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राजगढ़ में जारी है अवैध रेत खनन, 5 नदियां हो रही प्रभावित

राजगढ़ में जारी है अवैध रेत खनन, 5 नदियां हो रही प्रभावित
राजगढ़ में जारी है अवैध रेत खनन, 5 नदियां हो रही प्रभावित

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मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले में मुख्य तौर पर 5 नदियां गुज़रती हैं। इनमें से पार्वती, कालीसिंध, अजनार, गाड़नाला और नेवज प्रमुख हैं। इन नदियों में अवैध रेत खनन बड़ी समस्या बना हुआ है। अगर राजगढ़ के कुछ महीनों पहले के स्थानीय अखबारों  को पलट कर देखें तो अवैध रुप से रेत खनन करने वालों पर प्रशासनिक कार्रवाई, ट्रकों की ज़ब्ती का भरपूर जिक्र मिलता है।

अगस्त 2024 की ही एक घटना का ज़िक्र करें तो रेत माफियाओं ने प्रशासनिक अमले को घेरा, नायब तहसीलदर को धमकी दी, और उन्हें ट्रैक्टर से टक्कर भी मारी। यह खबर बताती है कि राजगढ़ में किस तरह रेत माफिया निरंकुश हैं और अवैध खनन को रोकने के लिए बनी तमाम नीतियां ज़मीन पर कारगर नहीं हो रही हैं। 

ग्राउंड रिपोर्ट ने राजगढ़ में उन इलाकों का दौरा किया जहां अवैध रुप से खनन हो रहा है, और यह जानने का प्रयास किया कि यह खनन नदियों और पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे प्रभावित कर रहा है। 

राजगढ़ में वैध रेत खनन 

पार्वती नदी राजगढ़ जिला
गोलाखेड़ा गांव में रेत खनन की वजह से नेवज नदी में बड़े-बड़े गड्ढे हो गए हैं जिससे कई बार इसमें रेत की ट्रॉलियां फंस जाती हैं।  Photograph: (ग्राउंड रिपोर्ट)

भारत सरकार द्वारा रेत खनन के संबंध में 2016 में ‘सस्टेनेबल सैंड माइनिंग गाइडलाइन’ तैयार की गई है। इन गाइडलाइन में यह निर्देशित किया गया है कि हर जिले में खनन से संबंधित ‘डिस्ट्रिक्ट सर्वे रिपोर्ट’ (डीएसआर) तैयार की जाएगी। राजगढ़ जिले में भी नदी रेत खनन से संबंधित 2022 की एक डीएसआर मौजूद है। 

राजगढ़ की यह रिपोर्ट स्वीकार करती है कि देश भर में अवैध रेत खनन की गतिविधियां बड़े पैमाने पर हो रही हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ये गतिविधियां सरकार के राजस्व और अफसरों की ज़िंदगियों को बुरी तरह से प्रभावित करती हैं। 

यूं तो राजगढ़ जिले में कोई बड़े खनिज भंडार नहीं है। मगर यहां लगभग 2 लाख 49 हजार 642 क्यूबिक मीटर रेत और 2 लाख 11 हजार 935 क्यूबिक मीटर मुरम मौजूद है। वहीं सीमित मात्रा में गाद और फ्लैग्स्टोन भी पाया जाता है।

Sand mining data of Rajgarh Madhya Pradesh
जिले की नदियों में लगभग 350 हेक्टेयर में 300 से भी अधिक रेत खदानों को स्वीकृति मिली हुई है। इन खदानों से 2018 से 2020 के बीच कुल 2 करोड़ 12 लाख 34 हजार रूपये का राजस्व सरकार को प्राप्त हुआ है। इसमें से सर्वाधिक राजस्व वर्ष 2021 में, 1 करोड़ 74 लाख अर्जित हुआ था। वहीं इन तीन वर्षों में कुल 16032 क्यूबिक मीटर (Cu.mt) खनिज का उत्पादन हुआ है। 

मध्य प्रदेश स्टेट माइनिंग कॉर्पोरेशन कंपनी राजगढ़ में खनन करने वाली एक प्रमुख संस्था है। इस कंपनी के एक कर्मचारी एस के तिवारी ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए बताते हैं कि राजगढ़ जिले से उन्हें 23 वैध रेत खदाने अलॉट की गई हैं। जिनमें से कुछ पर अभी उनकी कंपनी काम कर रही है। बाकी अन्य जो खदाने संचालित हो रही हैं उसके बारे में उन्हें कुछ नहीं पता, वो सबकुछ खनिज विभाग देखता है।

2016 की गाइडलाइन स्पष्ट रूप से कहती है कि ‘किसी जिले की कुल खनिज उत्पादन क्षमता का सिर्फ 60 फीसद ही खनन किया जा सकता है। इस निर्देश के अनुसार राजगढ़ की सभी नदियों को मिलाकर कुल तकरीबन 25 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में तकरीबन 606177 क्यूबिक मीटर के खनन की छूट है।’

राजगढ़ में रेत का अवैध कारोबार 

राजगढ़ के सुठालिया में रहने वाले जयपाल सिंह खींची पिछले 5 सालों से पार्वती नदी में हो रहे अवैध खनन के खिलाफ काम कर रहे हैं। जयपाल का दावा है कि मात्र सुठालिया क्षेत्र से ही लगभग 3 लाख मीट्रिक टन रेत, खनन माफियाओं के द्वारा निकाली जाती है।

जयपाल मानते हैं कि राजगढ़ में खनन माफियाओं पर प्रशासनिक कार्रवाइयां तो की जाती हैं लेकिन उनका कोई ख़ास असर देखने को नहीं मिलता। वह आगे बताते हैं कि जब भी इन गतिविधियों की शिकायत जिम्मेदार अधिकारियों से की जाती है तो कुछ दिनों के लिए खनन बंद करवा दिया जाता है। इस दौरान कार्रवाई के नाम पर अवैध रूप से रेत ले जा रहे ट्रैक्टर चालकों पर केस दर्ज कर लिया जाता है। लेकिन यह सब कुछ अस्थाई है। खनन माफियाओं पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। यही वजह है कि उनके हौसले अब भी बुलंद हैं। 

ज़मीनी पड़ताल

राजगढ़ जिला पार्वती नदी में अवैध रेत खनन जारी
राजगढ़ जिले में स्थित पार्वती नदी में जारी अवैध रेत खनन, ग्राम सेमलापार Photograph: (ग्राउंड रिपोर्ट)

ग्राउंड रिपोर्ट ने भी अपनी पड़ताल में पाया कि राजगढ़ में अवैध तरीके से बड़े पैमाने पर रेत खनन किया जा रहा है। जब हमारी टीम पार्वती के किनारे सेमलापार पहुंची तब वहां बड़ी मात्रा में पोकलेन मशीनों से हो रहा उत्खनन दिखाई दिया। हम जनवरी 2025 के दूसरे सप्ताह सुठालिया में पार्वती के किनारे कानरखेड़ी,शेखनपुर पहुंचे। यहां भी अवैध खनन की गतिविधियां जारी मिलीं। वही कालाखेड़ी,लासूड़लिया,कादी खेड़ा और टोडी गांव में भी अवैध उत्खनन जेसीबी और पोकलेन मशीनों से बड़ी मात्रा में किया जाता है।

गौरतलब है कि ये सभी क्षेत्र लीज की सूची में नहीं हैं। भारत सरकार की सस्टेनेबल सैंड माइनिंग गाइडलाइन, 2016 के अनुसार माइनिंग क्षेत्र की स्पष्ट डिमार्किंग होना अनिवार्य है। लेकिन इन गांवों में यह भी नदारद था।

ब्यावरा ब्लॉक के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत टोडी के सरपंच धनराज गुर्जर भी बताते हैं कि उनकी ग्राम पंचायत में संचालित होने वाली रेत खदानें अवैध हैं। दरअसल सुठालिया सिंचाई परियोजना मंजूर होने के बाद पार्वती नदी के किनारे की जमीनें डूब क्षेत्र में चली गई हैं। जिसके बाद टोडी की यह पूरी जमीन ही शासकीय घोषित हो चुकी है जिस पर यह अवैध खनन जारी है। धनराज आगे कहते हैं,

“शासन चाहे तो इन्हें वैध घोषित करके राजस्व वसूल सकता है। इससे हमारी पंचायत को भी राजस्व मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है। जबकि ये पूरे जिले को पता है कि ये खदानें अवैध रूप से संचालित हो रही हैं।”

बढ़ते रेत खनन के दुष्प्रभाव 

रेत खनन के बाद नदी के तट हुए प्रभावित
रेत खनन की वजह से नदी के तटों को हो रहा है नुकसान Photograph: (ग्राउंड रिपोर्ट)

 अमेरिका के ओजोस निग्रोस रिसर्च ग्रुप द्वारा किया गया शोध कहता है कि, नदी में होने वाले रेत खनन से पर्यावरण और जैव विविधता पर व्यापक प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। इससे जल की गुणवत्ता प्रभावित  होती है, साथ ही जलीय जीवों का आवास भी नष्ट होता है।

रीसर्च के मुताबिक रेत खनन से नदी के तल का क्षरण, तल का मोटा होना, नदी के जल स्तर में कमी, और जलधाराओं में अस्थिरता आती है। रेत खनन नदियों और उसके मुहानों के गहरीकरण का कारण भी बनता है। 

नदी से रेत और ग्रेवल को हटाने से नदी के पानी में प्रदूषण फैलता है और इसका तापमान बढ़ जाता है, जिससे पानी में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है। साथ ही अस्थिर जलधारा के चैनल अधिकांश जलीय प्रजातियों के लिए अनुपयुक्त होते जाते हैं। 

रेत खनन से होने पर्यावरण और जैव विविधता को पहुंचने वाले नुकसान की मिसालें भारत में भरी पड़ी हैं। शोध बताते हैं कि नर्मदा के मुहाने में हिलसा मछली पकड़ने में लगभग 60 फीसदी तक की गिरावट आई है। अगर नर्मदा नदी के संदर्भ में देखा जाए तो इसकी दूधी, तवा और कर्जन जैसी प्रमुख सहायक नदियां खनन और अतिक्रमण के कारण सूख रही हैं। 

सिर्फ दूधी नदी में ही, रेत उत्पादन का अनुमान 72,000 क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष है। नर्मदा के साथ साथ चंबल नदी को भी गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है, जहां खनन गतिविधियों के कारण लगभग 70 प्रतिशत घड़ियालों के घोंसले नष्ट हो गए हैं। 

रेत खनन पर्यावरण के समानांतर आम लोगों के जन जीवन को भी प्रभावित करता है। उदाहरण के तौर पर नर्मदा बेसिन में, मछुआरों की लगभग 50 फीसदी आबादी नदी और तटों पर निर्भर है। अनियंत्रित खनन नर्मदा में मिलने वाली मछली की प्रजातियों को प्रभावित कर रहा है, जिससे सीधे तौर पर इस पर निर्भर मछुआरे प्रभावित हो रहे हैं। 

2016 की गाइडलाइन के अनुसार सैटेलाइट मॉनिटरिंग, रिमोट विज़न ड्रोन और रिमोट सेंसिंग की मदद से अवैध खनन को ‘मॉनिटर’ कर रोका जाना चाहिए। लेकिन ये तकनीकें भी कागज तक ही सीमित दिखती हैं। मामले पर ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए राजगढ़ कलेक्टर गिरीश कुमार मिश्रा कहते हैं,

हम जल्द ही रणनीति तैयार करेंगे और अवैध रूप से हो रहे रेत उत्खनन को रोकने के लिए राजस्व विभाग की टीम को शामिल करेंगे ताकि अवैध रेत खनन पर लगाम लगाई जा सके।

हालांकि राजगढ़ कलेक्टर ने अपने बयान में आगामी भविष्य की रणनीति का जिक्र किया है लेकिन वर्तमान सत्य यही है कि राजगढ़ में अवैध खनन बेधड़क जारी है। राजगढ़ में हो रहा कथित अवैध खनन यहां की नदियों को खोखला, जैव विविधता को नष्ट और इन नदियों पर आश्रित आबादी को खतरे में डाल सकता है।

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  • Abdul Wasim Ansari is an independent journalist based in Rajgarh, Madhya Pradesh, bringing nearly a decade of experience in journalism since 2014. His work focuses on reporting from the grassroots level in the region.

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