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पायरेसी पर रोक लगाने में कितना साकार होगा सिनेमैटोग्राफ संशोधन विधेयक 2023?

पायरेसी पर रोक लगाने में कितना साकार होगा सिनेमैटोग्राफ संशोधन विधेयक 2023?
पायरेसी पर रोक लगाने में कितना साकार होगा सिनेमैटोग्राफ संशोधन विधेयक 2023?

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सोमवार 31 जुलाई को राज्यसभा में प्रस्तावित सिनमैटोग्राफ अमेंडमेंट बिल (Cinematograph Amendment Bill, 2023) पास कर दिया गया. यह बिल साल 1952 में बने एक्ट में किए जाने वाले संशोधन पर आधारित था. इस एक्ट के तहत केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड का गठन किया गया था जिसे फिल्मों को प्रदर्शन से पहले सर्टिफिकेट देने और आवश्यकता अनुसार कट लगाने के अधिकार प्राप्त थे. सदन में बोलते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया कि यह बिल पाइरेसी को ख़त्म करने के लिए लाया गया है. उन्होंने कहा,

“दक्षिण की फिल्मों ने राष्ट्रिय नहीं अपितु अन्तराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है. हमारा दायित्व इसलिए भी बढ़ जाता है. यह बिल पायरेसी को ख़त्म करेगा.”

गौरतलब है कि यह संशोधन (Cinematograph Amendment Bill, 2023) श्याम बेनेगल की अध्यक्षता में बनी समिति के सुझावों के आधार पर किए गए हैं.

Cinematograph Amendment Bill, 2023: विभिन्न सर्टिफिकेट श्रेणी

इन संशोधन के बाद फ़िल्मों को अलग-अलग श्रेणियों में सर्टिफाइड किया जा सकता है. बिल के तहत निम्नलिखित श्रेणियाँ बनाई गई हैं.

  1. बिना किसी भी भी तरह की पाबंदी के लिए U सर्टिफिकेट दिया जाएगा.
  2. बिना किसी पाबन्दी मगर ऐसी फ़िल्में जिनमें 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए ‘पेरेंट गाइडेंस’ ज़रूरी है, के लिए UA सर्टिफिकेट दिया जाएगा.
  3. वयस्क फिल्न्मों के लिए A सर्टिफिकेट. 
  4. विशेष व्यवसाय या क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए बनी फिल्म को S सर्टिफिकेट दिया जाएगा.

बिल के अंतर्गत UA श्रेणी को भी 3 सब-कैटेगरी (UA7+, UA13+ और UA16+) में बाँटा गया है. 

अभिव्यक्ति की आज़ादी, फ़िल्म और सेंसर बोर्ड 

केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड जिसे आम भाषा में सेंसर बोर्ड कहते हैं का सरकार से अलग-अलग समय पर टकराव होता रहा है. हालाँकि यह भी बात सही है कि बोर्ड पर सरकार का पिट्ठू होने का आरोप अब आम धारणा में बदल चुका है. मगर सरकार अभी किसी भी फिल्म में सेंसर बोर्ड द्वारा लगाए गए कट और दिए गए सर्टिफिकेट को बदलने या उस पर पुनर्विचार करने के लिए बोर्ड को बाध्य नहीं कर सकती. 

के.ए. अब्बास बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया

Khwaja Ahmad Abbas

पत्रकार और डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता ख्वाज़ा अहमद अब्बास ने साल 1968 में ‘द टेल ऑफ़ फोर सिटीज़’ नाम की एक फिल्म बनाई. यह फिल्म कोलकाता, मुंबई, बैंगलोर और दिल्ली में रहने वाले लोगों की ज़िन्दगी पर आधारित थी. इसमें वहां रहने वाले ग़रीब और अमीर या साफ़ शब्दों में कहें तो जिन्होंने शहर बनाया और जो शहर में रह रहे हैं उनके जीवन के बीच के अंतर को दिखाती थी. सेंसर बोर्ड ने इसे A सर्टिफिकेट दिया. जबकि अब्बास ने U सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया था. मगर सेंसर बोर्ड ने इसके लिए उन्हें कुछ सीन काटने के लिए कहा. इस पर अभिव्यक्ति की आज़ादी के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 19 अ) का हवाला देते हुए अब्बास ने फैसले के ख़िलाफ़ कोर्ट में अपील की. अपील करते हुए उन्होंने प्री-सेंसरशिप को इस अधिकार के खिलाफ बताया था. हालाँकि बाद में कोर्ट ने अनुच्छेद के सब’-सेक्शन (ब) का हवाला देकर अपील को ख़ारिज कर दिया था.

इस केस के बाद साल 2000 में एक और ऐतिहासिक फैसला आया था जो इस बिल से ही सम्बंधित था. के एम शंकराप्पा बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया केस में आये फैसले में कोर्ट ने यह साफ़ कर दिया कि सेंसर बोर्ड द्वारा दिए गए सर्टिफिकेट को बदलने या फिर प्रस्तावित बदलावों को वापिस लेने का अधिकार सरकार के पास नहीं है. बिल के ज़रिये एक्ट में किए गए हालिया संशोधन के बाद यह फैसला और भी आधिकारिक हो जाएगा.    

पायरेसी पर शिकंजा 

संशोधन (Cinematograph Amendment Bill, 2023) पाइरेसी के मुद्दे को जुर्माना और सख्त सज़ा के ज़रिये हल करने की कोशिश करता हुआ दिखता है. संशोधनों के अनुसार किसी भी ऐसी जगह जो फिल्मों के प्रदर्शन के लिए आधिकारिक रूप से मान्य हैं (जैसे सिनेमाघर) में फिल्म की रिकॉर्डिंग करना अपराध होगा. इसके अलावा अनाधिकारिक रूप से फ़िल्मों का प्रदर्शन भी अपराध की श्रेणी में आएगा. दोषी पाए जाने पर 3 महीने से 3 साल तक जेल और 3 लाख से फिल्म की ऑडिटेबल कॉस्ट का 5 प्रतिशत तक पैसा जुर्माने के रूप देना अनिवार्य होगा.   

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  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

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