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क्यों मर गईं 60 हज़ार से ज़्यादा अफ्रीकी पेंग्विन?

Production: Himanshu Narware

यह ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ के डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट का 87वां एपिसोड है। बुधवार, 10 दिसंबर को देश भर की पर्यावरणीय ख़बरों के साथ पॉडकास्ट में जानिए 60 हज़ार अफ़्रीकी पेंग्विन की मौत का कारण बताने वाली रिसर्च और प्लास्टिक प्रदूषण से जुड़ी वार्निंग के बारे में।


मुख्य सुर्खियां

2025 जलवायु इतिहास का दूसरा सबसे गर्म साल बन सकता है। कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2025 अब तक का तीसरा सबसे गर्म नवंबर रहा।


राष्ट्रीय जीन बैंक और आईसीएआर ने मिलकर 1 लाख से भी ज़्यादा विलुप्त या संकटग्रस्त फसल विविधताओं का संरक्षण किया है। इनमें साढ़े 85,000 देसी किस्में भी शामिल हैं।


बाढ़, चक्रवात और भारी बारिश जैसी आपदाओं के कारण 2024 में 13.11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की फसलें प्रभावित हुईं है।


साल 2024 में भारत में लगभग 21.7 लाख टीबी मरीज और तीन लाख मौतें दर्ज की गईं।


कोडीन-बेस्ड कफ सिरप की गैर-कानूनी बिक्री, स्टोरेज और ऑर्गनाइज़्ड ट्रैफिकिंग की जांच के लिए यूपी सरकार ने तीन मेंबर वाली SIT का गठन किया।


टाटा पावर ओडिशा में ₹10,000 करोड़ के इन्वेस्टमेंट के साथ 10 GW का सोलर इंगोट और वेफर मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाएगी। कंपनी को 20 साल के लिए बिजली ड्यूटी में 100% छूट और ₹2 प्रति यूनिट बिजली टैरिफ सब्सिडी भी मिलेगी।


इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक खबर में बताया कि केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने NHPC के सुबनसिरी लोअर हाइडल प्रोजेक्ट से जुड़े एक प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। इस प्रोजेक्ट की लागत 300% से ज़्यादा बढ़ गई है। NTPC ने फंड जुटाने के लिए जंगल की ज़मीन पर मौजूद एसेट्स को कोलैटरल के तौर पर इस्तेमाल करने का प्रस्ताव दिया था।


विस्तृत चर्चा

60 हजार से अधिक अफ़्रीकी पेंगुइन की मौत

एक नए अध्ययन का अनुमान है कि 2004 से 2011 के बीच दक्षिण अफ्रीका के तट के पास Dassen और Robben द्वीपों पर प्रजनन करने वाले लगभग 62,000 अफ्रीकी पेंगुइन (Spheniscus demersus) भुखमरी से मर गए। इसकी वजह थी उनका मुख्य भोजन सार्डीन (Sardinops sagax) का भयानक स्तर पर गिर जाना, जो Cape Agulhas के पश्चिम में अपनी अधिकतम संख्या के 25% से भी नीचे आ गया था। यह मरने वाली संख्या उन कॉलोनियों में 2004 में मौजूद प्रजनन करने वाले लगभग 95% पेंगुइनों के बराबर थी। Ostrich: Journal of African Ornithology में प्रकाशित इस रिसर्च में इन मौतों को सीधे-सीधे उस समय होने वाली लंबे समय की खाने की कमी से जोड़ा गया है, खासकर सालाना 21 दिन की मोल्ट (moult) अवधि में, जिसमें पेंगुइन तैर नहीं सकते और खाना नहीं खोज सकते।

अफ्रीकी पेंगुइन मोल्ट शुरू होने से पहले करीब 35 दिनों तक फैट जमा करते हैं। इस दौरान उनका वज़न प्रजनन करने वाले एडल्ट्स के मुकाबले लगभग 31% तक बढ़ जाता है, क्योंकि मोल्ट में वो लगभग 47% बॉडी मास खो देते हैं इसमें मसल्स भी शामिल हैं। पंख गिरने की इस अवधि में उनकी तैरने की रफ़्तार 19 km/h से घटकर 10 km/h रह जाती है।

मोल्ट के बाद उन्हें करीब 42 दिन तक लगातार भरपूर शिकार मिलता रहे, तभी वे अपनी हालत वापस बना पाते हैं; वरना उनकी ऊर्जा बहुत तेज़ी से गिरती है और मौत हो सकती है। कैप्चर-मार्क-रीकैप्चर एनालिसिस से मिले सर्वाइवल रेट और कॉलोनी में वापसी के डेटा ने साफ दिखाया कि ये सब उस इलाके में शिकार की उपलब्धता से सीधा जुड़ा हुआ है।

सार्डीन की आबादी गिरने के पीछे दो बड़ी वजहें थीं: क्लाइमेट चेंज, ज़्यादा मछली पकड़ना। 2005–2010 में exploitation rate 20% से ऊपर रहा और 2006 में Cape Agulhas के पश्चिम में यह 80% की चोटी पर पहुँच गया।


2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण दोगुना

एक नई रिपोर्ट चेतावनी दे रही है कि प्लास्टिक प्रदूषण अगले 15 सालों में तबाही की रफ्तार से बढ़ेगा। पीयू चैरिटेबलिटी ट्रस्ट द्वारा जारी “ब्रेकिंग द प्लास्टिक वे 2025” एनालिसिस के मुताबिक 2025 में हर साल लगभग 130 मिलियन टन प्लास्टिक हवा, पानी और मिट्टी को दूषित करेगा। 2040 तक यह आंकड़ा 280 मिलियन टन तक पहुँच सकता है, यानी हर दो सेकंड में एक कूड़ागाड़ी के बराबर प्लास्टिक धरती पर फेंका जा रहा हो।

सबसे बड़ा योगदान पैकेजिंग और कपड़ों से आ रहा है, क्योंकि ई-कॉमर्स, डिलीवरी और शॉपिंग बढ़ने के साथ सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का कचरा लगातार बढ़ रहा है। माइक्रोप्लास्टिक भी तीव्र गति से फैल रहे हैं। टायर के घिसने, पेंट, और रीसाइक्लिंग प्रक्रिया तक हर स्रोत से छोटे-छोटे प्लास्टिक कण हवा और पानी में मिल रहे हैं।

वैज्ञानिक साक्ष्य साफ़ बताते हैं कि प्लास्टिक में मौजूद रसायन इंसानी सेहत पर सीधा हमला करते हैं। कैंसर, दिल की बीमारियाँ, अस्थमा, और प्रजनन क्षमता प्रभावित होना इसके प्रमुख असर हैं। रिपोर्ट का अनुमान है कि 2025 से 2040 के बीच “हेल्दी लाइफ ईयर” में भारी कमी दर्ज की जा सकती है। वहीं प्लास्टिक मुख्यतः तेल से बनता है, जिससे ग्रीनहाउस गैसें भी तेजी से बढ़ेंगी। 2040 तक यह उत्सर्जन 1 बिलियन लीटर तेल जलाने के बराबर पहुँच सकता है।

सबसे बड़ी समस्या यह है कि कचरा प्रबंधन की क्षमता प्लास्टिक उत्पादन की रफ्तार से आधी भी नहीं है। 2040 तक प्लास्टिक बनना दो गुना तेज़ हो जाएगा और अधिकतर कचरा अंततः समुद्र में पहुँचकर समुद्री पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचाएगा।

रिपोर्ट कहती है कि अगर तुरंत वैश्विक स्तर पर एक्शन लिया जाए तो प्लास्टिक प्रदूषण को 83% तक कम किया जा सकता है। इसके लिए सबसे अहम है नए प्लास्टिक का उत्पादन घटाना, पैकेजिंग को दोबारा उपयोग-योग्य बनाना, सप्लाई चेन में प्लास्टिक की पारदर्शिता बढ़ाना, माइक्रोप्लास्टिक स्रोतों पर कड़े कानून बनाना और कंपनियों को सुरक्षित सामग्री अपनाने के लिए बाध्य करना। साथ ही लोगों को भी व्यक्तिगत स्तर पर प्लास्टिक का उपयोग कम करना होगा।

भारत में प्लास्टिक बैन की बात जरूर कही जाती है, लेकिन हकीकत ये है कि पॉलिथीन बैग, प्लास्टिक बॉक्स, और छोटे पैकेटों वाली पैकेजिंग हर दुकान पर खुलकर बिक रही है। रिपोर्ट विशेषज्ञों को साफ़ दिखाई देता है कि जब तक सरकार कठोर कार्रवाई न करे और लोग खुद से प्लास्टिक घटाने की शुरुआत न करें, प्लास्टिक संकट और खतरनाक रूप लेता जाएगा।

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We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

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