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भारत में कौनसा राज्य करता है कृषि में सबसे अधिक कैमिकल कीटनाशक उपयोग?

भारत में कौनसा राज्य करता है कृषि में सबसे अधिक कैमिकल कीटनाशक उपयोग?
भारत में कौनसा राज्य करता है कृषि में सबसे अधिक कैमिकल कीटनाशक उपयोग?

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26 जुलाई को भारत के उच्च सदन में राज्यसभा सांसद नीरज शेखर ने जैविक और रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग पर प्रश्न पूछे थे। इन अतारांकित प्रश्नों के उत्तर देते हुए कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कीटनाशकों के राज्यवार उपभोग के आंकड़े सदन के सामने रखे। भारत में कीटनाशकों के उपयोग से संबंधित ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं। आइये समझते हैं कि कौनसा राज्य सबसे अधिक कीटनाशकों का उपयोग करता है और इसके पर्यावरण पर क्या हो सकते हैं दुष्परिणाम। 

रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग में यूपी टॉप पर 

अपने उत्तर में शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि पिछले 3 सालों में कुल 168,021.09 मीट्रिक टन रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है। इसमें से वर्तमान साल यानी 2023-24 में  55193.15 मीट्रिक टन रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग हुआ है। यह साल 2022-23 से 1,562.96 टन मीट्रिक टन अधिक है। हालांकि 2021-22 में 59197.75 मीट्रिक टन रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग किया गया था जो कि पिछले 3 सालों में सर्वाधिक है। 

इनमें से वर्तमान वर्ष में सर्वाधिक रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग उत्तर प्रदेश में किया गया है जो कि, 11828 मीट्रिक टन है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश पिछले 3 वर्षों से लगातार 11 हजार मीट्रिक टन से अधिक रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करता आ रहा है। पिछले 3 वर्षों में उत्तर प्रदेश ने 35,340 मीट्रिक टन रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया है। 

इस सूची में दूसरे स्थान में महाराष्ट्र है जहां इस साल की 26 जुलाई तक की जानकारी के अनुसार 8718 मीट्रिक रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया जा चुका है। महाराष्ट्र के बाद पंजाब में 5257, और हरियाणा में 4064 मीट्रिक टन  रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया है। वहीं मध्यप्रदेश में इस साल उपभोग किये गए रासायनिक कीटनाशकों की मात्रा 599 मीट्रिक टन है। जबकि पिछले तीन वर्षों में मध्यप्रदेश में 1,851 मीट्रिक टन रासायनिक उर्वरकों का उपभोग किया गया है, जो कि शीर्ष के 4 राज्यों के इस साल के उपभोग से भी काफी कम है। 

बड़े पैमाने पर उपयोग किये जा रहे हैं रासायनिक कीटनाशक 

अगर भारत के राज्यों में जैव कीटनाशकों और रासायनिक कीटनाशकों के उपभोग में संतुलन को देखा जाए तो कई राज्यों में बड़ा अंतर देखने को आया है। मसलन पंजाब में 9.52 प्रतिशत के मुकाबले मात्र 2.48 फीसदी ही जैव कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है। वहीं महाराष्ट्र में यही अंतर तकरीबन 15 फीसदी का हो जाता है, जहां 15.80 प्रतिशत रासायनिक कीटनाशकों के मुकाबले मात्र 0.37 जैव कीटनाशकों का ही उपयोग किया गया है। इसी तरह से उत्तर प्रदेश में यह फासला 20 फीसदी से भी अधिक है, जो कि चिंताजनक है। 

कई राज्यों ने दी है जैव कीटनाशकों को तरजीह 

इस सूची में मध्यप्रदेश में आंकड़े संतोषजनक हैं, जहां 1.09 प्रतिशत रासायनिक कीटनाशकों के बरक्स 4.52 फीसदी जैव कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है। हलांकी भारत में बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ जैसे राज्य भी हैं जिन्होंने बड़े पैमाने पर जैव कीटनाशकों को अपनाया है। वहीं सिक्किम भारत के एक मात्र जैविक राज्य के तौर पर सामने आया है। 

जैव कीटनाशकों के उपयोग में सर्वाधिक प्रगति पश्चिम बंगाल में देखी गई है। पश्चिम बंगाल में 7.39 प्रतिशत रासायनिक कीटनाशकों के मुकाबले 20.22 फीसदी जैव कीटनाशकों का प्रयोग किया है। तमिलनाडु में 3.57 रासायनिक कीटनाशकों के बरक्स 12.28 प्रतिशत जैव कीटनाशकों का प्रयोग हुआ है। वहीं केरल और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में यह अंतर तकरीबन 7 प्रतिशत का है।   

भारत में पिछले तीन सालों में 7791.16 मीट्रिक टन जैव कीटनाशकों का उपयोग किया गया है। इनमें से सर्वाधिक पश्चिम बंगाल में 3,631 एमटी, छत्तीसगढ़ में 2,232 एमटी, और बिहार में 1,080 एमटी जैव कीटनाशकों का उपयोग किया है। मध्यप्रदेश में पिछले तीन वर्षों में 1,076 एमटी जैव कीटनाशकों का उपयोग हुआ है। लेकिन इससे ठीक उलट उत्तर प्रदेश जैसे बड़े उत्पादक राज्य में पिछले तीन सालों के जैव कीटनाशकों का उपयोग मात्र 160.77 एमटी है। 

वहीं कई राज्यों में एक अलग पैटर्न देखने को मिला है, जहां साल 2021 में ठीक-ठाक मात्रा में जैव कीटनाशकों का प्रयोग किया गया था लेकिन आने वाले वर्षों में इनमें बड़ी गिरावट देखने को मिली है। उदाहरण के तौर पर राजस्थान में साल 2021-22 में 1268 एमटी जैव कीटनाशकों का उपयोग किया गया था जो 2022-23 में घट कर 170 हुआ और यह वर्तमान वर्ष में मात्र 154 एमटी रह गया है। ठीक यही पैटर्न महाराष्ट्र में  भी देखने को मिला है साल 2021-22 में जैविक कीटनाशकों का उपयोग 934.41 एमटी था, जो अब घटकर मात्र 28.78 एमटी रह गया है।  

रासायनिक कीटनाशकों के क्या हैं दुष्प्रभाव 

रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग का पर्यावरण, जैव विविधता और मानव स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। राजयसभा में अपने जवाब में खुद कृषि मंत्री ने कहा है कि अगर रासायनिक कीटनाशकों का सावधानी पूर्वक उपयोग किया जाए तो इनका दुष्प्रभाव मानव, कीटों इत्यादि पर नहीं पड़ता है। लेकिन इसके साथ ही जवाब में यह भी स्वीकार किया गया है कि भारत में रासायनिक कीटनाशकों के पक्षी, पशुओं, और पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को लेकर कोई सर्वेक्षण अब तक नहीं किया गया है। 

एक शोध के मुताबिक रासायनिक कीटनाशक फसलों की सुरक्षा तो करते हैं, लेकिन मिट्टी की गुणवत्ता को भी नुकसान पहुंचाते हैं। इन कीटनाशकों के कारण मछलियों, मधुमक्खियों, और अन्य जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कुछ कीटनाशक, जैसे पायरेथ्रॉइड्स, मछलियों के तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके अलावा, रासायनिक कीटनाशक भूमि की उर्वरता को कम करते हैं और मिट्टी में माइक्रोबियल विविधता को प्रभावित करते हैं, जिससे कृषि उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

पेस्टीसाइड एक्शन नेटवर्क इंडिया की एक रिपोर्ट ने इसके मानव स्वास्थ पर पड़ने वाले प्रभावों पर प्रकाश डाला है। रिपोर्ट के अनुसार, इन खतरनाक रसायनों का उपयोग भारत में गंभीर स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न कर रहा है। रिपोर्ट बताती है कि इन कीटनाशकों के कारण कई किसानों और कृषि श्रमिकों की मौतें हुई हैं। उदाहरण के लिए, केवल 2017 में ही इन रसायनों के संपर्क में आने से 50 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी। इसके अलावा, 2018 में लगभग 300 लोग इन कीटनाशकों से बीमार पड़े थे, जिनमें से कई की हालत गंभीर थी। 

जैव कीटनाशकों के प्रति भारतीय किसानों की उदासीनता की क्या है वजह 

भारतीय किसान जैव कीटनाशकों के उपयोग के प्रति उदासीन हैं। मुख्यतः इनका कम प्रभावी और महंगा होना इस उदासीनता का प्रमुख कारण है। जैव कीटनाशक जीवित सूक्ष्मजीवों पर आधारित होते हैं, जो तापमान और नमी में परिवर्तन से प्रभावित होते हैं। इस वजह से उनकी प्रभावशीलता कम हो जाती है। इसके अलावा, जैव कीटनाशकों का प्रभाव सामान्यतः धीमा होता है और वे केवल विशिष्ट कीटों के खिलाफ ही प्रभावी होते हैं। ये कुछ प्रमुख कारण हैं जिससे किसानों को व्यापक रूप से इनका उपयोग करने में कठिनाई होती है।

इसके अलावा कई किसान जैव कीटनाशकों की विश्वसनीयता और गुणवत्ता पर भी संदेह करते हैं। इस संदेह की मुख्य वजह नकली या मिलावटी उत्पादों का प्रयोग होना है। सरकार द्वारा स्वीकृत जैव कीटनाशकों की सूची में कुछ ही विशुद्ध उत्पाद शामिल हैं, जबकि कई नकली उत्पाद​ हैं। इसके अलावा, इन उत्पादों के लिए आवश्यक स्थानीय अनुसंधान और परीक्षण की कमी भी एक बड़ी समस्या है। इस सबके परिणामस्वरूप, भारतीय किसान जैव कीटनाशकों की बजाय रासायनिक कीटनाशकों पर अधिक निर्भर रहते हैं।

सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ें यह स्पष्ट करते हैं कि भारत के बड़े राज्यों में बेधड़क रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है, और जैव कीटनाशकों को लगातार दरकिनार किया जा रहा है। दूसरी ओर भारत का जैव कीटनाशक उपयोगी राज्य पश्चिम बंगाल एक उदाहरण है, जो कि चावल के उत्पादन में देश में शीर्ष पर आता है। पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ के आंकड़े एक मिसाल हैं कि जैव कीटनाशक के उपयोग से भी अच्छा उत्पादन हासिल किया जा सकता हैं। साथ ही यह भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि यह आंकड़े मात्र रासायनिक कीटनाशक के हैं, इनमें रासायनिक उर्वरक को शामिल करने पर स्थिति और भी चिंताजनक हो सकती है। 

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