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शाहबाद के जंगल में पंप्ड हायड्रो प्रोजेक्ट तोड़ सकता है चीता परियोजना की रीढ़?

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शाहबाद के जंगल में पंप्ड हायड्रो प्रोजेक्ट तोड़ सकता है चीता परियोजना की रीढ़?
शाहबाद के जंगल में पंप्ड हायड्रो प्रोजेक्ट तोड़ सकता है चीता परियोजना की रीढ़?

भारत सरकार की महत्‍वकांक्षी मध्‍यप्रदेश चीता पुनर्वास परियोजना से देश में 70 साल बाद चीतों की वापसी हुई है। यह परियोजना अब एक गंभीर संकट का सामना कर रही है। राजस्‍थान के बारां जिले में स्थित शाहबाद जंगल में प्रस्‍तावित हाइड्रो पावर प्रोजेक्‍ट के लिए 4,28,600  पेड़ों की कटाई की योजना बनाई गई है। इस हाइड्रो पावर प्रोजेक्‍ट योजना ने पर्यावरणविदों, स्‍थानीय समुदायों और वन्‍यजीव संरक्षणवादियों को चिंतित कर दिया है।

उनका मानना है कि यह विनाश सिर्फ कुछ पेड़ों की कटाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मप्र चीता परियोजना के लिए प्रस्‍तावित 17,000 वर्ग किलोमीटर के चीता कॉरिडोर की नींव को कमजोर करने वाला कदम होगा।

मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान और उत्तर प्रदेश के 17 जिलों को जोड़ने वाला यह कॉरिडोर दुनिया का सबसे बड़ा चीता गलियारा बनने की राह पर है। इसमें राजस्‍थान का हिस्‍सा 6,500 वर्ग किलोमीटर शामिल है।

शाहबाद जंगल इस विशाल कॉरिडोर का एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है। इसके विनाश से न केवल इस क्षेत्र की जैव विविधता और कार्बन अवशोषण क्षमता को क्षति होगी। इससे मध्‍य प्रदेश में चीतों की आबादी की दीर्घकालिक सफलता और उनके स्‍वतंत्र विचरण की संभावनाओं पर भी गहरा खतरा मंडरा रहा है। 

क्‍यों महत्‍वपूर्ण है शाहबाद का जंगल 

शाहाबाद के जंगलों को काटकर यहां पंप्ड हायड्रो प्रोजेक्ट लगाया जाएगा
शाहाबाद के घने जंगल

 मध्‍य प्रदेश और राजस्‍थान की सीमा पर स्थित शाहबाद जंगल, कुनो नेशनल पार्क से गांधी सागर अभयारण्‍य तक चीतों की निर्बाध आवाजाही के लिए एक महत्‍वपूर्ण कड़ी है। यह महज कुछ पेड़-पौधों का समूह नहीं, बल्कि जैव विविधता का एक अनमोल खज़ाना है।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने हैदराबाद की कंपनी ग्रीनको एनर्जीज़ प्राइवेट लिमिटेड को शाहबाद तहसील में शाहपुर पंप्ड हायड्रो परियोजना की लिए मंजूरी दी है। य‍ह परियोजना 624.17 हेक्‍टेयर भूमि पर फैली है, जिसमें 408 हेक्‍टेयर जंगल शामिल है। यह जंगल शाहबाद संरक्षण रिजर्व के अंतर्गत आता है।

इस क्षेत्र में वन्‍यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2022 की अनुसूची-1 के तहत संरक्षित प्रजातियां निवास करती हैं। जैसे रस्‍टी स्‍पॉटेड कैट, चिंकारा, धारीदार हाइना जैसी दुर्लभ प्रजातियां। यहां पर अनगिनत औषधीय पेड़-पौधे पाए जाते हैं। यह परियोजना एक ऑफ-स्‍ट्रीम क्‍लोज्‍ड-लूप प्रणाली है, जिसमें दो जलाशय बनाए जाएंगे। निचले जलाशय को भरने के लिए कुनो नदी से पानी पंप किया जाएगा। यह परियोजना 1,800 मेगावाट बिजली उत्‍पादन की क्षमता रखती है। इसमें सात फ्रांसिसी टर्बाइन ( पांच 300 मेगावाट और दो 150 मेगावाट) होगी। 

हालांकि जंगल सालाना लगभग 22.5 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्‍साइड सोखता है, जो भारत के जलवायु परिवर्तन के लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके विपरीत, वैकल्पिक वनीकरण के लिए चुनी गई जैसलमेर की बंजर भूमि केवल 3,500 मीट्रिक टन कार्बन ही अवशोषित कर सकती है, जो पर्यावरण क्षति की तुलना में नगण्‍य है। 

कानूनी-सामाजिक लड़ाई और समुदायों की आजीविका 

शाहाबाद के जंगलों को बचाने के लिए आम नागरिकों को जागरुक किया जा रहा है
शाहाबाद के जंगलों को बचाने के लिए आम नागरिकों को जागरुक किया जा रहा है

शाहबाद के ग्रीमाण इस जंगल को सिर्फ पेड़ों का झुंड नहीं, बल्कि इसे अपनी जीवनरेखा मानते हैं। उनकी इस विनाशकारी परियोजना के खिलाफ कानूनी और सामाजिक स्‍तर पर लड़ाई जारी है। वहीं राजस्‍थान हाईकोर्ट ने अक्‍टूबर 2024 में शाहबाद में इस योजना पर स्‍वत: संज्ञान लेते हुए सरकार से पर्यावरणीय प्रभाव अध्‍ययन के निर्देश दिए हैं।

स्‍थानीय ग्रामीण और पर्यावरण कार्यकर्ता एकजुट होकर इस जंगल को बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। उन्‍होंने #SaveShahbad के नाम से एक अभियान शुरू किया है। इस विरोध-प्रदर्शन में सैंकड़ो लोगों की भागीदारी है, जिसमें महिलाएं और बच्‍चे भी शामिल हैं। रामलाल, जो इसी जंगल के समीप अपना जीवनयापन करते हैं, कहते हैं, 

”हमारा पूरा परिवार इसी जंगल पर निर्भर है। यह हमें दवाइयां देता है, जलाने के लिए लकड़ी देता और हमारी रोजी-रोटी का साधन है। इसे काटना हमारी जिंदगी खत्‍म करने जैसा है।”  

विरोध प्रदर्शनों में अपनी आवाज बुलंद कर रही मीना देवी का कहना है,

“हमारे बच्चों का भविष्य इस जंगल से जुड़ा है। सरकार हमें क्यों बेघर करना चाहती है?” 

हालांकि पर्यावरण कार्यकर्ता इस प्रस्‍तावित कटाई को चीता परियोजना और भारत के जलवायु लक्ष्‍यों के लिए एक गंभीर खतरा मानते हैं। नेशनल अलायंस फॉर क्‍लाइमेट एंड इकोलॉजिकल जस्टिस (NACEJ) की सदस्‍य नीलम अहलूवालिया का कहना हैं, 

”शाहबाद का नष्‍ट होना चीता कॉरिडोर की रीढ़ तोड़ देगा। यह जंगल मध्‍य भारत के फेफड़ों की तरह है और इसे काटना एक अक्षम्‍य अपराध होगा।” 

जलसंरक्षणवादी राजेंद्र सिंह दृढ़ संकल्प के साथ कहते हैं, “हमारी लड़ाई सिर्फ जंगल को बचाने की नहीं है, बल्कि यह हमारे अधिकारों की भी लड़ाई है। हम अपनी आवाज हर मंच पर उठाएंगे।”

चीता कॉरिडोर परियोजना 

चीता कॉरिडोर परियोजना, जो मप्र के कूनो नेशनल पार्क से शुरू होकर राजस्‍थान के मुकुंदरा हिल्‍स टाइगर रिजर्व, रणथंभौर और गांधी सागर अभयारण्‍य तक विस्‍तृत है। भारत के चीता संरक्षण परियोजना के लिए एक म‍हत्‍वपूर्ण कदम है। 

इस कॉरिडोर में मध्‍य प्रदेश में शिवपुरी, श्‍योपुर, ग्‍वालियर, मुरैना, अशोकनगर, गुना, नीमच और मंदसौर शामिल हैं, जबकि राजस्‍थान के बारां, सवाई माधोपुर, कोटा, करौली, झालावाड़, बूंदी और चित्तोड़गढ़ जिले, वहीं उत्तर प्रदेश के झांसी और ललितपुर जिले को शामिल किया गया है। 

यह कॉरिडोर कुल 17,000 वर्ग किलोमीटर का होगा। कॉरिडोर पर काम शुरू हो चुका है, विशेष रूप से कूनो और गांधी सागर के बीच के हिस्‍से पर है। कूनो नेशनल पार्क में 54, 249 हेक्‍टेयर वन क्षेत्र को जोड़ा जा रहा है, जो चीता के लिए आवास को बढ़ाएगा। इस कॉरिडोर को पूरा होने में पांच साल लगने की उम्‍मीद है। 

इसके अलावा राजस्‍थान और मध्‍य प्रदेश के बीच एक संयुक्‍त समिति बनाई गई है, जो कॉरिडोर के विकास और प्रबंधन के लिए जिम्‍मेदार है। इस समिति में दोनों राज्‍यों के मुख्‍य वन्‍यजीव वार्डन, चीता परियोजना के निदेशक और वन्‍यजीव संस्‍थान, देहरादून के प्रतिनिधि शामिल हैं। समिति का कार्य काॅरिडोर के लिए एक समझौता पत्र तैयार करना, संयुक्‍त पर्यटन मार्गों का मूल्‍यांकन करना और चीतों की आवाजाही के लिए उपाय सुझाना है। 

Project Cheetah and Corridor
Picture Courtesy X/Ramesh Pandey IFS

कैसे प्रभावित होगा चीताें का भविष्‍य 

कुनो नेशनल पार्क में 2022 में शुरू हुई चीता परियोजना के तहत नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से 20 चीतों को लाया गया था, लेकिन दुर्भाग्‍य से उनमें से 10 ( सात वयस्‍क, तीन शावक) की मृत्‍यु हो चुकी है। जोकि मुख्‍य रूप से बीमारी, पर्यावरण अनुकूलन की कमी और प्राकृतिक कारणों से हुई है। वर्तमान में, कुनो में 13 चीतों की आबादी है और परियोजना का लक्ष्‍य 2035 तक 50-60 चीतों की स्थिर आबादी स्‍थापित करना है। हालांकि वन्‍यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि ए‍क विस्‍तृत कॉरिडोर के बिना चीतों का दायरा सीमित रहेगा, जिससे इस महत्‍वाकांक्षी परियोजना की दीर्घकालिक सफलता खतरे में पड़ सकती है। शाहबाद में प्रस्‍तावित पंप्ड  हाइड्रो पावर प्रोजेक्‍ट इस जोखिम को और बढ़ा देगा, क्‍याेंकि यह चीतों के आवागमन के लिए एक महत्‍वपूर्ण कड़ी है। 

राष्‍ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की 2024 की रिपोर्ट भी इस कॉरिडोर की आवश्‍यकता को रेखांकित करती है, क्‍योंकि कूनो से चीतों का राजस्‍थान और उत्तर प्रदेश की सीमाओं तक पहुंचना शुरू हो गया है।

जंगलों की रक्षा को राष्‍ट्रीय प्राथमिकता बताते हुए वन्‍यजीव वैज्ञानिक डॉ. यदवेंद्रदेव स्‍पष्‍ट रूप से कहते हैं, 

”चीता काॅरिडोर का विस्‍तार चीतों को बड़े क्षेत्र में फैलने का मौका देगा। यह उनकी आबादी के विकास के लिए आवश्‍यक है। परंतु शाहबाद जैसे संवेदनशील जंगलों का नुकसान इस कॉरिडोर को खंडित कर देगा।”

शाहबाद में प्रस्‍तावित हाइड्रो पावर प्रोजेक्‍ट से होने वाले विनाश के दूरगामी परिणामों की ओर इशारा करते हुए पर्यावरणविद् डॉ. रवि शर्मा कहते हैं, 

”शाहबाद के जंगल को उजाड़ने से न केवल चीतों का भविष्‍य खतरे में है। यह भारत के कार्बन न्‍यूट्रैलिटी लक्ष्‍यों को भी गंभीर रूप से प्रभावित करेगा। चार लाख पेड़ों की कटाई का जलवायु पर पड़ने वाला नकारात्‍मक प्रभाव बहुत बड़ा होगा।” 

वैकल्पिक रास्‍ते

उप वन संरक्षक अनिल यादव से पेड़ों की कटाई रोकने की मांग
उप वन संरक्षक अनिल यादव से पेड़ों की कटाई रोकने की मांग

विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने सरकार से इस विनाशकारी परियोजना के विकल्‍प तलाशने की पुरजोर अपील की है। बंजर भूमि पर परियोजनाएं शुरू करने, छोटे हाइड्रो प्रोजेक्‍ट या ऑफ-ग्रिड सौर प्रणाली जैसे तकनीकी सामाधन की वकालत करते हुए डॉ. यदवेंद्रदेव कहते हैं 

”विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना संभव है, बस सही नीतियां और इच्‍छाशक्ति की आवश्‍यकता है।” 

वहीं नीलम अहलूवालिया स्‍थानीय समुदायों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करने और टिकाऊ विकास मॉडल बनाने पर जोर देती हैं। नीलम का मानना हैं,

”सामुदायिक वन प्रबंधन से न केवल जंगल की रक्षा की जा सकती है, बल्कि ग्रामीणों की आजीविका भी सुनिश्चित की जा सकती है।” 

कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह सरकार से ग्रामीणों के साथ मिलकर काम करने और सामुदायिक ऊर्जा परियोजनाएं शुरू करने का आग्रह करते हैं, जिससें जंगल को बचाया जा सके। 

निष्‍कर्ष

चीता कॉरिडोर का विस्‍तार निश्चित रूप से भारत के वन्‍यजीव संरक्षण के प्रयासों में एक म‍हत्‍वपूर्ण उपलब्धि हो सकती है, लेकिन शाहबाद जंगल में प्रस्‍तावित हाइड्रो पावर प्रोजेक्‍ट से 4 लाख पेड़ों की कटाई इस म‍हत्‍वपूर्ण परियोजना को पटरी से उतार सकती है।

ग्रामीणों की मांग, पर्यावरण कार्यकर्ता और विशेषज्ञों की गंभीर चेतावनी एक ही दिशा में इशारा करते हैं। विकास और संरक्षण के बीच एक नाजुक संतुलन बनाना अत्‍यंत आवश्‍यक है। 

यह सिर्फ चीतों या एक जंगल को बचाने की लड़ाई नहीं है। यह भारत के पर्यावरणीय भविष्‍य और स्‍थानीय समुदायों के अधिकारों की लड़ाई है। अब यह देखना महत्‍वपूर्ण होगा कि सरकार विकास के इस विनाशकारी रास्‍ते को छोड़कर कोई वैकल्पिक और टिकाऊ रास्‍ता चुनती है या हम अपनी बहुमूल्‍य प्राकृतिक धरोहर को हमेशा के लिए खो देते हैं। 

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  • Based in Bhopal, this independent rural journalist traverses India, immersing himself in tribal and rural communities. His reporting spans the intersections of health, climate, agriculture, and gender in rural India, offering authentic perspectives on pressing issues affecting these often-overlooked regions.

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