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जंगलों को आग से बचाने के लिए उत्तराखंड में कटेंगे 5 लाख पेड़

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जंगलों को आग से बचाने के लिए उत्तराखंड में कटेंगे 5 लाख पेड़
जंगलों को आग से बचाने के लिए उत्तराखंड में कटेंगे 5 लाख पेड़

सुंदर नदियों, पहाड़ो, जंगलों से पटे उत्तराखंड में 5 लाख पेड़ों की कटाई की जानी है। इसको लेकर उत्तराखंड प्रशासन इसी महीने काम शुरू करने वाला है। यह कटाई खुद वन विभाग ही करने वाला है। 

उत्तराखंड में दो वन मंडल हैं कुमाऊं और गढ़वाल। कुमाऊं में 1.5 लाख पेड़ काटे जाने हैं तो वहीं गढ़वाल मंडल में 3.5 लाख पेड़ काटे जाने हैं। इस कटाई के पीछे का कारण है जंगलों में लगने वाली आग। जंगल की आग का विक्राल रुप हम  अमेरिका के केलिफोर्निया में देख रहे हैं। जहां इसकी वजह से 20 से अधिक लोगों की जान चुकी है और हजारों लोग बेघर हो चुके हैं। साथ ही 40 हजार एकड़ से अधिक क्षेत्र आग में जलकर खाक हो गया है। कैलिफोर्निया में हुई त्रासदी से सबक लेकर उत्तराखंड सरकार ने जंगलों की आग से जनजीवन को बचाने की तैयारियां शुरु की हैं। 

उत्तराखंड वन विभाग 15 फरवरी से लेकर 15 जून तक फायर सीज़न मानता है। इसी समयावधि के बीच यहां जंगल में आग की घटनाएं सामने आती हैं।

क्या होती हैं फायर लाईन?

जंगलों में अंग्रेजी शासन से ही फायर लाइन खींचने का नियम था। जिसमें वन प्रभागों के बीच 100 फीट, रेंजों के बीच 50 फीट और बीटों के बीच 30 फीट चौड़ी फायर लाइन बनाने का नियम है। फायर लाइन में जंगल को काटकर साफ रास्ता बनाया जाता है, जहां किसी प्रकार की ज्वलनशील झाड़ियां और पेड़ मौजूद न हो। फायर लाईन होने की वजह से जब जंगल के एक स्थान पर आग लगती है तो वह दूसरे स्थान तक तेज़ी से नहीं फैलती। जंगलों की आग को तेज़ी से फैलने से रोकने में फायर लाईन अहम भूमिका निभाती रही हैं। 

उत्तराखंड में 1996 के बाद फायर लाइन बनाने का काम बंद कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट में टी एन गोदावर्मन वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया केस चल रहा था। जिसकी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि विशालकाय पेड़ों और एक निश्चित ऊंचाई (1000 मीटर से ऊंचे स्थान) पर पेड़ों को नहीं काटा जा सकता। जिसके बाद से ही वन विभाग ने फायर लाइन बनाना बंद कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में 18 अप्रैल 2023 को बदलाव किया। जिसके बाद वन विभाग ने फायर लाइन बनाने पर वापस ध्यान दिया है। अब इस बार उत्तराखंड का वन विभाग भी इसको लेकर काम शुरू कर रहा है।

फायर लाइन के आलावा संवेदनशील इलाकों में घांस हटाकर भी आग को रोका जा सकता है। साथ ही अग्निशमन उपकरणों की मरम्मत भी करना आवश्यक होता है।  

साल 2023 में राज्य सभा में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने एक सवाल के जवाब में बताया था कि देशभर में नबम्बर 2022 से जून 2023 के बीच 2,12,249 फाॅरेस्ट फायर के मामले सामने आए हैं। जिसमें से सबसे अधिक 33461 मामले ओडिशा में देखे गए थे। जबकि मध्य प्रदेश में 17142 और उत्तराखंड में 5351 मामले देखने को मिले थे। 

पिछले साल उत्तराखंड के जंगलों में आग के चलते 12 वनकर्मियों की जान चली गई थी। और हजारों हेक्टेयर जंगल का क्षेत्र आग की चपेट में आ गया था। जंगल में रहने वाले जीवों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। इस सब को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड का वन विभाग 15 लाख पेड़ों को काटकर फायर लाइन बना रहा है। 

फाॅरेस्ट फायर की रियल टाइम माॅनिटरिंग के लिए सरकारी संस्था भारतीय वन सर्वेक्षण ने फोरेस्ट फायर अलर्ट सिस्टम नाम का एक पोर्टल लांच किया। जिसकी मदद से लोगों को अलर्ट करना आसान हो गया। इस पोर्टल से किसी भी प्रेदश के किसी भी जंगल की सबसे छोटी इकाई बीट में फाॅरेस्ट फायर का पता लगाया जा सकता है। और लोग इस पोर्टल पर रजिस्टर कर फायर अलर्ट भी प्राप्त कर सकते हैं। 

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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