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दाल रोटी के सहारे टीबी से लड़ रहे विदिशा में कुचोली गांव के आदिवासी

दाल रोटी के सहारे टीबी से लड़ रहे विदिशा में कुचोली गांव के आदिवासी

Read in English | ग्राम आबूपुर कुचोली ब्लॉक गंज बासौदा, जिला विदिशा, मध्य प्रदेश, यह पता है 38 वर्षीय आदिवासी गेंदालाल का। गेंदालाल अपने 12 वर्षीय बेटे के साथ यहां 6/6 फीट के एक कमरे वाले कच्चे घर में रहते हैं। इस कमरे में हवा और रौशनी आने का महज़ दरवाज़ा ही एक स्रोत है। घर के अंदर खाना बनाने के लिए चूल्हा और बरतन के अलावा कुछ कपड़े और बिस्तर भर हैं। गेंदालाल टीबी की बीमारी से जूझ रहे हैं, भरपूर आहार न मिलने से उनका शरीर सूख चुका है। 

Poor House in Vidisha
गेंदालाल के घर के अंदर बस कुछ बरतन, कपड़े और बिस्तर हैं

गेंदालाल के पड़ोसी हमें बताते हैं कि गेंदालाल का परिवार 12 सदस्यों का हुआ करता था, उनके पिताजी को सबसे पहले टीबी हुआ और उसके बाद परिवार के बाकी सदस्यों को भी होता चला गया और सभी की मृत्यु इस बीमारी के चलते धीरे-धीरे हो गई। अब केवल एक बेटा ही बचा है जो गेंदालाल की देखभाल करता है। गेंदालाल कहते हैं कि 

“बीमारी के चलते अब मैं काम पर नहीं जा पाता, बेटा ही घर चलाता है। वो दूसरों के मवेशियों को चराने जाता है जिससे महीने में एक बोरा अनाज मिल जाता है।”

गेंदालाल का घर सरकार से मिले 5 किलो राशन और बेटे को मिले एक बोरे अनाज पर ही निर्भर है। टीबी के कारण वो ज्यादा मेहनत का काम नहीं कर सकते, उनकी सांस फूंलने लगती है। खाना बनाने का काम भी बेटा ही करता है। दाल और रोटी के अलावा हरी सब्ज़ी कभी-कभी ही गेंदालाल के भोजन का हिस्सा बनती है। हमने जब गेंदालाल से पूछा कि क्या उन्हें सरकार की तरफ से पोषण आहार के लिए हर माह 500 रुपए मिलते हैं, या निक्षय मित्रों से कोई सहायता मिलती है? तो इसका जवाब वो ‘ना’ में देते हैं। 

Vidisha Tribal story
गेंदालाल अपने 12 वर्षीय बेटे के साथ

टीबी को हराने में पोषण आहार ज़रुरी

दरअसल टीबी को हराने के लिए सही समय पर जांच और इलाज के साथ शुरुवाती 6 महीनों में पोषण आहार मिलना ज़रुरी होता है। लेकिन भारत में गरीबी और कुपोषण ऐसे कारक हैं जिसने इस बीमारी के प्रसार को जारी रखा है।  टीबी से होने वाली मौतों का एक मुख्य कारण भी पर्याप्त पोषण आहार का अभाव है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ICMR द्वारा किया गया अध्य्यन भी टीबी की रोकथाम में पोषण के महत्व को उजागर करता है। 

टीबी रोगियों को ठीक होने में प्रोटीन युक्त भोजन सहायक होता है। अंडे, थिन मीट, मुर्गी, मछली, बीन्स, दाल और नट्स जैसे प्रोटीन युक्त पदार्थ प्रोटीन के उत्कृष्ट स्रोत हैं। प्रोटीन युक्त भोजन का सेवन मांसपेशियों की हानि को रोकने, उपचार को बढ़ावा देने और प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करने में सहायक होता है। पनीर, एवोकाडो, नट्स, पीनट बटर, दूध, दही, सूखे मेवे, डार्क चॉकलेट और ग्रेनोला बार जैसे उच्च कैलोरी वाले खाद्य पदार्थ भी टीबी रोगियों को बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं। 

लेकिन गेंदालाल जैसे रोगी जो मुश्किल से दो वक्त की दाल रोटी का प्रबंध कर पा रहे हैं उनके लिए 50 रुपए प्रति लीटर दूध खरीदना भी मुश्किल होता है। गेंदालाल बताते हैं कि कभी-कभी उनके गांव में कुछ सामाजिक संस्था के लोग आते हैं और फल-फ्रूट या लड्डू देकर जाते हैं लेकिन ऐसा महीने में एक या दो बार ही होता है। 

निक्षय पोषण योजना से दूर गेंदालाल

TB patient  vidisha
अपना एक कमरे का घर दिखाते गेंदालाल, इसमें बस एक दरवाज़ा है जहां से हवा और रौशनी आ सकती है

भारत सरकार ने कुपोषण की समस्या के समाधान के लिए अप्रैल 2018 में निक्षय पोषण योजना की शुरुवात की थी। इस योजना के तहत सभी टीबी मरीज़ जो 1 अप्रैल 2018 या उसके बाद निक्षय पोर्टल पर पंजीकृत या अधिसूचित (सार्वजनिक/निजी) होते हैं उन्हें पहली किश्त के रुप में 1500 रुपए और उपचार आरंभ होने की तिथि से 84 दिन पूरे होने पर 1500 रुपए की दूसरी किश्त डीबीटी (डायरेक्ट बैंक ट्रांस्फर) के माध्यम से दी जाती है। इसके बाद इलाज खत्म होने तक प्रतिमाह 500 रुपए मरीज़ के खाते में डाले जाते हैं। इसका उद्देश्य उपचार के दौरान मरीज़ को पोषण आहार के लिए मदद करना है।

इंडिया टीबी रिपोर्ट 2023 के मुताबिक वर्ष 2022 में 33 फीसदी मरीज़ ऐसे थे जिन्हें डायरेक्ट बैनेफिट ट्रांस्फर से यह किश्त प्राप्त नहीं हो सकी। इसकी मुख्य वजह स्वास्थ्य प्रदाताओं और मरीजों दोनों के लिये DBT स्कीम में कई बाधाओं का होना है। जैसे बैंक खातों की अनुपलब्धता और इन खातों का अन्य दस्तावेजों जैसे आधार, पैन-कार्ड आदि से संबद्ध न होना है। इसकी अलावा संचार माध्यमों की कमी, निरक्षरता और बहु-चरणीय अनुमोदन प्रक्रिया प्रमुख बाधाओं के रूप में मौजूद हैं। 

नहीं बना गेंदालाल का कोई निक्षय मित्र 

TB Identity Card
गेंदालाल का टीबी आईडेंटिटी कार्ड कहता है कि अप्रैल 2024 में उनका इलाज शुरु हुआ है, वर्ष 2018 के बाद रजिस्टर सभी मरीज़ों को निक्षय पोषण का लाभ मिलना चाहिए, लेकिन गेंदालाल इससे महरुम हैं। 

19 सितंबर 2022 को शुरु हुई निक्षय मित्र योजना का उद्देश्य टीबी से लड़ने में सामुदायिक भागीदारी को सुनिश्चित करना है। इसमें कोई भी नागरिक, जन प्रतिनिधी, राजनीतिक दल, गैर सरकारी संस्थान, कॉर्पोरेट संस्थान टीबी मरीज़ को गोद ले सकता है और उसके आहार की व्यवस्था का संकल्प ले सकता है। इस अभियान के तहत निक्षय मित्र बनने वाला व्यक्ति या संस्था कम से कम 6 महीने या अधिक वक्त के लिए किसी गांव, वॉर्ड, ब्लॉक या जिले के किसी भी टीबी रोगी या एक से अधिक रोगियों को गोद लेकर उन्हें भोजन, पोषण या आजीविका  के स्थर पर ज़रुरी मदद कर सकता है। 

निक्षय पोर्टल से प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि विदिशा जिले में 1 जनवरी 2024 से जुलाई 2024 तक जहां सरकारी एवं निजी टीबी मरीज़ों की नोटीफाईड संख्या 1622 थी, यहां केवल 357 निक्षय मित्र ही रजिस्टर हुए हैं। वहीं गेंदालाल के ब्लॉक गंजबासौदा में नोटिफाईड मरीज़ 249 हैं तो इसपर 86 निक्षय मित्र रजिस्टर हुए हैं। 

विदिशा जिले में प्रसून नामक समाजसेवी संस्था के लिए काम करने वाले प्रमोद पटेरिया बताते हैं कि कुचोला गांव में निक्षय मित्र जैसी योजना का लाभ किसी मरीज़ को नहीं मिलता, न ही यहां किसी सरकारी योजना का लाभ पहुंच रहा है। वो कहते हैं 

“यहां आपको हर घर में मरीज़ मिल जाएगा, कई परिवार के परिवार खत्म हो चुके हैं। लेकिन सरकार और प्रशासन यहां झांकने तक नहीं आता। न यहां लोगों के पास रोज़गार है न खाने को रोटी ऐसे में ये टीबी से कैसे लड़ेंगे?”

भारत सरकार ने वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त होने का लक्ष्य निर्धारित किया है। निक्षय पोर्टल के अनुसार इस वर्ष जनवरी से जुलाई 28 तक देश में कुल नोटीफईड मरीज़ों की संख्या 15 लाख के करीब है। पिछले वर्ष 2023 में भारत में 24.2 लाख टीबी के केस रिपोर्ट हुए थे जिनमें 3.2 लाख मरीज़ों की मृत्यु हो गई थी। WHO के अनुसार, वैश्विक टीबी के मामलों में भारत का योगदान 27% है और कुल मौतों में 35%। ऐसे में 2025 तक भारत का टीबी मुक्त होना एक दूर की कौढ़ी नज़र आता है। 

जब हम गेंदालाल से बात खत्म करते हैं तो गांव में अन्य टीबी मरीज़ भी एक एक कर हमें अपने परेशानियां बताने लगते हैं। सभी की बातों से यह पता चलता है कि टीबी के लिए चलाए जा रहे सरकारी कार्यक्रम कुचोली गांव तक नहीं पहुंच रहे हैं। 

यह आलेख रीच मीडिया फैलोशिप 2024 के तहत लिखा गया है। 

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Pallav Jain

Pallav Jain

Pallav Jain is an environmental journalist and co-founder of Ground Report Digital, an independent environmental media organization based in Madhya Pradesh, India. Operating from Sehore city, he has dedicated his career to reporting on critical environmental issues including renewable energy, just transition, pollution, and biodiversity through both written and visual media.View Author posts