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‘फूड फॉर्टिफिकेशन’ जिसकी मदद से भारत कुपोषण मिटाना चाहता है

'फूड फॉर्टिफिकेशन' जिसकी मदद से भारत कुपोषण मिटाना चाहता है
'फूड फॉर्टिफिकेशन' जिसकी मदद से भारत कुपोषण मिटाना चाहता है

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भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 116 देशों में 101 स्थान पर आता है. हम हमारे पड़ोसी मुल्क पकिस्तान (92वे), बांग्लादेश (76वें) और नेपाल (76वें) से भी पीछे हैं. इससे पहले साल 2016 में हम 97वें स्थान पर थे मगर तब के बाद से अब तक हमारी रैंकिंग लगातार नीचे गिरी है. पोशाल के मामले में हम लगातार पिछड़ते जा रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक साल 2030 तक भी हम ‘लो हंगर’ को प्राप्त नहीं कर पाएँगे. पाँचवें नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के अनुसार भारत में 6 से 23 महीने के 90 प्रतिशत बच्चों को पर्याप्त पोषण (diet) नहीं मिलता है. स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह हाल तब है जब एनएफ़एचएस के इस सर्वे में कोरोना आपदा से प्रभावित लोगों के आँकड़े शामिल नहीं है. 

भारत और इसकी तरह कम या औसत आय वाले देशों में कुपोषण से निपटने के लिए फ़ूड फोर्टिफिकेशन को माध्यम बनाया गया है. भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के अनुसार, “आनाज में कृत्रिम तरीके से विटामिन और मिनरल जैसे आयरन, जिंक, आयोडीन, विटामिन-ए और डी को डालना” फ़ूड फोर्टिफिकेशन कहलाता है. भारत में इसकी शुरुआत साल 1950 में की गई थी और तब से अब तक यह लगातार चल रहा है. मगर सवाल यह है कि क्या फ़ूड फोर्टिफिकेशन की नीति का अंधानुसरण करने से समस्या का समाधान हो जाएगा?

भारत अभी गेहूँ, तेल और नमक को फोर्टिफाइड रूप में आम जनता तक पहुँचा रहा है. इसमें से नमक का वितरण सबसे ज़्यादा चर्चित रहा है क्योंकि यह थाईराइड जैसे रोगों से निपटने में काफी कारगर रहा है. 15 अगस्त 2021 को लाल किले से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कुपोषण भारत की प्रगति में बाधा है इसलिए कुपोषण से निपटने के लिए सभी सार्वजानिक खाद्य योजनाओं जैसे मिड डे मील या पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (PDS) में फोर्टिफाइड चावल शामिल किया जाएगा और साल 2024 तक आमजन तक पहुँचाया जाएगा.

साल 2022-23 के बजट में चावल के फोर्टिफिकेशन के लिए अलग से 10.13 करोड़ रूपए आवंटित किए थे. आँकड़ों के अनुसार चावल के फोर्टिफिकेशन से सरकार पर 27 सौ करोड़ का अतिरिक्त आर्थिक दबाव पड़ रहा है. मगर सवाल आर्थिक खर्च का नहीं है. 

इस पहल को लागू करने के बाद से ही इससे जुड़ी स्वास्थ्य सम्बन्धी चिंताएँ गहरा गई हैं. कुछ शोध के अनुसार सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी (micronutrient deficiency) जैसी बड़ी और व्यापक समस्या से निपटने के लिए  फोर्टिफाइड फ़ूड का अत्यधिक सेवन जैसे किसी ‘यूनिफार्म सॉल्यूशन’ को लागू करना सही नहीं हो सकता.

फोर्टिफाइड फ़ूड में कई पोषक तत्व शामिल होते हैं ऐसे में उनका नियमित सेवन करना सभी पोषक तत्वों की मात्र बढ़ाता है जिसमें से कुछ तत्वों की मात्र का अधिक होना अन्य मेडिकल समस्याओं को जन्म दे सकता है. उदाहरण के लिए गर्भवती महिला पहले से ही आयरन और अन्य सब्सिट्यूड का सेवन कर रही होती है ऐसे में फोर्टिफाइड राइज़ का निरंतर सेवन पैदा होने वाले बच्चे के लिए नकारात्मक असर डाल सकता है.

साल 2022 में उत्तरप्रदेश के गाँवों में किए गए एक अध्ययन (रिपोर्ट, पेज-7) के अनुसार यहाँ के लोग 14 में से 4 माइक्रोन्यूट्रीएंट्स (phosphorus, manganese, magnesium, and sodium) का अत्यधिक सेवन कर रहे हैं. फास्फोरस और मैगनीज़ का अधिक सेवन घातक है वहीँ सोडियम के अधिक सेवन से उच्च रक्तचाप (high blood pressure) और ब्रेन स्ट्रोक जैसी समस्या हो सकती है. 

कुपोषण से निपटने के लिए फोर्टिफाइड फ़ूड एक शॉर्ट टर्म तरीका हो सकता है. मगर लम्बी दौड़ में फ़ूड डाईवर्सिटी ही इस समस्या का समाधान हो सकता है. केवल आयरन इनटेक बढ़ाना ही एक मात्र उपाय नहीं है क्योंकि केवल आयरन के बढ़ने से हिमोग्लोबिन नहीं बढ़ता है. इसके लिए प्रोटीन, विटामिन सी, कॉपर और मैग्नीशियम जैसे अन्य पोषक तत्व भी सही मात्रा में चाहिए होते हैं. सरकार को यह समझना होगा कि आयरन इनटेक से ज़्यादा उसका अवशोषण (absorption) महत्वपूर्ण है. इसके लिए आहार में एनिमल प्रोटीन का होना बेहद ज़रूरी है. 

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  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

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