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खाद्य संकट : भारत में बढ़ती ज़रूरत के बीच आनाजों की घटती गुणवत्ता

खाद्य संकट : भारत में बढ़ती ज़रूरत के बीच आनाजों की घटती गुणवत्ता
खाद्य संकट : भारत में बढ़ती ज़रूरत के बीच आनाजों की घटती गुणवत्ता

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भारत सहित दुनिया भर की जनसँख्या लगातार बढ़ती जा रही है. ज़ाहिर इसके साथ ही फ़ूड डिमांड भी बढ़ रही है. मगर फ़ूड क्वालिटी? वह लगातार घट रही है. विज्ञान से सम्बंधित जर्नल ‘साइंटिफिक रिपोर्ट’ में प्रकाशित एक शोध के अनुसार बीते 50 सालों में गेहूं और चावल में ज़रूरी पोषक तत्व तेज़ी से घटे हैं. शोध में इन परिणामों का विश्लेषण करते हुए आने वाले दिनों में एनीमिया, सांस और हृदय से सम्बंधित बीमारियों के बढ़ने की ओर इशारा किया गया है. शोध करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में ग्रेन न्यूट्रीयंस प्रोफाइलिंग करवाना बेहद आवश्यक है.

घटता पोषण बढ़ता विषैलापन

भारत में गेहूं और चावल आनाज के रूप में बेहद प्रचलित हैं. नेशनल सैंपल सर्वे 2011-12 के अनुसार हर ग्रामीण भारतीय एक महीने में औसतन 6 किलो चावल और 4.3 किलो गेहूँ खाता है. वहीँ शहरी भारतीयों के लिए यह आँकड़ा क्रमशः 4.5 और 4 किलो है. मगर उपरोक्त शोध के अनुसार बीते 50 सालों में इन दोनों ही आनाजों में पोषक तत्वों की मात्रा घटी है और विषैले तत्वों की मात्र बढ़ी है. 

Quality of Indian rice degrading

इन दोनों ही फसलों में जिंक, कॉपर, आयरन और कैल्शियम पोषक तत्वों के रूप में पाए जाते हैं. शोध के अनुसार चावल की फसलों में साल 1960 में कैल्शियम, ज़िंक और आयरन की मात्रा क्रमशः 337, 19.9 और 33.6 मिली ग्राम (प्रति किलो) थी. साल 2000 में यह घटकर 186.3, 13.4 और 23.5 mg हो गई. इसके अलावा गेहूं में कैल्शियम, ज़िंक और आयरन का आँकड़ा 492.3, 24.3 और 57.6 था. यह घटकर 344.2, 17.6 और 46.4 मिली ग्राम हो गया. इसके विपरीत यह दोनों ही मुख्य फ़सलें समय के साथ विषैली हुई हैं. साल 1960 में एक किलो चावल में आर्सेनिक की मात्रा 0.05 मिली ग्राम थी जो साल 2000 में बढ़कर 0.80 मिली ग्राम हो गई.

बढ़ता हुआ उत्पादन

भारत में हुई हरित क्रांति के बाद गेहूं और चावल के उत्पादन में तेज़ी से वृद्धि हुई है. अगर गेहूं की बात करें तो भारत में यह फसल 29.8 मिलियन हेक्टेयर में होती है. साल 2004-05 में एक हेक्टेयर में 2602 किलो गेहूं उगता था. यह 2011-12 में बढ़कर 3140 किलो हो गया. यही कारण है कि देश में गेहूं का कुल उत्पादन भी बढ़ा है. मगर उत्पादन में आई यह बढ़ोत्तरी पोषण की कमी के लिए ज़िम्मेदार भी है. कृषि विशेषज्ञ प्रदीप नंदी कहते हैं कि हमारे देश में ‘इंटेंसिव फार्मिंग’ बढ़ी है. ज़्यादा पैदावार के लालच का परिणाम यह हुआ है कि मिट्टी के पोषक तत्व लगातार कम हो रहे हैं. इसके साथ ही ऑर्गेनिक खाद का चलन भी घट गया है जिसके चलते मिट्टी में पोषक तत्व कम होते जा रहे हैं इसी का प्रभाव फसलों में दिख रहा है. 

मिट्टी में कम होते पोषक तत्व

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के द्वारा प्रकाशित स्टेट ऑफ़ बायो फर्टीलाइज़र एंड ऑर्गनिक फर्टीलाइज़र रिपोर्ट के अनुसार देश के 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से एकत्रित मिट्टी के नमूनों में से 85 प्रतिशत नमूनों में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा आवश्यकता से कम पाई गई. वहीँ यदि बोरोन, ज़िंक, आयरन और सल्फर जैसे माइक्रोन्यूट्रीएंट्स की बात करें तो क्रमशः 47, 39, 37 और 36 प्रतिशत नमूनों (samples) में यह तत्व कम पाए गए. 

Nutrients in Indian Wheat

बढ़ता रासायनिक उर्वरक का प्रयोग

उपरोक्त रिपोर्ट के हवाले से कहें तो साल 2019 में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रासायनिक उर्वरक पैदा करने वाला और उसका उपयोग करने वाला देश बन गया. वर्ष 2020 में भारत में इसकी खपत 62.98 मिलियन टन थी. यह वर्ष 2000 के बरक्स 82.5 प्रतिशत ज़्यादा है. नंदी मानते हैं कि इस बढ़ती हुई खपत के पीछे फसलों का उत्पादन बढ़ाने की मंशा है. मगर “उर्वरक पैदावार तो बढ़ा देते हैं मगर मिट्टी को रिपेयर नहीं करते हैं.” ऐसे में कुछ समय बाद भूमि बंजर हो जाती है. ऐसे में इन दो आनाजों में घटता हुआ पोषण आने वाले दिनों में बंजर ज़मीन के विस्तार और फ़ूड सिक्योरिटी के ख़तरे में पड़ जाने की ओर इशारा करता है.

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  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

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