...
Skip to content

भोपाल में कल्याणनगर के रहवासी 8 साल से कर रहे हैं नाला बनने का इंतज़ार

भोपाल में कल्याणनगर के रहवासी 8 साल से कर रहे हैं नाला बनने का इंतज़ार
भोपाल में कल्याणनगर के रहवासी 8 साल से कर रहे हैं नाला बनने का इंतज़ार

REPORTED BY

Follow our coverage on Google News

भोपाल में मानसून पहुँच चुका है. गर्मी से तप रहे भोपाल के लिए यह मानसून राहत देने वाला होगा. मगर 26 वर्षीय विजय के लिए मानसून ऐसा नहीं है. वह जानते हैं कि मानसून आते ही उनका काम कई दिनों तक ठप्प रहेगा. गन्दा पानी न  सिर्फ़ घर में घुसेगा बल्कि पीने का साफ़ पानी मिलना भी मुश्किल हो जाएगा. 

विजय भोपाल से मात्र 9 किमी दूर कल्याणनगर में रहते हैं. मगर उनकी स्थिती को इस पते से समझिए कि ‘विजय कल्याणनगर में एक कच्चे नाले के किनारे रहते हैं.’

यह नाला बदबूदार कचरे से पटा पड़ा है. यह कचरा अलग-अलग समय में पानी के साथ बहकर आया है जो अब विजय के घर के सामने इकठ्ठा हो गया है. 3 दिन पहले ही प्री-मानसून की बारिश में कल्याणनगर जलमग्न हो गया था. 

इसे बताते हुए यहाँ के एक अन्य नागरिक कैलाश विश्वकर्मा (40) बेहद हल्के ढंग से कहते हैं,

“यह तो हर साल की कहानी है. थोड़ा सा पानी गिरता है तो हमारे घर डूब जाते हैं.” 

kalyan nagar bhopal
मानसून में कल्याणनगर के घरों में नाले का पानी भर जाता है

आजीविका पर असर

कैलाश एक दुकान में वेल्डिंग का काम करते हैं. मगर बारिश के दिनों में वो अक्सर अपने काम पर नहीं जा पाते हैं. वह कहते हैं कि पानी भरने के बाद घर की साफ़-सफाई करते हुए अक्सर उनकी तबियत ख़राब हो जाती है.

आजीविका पर मानसून की ऐसी ही मार विजय पर भी पड़ती है. विजय रैपिडो बाइक चलाते हैं मगर मानसून में उनके मोहल्ले और घर में ऐसा पानी भरता है कि बाइक निकालना उनके लिए मुश्किल हो जाता है. 

विजय बताते हैं कि वह एक दिन में 500 से 700 रूपए तक कमा लेते हैं. इससे उनके परिवार को आर्थिक मदद हो जाती है. मगर मानसून में उनकी इस कमाई पर पानी फिर जाता है,

“बारिश शुरू होती है तो महीने में 10 से 12 दिन काम पर नहीं जा पाता हूँ. हम रोज़ कमा कर खाने वाले लोग हैं ऐसे में इतने दिन का नुकसान हमारे लिए बड़ा है.”

दरअसल विजय के घर के सामने एक कच्चा रास्ता है जिसे पार करके ही मुख्य सड़क तक पहुंचा जा सकता है. मगर नाले के बगल में स्थित यह रास्ता बारिश के दिनों में पानी भरने से बंद हो जाता है. स्थानीय लोगों ने हमें बताया कि पहले यह पूरा रास्ता असमतल था जिससे पानी उतरने के बाद भी निकलना कठिन होता था. 

water in bhopal
पाइपलाइन में छेद होने के चलते बारिश में पीने के पानी में नाले का पानी मिल जाता है

कच्चा रास्ता और दूषित पानी

लेकिन मोहल्ले के लोगों ने आपसी सहयोग से खुद से ही यह रास्ता बनवाया है. मुकेश कुमार साहू को यहाँ रहते हुए 20 साल से भी ज़्यादा समय हो चुका है. वह कहते हैं कि उन्होंने कई पार्षदों को इस रास्ते के निर्माण के लिए आवेदन दिया मगर नतीज़ा निल बटे शून्य ही रहा.

“10 साल पहले हम लोगों ने ही मिलकर इस रास्ते को बनवाया. इसमें 10 से 12 हज़ार का खर्च आया था. पार्षद से कह-कहकर हम थक गए थे. कोई सुनने वाला नहीं था.”  

इसी पतले से रास्ते में ही पीने के पानी की पाइपलाइन बिछी हुई है. मुमताज़ खान यहाँ 3 साल पहले ही रहने आई हैं. उन्होंने हाल ही में 10 हज़ार रूपए संपत्ति कर जमा करके नल का कनेक्शन लगवाया है. मगर वह शिकायत करते हुए कहती हैं,

“बारिश के दिनों में बदबूदार पानी आता है. इसे पीना तो दूर कोई नहा भी नहीं सकता.”

वहीँ विजय के घर के सामने स्थित पाइपलाइन में बड़े-बड़े छेद दिखाई देते हैं. इनमें मोटर लगाकर ही वह पानी भरते हैं. मगर इन छेदों के चलते बाढ़ आने पर नाले का पानी इसमें मिल जाता है. इससे न सिर्फ पीने के पानी की किल्लत होती है बल्कि बिमारी फैलने का ख़तरा भी बढ़ जाता है. मुमताज़ बताती हैं कि उनके बच्चे गंदगी के कारण अक्सर बीमार पड़ जाते हैं.

इस पर और जानकारी देते हुए विजय बताते हैं कि नगर पालिका द्वारा जो पाइपलाइन बिछाई गई थी नाले में आई बाढ़ के चलते वह ख़राब हो गई थी. उसके बाद पाइपलाइन की मरम्मत नहीं की गई जिससे पानी का बहाव अवरुद्ध हो रहा था. विजय कहते हैं,

“…इसलिए हमने में पाइप से लगे हुए पाइप निकाल दिए. अब हम मेन लाइन में डायरेक्ट मोटर लगाकर ही पानी भर लेते हैं.”  

water crisis in monsoon
गंदे नाले और ख़राब पड़ी पाइपलाइन के चलते कल्याण नगर के रहवासी गन्दा पानी इस्तेमाल करने को मजबूर हैं

गौरतलब है कि भोपाल शहर में हर दिन 255.75 एमएलडी सीवेज घरेलू कचरे के रूप में निकलता है. मगर भोपाल में केवल 144 एमएलडी सीवेज ही ट्रीट हो पाता है. ऐसे में यह नाले सीवेज से बुरी तरह भरे होते हैं. 

कल्याण नगर के इस नाले में बाढ़ आने और फिर यहाँ पानी भर जाने का एक प्रत्यक्ष कारण नाले में भारी मात्रा में कचरे का होना भी है. स्थानीय लोग भी इसी के चोक होने को अपने परेशानी का प्रमुख कारण मानते हैं. लोगों का कहना है कि लगभग 8 सालों से इस नाले की सफाई नहीं हुई है. 

इस मामले में आधिकारिक पक्ष जानने के लिए हमने भोपाल नगर निगम के अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की है. संपर्क होने पर खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.

भोपाल में मानसून की बारिश जैसे ही रोज़ाना होना शुरू होगी वैसे ही पानी भरने की कहानियाँ आम हो जाएंगी. ऐसे में स्थानीय नगर निगम से यह आपेक्षित था कि नालों की साफ़ सफाई की जाएगी. मगर कल्याण नगर का उदाहरण यह दिखाता है कि नगर निगम ने इस साल भी अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने का काम नहीं किया है.

यह भी पढ़ें

पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुकट्विटरइंस्टाग्रामयूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।

पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिल शब्दावली सरल भाषा में समझने के लिए पढ़िए हमारी क्लाईमेट ग्लॉसरी

Author

  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins