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जल संकट: मध्य प्रदेश के 6 जिलों में 100% से ज़्यादा हो रहा भूजल दोहन

जल संकट: मध्य प्रदेश के 6 जिलों में 100% से ज़्यादा हो रहा भूजल दोहन
जल संकट: मध्य प्रदेश के 6 जिलों में 100% से ज़्यादा हो रहा भूजल दोहन

मध्य प्रदेश में पानी की कमी अप्रैल का महीना शुरू होते ही नजर आने लगी है। बालाघाट, भोपाल और इंदौर में भूजल (ground water) बचाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा बोरवेल की खुदाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। मगर यह कदम आग लगने पर कुएं खोदने जैसा है। ऐसा इसलिए क्योंकि मध्य प्रदेश के भूजल के आंकड़ों के अनुसार इंदौर सहित प्रदेश के कुल 6 जिले ऐसे हैं जहां भूजल का दोहन 100% से भी ज़्यादा हो रहा है। 

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दरअसल मध्य प्रदेश के 52 जिलों के 317 ब्लॉक्स में वाटर असेसमेंट यूनिट लगे हुए हैं। ये बारिश के पानी, भूजल और उसके दोहन से जुड़ी सारी जानकारी इकट्ठा करते हैं। इन 317 यूनिट्स में पानी की स्थिति के आधार पर अलग-अलग चार श्रेणियां बनाई हैं। इनमें 225 यूनिट्स सुरक्षित श्रेणी (Safe), 61 अर्ध गंभीर (Semi Critical), 5 गंभीर (Critical) और 26 अत्यधिक शोषित (Over Exploited) श्रेणी में शामिल हैं।

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भूजल के दोहन के आधार पर जिन यूनिट्स में 70 प्रतिशत के बराबर या उससे कम भूजल का दोहन किया जाता है उसे सुरक्षिण श्रेणी में रखा जाता है। दूसरी श्रेणी जहां 70 से 90 प्रतिशत के बीच भूजल दोहन होता है उसे अर्ध गंभीर कहते हैं। तीसरी श्रेणी में 90 से 100 प्रतिशत तक भूजल का शोषण हो चुका होता है ऐसी यूनिट्स को गंभीर श्रेणी में रखा जाता है। आखिरी श्रेणी 100 प्रतिशत से अधिक जल दोहन को बतलाती है, इसे अत्यधिक शोषित श्रेणी कहते हैं।

इंदौर, मंदसौर, नीमच, रतलाम, शाजापुर और उज्जैन मध्य प्रदेश के वे जिले हैं, जो अपने भूजल रीचार्ज (ground water recharge) की तुलना में 100 प्रतिशत से अधिक भूजल का दोहन कर रहे हैं। साल 2023 और 2024 में इन जिलों में भूजल का दोहन अत्यधिक रहा है, जो भविष्य के संकट की ओर इशारा करता है।

इन जिलों के अलावा प्रदेश की कुल 26 यूनिट्स हैं जहां भूजल रीचार्ज का 100 प्रतिशत से अधिक दोहन किया जा रहा है। गौरतलब है कि राज्य का कुल वार्षिक भूजल रीचार्ज 35.90 बीसीएम है, जिसमें से निकालने योग्य जल 33.99 बीसीएम है लेकिन 19.85 बीसीएम निकाला गया। इसे और आसान भाषा में समझें तो प्रदेश में कुल भूजल का 58.4 प्रतिशत हिस्सा निकाला जा चुका है।

केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की डायनामिक ग्राउंड वाटर रिसोर्स ऑफ इंडिया 2024 की रिपोर्ट के हिसाब से साल 2024 में 1051.9 मिमी की औसत वर्षा दर आंकी गयी है। वहीं साल 2023 की वार्षिक औसत वर्षा दर 1077.5 मिमी रही थी। जबकि मध्य प्रदेश की समान्य वर्षा दर 1040.4 मिमी है यानि भूजल दोहन की क्षतिपूर्ति के मौके भी प्रदेश के पास कम ही हैं।

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राज्य के भूजल में मामूली वृद्धि

केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट्स के आधार पर साल 2024 और 2023 की तुलना पर पता चलता है कि राज्य में भूजल रीचार्ज में 1.2 प्रतिशत की मामूली वृद्धि ही हुई है। जबकि भूजल के दोहन में 2.8 प्रतिशत की बढ़त देखी गयी है। वहीं प्रदेश के 6 जिले और 26 यूनिट्स ऐसी हैं जहां दोनों सालों में भूजल का इस्तेमाल 100 प्रतिशत से अधिक हुआ है। राज्य की कुल 317 यूनिटों में से 1 यूनिट में ही श्रेणी सुधार दर्ज किया गया है, जबकि दो यूनिटों में श्रेणी की गिरावट दर्ज की गई है। यह दोनों क्रमवार गुना और रीवा जिलों की चचौरा व रामपुर करचुलियां हैं। जिस एक यूनिट में सुधार देखा गया है, वह उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे प्रदेश के सबसे छोटे जिले की निवाड़ी यूनिट है।

भारत में भूजल की स्थिति

इस रिपोर्ट में गौर करने वाली बात ये है कि पंजाब, राजस्थान, दादरा नगर हवेली एवं दमन दीव, हरियाणा और दिल्ली ऐसे राज्य हैं जो भूजल की अत्यधिक शोषित श्रेणी (Over Exploited) में आते हैं। इनमें सबसे अधिक भूजल का इस्तेमाल पंजाब कर रहा है। गौरतलब है कि पूरे भारत के आंकड़ों को देखें तो भारत में कुल भूजल निकासी 60 प्रतिशत है, लेकिन इन राज्यों में भूजल निकासी 100 प्रतिशत को पार कर चुकी है। यानि यह राज्य ऐसे हैं जहां भूजल का दोहन राष्ट्रिय औसत से भी ज़्यादा हुआ है।

देश के सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में दादरा नगर हवेली और दमन दीव ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जो भूजल का सबसे बड़ा हिस्सा उद्योगों में खर्च करता है। यहां का भूजल रीचार्ज और निकासी योग्य पानी की मात्रा 0.12 बिलियन क्यूसिक मीटर है, जबकि यहां 0.16 बीसीएम भूजल निकाला जा रहा है, जो कि 142 प्रतिशत होता है। साल 2024 की तरह 2023 में भी यहां भूजल दोहन की स्थिति लगभग ऐसी ही थी।

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अगर देशभर की बात करें तो दादरा नगर हवेली और दमन दीव के अलावा कई राज्य जहां भूजल का दोहन बहुत बढ़ा हुआ है। वहीं देश में कोई भी राज्य ऐसा नहीं है जिसे क्रिटिकल कैटेगरी में शामिल किया गया हो। जबकि चंडीगढ़, पुडुचेरी, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश को सेमी क्रिटिकल कैटेगरी में रखा गया है। इन राज्यों में भूजल का 70 से 90 प्रतिशत हिस्सा शोषित किया जा चुका है। जबकि शेष राज्यों को सेफ कैटेगरी में रखा गया है। यह वह राज्य हैं जहां भूजल के 70 प्रतिशत से भी कम हिस्से का इस्तेमाल हुआ है।

आंकड़ों से पता लगता है कि साल 2024 में 446.9 बीसीएम भूजल बचाया गया। वहीं साल 2023 में इसकी मात्रा 449.08 बीसीएम रही। मतलब साफ है कि भूजल को रीचार्ज करने में 2024 में मामूली गिरावट आई है। इसी रिपोर्ट के अनुसार निकालने योग्य भूजल की मात्रा साल 2024 में 406.19 बीसीएम रही। और साल 2023 में निकालने योग्य भूजल की मात्रा 407.21 बीसीएम रही थी। यानि की निकालने योग्य भूजल की मात्रा में मामूली गिरावट दर्ज की गई है।

लेकिन साल 2022 के पुराने आंकड़ों से 2023 के आंकड़ों की तुलना करें तो भूजल पुनर्भरण (बचाए हुए भूजल) और निकालने योग्य भूजल की मात्रा में ठीक-ठाक सुधार दर्ज किया गया था। लेकिन साल 2023 और 2024 के आंकड़ों की तुलना में साफ गिरावट देखा जा सकती है।

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प्रदेश में 2020-21 की तुलना में 2021-22 में धान के रकबे में 12 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। Photograph: (Manvendra Singh Yadav/Ground Report)

कहां इस्तेमाल हो रहा भूजल?

पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भूजल के आंकड़ों को देखने पर यह सवाल मन में आता है कि आखिर इन राज्यों में भूजल का इतना शोषण हो क्यों रहा है? दरअसल देश के इन हिस्सों में सबसे ज्यादा भूजल धान की खेती के लिए निकाला जा रहा है। एक किलो धान उगाने में औसतन 2500 लीटर पानी लगता है यानि धान की खेती भूजल पर दवाब बढ़ाती है। फिर ऐसे क्षेत्रों में भूजल स्तर में गिरावट भी देखी जाती है।

अकेले पंजाब की बात करें तो खरीफ़ सीजन 2023-24 में यहां 32.23 लाख हेक्टेयर में धान की खेती हो रही थी। जो इसके पहले के खरीफ़ सीजन की तुलना में अधिक है। जबकि 1986 में अर्थशास्त्री एसएस जोहल की अध्यक्षता में बनी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पंजाब के कम से कम 20 प्रतिशत धान और गेहूं के रबके को अन्य किसी फसल में बदला जाना चाहिए ताकि पारिस्थितिक स्थिरता और भूजल संरक्षण को सुनिश्चित किया जा सके।

यह बात गौर करने वाली है कि मध्य प्रदेश में भी बीते कुछ सालों में धान का रकबा बढ़ा है। साल 2020-21 की तुलना में 2021-22 में धान के रकबे में 12 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। साथ ही यहां धान का उत्पादन भी बढ़ा है। यहां 2022 में उत्पादन 4810 टन था, जबकि साल 2023 में भारी उछाल के साथ यह 7020 टन पहुंच गया।

मगर धान और इस तरह की वाटर इंटेंसिव फसलों का बढ़ता रकबा प्रदेश के भूजल पर अत्यधिक दबाव भी डालता है। ऐसे में ज़रूरी है कि प्रदेश में भूजल के संरक्षण को लेकर बनने वाले प्लान में कृषि उत्पादों पर विशेष जोर दिया जाए।

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  • Manvendra Yadav, an IIMC Dhenkanal alumnus with a Post Graduate Diploma in English Journalism, brings stories from Bundelkhand to life. His deep connection to the region fuels his passion for amplifying untold regional narratives.

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