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क्या राइडरशिप मेंटेन कर पाएगी भोपाल मेट्रो?

भोपाल मेट्रो का कॉमर्शियल रन 21 दिसंबर को शुरू हो जाएगा। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने हालिया कैबिनेट मीटिंग के बाद इसकी घोषणा की है। भोपाल में मेट्रो की पहली घोषणा 2017 में हुई थी। उस दौरान इसके फेज़ 1 की अनुमानित लागत 6,941 करोड़ रूपए थी। मगर समय बढ़ता रहा और इसका कॉमर्शियल रन टलता रहा। 5 बार टलने के बाद अब उम्मीद है कि शहर के लोग मेट्रो का लाभ ले सकेंगे।

कौन से रूट और कितना किराया?

अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार भोपाल में पहला मेट्रो रूट सुभाष नगर से एम्स (AIIMS) तक होगा। हालांकि प्रोजेक्ट के पहले फेज़ में करोंद चौराहा से एम्स (ऑरेंज लाइन) और भदभदा चौराहा से रत्नागिरी तिराहा (ब्लू लाइन) तक रेल सुविधा दी जानी है। इसे और आसन करें तो भोपाल में मेट्रो के फेज़-1 में 30।17 किमी के रेल रूट में कुल 30 मेट्रो स्टेशन होंगे।

हालांकि 21 दिसंबर से केवल 6।2 किमी के रूट में ही संचालन होगा। 2 साल पहले सुभाष नगर से रानी कमलापति स्टेशन के बीच पहला ट्रायल रन किया गया था। 

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार पहले 7 दिनों तक मेट्रो सेवा निःशुल्क रहेगी। उसके बाद 3 महीनों तक क्रमशः 75%, 50% और 25% की छूट दी जाएगी। मेट्रो की ऑरेंज लाइन पूरी तरह ऑपरेशनल होने पर किराया 20 रूपए से लेकर 80 रूपए तक होगा। 

21 दिसंबर को 3 कोच वाली मेट्रो के उद्घाटन में केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहरलाल खट्टर और मुख्यमंत्री डॉ। मोहन यादव मौजूद होंगे जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअली कार्यक्रम में जुड़ सकते हैं।

उद्घाटन में देर और बढ़ता बजट 

भोपाल मेट्रो के बारे में पहली बार बात 2017 में शुरू हुई। हालांकि इस पर आधिकारिक काम 2018 में होना शुरू हुआ। इस दौरान इससे जुड़े हुए पुनर्वास का प्रारंभिक बजट ही 446.87 करोड़ रूपए आंका गया था। वहीं पूरे प्रोजेक्ट का प्रारंभिक बजट 6,941 करोड़ था जो बढ़कर 10,033 करोड़ रूपए पहुंच चुका है।

केंद्र द्वारा भोपाल मेट्रो के लिए दिया गया फंड (Column Chart)

इस प्रोजेक्ट को केंद्र सरकार और यूरोपीय इन्वेस्टमेंट बैंक ने वित्तपोषित किया है। 2025 में केंद्र सरकार ने भोपाल मेट्रो को 1868.66 करोड़ रूपए का फंड आवंटित किया था। जिसमें से अब तक 270 करोड़ रूपए दिए जा चुके हैं। जबकि बीते 5 सालों में कुल 1879.58 करोड़ रूपए दिए गए हैं।

भोपाल के रहने वाले जगदीश विश्वकर्मा इस देरी के बाद भी मेट्रो को लेकर हुई हालिया घोषणा से खुश हैं। वह कहते हैं, 

“ठेकेदारों के कारण देर होता रहता है मगर हमें इससे कोई समस्या नहीं है।”

एक अन्य नागरिक एकनाथ पाटिल भी कहते हैं कि चूंकि मेट्रो के ट्रैक बनाते हुए अतिक्रमण हटाने में बहुत समय ज़ाया हुआ है इसलिए देर हुई है। भोपाल के अलग-अलग हिस्सों के लोगों से बात करते हुए यह सभी लोग मेट्रो के संचालन से बेहद खुश नज़र आते हैं।

गीता बाई एमपी नगर में चाय की दुकान लगाती हैं। जहां 2 साल पहले उनकी दुकान थी अब वहां बोर्ड ऑफिस मेट्रो स्टेशन बन चुका है। वह कहती हैं, “जब मेट्रो स्टेशन बनना शुरू हुआ तो मैंने खुद ही अपनी दुकान उठा ली थी। मैं खुश थी कि मेट्रो बन रही है।” वह कहती हैं कि जब मेट्रो के लिए लोग जाएंगे तो उनकी दुकान के सामने से ही गुजरेंगे। यानि वह आशांवित हैं कि मेट्रो से उनके व्यापार को फायदा होगा। 

क्या मेंटेन हो पाएगी राइडरशिप? 

साल 2014 तक भारत में कुल 248 किमी का मेट्रो नेटवर्क था जो 2025 तक बढ़कर 1013 किमी हो गया। 2014 में जहां केवल 5 शहरों में मेट्रो का संचालन हो रहा था वहीं अब 23 शहरों में मेट्रो सेवाएं शुरू की जा चुकी हैं। इसमें 2024 में शुरू हुई अंडर वाटर मेट्रो और कोच्ची की वाटर मेट्रो भी शामिल है।    

मगर इन सरकारी आंकड़ों के अलावा यह भी सच है कि कई मेट्रो प्रोजेक्ट पर्याप्त राइडरशिप न मिलने की समस्या से जूझ रहे हैं। उदाहरण के लिए इंदौर मेट्रो को लेते हैं। इंदौर मेट्रो का उद्घाटन 31 मई 2025 को पीएम नरेंद्र मोदी ने किया था। मगर एक महिना बाद से ही इसकी राइडरशिप घटने लगी। 

1 जून से 7 जून तक लगभग 1.5 लाख लोगों ने इंदौर मेट्रो को इस्तेमाल किया। मगर जून के दूसरे हफ्ते में 75% डिस्काउंट के बाद भी राइडरशिप घटकर 35,000 हो गई। तीसरे हफ्ते तो यह लगभग 15000 के आस-पास पहुंच गई।         

भोपाल मेट्रो के अधिकारियों का भी कहना है कि ज़्यादातर यात्री कम दूरी की यात्रा के लिए मेट्रो का इस्तेमाल करने से बचेंगे। उनका कहना है कि पूरा प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद ही ज़्यादा लोगों के आने की उम्मीद है, जिससे दूर-दराज के इलाकों में एंड-टू-एंड कनेक्टिविटी मिलेगी।

वहीं स्कूल ऑफ़ प्लानिंग एंड आर्किटेक्ट में असोसिएट प्रोफ़ेसर सौरभ पोपली कहते हैं, कि मेट्रो का इस्तेमाल तब तक नहीं होगा जब तक उसकी रूट अलाइनमेंट और लास्ट माइल कनेक्टिविटी न हो और उस एरिया को मेट्रो के लिहाज से प्लान न किया जाए। वह 2017 में आई मेट्रो रेल पॉलिसी को लागू करने की वकालत करते हुए कहते हैं कि ऐसा नहीं हो सकता कि मेट्रो के लिए अलग प्लानिंग की जाए और शहर के लिए अलग। सभी की साथ मिलकर प्लानिंग करनी होगी।      

आगामी कार्यक्रम के बाद भोपाल मेट्रो का एक छोटा सा हिस्सा ही शुरू होगा। इसकी ऑरेंज लाइन भी पूरी तरह से कब तक शुरू होगी यह भी अभी तक पता नहीं है। साथ ही मेट्रो स्टेशन में पार्किंग की सुविधा भी नहीं है। ऐसे में छोटी सी दूरी में राइडरशिप बना के रख पाना भोपाल मेट्रो के लिए कठिन ही होगा। इस प्रोजेक्ट की सफलता का आकलन तभी किया जा सकेगा जब यह पूरी तरह से बन कर संचालित होने लगे।    


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