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मध्य प्रदेश में हाईटेंशन तारों पर बर्ड फ्लाइट डायवर्टर से घटीं पक्षियों की मौतें

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मध्य प्रदेश ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए पर्यावरण संरक्षण और बिजली आपूर्ति, दोनों के बीच संतुलन स्थापित करने की पहल की है। मध्यप्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी (एमपी ट्रांस्को) ने राज्य की संवेदनशील आर्द्रभूमियों और प्रवासी पक्षियों के मार्गों से गुजरने वाली उच्च वोल्टेज लाइनों पर बर्ड फ्लाइट डायवर्टर (BFDs) लगाना शुरू कर दिया है। इसका उद्देश्य है कि बिजली की निर्बाध आपूर्ति बनी रहे और पक्षियों की जान भी सुरक्षित रहे। गौरतलब है कि राज्य के फ्लेमिंगो, बाज, मोर, सारस और बतख जैसे बड़े पक्षी अक्सर इन तारों से टकराते रहे हैं, जिनमें उनकी जान भी जाती रहती है।

क्या होती हैं बर्ड सेफ्टी डिवाइस 

एमपी ट्रांस्को ने बिजली की तारों से होने वाली पक्षियों की मौत को कम करने के लिए नई तकनीकें अपनाई हैं। इनमें तारों पर लगाए जाने वाले डायवर्टर चमकीले डिस्क या फ्लैपर जैसे उपकरण शामिल हैं, जो उड़ते हुए पक्षियों को दूर से दिखाई देते हैं। 

बर्ड फ्लैपर ऐसे यंत्र होते हैं जिन्हें बिजली की लाइनों पर लगाया जाता है। ये रात में चमकते हैं और उनकी हलचल से पक्षियों को दूर से ही बिजली की तारों का अंदाज़ा हो जाता है, जिससे वे उनसे सुरक्षित दूरी बनाए रखते हैं और टकराने से बच जाते हैं। धुंध और अंधेरे में इन्हें और स्पष्ट बनाने के लिए सोलर एलईडी लाइट या रेडियम कोटिंग वाले डायवर्टर लगाए जा रहे हैं। इनमें से “इंडोडायवर्ट विंड मिल सोलर (BD-29)” मॉडल खासा टिकाऊ है। यह तेज हवाओं और खराब मौसम में भी वर्षों तक काम करता है और पर्यावरण मंत्रालय व बिजली प्राधिकरण के मानकों पर खरा उतरता है।

इसके अलावा बर्ड गार्ड ऐसे नुकीले ढांचे होते हैं जिन्हें टावर पर लगाया जाता है ताकि पक्षी उन पर बैठ न सकें। इससे वे तारों के पास जाकर चोटिल होने से बचते हैं। इसी तरह बर्ड प्रिवेंटर गोल प्लेटें होती हैं, जिन्हें इंसुलेटर डिस्क पर लगाया जाता है। इनका काम यह होता है कि पक्षी इंसुलेटर और करंट वाले तारों के बीच कोई संपर्क न बना पाएं। इससे न केवल बिजली की लाइन ट्रिप होने से बचती है, बल्कि पक्षियों को भी चोट का खतरा कम हो जाता है। 

तैयारी और  शुरूआती नतीजे 

अब तक की जानकारी के अनुसार एमपी ट्रांसको ने राज्य भर में 80 हजार से अधिक एक्स्ट्रा हाई-टेंशन टावरों और 43 हजार सर्किट किलोमीटर बिजली लाइनों को सुरक्षा उपकरणों से लैस करने की एक व्यापक योजना बनाई है। इसका क्रियान्वयन उन क्षेत्रों से शुरू किया गया है जहां पक्षियों की वजह से ट्रांसमिशन लाइन बार-बार ट्रिप हो रही थीं। इस योजना नर्मदा नदी के किनारों पर आने वाले क्षेत्र को विशेष तौर पर शामिल किया गया है, जो कि प्रवासी पक्षियों का प्रमुख ठिकाना है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इन डायवर्टरों के लगने के बाद शुरुआती नतीजे सकारात्मक हैं। पक्षियों की मौतें कम हुई हैं और बिजली सप्लाई भी पहले से ज्यादा स्थिर हुई है। इसके साथ ही इंदौर और भोपाल जैसे शहरों में गर्मी और बरसात के समय अब बिजली कटौती की समस्या कम हो रही है। 

इस परियोजना में पक्षी विशेषज्ञों, पर्यावरण विभाग और स्थानीय बर्डवॉचर्स का सहयोग लिया जा रहा है। योजना है कि आने वाले समय में और आर्द्रभूमियों, नदियों और जंगलों में भी इन डायवर्टरों को लगाया जाए। भविष्य में राज्य की नई ट्रांसमिशन परियोजनाओं में इन्हें मानक प्रक्रिया के रूप में शामिल करने की तैयारी है।

क्यों होती हैं पक्षियों की मौतें?

ऊंचे वोल्टेज की बिजली लाइनें पक्षियों के लिए बड़ी चुनौती बनती हैं। बड़े पक्षी अक्सर कम ऊंचाई पर उड़ते हैं और उन्हें पतले तार दिखाई नहीं देते, जिससे वे टकरा जाते हैं। कई बार जब पक्षी खंभों या तारों पर बैठते हैं तो करंट लगने से उनकी मौत हो जाती है। इस वजह से मोर, सारस और अन्य बड़े पक्षियों की मौत की घटनाएं लगातार सामने आती रही हैं। जुलाई 2025 में मुरैना में छह मोर और झाबुआ में ग्यारह मोर हाई टेंशन तारों से टकराकर मारे गए थे। इंदौर और भोपाल के आसपास भी कई बार ऐसी घटनाओं ने बिजली व्यवस्था को बाधित किया है।

भारत के वाइल्डलाइफ़ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) ने हाल ही में बताया कि थार रेगिस्तान में यह समस्या कितनी बड़ी है। यहां पर पवन ऊर्जा संयंत्र और बिजली की लाइनों का मिलन पक्षियों के प्राकृतिक मार्गों (फ्लाईवे) से होता है। उनके अध्ययन के अनुसार, हर साल लगभग 1,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 4,464 पक्षियों की मौत होती है। इनमें गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियां जैसे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और कई शिकारी पक्षी (रैप्टर्स) भी शामिल हैं। अगर इसे पूरे देश पर लागू करके देखा जाए, तो यह संख्या हर महीने दसियों हज़ार पक्षियों की मौत तक पहुंच सकती है, जो बिजली की लाइनों से टकराने और करंट लगने के कारण होती हैं।

गौरतलब है कि गुजरात और राजस्थान में पहले से ऐसी व्यवस्थाएं संकटग्रस्त ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के निवास क्षेत्रों में अनिवार्य की गई हैं। जैसे-जैसे देश में नवीकरणीय ऊर्जा और ट्रांसमिशन परियोजनाएं बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे पक्षियों की सुरक्षा पर ध्यान देना और नवाचार करना जरूरी होता जा रहा है।

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