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मध्य प्रदेश में सोलर सिटी और गांवों की क्या है मौजूदा स्थिति?

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मध्य प्रदेश में सोलर सिटी और गांवों की क्या है मौजूदा स्थिति?
मध्य प्रदेश में सोलर सिटी और गांवों की क्या है मौजूदा स्थिति?

देश में स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत के साथ ही वर्ष 2015 में 55 को शहरों सोलर सिटी बनाने प्रण लिया गया था। इनमें मध्य प्रदेश के भी 4 शहर भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, और रीवा को शामिल किया गया था। इसके बाद साल 2022 में मध्यप्रदेश सरकार ने नई नवीकरणीय ऊर्जा नीति जारी की थी। इस नीति में भी ग्रीन सिटी, ग्रीन विलेज और ग्रीन जोन बनाए जाने का जिक्र था। 

कुल मिलाकर पिछले 10 सालों में मध्यप्रदेश के 11 जिलों का नाम सोलर सिटी के तौर पर आ चुका है। लेकिन बन कर सिर्फ एक सांची ही तैयार हो पाई है, वो भी पूरी तरह से नहीं। आइये जानते हैं सोलर सिटी को लेकर क्या कहती है मध्यप्रदेश की 2022 में आई नवीकरणीय ऊर्जा नीति। साथ ही तफ्सील से जानते है कि सोलर सिटी के क्षेत्र में अब तक कितनी प्रगति हुई है। 

क्या होती है सोलर सिटी?

मध्यप्रदेश की नई नीति के अनुसार अगर किसी शहर या गांव में समग्र ऊर्जा में कम से कम 30% नवीकरणीय ऊर्जा उपभोग होता है, तब ऐसा शहर या गाँव ग्रीन/सोलर सिटी या विलेज कहा जाएगा। प्रदेश के ऐसे हरित शहरों और गांवों को कई चरणों में विकसित किया जाना है। साथ ही इस नीति में इन शहरों के विकास के समूचे रोडमैप का भी जिक्र किया गया है। 

इन शहरों को सोलर शहर के क्रम विकसित करने का कार्यक्रम 4 चरणों में चलाया जाना था। इस दिशा में पहले चरण में प्रदेश के विरासत स्थल जिनमें पर्यटन की संभावना है उन्हें सोलर सिटी के रूप में विकसित किया जाना है। इसके लिए पायलट परियोजना के तौर पर प्रदेश के सांची और खजुराहो को चुना गया था। 

सबसे पहले इन दोनों शहरों में हरित ऊर्जा बिजली तैयार कर सबस्टेशन में संचित किया जाना था। इसके बाद इस संचित बिजली को फीडर के माध्यम से सप्लाई करने की बात की गई थी। साथ ही शहर के सभी ठेले और दुकान वालों को सब्सिडी के माध्यम से सौर लालटेन के उपयोग के लिए प्रोत्साहित करने, और शहर की सभी स्ट्रीट लाइटों को हरित ऊर्जा से संचालित करने का जिक्र किया गया है। 

इस परियोजना के दूसरे चरण में बहुमंजिला आवासीय इमारतों को सौर ऊर्जा के उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया जाना है। इसके अलावा ऐसे घर, व व्यापारिक संस्थान जिनकी ऊर्जा खपत 6 किलोवाट से अधिक है उन्हें अपने अपनी इमारतों में सोलर रूफटॉप लगाने के लिए प्रोत्साहित करना है। 

Solar Rooftop
पिक्चर क्रेडिट- जंगलवास भोपाल

इन इमारतों में कम से कम 50 फीसदी ऊर्जा की खपत हरित स्त्रोतों से पूरी किये जाने की शर्त थी। वहीं हरित आवागमन को बढ़ावा देने के लिए शहर में ऐसे चार्जिंग स्टेशन तैयार करने का प्रस्ताव है। साथ ही ऐसे चार्जिंग स्टेशन जहां संचित बिजली का आधे से अधिक हिस्सा नवीकरणीय स्त्रोतों से आया है, उन्हें प्रोत्साहन दिए जाने का भी प्रावधान है। 

इसके बाद के चरणों में इन जिलों के गांव व शहरों को पूरी तरह से हरित ऊर्जा युक्त बनाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने की बात की गई थी। इसके लिए नवीकरणीय ऊर्जा के संयंत्र लगाए जाने, और ‘अक्षय ग्राम’ तैयार करने का भी जिक्र किया गया था। 

कितनी तैयार हुई ‘सोलर सिटी’

Sanchi Stupa Madhya Pradesh
सांची स्तूप मध्यप्रदेश, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

सितंबर 2023 में ही सांची को देश की पहली सोलर सिटी के रूप में घोषित कर दिया गया था। सोलर सिटी बनने के साथ ही सांची के सभी सरकारी दफ्तर हरित ऊर्जा से चलने लगे। इसके साथ ही शहर की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए 3 मेगावाट की क्षमता का सोलर प्लांट भी लगाया है। इसके अलावा नजदीक के ही एक गांव, गुलगांव में एक 5 मेगावाट का सोलर संयंत्र भी तैयार किया जा रहा है। यह संयंत्र सांची की कृषि संबंधी आवश्यकताओं के लिए ऊर्जा आपूर्ति करेगा। 

हालांकि सांची अभी तक नवीकरणीय ऊर्जा नीति में बताए गए रोडमैप के अनुसार पहले चरण में ही हैं। वहीं पायलट परियोजना में शामिल दूसरे शहर खजुराहो को लेकर हमने मध्यप्रदेश के रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड के अधिकारी से बात की। खजुराहो की प्रगति पर उन्होंने कहा कि,

खजुराहो में अभी काम शुरू नहीं हुआ है। वहां अभी सर्वे का काम चल रहा है।   

कहां अटका है हैरिटेज सोलर सिटी का कार्य?

सांची और खजुराहो की सोलर सिटी के रूप में अब तक की प्रगति जानने के लिए हमने मध्यप्रदेश के नवीकरणीय ऊर्जा विभाग से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन हमें इस पर कोई जवाब नहीं मिला। हालांकि इस विभाग से संबंधित एक व्यक्ति ने नाम न लिखे जाने की शर्त पर हमें इससे जुड़ी जानकारियां बताईं। 

उन्होंने कहा कि, सांची के सभी सरकारी दफ्तरों का सौर्यीकरण तो कर दिया गया है। लेकिन शहर के लोग सब्सिडी दिए जाने के बाद भी इस अपने घर की छत पर सोलर संयंत्र लगवाने के लिए निवेश को तैयार नहीं हैं। वहीं दूसरी ओर सांची में कई मकान इस तरह से बने हैं कि उनकी छत पर अधिकांश समय तक छाया रहती है। यह छाया इन मकानों में सोलर रूफटॉप की स्थापना को दुष्कर बना देता है। 

हालांकि ऐसी समस्याओं के लिए सरकार ऑन-नेट-मीटरिंग की नीति तैयार कर रही है। इस तकनीक एक सक्षम मकान या स्थान में सौर ऊर्जा बिजली उत्पादित की जाएगी और उसे ग्रिड के माध्यम अन्य मकानों तक पहुंचाया जाएगा। इस नीति के जल्द ही आने की अपेक्षा है, उन्होंने आगे कहा। 

देश भर में सोलर सिटी का तमगा पाए सांची शहर ग्रीन एनर्जी की राह में पहले चरण में ही अटका है। वहीं खजुराहो और अक्षय ग्राम को लेकर कोई प्रगति  देखने को नहीं मिली है। दूसरी ओर बीते दिनों एक खबर आई थी राज्य सरकार मांडू, ओंकारेश्वर, और इंदौर जैसे शहरों को भी सोलर सिटी बनाने जा रही है। लेकिन इससे पहले घोषित हुई सोलर सिटी को लेकर न तो सरकार पास जानकारी है, न ही जमीन पर इसकी प्रगति देखी जा सकी है। 

सोलर गांव का नामोनिशान नहीं

वहीं अगर गांव की ओर देखा जाए तो बैतूल जिले का बांचा गांव सौर गांव बना है। हालांकि बैतूल का यह गांव नई नीति के आने के कई साल पहले 2018 में ही सौर गांव बन गया था। बांचा को सौर गांव बनाने में मध्यप्रदेश सरकार का कोई विशेष योगदान नहीं है। इसकी वजह है कि यह नवाचार आईआईटी बॉम्बे के क्षात्रों ने ओएनजीसी के साथ मिल कर सीएसआर (कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी) के तहत किया था। 

Bancha solar Village story
सोलर ग्राम बांचा, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

इस गांव के तकरीबन 70 घरों में सोलर कुकटॉप को सौर पैनल से जोड़ा गया है, ताकि लोगों को लकड़ी जलाकर खाना न बनाना पडे़। एक अध्ययन के मुताबिक इस नवाचार के माध्यम से बांचा गांव में रोज की 1000 किलो लकड़ी कटने से, और महीने का 40 से 50 किलो कार्बन उत्सर्जित होने से रोका गया था। लेकिन ज्यादातर घरों में अब ये सोलर कुकटॉप खराब हो चुके हैं और उन्हें सुधरवाने का काम अभी तक नहीं किया गया है। 

बांचा गांव में सौर ऊर्जा के उपयोग और अनुभवों को लेकर ग्राउंड रिपोर्ट ने एक विस्तृत रिपोर्टिंग की है। हमने पाया कि गांव वालों को सोलर कुकटॉप से फायदा हुआ था लेकिन धूल और रखरखाव के अभाव में ये कुकटॉप अब खराब हो चुके हैं। इन्हें सुधारने के लिए विशेष तकनीक की ज़रुरत है जो स्थानीय स्तर पर मौजूद नहीं है और स्थानीय मैकेनिक इसे नहीं सुधार पा रहे हैं। अब गांव दोबारा लकड़ी जलाकर खाना बनाने को मजबूर है। 

पढ़िए बांचा गांव पर हमारी ग्राउंड रिपोर्ट 

बांचा गांव को मध्यप्रदेश में एक उपलब्धि के साथ-साथ एक अपवाद के तौर पर भी देखा जा सकता है। हालंकि 2022 की नई नीति के आने के बाद अभी तक मध्यप्रदेश में कोई भी ‘अक्षय ग्राम’ निकल कर सामने नहीं आया है। 

मध्यप्रदेश में अक्षय ऊर्जा की स्थिति

मध्यप्रदेश वर्ष 2023 तक अपनी ज़रुरत की 62 फीसदी बिजली अभी भी थर्मल पावर प्लांट से ही हासिल कर रहा है। अक्षय ऊर्जा की बात की जाए तो कुल 36 फीसदी बिजली इन स्रोतों से प्राप्त हो रही है जिसमें बड़ा हिस्सा हायड्रो पावर प्लांट से हासिल होता है। 

ऐसे में एक सवाल जस का तस बना है कि इतनी सीमित गति से क्या प्रदेश 2030 तक अपने हरित लक्ष्य हासिल कर पाएगा, और क्या ‘ग्रीन जोन’, और ‘अक्षय ग्राम’ जैसे शब्द मात्र अवधारणा ही रह जाएंगे। 

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  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

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