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बैतूल के 250 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बनेगा मध्य प्रदेश का पहला कंजर्वेशन रिजर्व

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मध्य प्रदेश सरकार ने 250 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को ताप्ती कंजर्वेशन रिज़र्व के रूप में अधिसूचित किया है। यह क्षेत्र बैतूल के ताप्ती, चिचोली और तावड़ी वन परिक्षेत्रों को मिलाकर बनाया गया है। इसके साथ ही बैतूल राज्य में पहली बार किसी कंजर्वेशन रिजर्व का दर्जा पाने वाला जिला बना है। ताप्ती कंजर्वेशन रिज़र्व न केवल राज्य का पहला कंजर्वेशन रिज़र्व है, बल्कि यह सतपुड़ा और मेलघाट टाइगर रिज़र्व के बीच स्थित उस महत्वपूर्ण गलियारे में है, जो बाघ, तेंदुआ, बायसन और अन्य दुर्लभ जीवों की आवाजाही का अहम मार्ग है।

इस निर्णय के पीछे स्थानीय नेतृत्व और वन विभाग की सक्रियता रही है। बैतूल के विधायक और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल लंबे समय से इस दिशा में प्रयास कर रहे थे। दक्षिण वनमंडल के पूर्व डीएफओ विजयन्तम टी.आर. और ताप्ती रेंज के रेंजर दयानंद डहरिया ने सर्वे कर प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया। सरकार के नोटिफिकेशन के साथ यह पहल अब धरातल पर उतर चुकी है।

क्या है कंजर्वेशन रिजर्व

कंजर्वेशन रिज़र्व की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके अंतर्गत स्थानीय निवासियों के परंपरागत अधिकार प्रभावित नहीं होते। इसका मतलब है कि आसपास के आदिवासी और ग्रामीण समुदाय महुआ बीनने, तेंदूपत्ता संग्रह करने या जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने जैसे अपने रोज़मर्रा के काम पहले की तरह कर पाएंगे। इसके साथ ही उन्हें नए अवसर भी मिलेंगे। इको-टूरिज़्म को बढ़ावा देने की योजना है, जिससे ग्रामीण गाइड, सफारी ड्राइवर और होमस्टे ऑपरेटर के रूप में अपनी भागीदारी निभा सकेंगे। यह पहल स्थानीय व्यंजनों और आदिवासी संस्कृति को पर्यटकों तक पहुँचाने का भी ज़रिया बनेगी।

हालांकि, यह समझना ज़रूरी है कि कंजर्वेशन रिज़र्व का दर्जा नेशनल पार्क या वाइल्डलाइफ़ सैंक्चुरी से अलग होता है। भारत में संरक्षित क्षेत्रों की तीन प्रमुख श्रेणियाँ मानी जाती हैं, नेशनल पार्क, वाइल्डलाइफ़ सैंक्चुरी और कंजर्वेशन रिज़र्व। इनमें सबसे सख़्त नियम नेशनल पार्क में लागू होते हैं। वहाँ इंसानी गतिविधियों की अनुमति नहीं होती और उद्देश्य केवल वन्यजीव और जैव विविधता का संरक्षण होता है। सैंक्चुरी में कुछ सीमित गतिविधियाँ, जैसे ग्रामीणों की आंशिक पहुँच या नियंत्रित पर्यटन की गुंजाइश होती है। कंजर्वेशन रिज़र्व तीसरी और अपेक्षाकृत नई श्रेणी है, जिसकी स्थापना 2003 के वन्यजीव संरक्षण संशोधन अधिनियम के तहत शुरू हुई। यह मुख्य रूप से बफ़र ज़ोन या कॉरिडोर के रूप में काम करता है और स्थानीय समुदाय की भागीदारी के साथ संचालित होता है।

अगर सरल उदाहरण से समझें, तो यह ऐसा ही है जैसे दो कस्बों को जोड़ने के लिए बीच में एक सुरक्षित रास्ता बनाया जाए ताकि आवाजाही बिना बाधा जारी रहे। ठीक वैसे ही, कंजर्वेशन रिज़र्व जंगलों के बीच सुरक्षित गलियारा होता है, जो जानवरों को अलग-अलग संरक्षित इलाक़ों में आने-जाने का मौका देता है। यही वजह है कि ताप्ती रिज़र्व सतपुड़ा और मेलघाट टाइगर रिज़र्व के लिए जीवनरेखा साबित हो सकता है।

क्या हैं कंजर्वेशन रिजर्व की सीमाएं

कंजर्वेशन रिज़र्व की अपनी सीमाएँ भी हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि इन इलाक़ों में संरक्षण का स्तर उतना सख़्त नहीं होता जितना नेशनल पार्क या टाइगर रिज़र्व में देखने को मिलता है। कई बार यहाँ खनन या अन्य गतिविधियों की अनुमति राज्य सरकार की नीति के आधार पर दी जा सकती है। वित्तीय संसाधनों और प्रबंधन के स्तर पर भी यह श्रेणी अपेक्षाकृत कमजोर है। नेशनल पार्क और सैंक्चुरी को जहाँ केंद्र और राज्य स्तर से विशेष सहायता मिलती है, वहीं कंजर्वेशन रिज़र्व अक्सर सीमित संसाधनों में ही काम चलाते हैं।

इसके अलावा, चूँकि स्थानीय निवासियों के अधिकार यहाँ बरकरार रहते हैं, कई बार संरक्षण की ज़रूरतें और समुदाय की ज़रूरतें आपस में टकरा सकती हैं। उदाहरण के लिए, जंगल से लकड़ी लेने की परंपरा और वन्यजीव आवास की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। पारिस्थितिकी की दृष्टि से भी ये रिज़र्व स्वतंत्र इकोसिस्टम का प्रतिनिधित्व नहीं करते, बल्कि केवल कनेक्टिविटी बनाए रखने की भूमिका निभाते हैं।

फिर भी, इन सबके बीच कंजर्वेशन रिज़र्व की अवधारणा भारत जैसे देश में अहम है, जहाँ आबादी और विकास का दबाव लगातार जंगलों और वन्यजीवों पर पड़ता है। अगर ऐसे गलियारों को संरक्षित न किया जाए, तो नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व जैसे बड़े संरक्षित क्षेत्र भी टापू की तरह अलग-थलग पड़ सकते हैं।

भारत में वर्तमान में लगभग 123 कंजर्वेशन रिज़र्व हैं, जो 5,500 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र को कवर करते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश में यह पहल अब तक अपेक्षाकृत कमज़ोर रही है। ताप्ती कंजर्वेशन रिज़र्व इस लिहाज़ से एक मील का पत्थर है। यह न केवल बैतूल ज़िले के लिए पहला संरक्षित क्षेत्र है, बल्कि पूरे राज्य के लिए भी एक नई शुरुआत है।

आगे की राह इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार और स्थानीय समुदाय इस मॉडल को कितनी सफलतापूर्वक लागू कर पाते हैं। अगर यह प्रयोग कामयाब रहा, तो भविष्य में और भी क्षेत्रों को इस श्रेणी में शामिल किया जा सकता है। इससे न केवल वन्यजीवों को सुरक्षित गलियारे मिलेंगे, बल्कि स्थानीय लोगों को भी स्थायी आजीविका के अवसर प्राप्त होंगे।

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