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गुना में खाद के लिए लाइन में लगी आदिवासी महिला की मौत, ‘एंबुलेंस मिली न शव वाहन’

Bhuriya Bai Guna Tribal Woman died in line
आदिवासी महिला भूरिया बाई की तस्वीर जिनकी मौत खाद के लिए लाईन में तीन दिन इंतेज़ार करने की वजह से हो गई।

मध्य प्रदेश के गुना जिले के बमौरी ब्लॉक की ग्राम पंचायत कुशेपुर के शिकारी टपरे में रहने वाली आदिवासी महिला भूरिया बाई सहरिया के परिवार को शायद यह अंदाजा नहीं था कि खाद की एक बोरी उनकी जिंदगी से एक सदस्य छीन लेगी। सोमवार की सुबह जब भूरिया बाई बागेरी खाद वितरण केंद्र पर लाइन में लगीं, तो उन्हें उम्मीद थी कि शाम तक खाद मिल जाएगी। लेकिन शाम आई और चली गई, खाद नहीं मिली।

मंगलवार को भी वही कहानी दोहराई गई। भूरिया बाई पूरा दिन इंतजार करती रहीं, लेकिन उनका नंबर नहीं आया। बुधवार को थक-हारकर वह केंद्र पर ही सो गईं। रात के करीब 11 बजे अचानक उन्हें उल्टी आई, जिसमें खून निकला। हड़बड़ाहट में उन्हें पहले बमौरी स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, फिर गुना जिला अस्पताल। लेकिन रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया।

मृतक महिला के गांव के सरपंच मदन सहारिया, जो उनके चचेरे भाई के देवर हैं, बताते हैं कि

“एंबुलेंस तक नहीं मिली। शव को घर ले जाने के लिए शव वाहन भी नहीं मिला।”

चिकित्सकों ने मौत का कारण शुगर बढ़ना बताया, लेकिन परिजनों का मानना है कि अगर तीन दिनों तक वह इस तरह खाद के इंतजार में न भटकतीं, तो शायद आज जिंदा होतीं।

प्रशासन के दावे, जमीनी हकीकत और खोखले आश्वासन

खाद के लिए लाईन में लगे किसान, फोटो अब्दुल वसीम अंसारी

गुना जिला प्रशासन का दावा है कि अब तक 3 हजार मीट्रिक टन खाद वितरित हो चुका है और 15 हजार मीट्रिक टन का स्टॉक उपलब्ध है। अगर यह सच है, तो फिर भूरिया बाई को तीन दिनों तक क्यों इंतजार करना पड़ा? क्यों एक महिला को खाद वितरण केंद्र पर ही सोना पड़ा? और सबसे बड़ा सवाल – अगर स्टॉक इतना है, तो किसानों को दिन-रात कतार में क्यों खड़ा रहना पड़ता है?

सरपंच मदन सहारिया इन सवालों का जवाब देते हैं। वह कहते हैं कि

“प्रशासन बार-बार किसानों को वितरण समय के अलावा कतार में खड़े रहने से मना करता है, लेकिन अगर रात को कतार में नहीं खड़े होंगे, तो सुबह जगह ही नहीं मिलेगी। खाद पाने के लिए एक-दो दिन पहले से कतार में आना ही पड़ता है, तभी नंबर आता है।”

भूरिया बाई की मौत के बाद प्रशासन ने तत्परता दिखाई। संबल योजना के तहत 2 लाख रुपए, रेडक्रॉस से आर्थिक सहायता और अंत्येष्टि के लिए भी सहायता राशि प्रदान की गई। परिजनों को खाद देने का आश्वासन भी दिया गया। लेकिन दैनिक भास्कर में 29 नवंबर को प्रकाशित खबर के मुताबिक, यह आश्वासन भी खोखला निकला। न खाद मिली, न मृत्यु प्रमाण पत्र। परिजन अब भी इधर-उधर भटक रहे हैं।

टीकमगढ़: जब किसानों ने कानून अपने हाथ में लिया

खाद संकट की दूसरी बड़ी घटना टीकमगढ़ जिले से सामने आई, जहां हालात इतने बिगड़ गए कि किसानों ने खाद से भरा सरकारी ट्रक ही लूट लिया। यह घटना उपरार गांव की सहकारी समिति के पास हुई और इसका वीडियो भी वायरल हो गया।

NDTV डिजिटल में 27 नवंबर को प्रकाशित खबर के अनुसार, जब लंबे समय से खाद की किल्लत झेल रहे किसानों को पता चला कि उपरार गांव की सहकारी समिति के लिए खाद का ट्रक आया है, तो करीब तीन दर्जन से अधिक किसानों ने ट्रक को रास्ते में ही रोक दिया। फिर क्या था, खाद की बोरियां लूटकर सब चलते बने। वायरल वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि किस तरह किसान ट्रक से बोरियां उतार रहे हैं।

हालांकि, टीकमगढ़ जनसंपर्क विभाग ने इस घटना से इनकार किया है। विभाग ने एक पोस्ट जारी कर कहा कि प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति मर्यादित जेवर के ग्राम जेवर उपरारा में मंगलवार को 30 टन यूरिया का ट्रक भेजा गया था। कृषकों की अत्यधिक आवश्यकता और अधिक भीड़ के कारण समिति ने अपने ऋणी कृषकों को पात्रता अनुसार भरे ट्रक से ही यूरिया खाद परमिट के अनुसार प्रदान की। विभाग का दावा है कि किसी तरह की अराजकता नहीं हुई और शासन के नियमों के अनुसार ही खाद वितरण किया गया।

लेकिन सवाल यह है कि अगर सब कुछ नियमानुसार हुआ, तो फिर ट्रक को रास्ते में क्यों रोकना पड़ा? क्यों भरे ट्रक से ही खाद बांटनी पड़ी? और सबसे बड़ी बात – अगर यह सब नियमित था, तो वीडियो में जो अफरा-तफरी दिख रही है, वह क्या थी?

कड़ाके की ठंड में इंतजार, फसल की चिंता

इन दोनों घटनाओं ने मध्यप्रदेश में खाद संकट की असलियत को उजागर कर दिया है। एक तरफ प्रशासन पर्याप्त स्टॉक का दावा कर रहा है, दूसरी तरफ किसान दिन-रात कतारों में खड़े हैं। कड़ाके की ठंड में भी किसानों को खाद की बोरी के लिए इंतजार करना पड़ रहा है।

रबी की फसल के लिए बुवाई कर चुके किसानों को अब अपनी फसलों की गुणवत्ता और उपज में कमी की चिंता सता रही है। समय पर खाद न मिलने से फसल प्रभावित होगी और इसका सीधा असर किसानों की आय पर पड़ेगा। लेकिन प्रशासन के आश्वासन और जमीनी हकीकत के बीच का यह फासला पाटने का नाम नहीं ले रहा है।

भूरिया बाई की मौत एक चेतावनी है। यह बताती है कि खाद संकट अब सिर्फ प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि जीवन-मृत्यु का सवाल बन चुका है। सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस चेतावनी को समझेगा, या फिर भूरिया बाई जैसी और घटनाओं का इंतजार करेगा?


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  • Abdul Wasim Ansari is an independent journalist based in Rajgarh, Madhya Pradesh, bringing nearly a decade of experience in journalism since 2014. His work focuses on reporting from the grassroots level in the region.

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