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बाबा साहेब अम्बेडकर को समेटना मुश्किल, उनके दायरे अनंत

बाबा साहेब अम्बेडकर को समेटना मुश्किल, उनके दायरे अनंत
बाबा साहेब अम्बेडकर को समेटना मुश्किल, उनके दायरे अनंत

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संविधान निर्माता बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर(Dr. B. R. Ambedkar) का आज जन्मदिन है. भारत रत्न से सम्मानित अंबेडकर देश के उन सच्चे सेवकों में से एक हैं जिन्होंन देश के निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दिया है. इतिहास में ऐसे कुछ ही उदाहरण हैं जब किसी व्यक्ति के प्रभाव से करोड़ों लोगों में नई चेतना और ऊर्जा का संचार हुआ हो. दलितों और पिछड़ों के लिए अंबेडकर एक मसीहा हैं. जिनके उत्थान के लिए बाबा साहेब का योगदान मानवता को बचाने के लिए किया जाने वाला अब तक का सबसे बड़ा योगदान है. नीची जाति कहे जाने वाले दलित और पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए बाबा साहब के संघर्षो और विचारो के योगदान ने जो बदलाव लाये, वह किसी भी कानून से संभव नहीं थे.
बाबा साहेब एक दूरदर्शी व्यक्ति थे. उनके विचार आज भी प्रासांगिक हैं. उनका योगदान निर्माणधीन भारत के हर तत्व में मौजूद है बस उसे देखने की जरूरत है. वह बेहद तर्कशील और विचारशील व्यक्ति थे.

संविधान निर्माता और पत्रकार के रूप में बाबा साहब

बाबा साहेब अंबेडकर भारत के संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष थे. वह उन चुनिंदा लोगों में से एक थे जो संविधान की अन्य समीतियों के भी सदस्य रहे. संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी में 7 सदस्य थे. जब भारत के विशाल संविधान के ड्राफ्ट का काम पूरा हुआ तब बाबा साहब ने एक कुशल लीडर के तौर पर अपनी पूरी टीम के सहयोग और समर्पण के लिए धन्यवाद दिया. लेकिन असलियत में ड्राफ्टिंग का लगभग पूरा भार उनके ही कंधों पर था.
इस विषय पर ड्राफ्टिंग कमेटी के एक सदस्य ने ही संविधान सभा में कहा था कि “कमेटी के ज्यादातर सदस्य दूसरी सिमीतियों के कार्यों में व्यस्थ रहे जिस वजह से अंबेडकर ने ही ड्राफ्टिंग का कार्य किया.”

26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने संविधान के उस प्रारूप को स्वीकार किया जिसे बाबा साहब की अध्यक्षता में ड्राफ्टिंग कमेटी ने तैयार किया था. इसी रूप में संविधान 26 जनवरी 1950 में लागू हुआ और भारत का जन्म एक “गणराज्य” के रूप में हुआ.

डॉ अंबेडकर ने संविधान सभाओं की बहसों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कई मुद्दों पर दिए गए उनके तर्कों ने महत्वपूर्ण परिवर्तन किए. उन्होंने लगभग हर बहसों में भाग लिया और कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनके विचारों को हाथों हाथ लिया गया. उनके संविधान सभा में दिए गए भाषण आज भी उनकी दूरदर्शिता और कुशल नेतृत्वकर्ता के परिचायक हैं.

आज की राजनीति में नियम, अवधारणाएं, नैतिकता, उसूल, चरित्र इन सभी का हनन हो रहा है. अंबेडकर इन खतरों को पहले ही भांप चुके गए थे. उन्होंने संविधान निर्माण के समय ही कह दिया था कि आगे आने वाली राजनीतिक दलों के ऊपर है कि वह कैसी राजनीति करते हैं? वह किन मुद्दों का चुनाव करते हैं? तब यह पता चलेगा कि राजनीतिक नियम, अवधारणाएं, राजनीतिक मूल्य व चरित्र का वह किनता पालन करते हैं? उन्होंने कहा था कि हमने एक लोकतांत्रिक व्यवस्था तो दे दी लेकिन हमारे देश की जनता, समाज अलोकतांत्रिक हैं।

कानून मंत्री रहते हुए उन्होंने कहा “अगर यह संविधान अच्छे लोगों के हाथ में रहेगा तो अच्छा सिद्ध होगा वरना यह किसी को नज़र भी नहीं आएगा. संविधान कितना भी अच्छा हो अगर वह बुरे लोगों के हाथों में आ जाएं तो बुरा हो जाता है और संविधान कितना भी बूरा हो अगर वह अच्छे लोगों के हाथों में आ जाएं तो वह एक अच्छा संविधान सिद्द होगा.”

पंथ और राष्ट्रवाद पर उनका नजरियां साफ था. उनका नजरिया क्या था, यह हम उनके दिए इस वाक्य से लगा सकते हैं. उन्होंने कहा कि “देश का विकास तभी हो सकता है जब राजनीतिक दल पहले देश को आगे रखे फिर अपने-अपने पंथ को. अगर नेता अपने पंथ को पहले ऊपर रखेंगे तो हमारी आज़ादी एक बार फिर खतरें में पड़ जाएंगी.” उन्होंने कहा कि यदि राजनीतिक दल अपने पंथ को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वंत्रता फिर खतरें में पड़ जाएगी. हमें अपनी आजादी का खून के आखिरी कतरे तक रक्षा करने का संकल्प करना चाहिए.

पत्रकार रुपी आंबेडकर

अंबेडकर ने अपने समाज में चेतना जागृत करने के लिए कलम का भी सहारा लिया. उन्हें हमेशा इस बात से आक्रोश रहता था कि दबे कुचले वर्ग के मुद्दे पर प्रेस हमेशा से खामोश रहता है. उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं को निकाला और संपादन किया. साथ ही साथ कई पत्रिकाएं उनके मार्गदर्शन में निकाली गई. हाल में अंबेडकर के पत्र “मूलनायक” के 120 साल पूरे हुए हैं. वह अपने पत्रों के माध्यम से दलित वर्ग के मुद्दों को तीव्रता के साथ उठाते रहे. वह दलित वर्ग में नई चेतना का संचार करना चाहते थे. उनके पत्र-पत्रिकाएं एक माध्यम थी जिससे वह करोड़ों दलित लोगों के साथ संवाद करते थे और उच्च जातियों को भी आईना दिखाते थे.

अंबेडकर ने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया. जिनमें मूलनायक, बहिष्कृत भारत, समता व जनता महत्वपूर्ण रहे. इनके लेखों ने उस वक्त दलित वर्ग को जागृत करने में अहम भूमिका निभाई. उस वक्त भी प्रेस का नजरियां ताकत के साथ रहा. चाहे वह ताकत राष्ट्रवाद के साथ ही क्यों ना हो. उस समय के प्रेस के भेदभाव को समझने के लिए अपने एक व्याख्यान में बाबा साहब ने कहा था कि “मेरी निंदा कांग्रेस समाचारों पत्रों द्वारा की जाती है. वह कभी भी मेरे तर्कों का खंडन नहीं करते. वह तो मेरे हर कार्य की आलोचना ही करते हैं। यदि में कहूं कि मेरे प्रति कांग्रेस पत्रों का यह व्यवहार अछूतों के प्रति उच्च जातियों के नजरिएं की अभिव्यक्ति ही है तो यह गलत नहीं होगा.”

रिज़र्व बैंक की संकल्पना में अहम भूमिका

अंबेडकर ने भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में महती भूमिका निभाई. उन्होंने हिल्टन यंग कमिशन को जो सुझाव दिए उसी से भारतीय रिजर्व बैंक के निर्माण का रास्ता खुला. जो आज देश का आर्थिक स्तंभ है. उनकी पुस्तक रुपय का संकट से कमिशन को नीति निर्माण में बहुत मदद मिली. अंबेडकर ने लेबर लॉ तैयार करने में महती भूमिका निभाई. उनके प्रयासों से ही वर्किंग आवर्स को 12 घंटे से घटाकर 8 घंटे किया गया. इसी के साथ महंगाई भत्ते, लीव बेनिफिट, कर्मचारी बीमा, मेडिकल लीव, समान कार्य समान वेतन, न्यूनतम वेतन जैसे कर्मचारी हक और लाभ निर्माण भी बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की ही देन हैं. जो आज हम सभी के जीवन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से महती असर डालते हैं.

अर्थशास्त्री अंबेडकर और आधुनिक समाज पर छाप

अंबेडकर अपने जमाने के बहुत शिक्षित व्यक्ति थे. वह मुंबई की एल्फिंस्टन रोड पर स्थित गवर्नमेंट स्कूल के पहले अछूत छात्र रहे. उन्होंने अपनी काबिलियत से हमेशा जातिगत भेदभाव को हराया. अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय से उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में ग्रेजुएशन किया. 1916 में उन्होंने पीएचडी पूरी की. बाबा साहब को सन 1923 में लंदन विश्वविद्यालय से डॉक्टर्स ऑफ साइंस की उपाधि मिली. फिर उन्होंने अर्थशास्त्र विषय पर 1927 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की. उन्हें कानून, राजनीतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र विषयों में महारत हासिल थी. इन तीनों विषय में उन्होंने अपने समाज और देश निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अपनी इन्हीं काबिलियत की वजह से उन्हें देश का पहला कानून मंत्री बनाया गया और संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई.

बाबा साहेब को एक तंग गली के रूप में देखना ठीक वैसा ही है जैसे गंगा को एक गली में ही बहते देखना. अंबेडकर ने केवल दलित वर्ग के लिए ही नहीं बल्कि हर एक भारतवासी के लिए कार्य किया है. आप चाहे जिस नजरिए से उन्हें देखे लेकिन भारत का इतिहास, आधुनिक भारत के निर्माण का इतिहास हमेशा उन्हें एक सच्चा जननायक, देश सेवक के नजरिए से ही देखेंगा. जिसकी गूंज सदियों तक देश में गूंजती रहेगी…

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