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दस वर्षों से मूंडला बांध बंजर बना रहा किसानों के खेत, न मुआवज़ा, न सुनवाई

दस वर्षों से मूंडला बांध बंजर बना रहा किसानों के खेत, न मुआवज़ा, न सुनवाई
दस वर्षों से मूंडला बांध बंजर बना रहा किसानों के खेत, न मुआवज़ा, न सुनवाई

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मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले में अजनार नदी पर निर्मित मूंडला बांध पिछले दस वर्षों से स्थानीय किसानों के लिए आफत का पर्याय बन गया है। जो परियोजना क्षेत्र के विकास के लिए बनाई गई थी, वही आज सैकड़ों किसानों की आजीविका पर सवालिया निशान बन गई है।

अमृतपुरा गांव के किसान हेमराज रुहेला कहते हैं, “डैम बनते समय गांव में किसी को इसकी जानकारी नहीं दी गई। 2015 से अब तक हर साल डैम से छोड़े जाने वाले पानी से हमारी फसल और मिट्टी दोनों बर्बाद हो जाते हैं।”

समस्या की गंभीरता को समझने के लिए किसानों की आर्थिक स्थिति देखना जरूरी है। हेमराज के अनुसार, खरीफ सीजन में सोयाबीन और मक्का की बोवनी में लगभग 35 हजार रुपए का खर्च आता है। तैयार फसल की कीमत डेढ़ से दो लाख रुपए होती है। “लेकिन डैम के गेट खुलते ही सब कुछ बह जाता है। सिर्फ पत्थर बचते हैं,” वे दुखी स्वर में कहते हैं।

कृषि विज्ञान केंद्र के डॉक्टर लाल सिंह आर्य इस समस्या के वैज्ञानिक पहलू को स्पष्ट करते हैं। उनके अनुसार, “लगातार बाढ़ से मिट्टी में कटाव होता है, जिससे उसकी उर्वरक क्षमता कम हो जाती है।” इसका परिणाम यह होता है कि रबी की फसल भी जमीन की आधी क्षमता से ही हो पाती है।

Soil erosion in farmland
मिट्टी के कटान के बाद खेतों में सिर्फ पत्थर बचे हैं, जिससे ज़मीन बंजर हो चुकी है

हेमराज इस बात पर सहमती जताते हुए कहते हैं कि “रबी की फसल से पहले हम दोबारा से खेतों को तैयार करने के लिए  दूसरी जगह से मिट्टी को खेतों में डलवाते हैं,जिसका अनुमानित खर्च 45 से 50 हजार के लगभग होता है।”

प्रशासनिक उदासीनता

सबसे चिंताजनक बात यह है कि फसल बर्बाद होने के बाद किसानों को कोई मुआवजा नहीं मिलता। हेमराज बताते हैं, “सिंचाई और राजस्व विभाग दोनों पल्ला झाड़ लेते हैं। हमें इधर से उधर लटकाया जाता है।”

पटवारी रमेश राठौर स्थिति की गंभीरता स्वीकार करते हुए कहते हैं,

“पिछले साल 6-7 किसानों की भूमि की रिपोर्ट तैयार की थी, लेकिन मुआवजा देना इरीगेशन विभाग का काम है।”

किशन सेन की 3 बीघा जमीन हर साल तालाब बन जाती है। वे कहते हैं, “डाउनस्ट्रीम में मुआवजे का प्रावधान नहीं है, यह कहकर विभाग टाल देता है।” दुर्गाप्रसाद शर्मा की स्थिति भी इससे अलग नहीं है। उनकी 5-6 बीघा भूमि डैम से पानी छोड़े जाने पर प्रभावित होती है।

Mundla Dam of Ajnar River
अजनार नदी पर बना मूंडला बांध जो बारिश में पानी से लबालब भर जाता है

सबसे दुखदायी बात यह है कि पानी की रफ्तार बंदूक की गोली जैसी होती है” जब एक साथ गेट खोले जाते हैं। यह स्थिति मगरियादेह, नरसिंहपुरा और मुंडला गांव के दर्जनों किसानों की है।

सिंचाई विभाग के एसडीओ संजय अग्रवाल का कहना है, “डाउनस्ट्रीम में मुआवजे का प्रावधान नहीं है।” हालांकि वे आश्वासन देते हैं कि स्पेशल कंडीशन के तहत विभाग को पत्र लिखा जाएगा।

दिलचस्प बात यह है कि एसडीओ स्वीकार करते हैं कि

“विभाग अब डैम के पैटर्न को समझ गया है और यह अनुभव कर चुका है कि डैम का पानी डाउनस्ट्रीम के खेतों को बर्बाद कर रहा है।”

समस्या का दूसरा पहलू ब्यावरा शहर से जुड़ा है। यदि डैम के गेट समय पर नहीं खोले जाते, तो शहर में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। 2022 में वहां के व्यापारियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा था।

निष्कर्ष

मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले की अजनार नदी पर बना हुआ मूंडला डैम पिछले  10 वर्षों से स्थानीय किसानों के लिए मुसीबत का सबब बन रहा है,
बांध से पानी छोड़े जाने के बाद खेत तालाब बन जाते हैं

आज जब देश में किसान कल्याण की बात होती है, तो मूंडला डैम के किसानों की दुर्दशा हमारी नीतियों के क्रियान्वयन पर सवाल खड़े करती है। दस साल से दफ्तरों के चक्कर काट रहे ये किसान न तो वैकल्पिक जमीन पा रहे हैं और न ही उचित मुआवजा

सूत्रों के अनुसार, इरीगेशन विभाग ने इस परियोजना को फाइनली क्लोज कर दिया है और हर साल बदलते अधिकारी सिर्फ आश्वासन देकर स्थानांतरित हो जाते हैं।

प्रश्न यह है कि क्या डीपीआर बनाते समय 500 मीटर की दूरी पर स्थित इन किसानों की जमीनों का आकलन नहीं किया जा सकता था? क्या विभाग को यह अहसास नहीं था कि आज नहीं तो कल इन किसानों को मुआवजा देना ही पड़ेगा?

मूंडला डैम का मामला दिखाता है कि विकास परियोजनाओं में स्थानीय समुदाय की भागीदारी और उनके हितों की सुरक्षा कितनी जरूरी है। यह सिर्फ राजगढ़ के किसानों की लड़ाई नहीं, बल्कि देश भर के उन तमाम किसानों की आवाज है जो विकास की कीमत चुका रहे हैं।  


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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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