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रातापानी टाइगर रिज़र्व के इको-सेंसिटिव जोन में खनन से बाघों के आवास खतरे में

रातापानी टाइगर रिज़र्व के इको-सेंसिटिव जोन में खनन से बाघों के आवास खतरे में
रातापानी टाइगर रिज़र्व के इको-सेंसिटिव जोन में खनन से बाघों के आवास खतरे में

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मध्‍य प्रदेश की राजधानी से सटे रातापानी टाइगर रिजर्व के इको सेंसिटिव ज़ोन और उसके आसपास के क्षेत्र में करीब 65 से अधिक स्‍टोन-क्रशर और अन्‍य खदानों का संचालन किया जा रहा है। वन्‍य प्राणी कार्यकर्ताओं की मानें तो पिछले 16 सालों से रातापनी सेंचुरी को टाइगर रिज़र्व का दर्जा न मिल पाने की एक वजह यहां संचालित अवैध खदानें ही थी।

यह खदानें नेशनल हाईवे-45 की तरफ संचालित हो रही हैं, इससे टाइगर के साथ अन्‍य वन्‍य प्राणियों के आवास उजड़ रहे हैं। 

मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव से इन अवैध खदानों की शिकायत की गई। इसके बाद मुख्‍यमंत्री ने जांच कराने के निर्देश दिए। इस पर रायसेन कलेक्‍टर ने इन खदानों की जांच के लिए एक समिति बनाई। इस समिति ने शासन को सौंपी अपनी रिपोर्ट में करीब 60 खदानों को क्‍लीन चिट दी है।

इसमें बताया गया है कि यह खदानें टाइगर रिजर्व और उसके इको सेंसिटिव ज़ोन से बाहर संचालित हो रही हैं। वहीं 65 में से 5 खदानें इको सेंसिटिव ज़ोन के दायरे में आ रही हैं। 

इधर, वन्‍यप्राणी कार्यकर्ताओं ने इन सभी खदानों की लीज़ निरस्‍त कर बंद करने की मांग की है। वे कहते हैं कि यदि इन खदानों को समय रहते बंद नहीं किया गया तो बाघों के आवास प्रभावित होंगे और इसके गंभीर परिणाम देखने को मिलेंगे। 

परमिशन कहीं की और संचालन कहीं और

जांच समिति की रिपोर्ट में सामने आया है कि यह सभी पांचों खदानें नियमों को ताक पर रखकर संचालित की जा रही हैं। इन पांचों खदानों के लिए अनुमति किसी और स्‍थान के लिए ली गई है, लेकिन संचालित किसी और स्‍थान पर हो रही हैं।  साथ ही इन खदानों में पर्यावरण नियमों का पालन भी नहीं किया जा रहा है। 

रायसेन जिला कलेक्‍टर, अरविंद दुबे कहते हैं कि

“रातापानी में चल रही खदानों की जांच के लिए बनाई गई समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है। इस रिपोर्ट में इको सेंसिटिव ज़ोन में संचालित पांच खदानोंं में नियमों का उल्‍लंघन किया जा रहा था, इन्‍हें नोटिस जारी किए गए थे, इनके लिखित जवाब आ गए हैं। इन जवाबों का परीक्षण कराया जा रहा है। इसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।”

यह खदानें इको सेंसिटिव ज़ोन में 

  • मोहन गोस्‍वाती, समनापुरा

  • आरिफ खान, समनापुरा

  • अजय गुप्‍ता, बरहाखेड़ा

  • बंसल कंस्‍ट्रक्‍शन, समनापुरा

  • विदुषि स्‍टोन क्रशन, पिपिल्‍याखेड़ी

70 से अधिक टाइगर का है मूवमेंट

Stone crushers in the Ratapani Sanctuary area
टाईगर रिज़र्व के पास इस तरह की खदानों के संचालन से ध्वनी प्रदूषण के साथ साथ वन्य प्राणियों के गिरने का भी खतरा रहता है

 रातापानी टाइगर रिजर्व में 70 से अधिक बाघों का मूवमेंट है, जबकि रातापानी लैंड स्कैप (रातापानी, भोपाल, सीहोर और देवास) में इनकी संख्या 96 है। इसके अलावा बड़ी संख्या में तेंदुए, हिरण और अन्य चन्य प्राणी और जैव विविधता इस वन्य क्षेत्र में मौजूद हैं।

रातापानी सेंचुरी की स्थापना साल 1976 में की गई थी। रायसेन एवं सीहोर जिले में रातपानी अभयारण्य का कुल क्षेत्रफल लगभग 1,272 वर्ग किलोमीटर पूर्व से अधिसूचित है। बाघों की बढ़ती आबादी को देख वन विभाग ने केंद्र से इसे टाइगर रिजर्व घोषित करने के लिए पत्र लिखा। फिर साल 2007 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने मप्र सरकार को टाइगर रिजर्व घोषित करने की मंजूरी दी, लेकिन 16 साल बाद नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अर्थारिटी (एनटीसीए) ने 3 दिसंबर को इसे प्रदेश का आठवां टाइगर रिजर्व बनाने का ऐलान किया। 

इसके बाद मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 13 दिसंबर को झिरी गेट पर इसका लोकार्पण किया और इसका नाम भीम बैठिका की खोज करने वाले विश्‍वख्यिात पुरातत्‍वविद् डॉ. विष्‍णु वाकणकर के नाम पर रखा।

अभी रिजर्व के कुल क्षेत्रफल में से 763 वर्ग किलोमीटर को कोर क्षेत्र घोषित किया गया है। यह वो क्षेत्र है, जहां बाघ बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के स्वतंत्र रूप से विचरण कर सकेंगे। शेष 507 वर्ग किलोमीटर को बफर क्षेत्र घोषित किया गया है।

16 साल के लंबे संघर्ष के बाद रातापानी सेंचुरी को टाइगर रिजर्व का दर्जा हासिल हुआ है, लेकिन इस क्षेत्र में मौजूद बाघों की सुरक्षा पर सवाल अब भी बरकरार है, क्‍योंकि यह क्षेत्र जितना बाघों की बढ़ती आबादी के लिए जाना जाता है, उतना ही बाघों की कब्रगाह के लिए भी है। यही वजह है कि वन्‍य प्रेमी और पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा निरंतर इस क्षेत्र में बाघों के साथ अन्‍य वन्‍य प्राणियों की सुरक्षा के लिए चिंता जाहिर की जाती है। 

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  • Based in Bhopal, this independent rural journalist traverses India, immersing himself in tribal and rural communities. His reporting spans the intersections of health, climate, agriculture, and gender in rural India, offering authentic perspectives on pressing issues affecting these often-overlooked regions.

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