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मध्य प्रदेश में किंग कोबरा लाने की तैयारी, क्या सर्पदंश कम हो सकेंगे?

मध्य प्रदेश में किंग कोबरा लाने की तैयारी, क्या सर्पदंश कम हो सकेंगे?

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव 10 जनवरी को भारतीय वन सेवा (आईएफएस) मीट में पहुंचे हुए थे। इस दौरान सीएम ने कहा कि सरकार को डिंडौरी जिले में सर्पदंश (स्नेकबाइट) से होने वाली मौतों के बाद एक मोटा पैसा देना होता है। ये राशि प्रति परिवार चार लाख रुपए होती है। साथ ही वे बताते हैं कि डिंडौरी जिले में स्नेकबाइट के बाद 200 मौतों के मामले रिपोर्ट हुए हैं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि सरकार स्नेकबाइट की घटनाओं पर काबू पाने के लिए प्रदेश में किंग कोबरा को वापस लाएगी।

स्नेकबाइट पर आंकड़ें क्या कहते हैं?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार दुनिया भर में हर साल लगभग 50 लाख स्नेकबाइट के केस सामने आते हैं। जिनमें से 18-27 लाख जहरीले स्नेकबाइट होते हैं। इनकी वजह से लगभग 81 हजार से लेकर 1 लाख 38 हजार तक लोगों की मौत हो जाती है। वहीं करीब 4 लाख लोग या तो अंग खो देते हैं या स्थायी विकलांगता का शिकार हो जाते हैं। 

ज़्यादातर केस दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और सब-सहारा अफ्रीका में देखे जाते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि इन क्षेत्रों में ही ज़्यादा केस क्यों देखने को मिलते हैं? इसका जवाब है ज़्यादा जनसंख्या, अधिक जहरीले सांप और इन देशों का विकासशील होना। यह ध्यान देना ज़रूरी है कि ये रिपोर्टेड आंकड़े हैं। इसके कई मामले रिपोर्ट ही नहीं हो पाते क्योंकि लोग कई बार गैर-चिकित्सकीय उपायों जैसे झाड़-फूंक का सहारा लेते हैं।

भारत में स्नेकबाइट के हालात कैसे हैं?

भारत उन देशों में शामिल है जो स्नेकबाइट से सबसे ज़्यादा प्रभावित है। डब्लूएचओ के अनुसार यहां हर साल लगभग 45,900 मौतें केवल सांप के काटने से होती हैं। जो पूरे विश्व में स्नेकबाइट से होने वाली कुल मौतों का आधा हिस्सा है। भारत में 90% केस केवल चार प्रजाति के स्नेकबाइट से दर्ज होते हैं। यह प्रजातियां काॅमन क्रेट, इंडियन कोबरा, रसेल वाइपर और साॅस्केल्ड वाइपर हैं।

किसी भी समस्या के समाधान के लिए उससे सम्बंधित पुख्ता आंकड़े सबसे महत्वपूर्ण हैं। मगर सर्पदंश पर सरकार और डब्लूएचओ के आंकड़े मेल नहीं खाते। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार भारत में साल भर में 12 लाख स्नेकबाइट के केस आते हैं। जिनमें से लगभग 58 हजार लोग अपनी जान गवां देते हैं जबकि भारत की एजेंसी केंद्रीय स्वास्थ्य खुफ़िया ब्यूरो (CBHI) के अनुसार देश में हर साल ऐसे 3 लाख केस ही दर्ज होते हैं। इनमें से केवल 2000 मौतें होती हैं

दवाओं को लेकर प्रगति कैसी है? 

सरकारी आंकड़ों को छोड़ भी दें तो इसकी चिकित्सा के क्षेत्र में भी भारत बहुत ज्यादा रिसर्च नहीं कर पाया है। भारत में ज्यादातर स्नेक बाइट के केस चार खतरनाक सांपों के काटने से रिपोर्ट होते हैं। जबकि अधिकतर मामलों में एक ही तरीके की दवा का इस्तेमाल किया जाता है।

बीबीसी में छपी रिपोर्ट के मुताबिक डाॅ. गौरी शंकर बताते हैं कि किंग कोबरा के लिए कोई विशेष दवा नहीं हैं। यहां तक कि थाईलैंड से आने वाली दवाएं भी कोबरा के काटने पर अच्छा असर नहीं करती हैं। फिर ऐसी स्थिति में लक्षणों को देखकर इलाज करना पड़ता है। जिस प्रकार कोविड 19 के समय शुरुआती दौर में किया जा रहा था। इसलिए प्रत्येक प्रकार के सांप के काटने पर इलाज के लिए विशेष दवा की जरूरत होती है।

क्या किंग कोबरा स्नेक बाईट का इलाज है?

सच बात तो यह है कि इसका ठीक- ठीक अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि किंग कोबरा के आने से मध्य प्रदेश में स्नेकबाइट के केसों में कितनी कमी आएगी। लेकिन किंग कोबरा पर रिसर्च करने वाली एक संस्था केसीसी लिखती है कि किंग कोबरा उष्णकटिबंधीय वर्षावन क्षेत्रों में पाए जाते हैं। भारत के पश्चिमी घाटों में स्थानीय किसानों व उनके परिवारों को ईको सिस्टम के लिए किंग कोबरा की अहमियत समझ आ रही है।

किंग कोबरा उन जहरीले सांपों को खाते हैं जिनसे भारत में अधिकतर स्नेक बाइट के केस देखने को मिलते हैं। किंग कोबरा के द्वारा खाये जाने वाले सांपों की सूची में स्पेक्टेक्लेटेड कोबरा, रसेल वाइपर, क्रेट, पिट वाइपर जैसे जहरीले सांप हैं। जिनके काटने से अधिकतर मौतें देखने को मिलती हैं। किंग कोबरा बड़े पारस्थितिकी क्षेत्रों पर निर्भर रहते हैं। जहां ये रहते हैं अगर उन क्षेत्रों को बचाया जा सका तो मानव- वन्यजीव संघर्ष कम देखने को मिल सकता है।

डाॅ गोरी शंकर ये भी बताते हैं कि किंग कोबरा की चार प्रजातियां खोजी जा चुकी हैं। जबकि अभी तक लोगों में यही अवधारणा रही कि किंग कोबरा एक ही प्रजाति के होते हैं। ऐसे में किंग कोबरा को मध्य प्रदेश में लाए जाने पर सुरक्षा का सवाल खड़ा होगा। लेकिन वे ये भी बताते हैं कि चार खतरनाक सांपों से होने वाली मौतों के तुलना में किंग कोबरा के काटने से होने वाली मौतों की संख्या कम है। 

इसके अलावा भारत सरकार ने नेशनल एक्शन प्लान फाॅर प्रवेंशन एण्ड कन्ट्रोल ऑफ स्नेकबाइट एनवेन्मिंग (NAP-SE) लॉन्च किया है इसका लक्ष्य 2030 तक स्नेकबाइट से होने वाली मौतों की संख्या को आधा करना है ये एक्शन प्लान मार्च 2024 में केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था इसलिए अभी ये कितना कारगर रहा है इसका अंदाजा लगाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन ये साफ है कि इस क्षेत्र में और रिसर्च, अच्छा डाटा कलेक्शन और नई एंटीवेनम को बनाए जाने की सख्त जरूरत है

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Shishir Agrawal

Shishir Agrawal

Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.View Author posts