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सिवनी के दलसागर तालाब में पर्यावर्णीय नियमों के खिलाफ सौंदर्यीकरण

सिवनी के दलसागर तालाब में पर्यावर्णीय नियमों के खिलाफ सौंदर्यीकरण
सिवनी के दलसागर तालाब में पर्यावर्णीय नियमों के खिलाफ सौंदर्यीकरण

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मध्य प्रदेश के सिवनी जिले की एक आद्रभूमि है दलसागर। इस आद्रभूमि में नगर पालिका प्रशासन ने सौंदर्यीकरण के नाम पर कुछ निर्माण कार्य किये। बाद में इस निर्माणकार्य को लेकर मामला राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) पहुंचा। इस मामले पर एनजीटी के हालिया फैसले में अब तक हुए निर्माण कार्य को हटाने, और इस पूरी प्रक्रिया की वजह से आद्रभूमि के स्वास्थ पर पहुंचे नकारात्मक प्रभाव की भरपाई करने का फैसला आया है। आइये विस्तार से समझते हैं, क्या है ये पूरा मामला। 

सौंदर्यीकरण के लिए बनना था 385 मीटर लंबा पुल 

दलसागर तालाब सिवनी जिले का एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक स्थल और आद्रभूमि होने के नाते जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। साल 2023 में जिला योजना समिति के द्वारा दलसागर तालाब का सौंदर्यीकरण करने का निर्णय लिया गया, और इस पूरे निर्माण के लिए रकम विधायक निधि से दी गई थी। 

इस सौंदर्यीकरण के लिये सिवनी नगर पालिका द्वारा जो टेंडर निकाले गए उसमें 385 मीटर लंबे ओवरब्रिज का निर्माण किया जाना था। यह पुल एमपीटी चौपाटी और तालाब के बीच के टापू को जोड़ने के लिए बनाया जाना था। इसके साथ ही राजा दलपत शाह की 25 फीट की की एक मूर्ति, और तालाब के बीचों-बीच एक 6 करोड़ से अधिक की लागत का म्यूजिकल वाटर फाउंटेन के स्थापना की बात भी इस टेंडर में कही गई थी।

चूंकि यह पुल, तालाब के 50 मीटर के दायरे में ही बन रहा था, जिसके कारण तालाब के पानी के ह्रास की आशंका थी। इसके साथ ही यह निर्माण वेटलैंड नियम 2017 का उल्लंघन भी है। इसी निर्माण कार्य के खिलाफ अधिवक्ता नवेन्दु मिश्रा ने एनजीटी के समक्ष अक्टूबर 2023 में याचिका लगाई थी।

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यह पुल, तालाब के 50 मीटर के दायरे में ही बन रहा था, जिसके कारण पानी के ह्रास की आशंका थी। Photograph: (Ground Report)

हालांकि इस मामले में एक पेंच था कि, मध्यप्रदेश के वेटलैंड पोर्टल में दलसागर तालाब को नहीं दर्शाया गया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के 2022 में आए एम.के. बालाकृष्णन वाद के एक आदेश के अनुसार कोई भी आद्रभूमि अगर इसरो की मदद से तैयार किये गए नेशनल वेटलैंड एटलस में आती है और उसका रकबा 2.5 हेक्टेयर से अधिक होता है, तो उस पर वेटलैंड नियम 2017 लागू होते हैं। 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भारत साकार ने एक ऑफिस मेमोरंडम भी जारी किया था। इस मेमोरंडम में देश की सभी 0.25 हेक्टेयर से बड़ी आद्रभूमियों पर वेटलैंड नियम 2017 के नियम 4 के अंतर्गत आने की बात कही गई थी। 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की शर्तें दलसागर तालाब पर लागू हो रही थी, क्यूंकि दलसागर तालाब 17.80  एकड़ के बड़े क्षेत्र में फैला हुआ था और यह इसरो की सैटेलाइट से ली गई जानकारी द्वारा बने वेटलैंड एटलस में भी आ रहा था। सुप्रीम कोर्ट के 2022 के इस फैसले ने दलसागर तालाब में निर्माण को रोकने का पक्ष मजबूत किया, और यह मामला आगे बढ़ सका। 

इसके बाद आगे की सुनवाइयों में एनजीटी ने सिवनी कलेक्टर और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक-एक प्रतिनिधि को मिलाकर के एक संयुक्त समिति का गठन किया। इस समिति पर दलसागर तालाब जाकर वहां की यथास्थिति का जायजा लेना, और इस पर एक रिपोर्ट 6 सप्ताह के भीतर पेश करने का दायित्व था। 

नियमों की अनदेखी करते हुए सौंदर्यीकरण

8 जनवरी 2024 को हुई सुनवाई में समिति स्थल के निरीक्षण के बाद तैयार किया हुआ ‘स्थल निरीक्षण पंचनामा‘ अधिकरण के सामने पेश किया। इस पंचनामे में समिति द्वारा पेश किये गए मुख्य अवलोकन निम्न हैं –

  1. आर्द्रभूमि क्षेत्र का केवल 30% हिस्सा पानी से भरा हुआ पाया गया।
  2. ऐसा प्रतीत हुआ कि आर्द्रभूमि का जल ओवरब्रिज के निर्माण के लिए निकाला गया है।
  3. तालाब पर 385 मीटर लंबा फुट-ओवरब्रिज निर्माणाधीन है। जिसके 17 पिलर और 2 बन कर तैयार हो चुके हैं।
  4. निर्माण सामग्री को आसानी से लाने ले जाने के लिए एक समानांतर अस्थायी सड़क बनाई गई है।
  5. राजा दलपतशाह की 25 फुट ऊंची प्रतिमा और उसकी स्थापना के लिए बनाया गया कंक्रीट का आधार पाया गया।
  6. तालाब के चारों ओर बहुत सारी झाड़ियाँ उग आई हैं।
  7. एक नाले द्वारा लाया जा रहा बिना उपचारित सीवेज सीधे तालाब में मिल रहा है। वहीं सिवनी जिले में एक भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट मौजूद नहीं है।

इसके अलावा समिति ने जल की गुणवत्ता मापने के लिए नमूने भी एकत्रित किये। 

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परिक्षण में तालाब के जल में घुलित ऑक्सीजन (D.O.) की मात्रा 5.80 mg/l पाई गई Photograph: (Ground Report)

दल सागर के जल की गुणवत्ता हुई प्रभावित 

नमूने के परिक्षण में तालाब के जल में घुलित ऑक्सीजन (D.O.) की मात्रा 5.80 mg/l पाई गई, जब कि किसी आद्रभूमि में घुलित ऑक्सीजन की आदर्श मात्रा 6 mg/l से अधिक होनी चाहिए। तालाब के जल की जैव ऑक्सीजन मांग 4.40 mg/l थी, और तालाब में मिल रहे नाले की जैव ऑक्सीजन मांग (BOD) 34.0 mg/l थी जो कि मानक मात्रा (3 mg/l) से काफी अधिक है। 

इन नतीजों के बाद मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय, जबलपुर ने सिवनी नगर पालिका पर 4 करोड़ 80 लाख का पर्यावरणीय मुआवज़ा आरोपित करते हुए एक नोटिस जारी किया था। इसके साथ ही तालाब में दूषित जल छोड़े जाने के लिए जल (संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम 1974 की धारा 24, 25, 43 & 44 के तहत मामला भी दायर किया है। 

वेटलैंड नियमों की अनदेखी 

दल सागर में हुए निर्माण कार्य और नगर पालिका की लापरवाहियां वेटलैंड नियम 2017 के नियम 4 के तहत वर्जित हैं। वेटलैंड नियम 2017 का नियम 4 (2,vi) स्पष्ट तौर पर कहता है कि, वेटलैंड के फुल टैंक लेवल के 50 मीटर के दायरे में किसी तरह से स्थाई प्रकृति का कोई भी निर्माण कार्य नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन दल सागर में इससे ठीक उलट पुल के निर्माण के लिए 17 पिलर खड़े कर दिए गए हैं। 

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जिस लेक के सौन्दर्यीकरण के लिए मेहनत की जा रही है उसमें मिलने वाले सीवेज को रोकने के लिए कोई एसटीपी नहीं है। Photograph: (Ground Report)

इसके अलावा 2017 के नियम की धारा 4 (2,v) के तहत, किसी भी तरह से अनुपचारित सीवेज मल तालाब में छोड़ना भी वर्जित है। दलसागर के मामले में इन दोनों ही नियमों की अनदेखी हुई है। वहीं दल सागर के पीछे स्थित रैन बसेरा नाले का अनुपचारित सीवेज तालाब में छोड़ा जा रहा है। इन कृत्यों से तालाब की पारिस्थितिकी को क्षति पहुंची है, जैसा की समिति ने अपने स्थल निरिक्षण पंचनामे में बताया है। 

एनजीटी ने तालाब में हुए निर्माण को गिराने का दिया आदेश 

बाद की सुनवाइयों में एनजीटी ने दल सागर तालाब पर हो रहे निर्माण पर स्टे लगा दिया था। एनजीटी ने अपने 9 जुलाई के आदेश में दल सागर की परिधि में हो रहे निर्माण कार्य को हटाने और तालाब को उसकी वास्तविक स्थिति में वापस लाने का आदेश दिया।

एनजीटी ने अपने हालिया आदेश में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भोपाल के निदेशक, पर्यावण सचिव, और केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के प्रतिनिधि को मिलाकर एक समिति गठित की है। यह समिति इस पूरी प्रक्रिया से पर्यावरण और पारिस्थितिकी को पहुंची क्षति के अनुसार पर्यावरणीय मुआवजे का आकलन करेगी। समिति को अपनी रिपोर्ट 4 सप्ताह में पेश करने को कहा गया है।

इस मामले पर नगर पालिका की प्रतिक्रिया 

इस मामले को लेकर हमने नगर निगम का पक्ष जानना चाहा। इसके लिए हमने सिवनी के नगर पालिका अध्यक्ष मोहम्मद शफीक से से बात की। शफीक ने कहा कि इस तालाब के सौंदर्यीकरण के लिए 2018-19 से प्रयास किया जा रहा था। 2 बार पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसका भूमिपूजन किया है। इसके विकास के लिए हमें शासन पैसे मिले हैं। इसकी वजह यह है कि यह तालाब शहर का एक बेहतरीन पर्यटन स्थल बन सकता है। लेकिन अब एनजीटी ने इसे गिराने का आदेश दिया है। शफीक ने आगे कहा,

हम एनजीटी के फैसले का सम्मान करते हैं। एनजीटी ने जब नाले के पानी को लेकर आदेश दिया था तब हमने फौरन नाले के पानी को तालाब में मिलने से रोका। लेकिन फिलहाल इन खम्भों को गिराना संभव नहीं है, क्यूंकि तालाब भर चुका है। और इन खम्भों को गिराने में भी 20 से 25 लाख रुपये लगेंगे, जो अभी हमारे पास उपलब्ध नहीं है। 

दलसागर का निर्माण गोंड राजा दलपतशाह ने कराया था। अगर इसका सौंदर्यीकरण रोका गया तो यहां के आदिवासी नाराज भी हो सकते हैं। अगर हमें एनजीटी से समाधान नहीं मिलता है तो हम सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे।  

स्टे के बाद भी निर्माण के प्रयास जारी 

इस मामले के याचिकाकर्ता नवेन्दु मिश्रा ने बताया की एनजीटी से स्टे मिलने के बाद भी नगर निगम ने अवैध तरीके से निर्माण कार्य जारी रखने का प्रयास किया था। इस दौरान नगर पालिका ने स्थानीय वेटलैंड संस्था बनाकर, उससे दलसागर के सौंदर्यीकरण के लिए अनुमति मांगते हुए एक प्रस्ताव तैयार कर के पर्यावरण मंत्रालय के पास भिजवाया है। 

नवेंदु ने बताया कि तालाब के सौंदर्यीकरण के नाम पर तालाब के टापू के पेड़ काटे गए, तालाब को तोड़ा गया, उसका पानी निकाला गया और भारी मशींनों के लगातार इस्तेमाल से तालाब की भूमि भी कठोर हो गई। तालाब में लंबे समय तक मशीनों के रहने की वजह से उसमें बरसात का पानी नहीं भर पाया। नवेन्दु आगे कहते हैं,

दलसागर सिवनी का सबसे खूबसूरत तालाब के रूप मे जाना जाता रहा है। लेकिन इसे सौंदर्यीकरण और निर्माण के नाम पर बर्बाद कर दिया गया। इसके बीच में जो टापू थे उसके 50 से अधिक पेड़ों को काटा गया सिर्फ मूर्ति लगाने के लिए।

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तालाब के घाट पर बनाए गए व्यू पॉइंट्स पर मल और गंदगी पड़ी हुई है। Photograph: (Ground Report)

ग्राउंड रिपोर्ट से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि इस मामले के बाद नगर निगम ने उन्हें निशाना भी बनाया है। एनजीटी का फैसला आने के बाद नगर निगम ने उनकी दुकान गिराने के लिए नोटिस जारी कर दिया है।  

दरअसल पीढ़ियों पहले से नगर निगम की दुकान उन्होंने लीज पर ले रखी थी, जिस एक तल का निर्माण कराया गया था। इस दुकान का वे लगातार टैक्स देते आये हैं, और कई बार इस दुकान का 2 बार एग्रीमेंट नगर पालिका द्वारा रिन्यू भी किया गया है। लेकिन इस मामले के बाद नगर निगम ने 15 साल बाद उन्हें निशाना बनाते हुए इसे गिराने का नोटिस जारी किया है। नवेन्दु ने आगे कहा,

इस राजनीति के खिलाफ आवाज उठाने का बड़ा भुगतान भी देना पड़ता है। नगर पालिका द्वारा मेरी पुरानी बनी दुकान तोड़ने का आदेश धारा 187 के अंतर्गत दे दिया गया। विधायक नाराज हो गए तो वे सीधे पालिका पहुंचकर दुकान को सील कराने में लग गए। 

10 लाख से 50 लाख तक पैसों का ऑफर हुआ कि आगे मैं इस केस में पैरवी न करू। इस पर भी मन नहीं भरा तो मुझे ब्राह्मण बनाकर मेरे विरुद्ध भोले भाले आदिवासी समुदाय को झूठे और मिथ्या बयान से बहकाकर स्थानीय विधायक द्वारा जातिवादी मुद्दा बनाकर किया जा रहा है।

मध्यप्रदेश की आद्रभूमियों की स्थिति संतोषजनक नहीं हैं। ग्राउंड रिपोर्ट ने इस विषय में विस्तृत रिपोर्टिंग की है। ग्वालियर, भोपाल संभाग की कई आद्रभूमियां खस्ता हालत का नमूना बन कर रह गई हैं। इनमें सांख्य सागर और सिरपुर तालाब जैसी रामसर साइट भी आती हैं। सिवनी के दल सागर तालाब में होने वाले निर्माण कार्य इसकी एक कड़ी की तरह देखे जा सकते हैं।

अब इस मामले की अगली सुनवाई 13 अगस्त को तय की गई है। एनजीटी ने दल सागर तालाब में हुए निर्माण कार्य को गिराने का निर्णय दे दिया है। अब दल सागर अपनी पुरानी स्थिति में वापस आ पाती है या नहीं, और इसमें कितना समय लगेगा यह वक्त साथ ही परिणित हो पाएगा। 

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  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

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