...
Skip to content

चुनाव में भोपाल मेट्रो मुद्दा है, उसके निर्माण से निकलती धूल नहीं 

चुनाव में भोपाल मेट्रो मुद्दा है, उसके निर्माण से निकलती धूल नहीं 
चुनाव में भोपाल मेट्रो मुद्दा है, उसके निर्माण से निकलती धूल नहीं 

REPORTED BY

Follow our coverage on Google News

Dust Issue Bhopal | भोपाल का हबीबगंज इलाका, यहाँ स्थित रानी कमलापती रेलवे स्टेशन के सामने अशोक सिंह राजपूत अपनी छोटी सी गुमठी (छोटी दुकान) में चाय बेचते हैं. उनकी इस गुमठी के सामने से भोपाल की मेट्रो होकर गुज़रेगी जिसके लिए काम जारी है. हमने इससे उनको होने वाले फायदे के बारे में जब सवाल किया तो वह कहते हैं,

“हमको कहाँ फायदा हुआ? हमारी दुकान चली गई तो हमने ये छोटी सी गुमठी खोली है मगर यहाँ भी ग्राहक नहीं आते हैं. धुल उड़ती है सो अलग”

इस सड़क में स्टेशन के सामने कई छोटी-छोटी दुकानें हैं जहाँ चाय और नाश्ता के लिए यात्री ठहरते थे. मगर अशोक जैसे कई दुकानदार कहते हैं कि “अब धंधा 25 प्रतिशत ही रह गया है.” 

Bhopal Metro Dust Issue

धूल से सना खाना कौन खाएगा? 

एमपी नगर से रानी कमलापती की ओर आने वाली सड़क भोपाल की व्यस्त सड़क है. यहाँ से निकलती हुई गाड़ियाँ जो धूल उड़ाती हैं (Dust Issue Bhopal) उससे यहाँ दुकान चलने वाले लोगों की आमदनी और स्वास्थ्य दोनों ही प्रभावित होता है. कुसुम बाई अपने पति गिरधारी के साथ साल 2001 से यहाँ चाय-नाश्ते की दुकान लगा रही हैं. मगर बीते 6 इनों से वह सर्दी और खाँसी के कारण ख़राब हुई तबियत के चलते दुकान नहीं खोल पा रही थीं. “6 दिन तक खाँस-खाँस के इतना बुरा हाल था कि उठने की हिम्मत नहीं थी. आज दुकान खोली है मगर 6 दिन का नुकसान हो गया.” हमने उनसे धुल के चलते हुए नुकसान के बारे में जब और बात की तो वह कहती हैं,

“पहले यात्री आते थे बैठकर खाना खाते थे. मगर जब से ये काम शुरू हुआ है यहाँ कोई नहीं आता.” वह आगे कहती हैं, “आप ही बताओ धुल से सना खाना कौन खायेगा?” 

Bhopal Metro Dust Issue

“पहले 1 घंटे में 2 किलो पोहा बिकता था. अब पूरे दिन में भी नहीं बिकता” 

कुसुम के पति गिरधारी बताते हैं कि उनका मुख्य व्यापार सुबह नाश्ता (पोहा-जलेबी) बेंचकर होता था. मगर धूल (Dust Issue Bhopal) के चलते सब चौपट हो चुका है. वह कहते हैं कि पहले वो 10 किलो पोहा दिन में बेंच लेते थे मगर अब परिस्थियाँ बदल गई हैं. “पहले एक घंटे में 2 किलो पोहा निकल जाता था अब दिन में नहीं निकल रहा.” वह बची हुई जलेबी दिखाते हुए कहते हैं, “पहले 2-3 किलो जलेबी बेंच लेता था अब आधा किलो बिक जाए तो बड़ी बात है.” वह बताते हैं कि पहले उन्हें केवल नाश्ते से ही 3 हज़ार की कमाई हो जाती थी मगर अब पुरे दिन में केवल 2 हज़ार ही कमा पाते हैं.   

“मैट्रो के कारण’ मेरी नौकरी चली जाएगी”

गणेश कुमार यादव पास ही स्थित एक अन्य रेस्टोरेंट में काम करते हैं. मगर आज वह छुट्टी पर हैं. हमने उनसे पूछा कि मेट्रो से उनको क्या फायदा होगा? इसका जवाब देते हुए वह कहते हैं, “मेट्रो के कारण मेरी नौकरी चली जाएगी एक दिन.” हमारे आग्रह पर वह अपनी इस बात को समझाते हुए कहते हैं कि बीते 7 दिनों में वह 2 बार छुट्टी ले चुके हैं. उन्हें गुज़रे एक महीने से ख़ासी और साँस की तकलीफ हो रही है. वह इसका कारण भी मेट्रो के निर्माण के चलते उड़ने वाली धूल (Dust Issue Bhopal) को बताते हैं. “मैं छोटा कर्मचारी हूँ अगर रोज़ छुट्टी लूँगा तो मालिक नौकरी से नहीं निकाल देगा?” सवालिया अंदाज़ में वह कहते हैं.  

dust issue in bhopal

“मेट्रो हैं चुनाव मुद्दा मगर धूल नहीं”              

प्रदेश में आचार संहिता लगने के कुछ दिन पहले 3 अक्टूबर को ही शिवराज सिंह चौहान द्वारा भोपाल मेट्रो के ट्रायल का उद्घाटन किया गया था. इस दौरान मुख्मंत्री ने कहा था,

“भोपाल में परिवहन का परिवर्तनकारी दौर शुरू हुआ है. हमने अपना वादा पूरा किया है और अब भोपाल मेट्रो ट्रायल के लिए तैयार है.”

चुनाव की घोषणा के पहले हुए इस उद्घाटन को एक चुनावी मूव ही माना गया था. ऐसे में मेट्रो भोपाल में होने वाले चुनाव का मुद्दा है मगर उसके निर्माण के दौरान उड़ने वाली धूल मसला (Dust Issue Bhopal) नहीं है. इस पर अपनी बात कहते हुए कुसुम कहती हैं,

“नेताओं के घर धूल से सनते या इससे उनका काम ठप्प पड़ता तब वो इसकी बात करते.”

क्या एनजीटी के गाइडलाइन का उल्लंघन हो रहा है?     

भोपाल मेट्रो की इस कंस्ट्रक्शन साईट पर जब हम पहुँचे तो हमें कुछ साईट वर्कर्स दिखाई देते हैं. इनमें से कोई भी वर्कर मास्क पहने हुए नहीं दिखता है. जबकि एनजीटी की गाइडलाइन के अनुसार ऐसे किसी भी निर्माण कार्य जिसमें धूल निकल रही हो, के दौरान वहां काम करने वाले कर्मचारियों को मास्क और अन्य सेफ्टी गियर देना अनिवार्य है. मगर यहाँ के एक मज़दूर नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि उन्हें कभी कोई कोई भी मास्क नहीं दिया गया है.

“हम खुद से ही कपडा मुँह में लगा लेते हैं मगर हमको इनकी ओर से कुछ भी नहीं मिला.”

इसके अलावा गाइडलाइन के अनुसार कार्यस्थल को पर्दे से ढका जाना अनिवार्य है ताकि वातावरण में धुल का प्रभाव कम किया जा सके. मगर इस साईट पर ऐसे पर्दे कुछ ही जगह पर नज़र आते हैं. हमने यहाँ मौजूद लोगों से पूछा कि क्या यहाँ पहले पर्दे लगाये गए थे? इसका जवाब देते हुए स्थानीय शोरूम में काम करने वाले गूंज कहते हैं, “ये जो थोडा बहुत पर्दे लगे हैं मैने इसके अलावा कभी भी और कुछ नहीं देखा,” 

dust on bhopal roads

(Dust Issue Bhopal) “10 दिन में एक दिन पानी छिड़कते हैं”   

निर्माण कार्य के चलते सड़क से उड़ने वाली धूल को काबू करने के लिए उस पर पानी छिड़का जाना अनिवार्य है. स्थानीय लोगों के अनुसार यहाँ पानी का छिड़काव  शुरुआत में तो रोज़ किया जाता था मगर अब 10 दिन में एक बार किया जाता है. हम जब यहाँ पहुँचे तो सड़क का एक हिस्सा गीला और एक हिस्सा सूखा नज़र आया. एमपी नगर के पास स्थित महादेव नगर के सामने लीला बाई के कहने पर एक व्यक्ति सड़क पर खुद से पानी का छिड़काव करते नज़र आते हैं. लीला बाई कहती हैं, “दोपहर में गर्मी होती है ऐसे में ज़्यादा पानी बर्बाद होता है.” 

Keep Reading

Follow Ground Report for Climate Change and Under-Reported issues in India. Connect with us on FacebookTwitterKoo AppInstagramWhatsapp and YouTube. Write us at GReport2018@gmail.com.

Author

  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins