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UNCCD Report: खराब हो चुके हैं दुनिया के आधे से अधिक चारागाह

UNCCD Report: खराब हो चुके हैं दुनिया के आधे से अधिक चारागाह
UNCCD Report: खराब हो चुके हैं दुनिया के आधे से अधिक चारागाह

यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन कॉम्बैटिंग डेजर्टिफिकेशन (UNCCD) की एक नई रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के लगभग आधे रेंजलैंड खराब हो गए हैं। इन रेंजलैंड (Rangeland) को बचाने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप, और उन पर निर्भर समुदायों को केंद्रित समर्थन की आवश्यकता है। आइये जानते हैं क्या होती हैं रेंजलैंड और क्या हैं इस रिपोर्ट के मायने। 

क्या हैं रेंजलैंड्स

यूएनसीसीडी रिपोर्ट रेंजलैंड्स को प्राकृतिक या अर्ध-प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के रूप में परिभाषित करती है। यह भूमि पशुधन या जंगली जानवरों द्वारा चारगाह के रूप में उपयोग की जाती है। रेंजलैंड्स में घास, झाड़ियाँ, खुले जंगल और कृषि वानिकी प्रणालियाँ (भूमि जिसमें पेड़ और फसलें या चरागाहें होती हैं) जैसी वनस्पतियाँ होती हैं। अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संस्थाओं और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने मिलकर एक रेंजलैंड एटलस तैयार किया है। इस एटलस के मुताबिक  रेंजलैंड की वनस्पति की सटीक प्रकृति वर्षा, तापमान और अन्य जलवायु घटनाओं से प्रभावित होती है।

यूएनसीसीडी की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में, रेंजलैंड पृथ्वी के सतह क्षेत्र के 80 मिलियन वर्ग किमी (पृथ्वी की आधी से अधिक भूमि) को कवर करते हैं। इस प्रकार यह दुनिया में सबसे बड़ा भूमि कवर या भूमि उपयोग प्रकार है। वे कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, और मीठे पानी के भंडारगृह और भूमि के मरुस्थलीकरण को रोकते हैं। साथ ही दुनिया भर में लाखों लोग खाद्य सुरक्षा और आजीविका के लिए रेंजलैंड पर निर्भर हैं।

यूएनसीसीडी की रिपोर्ट में कहा गया है, “रेंजलैंड्स वैश्विक खाद्य उत्पादन का 16% और पालतू शाकाहारी जानवरों के लिए 70% भोजन उत्पन्न करते हैं, खासतौर पर अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में।” यूएनसीसीडी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में थार रेगिस्तान से लेकर हिमालयी घास के मैदानों तक, रेंजलैंड्स लगभग 1.21 मिलियन वर्ग किमी में फैले हुए हैं।

क्या कहती है UNCCD की रिपोर्ट 

यूएनसीसीडी की रिपोर्ट में पाया गया कि दुनिया के लगभग 50% रेंजलैंड को “निम्न स्तर का (डेग्रेडेड)” माना जा सकता है और वे “मूक मृत्यु (साइलेंट डिमाइस) ” का सामना कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन, अस्थिर भूमि और पशुधन प्रबंधन प्रथाएं, जैव विविधता की हानि, और रेंजलैंड का कृषि भूमि में रूपांतरण, रेंजलैंड क्षरण के कुछ प्राथमिक कारण हैं। अपनी आजीविका के लिए चारगाह पर निर्भर चरवाहे समुदायों के बीच भूमि अधिकारों पर अनिश्चितता भी रेंजलैंड के क्षरण का एक प्रमुख कारण है।

यह स्थिति चरागाहों पर निर्भर समुदायों को भी गंभीर रूप से प्रभावित करती है। रेंजलैंड्स की गुणवत्ता गिरने से मिट्टी की उर्वरता और जैव विविधता को प्रभावित होती है। इससे सीधे तौर पर चरवाहों की आय प्रभावित होती है तथा आय और अधिकारों को लेकर संघर्ष बढ़ता है। 

भारत की अर्थव्यवस्था में चरवाहों का योगदान 

भारत दुनिया की 20% पशुधन आबादी का घर है। एकाउंटिंग फॉर पैस्टरलिस्ट्स इन इंडिया रिपोर्ट 2020 के अनुसार, इनमें से लगभग 77% जानवरों को चरवाहा प्रणालियों में पाला जाता है। चरवाहा प्रणाली से आशय है कि उन्हें या तो झुंड में रखा जाता है या सामान्य भूमि पर छोड़ दिया जाता है। चरवाहे देशी पशुधन नस्लों की भी रक्षा करते हैं, और पशु पालन के बारे में पीढ़ियों से चले आ रहे ज्ञान की रक्षा करते हैं।  

वर्तमान में, भारत दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत वैश्विक डेयरी उत्पादन का 23 फीसदी दुग्ध उत्पादन करता है। पशुपालन और डेयरी विभाग के अनुसार, भारत भैंस के मांस का सबसे बड़ा उत्पादक और भेड़ और बकरी के मांस का सबसे बड़ा निर्यातक भी है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में चरवाहों और रेंजलैंड्स का कितना महत्वपूर्ण योगदान। लेकिन लगातार घटती रेंजलैंड्स की गुणवत्ता भारत और वैश्विक परिदृश्य में पर्यावरण और खाद्य उपलब्धता को लेकर एक बड़ा अलार्म हैं। 

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  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

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