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न किसान खुश न व्यापारी, कपास की सरकारी खरीदी में क्या दिक्कतें हैं?

cotton in barwani mandi

सुखदेव पटेल बड़वानी की कपास मंडी में 35 क्विंटल कपास बेचने आए हुए थे। मंडी में हुई जांच में उनके कपास में 10% नमी पाई गई। कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया (CCI) के मानकों के अनुसार यह तय सीमा के अंदर है। सीसीआई ने 17 नवंबर 2025 को उनका यह माल 7,849 रूपए प्रति क्विंटल के भाव से खरीद लिया। इसके बाद वह अपना पूरा माल लेकर श्री सनमति इंडस्ट्रीज नाम की जीनिंग फैक्ट्री में पहुंचे। यहां उनका माल अनलोड होगा और फसल का भुगतान किया जाएगा। 

पटेल भुगतान के लिए दिन भर इंतज़ार करते रहे। शाम होते-होते उनको बताया गया कि उनकी फसल में 12% से अधिक नमी है। यह सीसीआई के मानकों से ज़्यादा है इसलिए पूरा दिन इंतज़ार करवाने के बाद उनका माल रिजेक्ट कर दिया गया। हंगामा होने पर स्थानीय विधायक राजन मंडलोई और एसडीएम भी पहुंचे। विधायक ने इस पर आपत्ति जताई कि किसान को पूरा दिन इंतज़ार करवाने के बाद खरीदी के लिए न कहा गया है। 

पटेल अकेले नही हैं। बड़वानी में इस सीजन में कई बार किसानों ने 12 प्रतिशत से अधिक नमी वाले कपास को सीसीआई द्वारा अस्वीकृत किए जाने के खिलाफ प्रदर्शन किया है। केवल बड़वानी ही नहीं बल्कि देश के कई और हिस्सों जैसे फतेहाबाद और तेलंगाना में भी कपास की फसल इसी तरह लौटा दी गई। 

मध्य प्रदेश सहित देश के कुल 10 राज्यों में सीसीआई द्वारा कपास की खरीद की जा रही है। 28 नवंबर तक के आंकड़ों के अनुसार देशभर में सीसीआई द्वारा 72.89 लाख क्विंटल कपास खरीदा जा चुका है। हालांकि इसमें से केवल 4.56 लाख क्विंटल ही मध्य प्रदेश से खरीदा गया है।  

इस खरीद में न्यूनतम दाम एमएसपी तक होता है। ऐसे में किसानों को अपना माल औने-पौने दाम में नहीं बेचना पड़ता। मगर इसके लिए सीसीआई द्वारा तय के लिए मानक किसानों के लिए मुश्किल का सबब बन रहे हैं।

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मंडी में कपास की नमी की जांच करते हुए कर्मचारी। फ़ोटो: राजेंद्र जोशी/ग्राउंड रिपोर्ट

देर से शुरू होती है ख़रीदी

लखनगांव के किसान सचिन यादव सरकार पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, 

“सरकार की मंशा किसानों को उचित मूल्‍य देने की है ही नहीं।”

दरअसल मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में अक्टूबर के दूसरे हफ्ते से कपास की चुनाई शुरू हो जाती है। अक्टूबर के आख़िरी हफ्ते से यहां की मंडियों में आवक शुरू हो जाती है। चूंकि इसी दौरान दिवाली का त्यौहार भी होता है इसलिए खेत में चुनाई कर रहे मजदूरों को उनका बकाया भी चुकाना होता है। मगर यादव कहते हैं कि भारतीय कपास निगम (सीसीआई) दीपावली के पहले खरीदी शुरु नहीं करती।

इस साल नॉर्थ ज़ोन में 1 अक्टूबर, साउथ ज़ोन में 21 अक्टूबर और मध्य प्रदेश सहित सेंट्रल ज़ोन के 4 राज्यों में 15 अक्टूबर से सीसीआई खरीदी शुरू की जानी थी। मगर खरगोन में 24 अक्टूबर तक भी खरीदी शुरू नहीं की गई। खरीदी में यह देर किसानों को प्रभावित करती है। यादव समझाते हैं,  

“दीपावली के पूर्व खर्च पूरा करने के लिए ज्‍यादातर किसान अपना बेहतर कपास व्यापारियों को 55 से 56 रुपए किलो (5500-5600 रु/क्विंटल) के भाव बेचने को मजबूर हो जाते हैं।” 

सीसीआई के कपास ख़रीदी अधिकारी (कॉटन सिलेक्टर) संतोष कुमार ने बताया कि सीसीआई केवल 08 से लेकर 12 प्रतिशत तक नमी वाला कपास ही खरीदती है। नमी के साथ ही कपास के रेशे की क्‍वालिटी और लंबाई भी देखी जाती है। इस समय भारतीय कपास निगम 8 प्रतिशत नमी वाला कपास 8100 रुपए क्विंटल तथा 12 प्रतिशत नमी वाला कपास 7690 रुपए क्विंटल के भाव में खरीदी कर रही है।

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नबुलाल काग को सीसीआई से बेहतर दाम मिलने की आशा बहुत कम है। फ़ोटो: राजेंद्र जोशी/ग्राउंड रिपोर्ट

“मंडी मंदी चल रही है”

नबुलाल काग के ऊपर भी चुनाई के मजदूरों का बकाया और दिवाली का घरेलू खर्च था। इसके चलते उन्होंने दिवाली से पहले 16 क्विंटल कपास व्‍यापारियों को 5600 रुपए/क्विंटल में बेचा था। हालांकि अभी 26 क्विंटल कपास उन्होंने घर पर रखा है जिसके लिए उन्होंने सीसीआई में पंजीयन करवाया है। गौरतलब है कि 06 नवंबर को बड़वानी मंडी में 20 गाड़ियों में 13 गाड़ियां ही भारतीय कपास निगम द्वारा ख़रीदी गई।  

नबुलाल काग के अनुसार एक एकड़ कपास की फसलके लिए 900 रुपए का बीज,  तीन बोरी डीएपी खाद 4500 रुपए (प्रति बोरी 1500 रुपए), दवाई स्प्रे 3000 रुपए (3 पंप, प्रति पंप 1000 रुपए) की जरुरत पड़ती है। इस तरह मोटे तौर खाद-कीटनाशक और बीज पर प्रति एकड़ खर्च 10000 हज़ार रुपए तक होता है। लेकिन इसके अलावा बड़ा खर्च कपास की बिनाई (हारवेस्टिंग) पर होता है। कपास की बिनाई 1000 रुपए प्रति क्विंटल से शुरु होती है जो बाद में बढ़कर 1500 रुपए प्रति क्विंटल तक हो जाती है। कपास के भाव का 20 से 25 प्रतिशत खर्च तो केवल बिनाई में ही हो जाता है। इस एक एकड़ में 10 से 12 क्विंटल तक पैदावार होती है। 

इसी प्रकार बड़वानी के कपास व्यापारी जगदीश राठौड़ कहते हैं कि नवंबर में भी कपास खरीदी में मंदी चल रही है। क्‍वालिटी के हिसाब से 1500 रू से लेकर 6000 रुपये क्विंटल तक खरीदी हो रही है। इतना कम दाम देने का कारण पूछने पर वह कहते हैं, “हम छोटे व्‍यापारी बड़े व्यापारियों को कपास बेचते हैं। हम सीसीआई के भाव पर खरीदी नहीं कर सकते।”

यानि दिवाली के पहले किसानों को अपनी फसल औने-पौने दाम पर ही बेचनी पड़ी। वहीं दिवाली के बाद भी उन्हें अनियमितता का सामना करना पड़ रहा है। 

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जिनिंग फैक्ट्रियों के मालिकों ने माल कम मिलने और अधिक दाम होने की शिकायत की है। फ़ोटो: पल्लव जैन/ग्राउंड रिपोर्ट

व्यापारियों पर पड़ता असर

सीसीआई की खरीद ने स्थानीय व्यापारियों पर भी बुरा असर डाला है। बड़वानी से सटे खरगोन जिले में 8 केंद्रों पर सीसीआई के कपास खरीदी केंद्र स्थापित किए गए हैं। मगर स्थानीय व्यापारी इस व्यवस्था से नाराज़ हैं। इस साल अप्रैल में ग्राउंड रिपोर्ट ने एक खबर में विस्तार से बताया था कि कैसे सीसीआई की खरीदी के चलते उन्हें कच्चे माल की कमी हो गई है। 

खरगोन के जीनिंग व्यापारी संदीप जायसवाल ने तब हमसे बात करते हुए कहा था, “हम अपने घर में ही किराएदार बनकर रह गए हैं, सारा कपास सीसीआई खरीद रही है, कपास के रेट बढ़ रहे हैं, ऐसे ही रहा तो हमें अपना व्यापार बंद करना पड़ेगा।” उन्होंने हमें बताया कि इस सीजन भी लगभग यही हालात हैं। 

इसका असर ये हुआ है कि निमाड़ क्षेत्र में कपास जीनिंग मिलें बंद हो रही हैं। इसका असर सिर्फ व्यापारियों तक सीमित नहीं है बल्कि यहां काम करने वाले आदिवासी मज़दूर भी इससे प्रभावित होते हैं। 

जीनिंग व्यापारियों के एक वर्ग का कहना है कि या तो सरकार हर साल एमएसपी बढ़ाने एवं सीसीआई के ज़रिए कपास खरीदने पर कोई प्रावधान लेकर आए या फिर जीनिंग इंडस्ट्री को सब्सिडी देने जैसे विकल्पों पर विचार करे।

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सरकार को चाहिए कि वह खरीद से संबंधित सभी शिकायतों को जल्द से जल्द दूर करे। फ़ोटो: राजेंद्र जोशी/ग्राउंड रिपोर्ट

हालांकि यहां जीनिंग मिलों के बंद होने का प्रमुख कारण मंडी टैक्स बताया जाता है। दरअसल मध्य प्रदेश में कपास की खरीद पर 1 प्रतिशत मंडी टैक्स लगता है। इसके अलावा 0.2 प्रतिशत शरणार्थी टैक्स (निराश्रित शुल्क) लगाया जाता है। यह टैक्स 1971 में बांग्लादेश से भारत आने वाले शरणार्थियों को मदद करने के लिए लगाया गया था। मगर यह अब भी जारी है। 

सेंधवा कॉटन जिनिंग प्रेसिंग एसोसिएशन के युवा अध्यक्ष गौरव तायल के अनुसार पिछले 20 वर्षों में सेंधवा की 80 प्रतिशत से अधिक जिनिंग प्रेसिंग फैक्ट्रियां अन्य प्रदेशों में चली गई हैं। उन्‍होंने बताया कि सेंधवा के कपास व्यवसायी महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, उड़ीसा में पलायन कर गए हैं क्‍योंकि इन राज्‍यों में मंडी टेक्स 25 पैसे प्रति किलों से लेकर 01 रुपये के बीच में हैं।

व्यापारियों का कहना है कि वह मंडी टैक्स से तो परेशान हैं ही अब सीसीआई द्वारा माल खरीदे जाने के चलते उनका उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। “कच्चा माल कम मिलेगा तो उत्पादन पूरी क्षमता में नहीं होगा। धंधे में मार्जिन कम है इसलिए उत्पादन घटने से मिल चलाना कठिन हो रहा है। यही चलता रहा तो हम कोई और धंधा देखेंगे।” खरगोन के एक व्यापारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं।

किसान और व्यापारियों की बात सुनते हुए यह समझ आता है कि दोनों ही वर्ग सीसीआई की खरीद से असंतुष्ट हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि सरकार दोनों वर्गों को ध्यान में रखते हुए प्लान तैयार करे। मंडी में नमी की पुष्टि के बाद भुगतान से पहले कपास लेने से मना कर देने के आरोप किसानों के लिहाज से गंभीर हैं। साथ ही यह देखना होगा कि कपास की सरकारी ख़रीदी समय पर शुरू हो ताकि किसानों को मजबूरी में अपनी फसल औने पौने दाम में न बेचनी पड़े।


बैनर इमेज– बडवानी की मंडी में बिक्री के लिए खड़े कपास किसानों की गाड़ियां। क्रेडिट- राजेंद्र जोशी/ग्राउंड रिपोर्ट


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Author

  • Rajendra Joshi is a Barwani-based journalist who began his career writing for a weekly newspaper in 1982 while in college. He worked as a daily newspaper reporter from 2001 to 2012 before transitioning to freelance journalism in August 2012. He specializes in covering environmental issues, river pollution, social concerns, and rural affairs for various media organizations.

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