हमारे घरों से लेकर मोबाइल तक, हर चीज़ में रेत का इस्तेमाल होता है। यह रेत नदियों से निकाली जाती है, लेकिन अक्सर कानूनी सीमा से ज्यादा खनन हो जाता है। इससे नदियों का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है और बाढ़ की समस्या बढ़ती है।
2016 में केंद्र सरकार ने एक नियम बनाया था कि जहां भी रेत खनन होता है, वहां डिस्ट्रिक्ट सर्वे रिपोर्ट (डीएसआर) होना जरूरी है। यह दस्तावेज़ बताता है कि नदी के किस हिस्से में खनन सुरक्षित है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि बिना वैज्ञानिक जांच के नदियों में खनन की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि पहले यह पता लगाना होगा कि नदी में प्राकृतिक रूप से कितनी रेत वापस आती है।
समस्या यह है कि डीएसआर एक सार्वजनिक दस्तावेज़ है, लेकिन मध्य प्रदेश में आधे से ज्यादा डीएसआर न तो साफ पढ़े जा सकते हैं और न ही हिंदी में हैं। छतरपुर का डीएसआर देखकर यह समझना मुश्किल है कि कहाँ खनन वैध है। कई जिलों में तो डीएसआर उपलब्ध ही नहीं है।
मध्य प्रदेश में रेत माफिया की समस्या गंभीर है। आम लोगों से लेकर अधिकारियों तक सभी इसके शिकार हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला अच्छा है, लेकिन इसका सही इस्तेमाल जरूरी है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी जगह के डीएसआर बनें, अपडेट हों, सार्वजनिक हों और आसानी से पढ़े जा सकें।
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