रत्तूसिंह मर जाएगा तो क्या होगा? इतने लोग मर गए तो क्या-क्या हुआ?… क्या होगा? कुछ नहीं होगा।
–फणीश्वरनाथ रेणु, ऋणजल धनजल
रबी का सीजन शुरू होते ही एक बार फिर खाद का संकट गहरा गया है। हर साल कृषि सीजन के शुरू होने से पहले वितरणों केंद्रों में लंबी लाइन, मारपीट, और प्रदर्शन की खबरें आती हैं। मगर इस बार मामला ‘डेडली’ हो गया है। मध्य प्रदेश के 2 अलग-अलग जिलों में खाद लेने के लिए लाइन में लगे 2 किसानों की मौत हो गई। इनमें से एक सहरिया आदिवासी समुदाय से आने वाली महिला भी शामिल है।
2 हफ्ते, 2 ज़िले, 2 मौतें
पहला मामला गुना जिले के बमौरी ब्लॉक का है। यहां 58 साल की भूरिया बाई मंगलवार, 25 नवंबर को खाद लेने के लिए आई थीं। विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) से आने वाली इस महिला को उम्मीद थी कि शाम तक उन्हें खाद मिल जाएगा। मगर शाम तक लाइन में खड़े रहने के बाद भी उन्हें 20 किमी दूर शिकारी टपरे नाम के अपने गांव खाली हाथ लौटना पड़ा।
भूरिया बाई के 20 बीघा खेत में गेहूं और सरसों की बोवाई के बाद यूरिया की सख्त आवश्यकता थी। इसलिए अगले दिन वह फिर लाइन में लगीं मगर फिर उन्हें शाम तक भी खाद नहीं मिला। आखिरकार वह थक कर वितरण केंद्र में ही सो गईं।
रात 11 बजे अचानक उन्हें उल्टियां होना शुरू हुई। उन्हें पहले बमौरी के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया जहां से उन्हें गुना जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया। मगर रास्ते में ही उनकी मौत हो गई। मृतक महिला के गांव के सरपंच और रिश्तेदार मदन सहारिया बताते हैं,
“(भूरिया बाई को) एंबुलेंस तक नहीं मिली। शव को घर ले जाने के लिए शव वाहन भी नहीं मिला।”

इस घटना के एक हफ्ते बाद ही गुना से 193 किमी दूर टीकमगढ़ जिले में 50 वर्षीय किसान जमुना कुशवाहा की भी इन्हीं परिस्थितियों में मौत हो गई। वह 3 दिनों से खाद की बोरी पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। 8 दिसंबर को वह बिना कुछ खाए ही वितरण केंद्र पहुंच गए। यहां दोपहर 12 बजे के करीब उल्टी होने के बाद वह ज़मीन पर गिर गए। मौके पर मौजूद स्थानीय तहसीलदार सतेंद्र गुर्जर किसान को अपनी गाड़ी से जिला अस्पताल ले गए, लेकिन इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।
मृतक के छोटे भाई छक्की ने न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को बताया कि उनका भाई पिछले दो दिनों से उनके निवास स्थान, ग्राम बजरुआ से आठ किलोमीटर दूर बड़ोरा वितरण केंद्र दो बैग यूरिया लेने आ-जा रहा था। देहात पुलिस स्टेशन के हाउस ऑफिसर चंद्रजीत यादव ने डॉ. दीपक ओझा द्वारा किए गए पोस्टमॉर्टम की शुरुआती रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि कुशवाहा की मौत हार्ट अटैक से हुई थी।
लूट, प्रदर्शन, मार-पीट
टीकमगढ़ के डिप्टी डायरेक्टर ऑफ़ एग्रीकल्चर (DDA) अशोक शर्मा ने कहा कि 19,000 टन यूरिया बांटा जा चुका है और 2,800 टन और मांगा गया है। सरकारी अधिकारियों ने खाद की किसी भी तरह की किल्लत से इनकार किया है।
मगर मंगलवार 9 दिसंबर को ही टीकमगढ़ के किसानों ने कलेक्टर कार्यालय के सामने टीकमगढ़-झांसी हाइवे रोड जाम कर दी। वहीं खरगापुर खाद वितरण केंद्र में पहुंचे डीडीए शर्मा के वाहन की किसानों ने विरोध स्वरूप हवा निकाल दी। वहीं ईटीवी भारत की खबर के अनुसार इसी जिले के जतारा में किसानों ने ट्रकों में लदी खाद की बोरियां लूट ली।
ये समस्या केवल एक या दो जिलों में नहीं है। राजगढ़ के इंदर सिंह भी कुशवाहा की तरह ही 3 दिनों से खाद के लिए वितरण केंद्र के चक्कर लगा रहे हैं। यहां कई किसान ऐसे भी हैं जिन्हें 10 दिन पहले खाद का टोकन मिला था मगर अब तक खाद की बोरी हाथ नही आई। वहीं प्रदेश के कृषि मंत्री एदल सिंह कंषाना के गृह जिले मुरैना में खाद को लेकर 2 गुटों में झड़प हो गई जिसमें 3 लोग घायल हो गए।

सरकारी आंकड़े और जवाब
इसी साल 8 अगस्त को संसद में दिए एक जवाब में रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बताया कि बीते खरीफ सीजन के दौरान मध्य प्रदेश में 17.42 लाख मीट्रिक टन यूरिया की ज़रूरत थी। हालांकि 1 अप्रैल से 4 अगस्त 2025 तक 10.47 लाख मीट्रिक टन की ही अनुपातिक ज़रूरत थी। इसके विरुद्ध प्रदेश में 14.26 लाख मीट्रिक टन यूरिया उपलब्ध थी जिसमें से 12.54 लाख मीट्रिक टन की ही बिक्री हुई थी।
वहीं नई दुनिया में प्रकाशित एक खबर के अनुसार इस साल 1 अक्टूबर से 7 दिसंबर के बीच 13.25 लाख टन यूरिया विक्रय किया गया है जो पिछले साल (11.24 लाख टन) की तुलना में अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में मार्च 2026 तक 80 हज़ार टन यूरिया प्रतिदिन आता रहेगा।
मगर विधानसभा के शीतकालीन सत्र में इस मामले पर सरकार पर हमला बोलते हुए नेता विपक्ष और कांग्रेस के विधायक उमंगसिंह सिंगार ने कहा कि खुद केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 3 साल में 16.25 लाख मीट्रिक टन यूरिया और 7.11 लाख मीट्रिक टन डीएपी नहीं बंटा है। उन्होंने कहा कि खाद का समय से वितरण नहीं करवाया जा रहा है इसलिए प्रदेश में किसान और प्रशासन के बीच टकराव बढ़ रहा है।
खरगोन के किसान संदीप सिंह भी इस सीजन में खाद के लिए परेशान होते रहे। वह कहते हैं कि खाद के संकट का कारण जमाखोरी है और कालाबाज़ारी है।
केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार 1 अप्रैल से 1 अगस्त 2025 के बीच मध्य प्रदेश में खाद की कालाबाजारी की शिकायत पर 276 रेड्स/इंस्पेक्शन किए गए और 35 FIR दर्ज की गई हैं। हालांकि जमाखोरी या नकली खाद बेचने के कोई भी मामले इस दौरान प्रदेश में नहीं आए।

“किसान सरकार की प्राथमिकता नहीं”
हर साल और हर सीजन होने वाले खाद के इस संकट का कारण क्या है? इसका जवाब देते हुए कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं, “सरकार जब ईज़ ऑफ़ डूइंग बिजनेस पर काम कर रही है तो ईज़ ऑफ़ डूइंग फार्मिंग पर क्यों नहीं काम करती?” वह कहते हैं कि सरकार को पहले से ही डिमांड एंड सप्लाई का ध्यान रखना चाहिए और लापरवाही करने वाले डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर पर कार्रवाई होनी चाहिए।
वहीं किसान संघर्ष समिति के राष्ट्रिय अध्यक्ष डॉ सुनीलम कहते हैं कि इन तमाम अव्यवस्थाओं का कारण यह है कि किसान सरकार की प्राथमिकता में ही नहीं है। वह कहते हैं, “हर सोसाइटी सीजन के पहले रिक्वायरमेंट देती है फिर भी सरकार समय पर खाद उपलब्ध नहीं करवा पाती।”
शर्मा इन अव्यवस्थाओं के जारी रहने के लिए सरकार के साथ साथ मीडिया को भी दोष देते हैं। वह कहते हैं कि चूंकि इन मसलों का अच्छा मीडिया कवरेज नहीं होता इसलिए यह समस्या सुलझाने के लिए सरकार मेहनत भी नहीं करती।
भूरिया बाई के रिश्तेदार मदन (50) ने हमें बताया कि घटना के बाद सरकारी अधिकारीयों ने घर पर ही खाद भिजवा दिया। खुद मदन 10 बीघा में खेती करते हैं। इसके लिए उनको कम से कम 10 कट्टा डीएपी की ज़रूरत होगी। मगर घटना के बाद भी उनको खाद के लिए संघर्ष ही करना पड़ रहा है। ज़िले में केवल इतना बदलाव हुआ है कि अब खाद का टोकन ऑनलाइन मिल रहा है। इसके लिए मदन जैसे किसानों को गांव के साइबर कैफे जाना पड़ता है। टोकन मिलने के बाद वितरण केंद्र से फोन पर बताया जाता है कि उनको किस दिन खाद मिलेगा।
मदन को किस दिन खाद मिलेगा? इसका जवाब वो नहीं जानते।
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