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महिलाओं को जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूक कर रहीं हरदा की यह लड़कियाँ

महिलाओं को जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूक कर रहीं हरदा की यह लड़कियाँ
महिलाओं को जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूक कर रहीं हरदा की यह लड़कियाँ

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17 साल की प्रिया तनवर हरदा ज़िले के नज़रपुरा की रहने वाली हैं. प्रिया मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल इलाक़े के एक निम्न वर्गीय परिवार से आती हैं. वह अपने गाँव को जलवायु परिवर्तन के विषय में जागरूक कर रही हैं. वह गाँव-गाँव जाकर जलवायु परिवर्तन के महिलाओं पर होने वाले प्रभाव के विषय में लोगों लोगों से बात करती हैं और उन्हें दुष्प्रभावों से बचाव के तरीके बताती हैं.    

दरअसल प्रिया ‘उड़ान’ फैलो हैं. यह फैलोशिप हरदा के सिनर्जी संस्थान द्वारा 10 से 21 साल की लड़कियों को दी जाती है. वर्तमान में हरदा ज़िले में ऐसी 40 से भी अधिक उड़ान फैलो कार्यरत हैं. 5-5 लड़कियों की टीम हरदा के अलग-अलग गाँवों में जाकर यह काम कर रही है. 

संस्था में प्रोग्राम असोसिएट के रूप में कार्य कर रहीं तरन्नुम खान हमें बताती हैं कि हर साल सभी फैलो आपस में मिलकर जन जागरूकता के लिए एक विषय का चयन करती हैं. इसी कड़ी में इस साल इन लड़कियों द्वारा जलवायु परिवर्तन का महिलाओं पर प्रभाव, विषय को चुना गया है. 

इसका कारण पूछने पर सानिया भद्रेले (17) कहती हैं,

“अगर गाँव में सूखा भी पड़ेगा तो पानी भरने महिला को ही जाना पड़ता है. यानि इससे सबसे ज़्यादा तनाव महिलाओं का ही बढ़ता है. इसलिए हमने यह विषय चुना.”

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उड़ान फैलो हरदा में नुक्कड़ नाटक के मंचन के दौरान

जलवायु परिवर्तन का शिक्षा पर पड़ता प्रभाव

सानिया की बात को आगे बढ़ाते हुए तरन्नुम कहती हैं कि हरदा जैसे आदिवासी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का सीधा असर स्थानीय लड़कियों की शिक्षा पर पड़ा है. उन्होंने हमें बताया कि वर्षा की अनियमितता ने कृषि उपज पर विपरीत असर डाला है. इसका बोझ छोटी जोत के किसानों पर पड़ता है. 

ऐसे में लोग लड़के की शिक्षा पर खर्च करना तो जारी रखते हैं मगर लड़कियों की शिक्षा में कटौती कर दी जाती है. तरन्नुम मानती हैं कि जलवायु परिवर्तन की बहस में महिलाओं का पक्ष तभी विचार किया जाएगा जब महिलाएँ खुद इस बारे में बोलेंगी. बकौल तरन्नुम यह फ़ैलोशिप उसी कड़ी का एक प्रयास है.

परिजन की गिरती सेहत

सानिया अपने परिवार के साथ हरदा के मानपुरा जतरापाड़ा में रहती हैं. उनके पिता ठेले में फ़ल बेंचने का व्यवसाय करते हैं. सानिया बढ़ते हुए तापमान का अपने पिता की सेहत पर असर साफ़ देख पाती हैं.

“मेरे पिता सुबह 6 बजे निकल जाते हैं. वह गाँव-गाँव जाकर फल बेंचते हैं. पूरा दिन धूप में घूमते हुए वह रात के 12 या कभी-कभी 1 बजे तक घर आ पाते हैं. अब उन्हें साँस की दिक्कत होने लग गई है.”

सानिया टीन शेड की एक झुग्गीनुमा घर में रहती हैं. बढ़ता तापमान यहाँ रहना और कठिन कर देता है. उनके अनुसार इसका असर उनकी माँ पर पड़ रहा है,

“पहले मम्मी दोपहर में थोड़ा आराम कर लेती थीं. मगर गर्मी होने पर वह भी करना मुश्किल हो गया है.”

synergy sansthan girls harda
सानिया की तरह अन्य उड़ान फैलो घर-घर जाकर महिलाओं को जागरूक कर रही हैं 

महिलाएँ ज़्यादा प्रभावित हैं

प्रिया भी मानती हैं कि जलवायु परिवर्तन भले ही सबके लिए हो रहा हो मगर महिलाओं पर इसका असर सबसे ज़्यादा है. वह बेहद तल्ख़ लहज़े में कहती हैं,

“गर्मी होने पर आदमी तो बंडी में घूम सकता है. महिला क्या करेगी, वो थोड़े घूम सकती है ऐसे.”

प्रिया अपने साथियों के साथ जब गाँव-गाँव जाती हैं तो महिलाओं को ऐसे ही उदाहरणों से जलवायु परिवर्तन के बारे में बताती हैं. वह गाँव के बारे में बात करती हैं तो यह जानने की कोशिश करती हैं कि पहले गाँव में कितने पेड़ थे और अब कितने बचे हैं. 

उड़ान फैलो के रूप में जागरूकता फैलाते हुए यह लड़कियां घर के पिछले हिस्से या आस-पास एक पौधा लगवाना ज़रूर सुनिश्चित करती हैं. वह इनकी देखभाल का जिम्मा महिलाओं को ही लेने के लिए प्रेरित करती हैं.

प्रिया इसे पर्यावरण से भी आगे समाजशास्त्र की नज़र से देखती हैं. वह कहती हैं कि पेड़ महिलाओं के साथ बैठने और बात करने के लिए एक सुरक्षित स्थान है.

“दिन भर के काम के बीच 4 महिलाएँ जब साथ बैठती हैं तो वह अपने दुःख-सुख कह लेती हैं. इससे उनका मानसिक तनाव भी कम होता है.” 

स्वयं के प्रति जागरूक हुई हैं लड़कियां

तरन्नुम बताती हैं कि इस फैलोशिप के दौरान जागरूकता अभियान में शामिल सभी फैलोज़ जलवायु परिवर्तन के उन पर पड़ रहे प्रभाव को भी समझ रहे हैं. खुद प्रिया हमें बताती हैं कि 4 महीने पहले तक उनके माहवारी के दिन बेहद अनियमित थे. 

“4 महीने पहले तक मुझे 2-2 महीने में माहवारी आती थी. मेरे साथ की अन्य लड़कियों की माहवारी भी अनियमित हुई है. किसी-किसी को तो 15 दिन में ही माहवारी आ जाती है जिससे वह और कमज़ोर हो जाती हैं.”

हालाँकि इसका एक कारण गाँव में पर्याप्त सुविधाओं का आभाव भी है. कुछ उड़ान फ़ैलोज़ हमें बताती हैं कि उनके गाँव में सेनेटरी पैड्स मिलना मुश्किल है ऐसे में वह पर्याप्त स्वच्छता का ख्याल नहीं रख पाती हैं. इससे उन्हें संक्रमण से भी जूझना पड़ता है.

women rally harda
रैली, नाटक और जनसंपर्क सहित कई गतिविधियों के माध्यम से यह लड़कियां जागरूकता फैला रही हैं

इन फैलोज़ द्वारा जलवायु परिवर्तन और इससे महिलाओं पर पड़ने वाले प्रभाव पर जागरूकता फैलाने के लिए कई तरीके अपनाए जा रहे हैं. यह लड़कियां नुक्कड़ नाटक करती हैं जिनमें जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण मुख्य विषय होते हैं. इन फैलोज़ ने बताया कि इसके ज़रिए लोग विषय के बारे में जल्दी जागरूक होते हैं. इसके अलावा रैली निकाल कर भी वह इस विषय पर जागरूकता फैला रही हैं.

हरदा की यह युवा लड़कियां वह काम कर रही हैं जो आज के वक़्त की सबसे बड़ी ज़रूरत है. सानिया कहती हैं कि शाम को वह जब घर लौटकर आती हैं तो थकान के साथ ही उनके मन में संतोष होता है. वहीं प्रिया की माँ अब चूल्हे से निकलने वाले धुएँ के नुकसान को जान रही हैं. इन लड़कियों का मानना है कि यह परिवर्तन छोटे दिखते हैं मगर यह महत्वपूर्ण हैं. 

साथ ही इस अभियान का हिस्सा बनने के बाद उनके जीवन में भी बदलाव आया है. पहले सानिया दिन का अधिकतर हिस्सा खाना बनाने और अन्य घरेलु काम में व्यतीत करती थीं. मगर अब उनमें आत्मविश्वास आया है कि वह भी कुछ बड़ा कर सकती हैं.     

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  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

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