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क्या हैं Uniform Civil Code के लागू होने में संवैधानिक दिक्कतें?

क्या हैं Uniform Civil Code के लागू होने में संवैधानिक दिक्कतें?
क्या हैं Uniform Civil Code के लागू होने में संवैधानिक दिक्कतें?

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यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) यानि सामान नागरिक संहिता. एक ऐसा मुद्दा जो आज कल हर किसी की ज़बान पर है. सत्ता में स्थित बीजेपी के लिए यह ‘एक देश एक विधान’ के नारे को सार्थक करने का प्रयास है तो वहीँ विपक्ष के लिए यह बीजेपी के उस सांप्रदायिक एजेंडे का हिस्सा है जिसके माध्यम से वह आगामी लोकसभा चुनाव में ध्रुवीकरण कर सकेगी. पक्ष-विपक्ष की राजनीति से इतर इसका एक संवैधानिक पक्ष भी है.

Uniform Civil Code और संविधान      

किसी भी देश में 2 तरह के कानून होते हैं. एक क्रिमिनल लॉ जिसे फौजदारी मामले कहा जाता है. इसके अंतर्गत हत्या, लूट, बलात्कार आदि केस आते हैं. इसके अलावा सिविल मामले होते हैं. इसके अंतर्गत विभिन्न सम्प्रदायों के लोगों की शादी, तलाक या संपत्ति आदि से जुड़े हुए मसले आते हैं. भारत में अलग-अलग सम्प्रदायों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं. जैसे मुस्लिम पर्सनल लॉ, हिन्दू पर्सनल लॉ (Hindu Succession Act 1956) और भी अन्य. इन पर्सनल लॉ के अनुसार हर संप्रदाय को विवाह, तलाक और संपत्ति से जुड़े हुए अलग-अलग अधिकार मिले हुए हैं. यूनिफार्म सिविल कोड इस विभिन्नताओं को ख़त्म करके एक ही तरह के अधिकार देने की वकालत करता है. 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 राज्य को यूनिफार्म सिविल कोड लाने के बारे में बात करता है. मगर अनुच्छेद 44 संविधान में वर्णित नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है. इसका अर्थ यह हुआ कि संविधान राज्य से यह उम्मीद करता है कि वह नीतियाँ बनाते हुए इन तत्वों का ख्याल रखेगा. राज्य यानि सरकार ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं है. इसके अलावा अनुच्छेद 44 के मूल में समाज के उस तबके की हितों की रक्षा का भाव निहीत है जो किसी भी कारण शोषण झेल रहे हैं. 

क्या हैं संवैधानिक दिक्कतें

इसके बाद भी यूनिफार्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) के लिए राह इतनी आसान नहीं है. हालाँकि केंद्र सरकार द्वारा यूनिफार्म सिविल कोड का अब तक कोई मसौदा नहीं तैयार किया गया है मगर ऐसा माना जा रहा है कि उसके लागू होने के बाद पर्सनल लॉ खत्म होंगे और सभी धर्म के लोगों को एक ही तरह से शादी, तलाक और संपत्ति के अधिकार मिलेंगे. विशेषज्ञों का कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है. इसके अलावा यह अनुच्छेद 25 के तहत मिली धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का भी उल्लंघन करता हुआ दिखता है. 

लॉ कमीशन और यूसीसी     

मध्यप्रदेश में अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह संकेत दिए थे कि सरकार आने वाले दिनों में यूसीसी पर विचार करेगी. आगामी दिनों में संसद का मानसून सत्र है ऐसे में अटकलें यह है कि इस सत्र में यूसीसी का कोई मसौदा पेश किया जा सकता है. इस मसौदे को तैयार करने और इस विषय पर पुनर्विचार करने के उद्देश्य से बीते महीने यानि 14 जून को लॉ कमीशन ऑफ़ इंडिया की ओर से एक सूचना जारी की गई जिसमें लोगों से यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) पर उनके विचार मांगे गए थे. 

इससे पहले 21वें विधि आयोग ने इस विषय पर विचार किया था और ‘पारिवारिक कानून में सुधार’ नाम से एक परामर्श पत्र (consultation paper) जारी किया था. इसमें आयोग ने साल 2018 में यूनिफार्म सिविल कोड पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इस वक़्त यह कोड न तो ज़रूरी है और न ही आपेक्षित है. आयोग के तत्कालीन प्रमुख और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बी एस चौहान ने कहा था कि सेक्युलिज्म शब्द का अर्थ इस बात में  निहीत है कि उसमें सभी भिन्नताएँ भी स्वीकार्य होती होती हैं. यूसीसी को लागू नहीं करने के पीछे एक तर्क यह भी रखा गया था कि धार्मिक और क्षेत्रीय विभिन्नताओं को बहुसंख्यक आवाज़ के आगे दबाया नहीं जा सकता.     

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