर फैला कचरा और ग्राहकों की राह ताकते ऑर्गेनिक दीप

सेठानी घाट पर फैला कचरा और ग्राहकों की राह ताकते ऑर्गेनिक दीप
सेठानी घाट पर फैला कचरा और ग्राहकों की राह ताकते ऑर्गेनिक दीप

REPORTED BY

Follow our coverage on Google News

दिन के 11 बज रहे हैं. मध्य प्रदेश की राजधानी से 80 किलोमीटर दूर नर्मदा के किनारे स्थित सेठानी घाट में श्रद्धालु नहा रहे हैं. इनमें से कुछ अभी-अभी यहाँ आए हैं. वह नर्मदा में डुबकी लगाने की तैयारी कर रहे हैं. वहीँ जो लोग नहा चुके हैं वह नर्मदा की पूजा कर रहे हैं. घाट में किनारों पर शिवलिंग बने हुए हैं. लोग उनकी अगरबत्ती से आराधना करते हैं और फूल चढ़ाते हैं. मगर इसी किनारे मौजूद है रेत, नर्मदा में मिलता हुआ नाला और बहुत सारा कचरा.

Garbage on sethani ghat narmadapuram
सेठानी घाट पर पूजा सामग्री से हुआ कचरा, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

महीने में 2-3 बार सफाई

सेठानी घाट के लिए यह कोई आम दिन जैसा ही है. मगर घाट से लगी नर्मदा पर नज़र जाते-जाते रह जाती है. यहाँ मौजूद कचरे ने रोक लिया. घाट पर मौजूद प्लास्टिक और मूर्तियों के अवशेष नज़र आते हैं. यहाँ मछली पकड़ रहे भागीरथ कार कहते हैं,

“यह कचरा त्यौहार (नवदुर्गा) के कारण हुआ है. यहाँ बहुत दिनों से सफाई नहीं हुई है जिसके कारण कचरा दिख रहा है.”

हालाँकि वह बताते हैं कि घाट पर नगर पालिका द्वारा ‘महीने में 2-3 बार सफाई’ की जाती है. वहीँ यहाँ के कोरी घाट के पास एक नाला नर्मदा में मिलता हुआ नज़र आता है. भागीरथ बताते हैं कि जब भी कोई बड़ा नेता यहाँ आता है तब इस नाले के पानी को रोक दिया जाता है. मगर बाकी समय यह वैसे ही चलता रहता है.

Sethani Ghat Narmadapuram Shopkeepers
सेठानी घाट के बाहर लगी प्रसाद की दुकान, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

पन्नी-कागज़ के दीप दान करते दर्शनार्थी

घाट पर पन्नी-कागज़ का बना हुआ दीप दान कर रहे विनय शर्मा कहते हैं,

“सभी जगह यही दीप मिलता है इसलिए यही हम भी खरीदते हैं…नगर पालिका बाद में इसे साफ़ कर देती है.”

बुधनी के रहने वाले विनय हर हफ्ते इस घाट पर आते हैं. वह हर बार 10 रूपए में मिलने वाले 5 दीपों को ख़रीदते हैं और पूजा के बाद नर्मदा में बहा देते हैं. विनय ऐसे अकेले दर्शनार्थी नहीं हैं. यहाँ दीप दान कर रहे अधिकतर श्रद्धालू इन्हीं दीपों का इस्तेमाल करते हैं. पानी में थोड़ा देर तैरने के बाद प्लास्टिक लगा हुआ कागज़ नदी में रह जाता है।

Aaata Diya on Sethani Ghat Narmadapuram
आटे के दिए बेंचते कमल, फ़ोटो – ग्राउंड रिपोर्ट

आटे के दिये बनाने वाले कमल

घाट की ओर जाने के रास्ते में कमल अपनी छोटी सी दुकान में आटे की छोटी-छोटी लोई बना रहे हैं. वह इनसे आटे के दिये बना रहे हैं. वह कहते हैं, “लोग पन्नी के बजाए अगर आटे के दिये का इस्तेमाल करें तो ज़्यादा अच्छा होगा.” वह बताते हैं कि आटे के पानी में गीला हो जाने के बाद इसे मछलियाँ भी खा लेती हैं. मगर पन्नी के दीप कचड़ा बनकर “नर्मदा माँ को गन्दा करते हैं.” हालाँकि पूर्णिमा और अमावस्या के दिन आटे के दीपों का धंधा अच्छा होता है मगर आम दिनों में सभी प्लास्टिक के दिये ही इस्तेमाल करते हैं. 

दुकानदारों को हमेशा रखना चाहिये आटे के दिये

हम जिस दिन सेठानी घात में घूम रहे थे उस दिन पूर्णिमा या अमावस्या नहीं थी. कमल के कहे अनुसार हमें किसी भी अन्य दूकान में आटे के दिये नज़र नहीं आते हैं. कमल कहते हैं कि यदि यहाँ के दुकानदार पन्नी के दिये रखना बंद कर दें तो नर्मदा में कचरा नहीं होगा. वह आगे कहते हैं, “यहाँ सभी दुकानदारों को हर समय केवल आटे के दिये ही रखने चाहिये.” मगर यहाँ के एक अन्य दुकानदार कहते हैं,

“बाकी के दिनों में हमारी ज्यादा बिक्री नहीं होती। हम अगर आटे के दिये रख भी लेंगे तो बाहर (मुख्य सड़क पर स्थित दुकानदार) वाले थोड़े प्लास्टिक के दिये रखना बंद कर देंगे. लोग उनसे खरीदेंगे” 

Hoshangabad Sethani Ghat Gobar Diya
कुलदीप पाठक गोबर के दिये बेंचते हैं, फ़ोटो – ग्राउंड रिपोर्ट 

ग्राहक की राह ताकते गोबर के दिये

कुलदीप पाठक की दुकान पर हमने आटे के दिये के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह भी केवल अमावस्या-पूर्णिमा के दिन ही आटे के दिये रखते हैं. मगर वह आगे बताते हैं कि उनके पास गोबर से बने हुए दिए हैं. वह हमें अपनी दुकान की ओर ले जाते हुए कहते हैं, “यह दिये हम बरेली से मंगवाते हैं.” वह कहते हैं कि यह दिये घाटों के किनारे जमी मिट्टी में ही मिल जाते हैं जिससे पर्यावरण का ज्यादा नुकसान नहीं होता है. मगर वह यह दिये कम ही बेंच पाते हैं.

“पन्नी के दिए 10 रूपए में 5 मिल जाते हैं यह 5 रूपए का एक दिया है. यही सोचकर कोई इसे लेता नहीं है.”

कुलदीप का मानना है कि सरकार को स्व-सहायता समूहों द्वारा इन दीयों का निर्माण होशंगाबाद में ही करवाना चाहिए ताकि इनकी लागत कम हो सके. “बरेली से जब कोई आ रहा होता है तो 200 से 300 दिये ले आता है. मगर इन्हें कोई ख़रीदता नहीं है इसलिए साल भर बाद ही इसे मंगवाने की बारी आती है. सरकार यहाँ बनवाएगी तो यहाँ इसका चलन बढ़ेगा अभी तो हम ही इसे बेंचते हैं.”

यह भी पढ़ें

Follow Ground Report for Climate Change and Under-Reported issues in India. Connect with us on FacebookTwitterKoo AppInstagramWhatsapp and YouTube. Write us on GReport2018@gmail.com

Author

  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins