...
Skip to content

सरकार के भरोसे खेतों में वेयरहाउस बनाकर कर्ज़दार बन रहे एमपी के किसान

सरकार के भरोसे खेतों में वेयरहाउस बनाकर कर्ज़दार बन रहे एमपी के किसान
सरकार के भरोसे खेतों में वेयरहाउस बनाकर कर्ज़दार बन रहे एमपी के किसान

REPORTED BY

Follow our coverage on Google News

“मुझे पंचायत और कुछ दोस्तों के माध्यम से पता चला था कि सरकार एक ऐसी वेयरहाउस योजना लेकर आई है, जिससे किसान अपनी खाली या बंजर जमीन पर अनाज गोदाम बनाकर हर माह लाखों रूपयों की कमाई कर सकते हैं।  सरकार गोदाम बनाने के लिए इस योजना के तहत निवेश का 50 प्रतिशत या 1 करोड़ रूपए तक का अनुदान भी दे रही है। मैंने भी अच्छी आमदनी की चाह में  इस योजना से जुड़कर कर्ज़ लिया और पांच एकड़ खेती की जमीन में से तीन एकड़ में अनाज गोदाम बना लिया। लेकिन क्या पता था कि अच्छी आमदनी की चाह में मैं कर्जदार बन जाउंगा।”

यह बात कहते हुए सदफ खान रो देते हैं। 

सदफ खान, मध्य प्रदेश के सिवनी, पिपरियाकला के मझगवा टोला गांव के रहने वाले हैं। वे अपनी पत्नी कौशर झा के नाम पर वेयर हाउस का संचालन कर रहे हैं। उनको इस माह यानी 30 सितंबर से पहले लोन की करीब तीन लाख रूपए से ज्यादा की किस्त भरनी है। इसकी वसूली के लिए बैंक नोटिस जारी कर तय समय पर किस्त भरने, नहीं तो प्रापर्टी जब्त करने की चेतावनी दे रही है। 

Warehouse Madhya Pradesh Scam
सदफ खान द्वारा लिए गए लोन का विवरण

खान, की तरह मध्य प्रदेश के कई किसानों ने वेयर हाउस सब्सिडी योजना यानी ग्रामीण भंडारण योजना के तहत अनुदान लेकर अपने-अपने खेतों में गोदाम बना लिए हैं, लेकिन अब उन्हें अपने फैसले पर अफसोस हो रहा है। 

Warehouse in Farm

प्रदेश में उत्पादन क्षमता से अधिक संख्या में गोदामों का निर्माण किया जा चुका है, जिसकी वजह से अधिकतर गोदाम या तो खाली पड़े हैं या फिर 20 से 30 प्रतिशत ही भरे हुए। इसके साथ ही उन्हें समय पर किराया भी नहीं मिल रहा है।

खान, अपने आंसू पोंछते हुए आगे कहते हैं कि 

“साहब, मुझे पता होता, कि प्रदेश में उत्पादन क्षमता से अधिक वेयर हाउस का निर्माण हो चुका है, तो मैं क्या गोदाम बनाने का रिस्क लेता?”

भोपाल के पास बसे सूखी सेवनिया के गोदाम मालिक कपिल साहू को पिछले देढ़ साल से गोदाम का किराया नहीं मिला है। इस वजह से उनके ऊपर आर्थिक बोझ बढ़ गया है। तीन माह बाद उनकी बेटी की शादी है, अगर जल्द उन्हें बकाया किराया नहीं मिला तो शादी की तारीख आगे बढ़ाने की नौबत आ सकती है। उनकी पत्नी कल्पना साहू कहती हैं कि 

“हमने गोदाम बनाकर ही गलती कर दी, इसकी वजह से हम कर्जदार हो गए। गोदाम ने हमें समाज में मुंह दिखाने के लायक नहीं छोड़ा है, क्योंकि चाहे रिश्‍तेदार हो या पड़ोसी, किसी से भी अपना दुख बांटने की कोशिश करो तो वो हम पर हंसते हैं और कहते हैं कि इतना बड़ा गोदाम होकर भी आप परेशान हो।” 

कैसे हुई प्रदेश में गोदाम व्यवसाय की शुरूआत

Warehouse Subsidy scheme

मध्य प्रदेश वेयर हाउस ओनर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष नवनीत रघुवंशी के अनुसार साल 2012 में प्रदेश में गेंहू की बंपर पैदावार हुई थी और राज्य की शिवराज सरकार ने रिकार्ड कायम करते हुए करीब 8 मिलियन टन गेंहू की खरीदी की थी। इस समय शिवराज सरकार के पास र्प्‍याप्‍त मात्रा में अनाज भंडारण की क्षमता नहीं थी, इस वजह से खरीदे गए गेंहू की बड़ी मात्रा को खुले में, तिरपाल से ढ़क्कर या अस्थायी भंडारण में रखना पड़ा था। 

इसी साल बारिश के कारण अधिक मात्रा में गेंहू भी खराब हो गया था। इस चुनौती से निपटने के लिए राज्य सरकार ने मप्र वेयरहाउसिंग एवं लाॅजिस्टिक्स नीति, 2012 का अनावरण किया। 

इस नीति के मुताबिक पूंजी निवेश पर 15 प्रतिशत सब्सिडी और ब्याज पर 5 प्रतिशत की छूट की पेशकश की गई और प्रदेश के कम से कम 10 जिलों में गोदाम और साईलोज के निर्माण के लिए हर जिले में 50 एकड़ भूमि को वेयरहाउस जोन के रूप में विकसति करने का लक्ष्य रखा गया। 

वे आगे कहते हैं कि

 “इस नीति का प्रभाव इतना नहीं पड़ा। इसके बाद सरकार ने साल 2018 में संशोधन करते हुए मप्र वेयरहा‍उसिंग एवं लॉजिस्टिक्‍स नीति-2018 लॉन्‍च की, इन संशोधन में निवेश सहायता के साथ ही स्‍टॉप व पंजीयन शुल्‍क, विद्युत शुल्‍क आदि में छूट दी गई।  प्रदेश के किसानों ने इस योजना में भी अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई।  लेकिन केंद्रीय कृषि कल्याण विभाग द्वारा शुरू की गई ग्रामीण भंडारण योजना किसानों को पसंद आई और उन्होंने इसका लाभ लेना शुरु किया।”

क्या है ग्रामीण भंडारण योजना?

Warehouse Madhya Pradesh Scheme

इस योजना के तहत किसानों को अपने खेत में गोदाम बनाने के लिए नाबार्ड ( राष्‍ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) ने सामान्य वर्ग के गोदाम निर्माताओं को 25 प्रतिशत और महिलाओं और एससी/एसटी गोदाम निर्माताओं को 33 प्रतिशत सब्सिडी देने का प्रावधान किया। इसकी वजह से प्रदेश में निजी गोदामों में अधिक उछाल आया। 

नवनीत आगे बताते हैं कि मध्य प्रदेश वेयरहाउस एंड लाॅजिस्टिक्स काॅर्पोरेशन (MPWLC) की शुरूआत 8 क्षेत्रीय कार्यालयों के साथ हुई थी और अब इसकी शाखाएं 288 हो गई हैं। वर्तमान में इसके 9815 गोदाम हैं, जिसकी 388 लाख मीट्रिक टन (LMT) क्षमता हैं। MPWLC के पास खुद के 1603 गोदाम हैं और इनकी 31 LMT क्षमता हैं, जबकि 7009 निजी अनुबंधित गोदाम हैं और इनकी 288 LMT क्षमता है। 

MPWLC Warehouse Capacity Utilisation

साल 2022-23 में  MPWLC की खुद की और अनुबंधित गोदामों की कुल 215 LMT क्षमता थी। इसी साल एमपीडब्ल्यूएलसी ने कुल भंडारिण क्षमता में से करीब 114 LMT यानि 53 प्रतिशत ही उपयोग कियासाल 2023-24 में एमपीडब्ल्यूएलसी की अनाज भंडारण क्षमता बढ़कर 225 LMT हो गई, लेकिन इस साल वे सिर्फ 88 LMT क्षमता का यानि 40 प्रतिशत ही इस्तेमाल कर पाये। 

नवनीत कहते हैं कि

“हर साल राज्य सरकार के गोदामों की संख्या में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है, वहीं पिछले सालों की तुलना में हर साल गेंहू की खरीदी में एक तिहाई तक की कमी देखी जा रही है। यही वजह है कि अब हर साल करीब दो से तीन तिहाई तक गोदाम खाली रख जाते हैं।”

उनकी बात का समर्थन करते हुए MPWLC के अधिकारी कहते हैं कि 

“यह बात सत्य है कि कोरोना के बाद से ही प्रदेश में किसानों ने अपने खेतों को गोदामों में बदलने में अधिक दिलचस्पी दिखाई है। इसी वजह से प्रदेश में हर साल 10 फीसदी तक गोदामों की संख्या में इजाफा हो रहा है, लेकिन उतनी तेजी से प्रदेश में खेती का रक्बा नहीं बढ़ रहा है। यानि प्रदेश में उत्पादन से अधिक क्षमता में गोदाम बन गए हैं, तो आप खुद समझ सकते हैं कि प्रदेश के दो से तीन तिहाई तक गोदाम खाली क्यों रह जाते हैं।” 

किराए के लिए एक विभाग से दूसरे विभाग के चक्कर काट रहे संचालक

इंदौर जिले के सांवेर तहसील के अंतर्गत आने वाले ग्राम बालरिया के कृष्णा वेयर हाउस के संचालक कृष्णा पति कल्याण सिंह उमट समय पर किराया न मिलने और गोदाम खाली न करने को लेकर कई बार सीएम हेल्पलाईन पर शिकायत कर चुके हैं। लेकिन हर बार उनकी शिकायत बिना निराकरण के ही बंद कर दी जाती है। वे आरोप लगाते हुए कहते हैं कि 

“एक साल का करीब 8 लाख रू. से अधिक का किराया लेना है, लेकिन कई बार शिकायतें करने के बाद मात्र 4 लाख 28 हजार रू. का भुगतान किया गया और वेयर हाउस भी समय पर खाली नहीं कर रहे हैं। इसकी वजह से गोदाम में रखा गेंहू खराब हो रहा है।” 

कल्याण सिंह के अनुसार अधिकारी फोन नहीं रिसीव करते और जब बात होती है तो ‘केंद्र सरकार का काम है’ कहकर अपना पल्ला  झाड़ लेते हैं। 

इस दौरान मध्य प्रदेश वेयर हाउस ओनर्स असोसिएशन के लोगों ने भी एमपीडब्ल्यूएलसी के अधिकारियों, मुख्यमंत्री, मोहन यादव, खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री, गोविंद सिंह राजपूत को पत्र लिखकर समय पर और बकाया किराए के भुगतान किए जाने को लेकर अनुरोध किया है। लेकिन समस्या का समाधान किसी स्तर पर नहीं किया गया है। 

वेयरहाउस संचालकों की परेशानियों को विस्तार से समझाते हुए मध्य प्रदेश वेयर हाउस ओनर्स असोसिएशन के केबी तिवारी ने हमें बताया कि गोदाम संचालकों को गेंहू, चना, मूंग, धान, चावल एवं सभी प्रकार के स्कंदों का भुगतान करीब दो सालों से मध्य प्रदेश वेयर हाउसिंग एंड लाॅजिस्टिक कार्पोरेशन ने नहीं किया है। इसकी वजह से बैंकों की किस्तें, बीमा, कर्मचारियों का वेतन, कीटनाशक एवं अन्य खर्चों को वहन करने में समस्या हो रही है। बैंकों की किस्त न चुकाने के कारण खाते एनपीए हो रहे हैं और बैंकों के नोटिस भी आ रहे हैं। 

तिवारी कहते हैं कि 

“हमने अनुबंध के तहत वेयरहाउस एमपीडब्ल्यूएलसी को किराए पर दिए हैं और अनुबंध में साफ-साफ उल्लेख किया गया है कि किराए का हर माह भुगतान किया जाएगा, इसके बाद भी गोदाम संचालक पिछले दो सालों से किराया मिलने का इंतजार कर रहे हैं।”

किस्तें चुकाने लेना पड़ रहा नया कर्ज़

Warehouse scheme for farmers in MP

सीहोर जिले की बुदनी जनपद पंचायत में आने वाली ग्राम पंचायत बकतरा के अजय साहू ने केवल वेयर हाउस की किस्तें चुकाने के लिए तीन माह पहले बैंक से नया लोन लिया है। उन्हें नवंबर 2023 से किराया नहीं मिला है। उन्हीं के गांव के दीपक सिंह कहते हैं कि

“गोदाम खोलकर पछता रहे हैं, कहां मुसीबत मोल ले ली। आमदनी तो नहीं बढ़ी उल्टा कर्जदार हो गए। अब हर तीन माह में तीन से चार लाख रूपए की किस्त कहां से भरें। अगर ऐसा ही चलता रहा तो सड़क पर आ जाएंगे।” 

नए वेयरहाउस मालिकों को ज्यादा परेशानी

भोपाल जिले के किसान दीपेश राठौर के मुताबिक नए वेयरहाउस मालिक ज्यादा समस्याओं का सामना कर रहे हैं। जिन लोगों का निर्माण कार्य अभी पूरा हुआ है उन्हें अगले गेहूं के सीज़न तक इंतेज़ार करना होगा। ऐसे में नए वेयरहाउस संचालक ग्रीष्मकालीन मूंग और सोयबीन आदि फसलों के भंडारण के लिए कोशिश कर रहे हैं। 

वेयरहाउस कॉर्पोरेशन के अधिकारियों का भी कहना है कि जिन लोगों ने आज से करीब आठ साल अपने खेतों को वेयरहाउस में तब्दील किया था, उन्हें अनाज भंडारण के लिए हर माह 3 से 4 लाख रू. तक मिलते थे।  जिन लोगों ने दो साल पहले वेयरहाउस बनाए थे, वे अभी घाटे में चल रहे हैं, क्योंकि सरकार द्वारा गेंहू की कम खरीदी की जा रही हैं ऐसे में क्षमता से कम भंडारण प्रति वेयरहाउस हो रहा है। इसके साथ ही कई नए वेयरहाउस धारकों को सब्सिडी का भी भुगतान नहीं हुआ है जिसकी वजह से उन्हें पूरे लोन की किस्त चुकानी पड़ रही है। अगर सरकार 33 फीसदी सब्सिडी दे दे तो किसान की ईएमआई कम हो जाएगी। 

साल दर साल घटता गेहूं का उपार्जन

Yearwise Wheat Procurement by Madhya Pradesh Government
सरकार द्वारा साल 2020-21 में 129 लाख मीटिक टन (LMT) गेहूं खरीदा गया, साल 2021-22 में 128 LMT, 2022-23 में 46 LMT और 2023-24 में 70 LMT जबकि इस वर्ष 48 LMT  गेहूं ही खरीदा गया है। स्रोत: मध्‍यप्रदेशआर्थिक सर्वेक्षण 2023-2024

दीपेश, आगे कहते हैं कि यदि समय पर गोदाम संचालकों को किराया और सब्सिडी मिलने के साथ ही पूरी भंडारण क्षमता का व्यवसाय मिले तो सिर्फ जमीन की लागत को छोड़कर गोदाम निर्माण में आने वाली लागत दो साल के भीतर कवर हो सकती है,  क्योंकि सरकार द्वारा गोदाम संचालकों को 72 से 79 रू. प्रति अनाज का भुगतान किया जाता है। वर्तमान में एक गोदाम की निर्माण लागत करीब 800 रू. प्रति वर्गफीट है। यानी इसमें किसान को फायदा तो है लेकिन किस्त पूरी हो जाने, समय पर किराया मिलने पर ही। 

सरकार ने रोका 471 करोड़ रूपए का पेमेंट

वहीं खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग की प्रमुख सचिव, रश्मि अरूण शमी के मुताबिक प्रदेश के अलग-अलग इलाकों से अनफिट व खराब गेंहू की सूचनाएं मिल रही थी। इन सूचनाओं के आधार पर जांच में प्रदेश में करीब 10.64 LMT गेंहू अनफिट या खराब होने का अनुमान है। 

इस जांच रिपोर्ट के आधार पर प्रदेश के करीब 150 से ज्यादा गोदामों को ब्लैकलिस्ट किया जा चुका है और 6972 निजी गोदाम संचालकों का करीब 471.96 करोड़ रूपये का पेमेंट रोका गया है। यह कार्रवाई मंत्री के निर्देष पर की गई है। वो आगे कहती हैं कि 

“जल्द ही जांच पूरी कर गोदाम संचालकों को बकाया किराए का भुगतान किया जाएगा।”

ज्यादा किराया हासिल करने और लंबे समय तक गोदाम में स्टॉक बनाए रखने के लिए कई गोदाम संचालकों ने धोखाधड़ी करने की भी कोशिश की है। कुछ गोदाम मालिकों द्वारा की कई गड़बड़ी का खामियाज़ा वो किसान भी भुगत रहे हैं जो इस व्यवसाय़ में नए हैं और ईमानदारी से काम करना चाहते हैं। ज़रुरत है कि मामले की जांच जल्द पूरी हो और केवल वे गोदाम ही प्रभावित हों जिन्होंने गड़बड़ी की है। इसके साथ ही अगर प्रदेश में क्षमता से अधिक गोदाम बन गए हैं तो सरकार वेयरहाउस सब्सिडी योजना को बंद करे ताकि अन्य किसान कर्ज़ के जाल में न फंस पाएं। सरकार ने यह योजना उन किसानों के लिए ही बनाई है जो अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं और खेती के इतर कुछ अलग काम करना चाहते हैं। 

वहीं एमपीडब्ल्यूएलसी के प्रबंध निदेशक और आईएएस सिबी चक्रवर्ती एम. कहते हैं कि जो लोग अपने जमीन पर गोदाम बनाकर अच्छी आमदनी कमाने की चाह रखते हैं, उन्हें योजना की व्यवहार्यता भी देखनी चाहिए, कि प्रदेश में पर्याप्त संख्या में गोदाम मौजूद हैं।

लेकिन सदफ खान सरकार के साथ बैंक के उन अधिकारियों से सवाल कर कहते हैं कि 

“एक आम किसान या इंसान को कैसे पता होगा कि प्रदेश में गोदाम की कितनी संख्या और कितने गोदाम बनाने की जरूरत है? यह बात तो उंचे-उंचे पदों पर बैठ अधिकारी-कर्मचारी को पता होती है और मेरे आवेदन करने के समय पर ही मुझे बता देते तो मैं कर्जदार होने से बच जाता। और सरकार भी इस पैसे को सही जगह इस्तेमाल कर पाती।”

भारत में स्वतंत्र पर्यावरण पत्रकारिता को जारी रखने के लिए ग्राउंड रिपोर्ट का आर्थिक सहयोग करें। 

पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुकट्विटरइंस्टाग्रामयूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।

पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिल शब्दावली सरल भाषा में समझने के लिए पढ़िए हमारी क्लाईमेट ग्लॉसरी 

यह भी पढ़ें

MP के सोयाबीन किसानों को राहत, MSP पर खरीदी की मंजूरी

मध्यप्रदेश में बदहाल पशु चिकित्सा व्यवस्था को उबारती पशु सखियां

गरीबी में सिलिको ट्यूबरक्लोसिस से लड़ रहे गंज बासौदा के खदान मज़दूर

Author

  • Based in Bhopal, this independent rural journalist traverses India, immersing himself in tribal and rural communities. His reporting spans the intersections of health, climate, agriculture, and gender in rural India, offering authentic perspectives on pressing issues affecting these often-overlooked regions.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins