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सीहोर स्वच्छता सर्वेक्षण, आज भी सड़क किनारे जलाया जा रहा है कचरा

सीहोर स्वच्छता सर्वेक्षण, आज भी सड़क किनारे जलाया जा रहा है कचरा
सीहोर स्वच्छता सर्वेक्षण, आज भी सड़क किनारे जलाया जा रहा है कचरा

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भारत में आठवां स्वच्छता सर्वेक्षण 2024 जारी है। यूँ तो इस वर्ष का सर्वेक्षण कई चरणों में होगा और हर चरण के लिए अलग-अलग अंक निर्धारित किये गए हैं। लेकिन बीते 21 नवंबर को स्वच्छतम  पोर्टल की अप्लीकेशन विंडो बंद हो गई है। इसी विंडो के जरिये देश के विभिन्न नगर निकाय स्वच्छता के विभिन्न सर्टिफिकेट्स के लिए आवेदन करते हैं। सीहोर नगर पालिका ने भी इस पोर्टल में जीएफसी (गारबेज फ्री सिटी) और वाटर प्लस सर्टिफ़िकेट के लिए अप्लाई कर दिया है। अब दिसंबर में स्वच्छ सर्वक्षण की टीम शहर में साफ़ सफाई की स्थिति का फील्ड में आकर मुआयना करेंगी। 

क्या है सीहोर की रैंकिंग 

1 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की श्रेणी में आने वाले सीहोर शहर ने 2023 के सर्वेक्षण में देश भर में 50वीं रैंक हासिल की है। वहीं प्रदेश के जिलों के बीच सीहोर की स्वच्छता का स्तर 14वें पायदान पर है। पिछले वर्ष के मूल्यांकन के कुल 7500 अंकों में से शहर को 6 हजार 859 अंक मिले हैं। 

इन सब के अतिरिक्त स्वच्छता के कुछ जरुरी मापदंडों पर भी सीहोर का प्रदर्शन बेहतर था। मसलन 93 फीसदी घरों से कचरा (डोर टू डोर वेस्ट कलेक्शन) उठाया जा रहा है। सीहोर में 82 फीसदी स्थानों पर गीला और सूखा कचरा अलग-अलग रखा जा रहा था (सोर्स सेग्रिगेशन)। वहीं सीहोर के 91 फीसदी आवासीय क्षेत्रों में सफाई थी, और बाजार 90 फीसदी तक साफ़ थे। शहर के जल स्त्रोत और सार्वजनिक शौचालय की स्वच्छता शत प्रतिशत थी। 

लेकिन कुछ ऐसे भी मानक थे जिन्हे सीहोर में पूरा नहीं किया गया था। उदाहरण के तौर पर कचरों का निस्तारण। पिछले सर्वेक्षण के मुताबिक़ सीहोर में सिर्फ आधे कचरे का ही निस्तारण (वेस्ट प्रोसेसिंग) हो रहा था। वहीं सीहोर में डंपसाइट के लिए किये गए उपाय न के बराबर थे। ये दोनों मानदंड शहर की सफाई और पर्यावरण के दृष्टिकोण से जरूरी हैं, मगर सीहोर में इस दिशा में किया गया काम संतोषजनक नहीं प्रतीत होता है। 

क्या है ज़मीनी हकीकत?

Solid waste management plant sehore
सीहोर के वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट में अलग किया गया रीसायकल योग्य कचरा, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

सीहोर में इस वर्ष सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट शुरु हो गया है, जो गीले और सूखे कचरे को अलग कर उसे प्रोसेस करने का काम कर रहा है। शहर की लैंडफिल साईट पर कचरे के पहाड़ का साईज़ भी कम हुआ है, यानी शहर ने अपने लेगेसी वेस्ट के निस्तारण में भी सफलता हासिल की है। इस वर्ष शहर को इसकी वजह से अधिक नंबर मिलने की संभावना है। 

कुछ मामलों में सीहोर की स्थिति पिछले वर्ष की तुलना में बिगड़ी भी है। ग्राउंड रिपोर्ट की टीम ने अपने ग्राउंड एसेसमेंट में पाया है कि यहां डोर टू डोर वेस्ट कलेक्शन तो हो रहा है लेकिन सोर्स सेगरीगेशन नहीं हो रहा है। लोग अभी भी गीला और सूखा कचरा अलग नहीं कर रहे हैं। वेस्ट कलेक्शन गाड़ियां भी केवल ड्राईवर के भरोसे पर ही चल रही हैं, जबकि अन्य शहरों में इसके लिए दो व्यक्ति गाड़ी में होते हैं। कचरा कलेक्ट कर रहे ड्राईवर्स का कहना है कि उन्हें सिर्फ कोविड के समय ही सेफ्टी इक्विपमेंट दिये गए थे। 

इसके साथ ही शहर में घरों से कचरा तो इकट्ठा किया जा रहा है, लेकिन सड़क पर फैलने वाले कचरे को आग लगाकर नष्ट करने की समस्या बनी हुई है। 

हमने पाया है कि लोगों को गीला और सूखा कचरा अलग रखने के लिए नगरीय प्रशासन की ओर से न तो प्रेरित किया जा रहा है और न ही कोई कोशिश की जा रही है। 

कैसे होती है मार्किंग?

Swachch Srvekshan Sehore
सीहोर शहर में कुछ इस तरह सड़क किनारे कचरा डाल दिया जाता है और इसमें आग लगा दी जाती है, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

भारत में स्वच्छता सर्वेक्षण का यह 8वां संस्करण है। यह सर्वेक्षण भारत के आवासीय और शहरी विकास मंत्रालय द्वारा करवाया जाता है। हर बार सर्वेक्षण के मानदंडों और मार्किंग में कुछ परिवर्तन किया जाता है। इस बार के सर्वेक्षण में भी कुछ बदलाव किये गए हैं। 

पिछले बार के सर्वेक्षण में कुल अंक 7500 थे जिसे इस बार बढ़ा कर 9500 किया गया है। इस बार के सर्वेक्षण में सर्वाधिक, 60 फीसदी अंक सर्विस लेवल प्रोग्रेस के लिए निर्धारित किये गए हैं। इसके अतिरक्त स्वच्छता को लेकर हो रहे जन आंदोलनों के लिए 14 प्रतिशत अंक निर्धारित किये गए हैं। 

इसके अलावा सर्टिफिकेशन के लिए 26 फीसदी यानी 2500 अंक निर्धारित किये गए हैं। इसके अंतर्गत ओडीएफ (ओपन डेफिकेशन फ्री), जीसीएफ, और वाटर प्लस सिटी जैसे प्रमाणपत्र आते हैं। सीहोर नगर पालिका द्वारा भी इन्ही प्रमाणपत्रों के लिए आवदेन किया गया है। सर्वेक्षण के सन्दर्भ में इन प्रमाणपत्रों की अहमियत का अंदाजा इनके अंको से ही लगाया जा सकता है। जैसे कि जीसीएफ सर्टिफ़िकेट के लिए 1375 और वाटर प्लस सिटी के लिए 1125 अंक निर्धारित किये गए हैं।  

यह सर्वेक्षण कुल 4 चरणों में होता है। जिनमें से पहले दो चरणों में टेलीफोनिक फीडबैक लिया जाता है। और आखिरी के दो चरण में सर्वेक्षण की टीम सफाई के लिए किये गए कार्यों का फिजिकल ऑब्ज़र्वेशन यानी जमीनी हकीकत जानने का प्रयास करती है। 

अगर इसे और आसान भाषा में समझा जाए तो सर्वेक्षण टीम पहले नगर निकायों से जरूरी दस्तावेज जैसे सफाई कर्मियों के प्रदर्शन, सुरक्षा इत्यादि मंगवाती है। इसके बाद सर्वेक्षण दल शहर के विभिन्न स्थलों पर जाकर सफाई की स्थिति जैसे येल्लो स्पॉट्स, कचरे के निस्तारण की प्रक्रिया इत्यादि का परीक्षण करता है। इसके बाद संबंधित सर्टिफिकेट जारी करता है। अंत में सफाई के सभी मानदंडों के अनुसार अंक दिए जाते हैं, और देश भर में शहर की रैंकिंग निकाली जाती हैं।

इस बार के स्वच्छता सर्वेक्षण की थीम RRR यानी रिड्यूस, रियूज, और रिसाइकल है। इसे सीधे तौर कचरे के प्रबंधन, पुनर्चक्रण और निस्तारण पर फोकस के तौर पर देखा जा सकता है। हालांकि यही वो मापदंड है जहां पिछले सर्वेक्षण में सीहोर का प्रदर्शन अपेक्षाकृत कम रहा है। इसके साथ ही 2017 में सीहोर देशभर में 55वें पायदान पर था और वर्तमान में 50वें पायदान पर मौजूद है। यह तथ्य भी कहीं न कहीं सीहोर की धीमी प्रगति की ओर इशारा कर रहा है।

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