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Lohari Village: शहर वालों की प्यास बुझाने डूब गया पहाड़ी गांव

Lohari Village: शहर वालों की प्यास बुझाने डूब गया पहाड़ी गांव
Lohari Village: शहर वालों की प्यास बुझाने डूब गया पहाड़ी गांव

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उत्तराखंड के एक और गांव की जल समाधि हो गई। जमीनी इलाकों में रह रहे लोगों की प्यास और ऊर्जा की मांगों को पूरा करने के लिए पहाड़ी इलाकों को लगातार उजाड़ा जा रहा है। देहरादून से 60 किलोमीटर दूर बसा 90 परिवारों का गांव लोहारी (Lohari Village) दिल्ली और आस पास के राज्यों की प्यास बुझाने को खुद खत्म हो गया। इस गांव के लोगों को सरकार ने 48 घंटे के अंदर अपनी बरसों पुराने घरों को खाली करने का आदेश दे दिया गया। जो तस्वीरें और वीडियो सामने आ रहे हैं वो हृदय विदारक हैं। लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता, यह शहरों के विकास के लिए गांवों को उजाड़ने से परहेज़ नहीं करता।

आईये समझते हैं लखवार व्यासि प्रोजेक्ट के बारे में

420 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए लखवार व्यासी हाईडल पावर प्रोजेक्ट की नींव कई सालों पहले रखी गई थी। 1992 में इसमें कई अड़चने आई जिसके बाद 2014 में इसे सभी क्लियरेंस देकर दोबारा शुरु किया गया। 2022 में यह पूरा हुआ और अब बस इंतेज़ार था लोहारी गांव (Lohari Village) को खाली कराने का जहां के लोग अपनी ज़मीन छोड़ने को तैयार नहीं थे। 90 परिवारों वाला यह गांव हर दिन अपनी ज़मीन, बगीचे डूबते देख रहा था। यहां के लोग देख रहे थे कैसे हर दिन बढ़ता जल स्तर उनके बरसों पुराने घरों को भी एक दिन निगल जाएगा। और यह दिन आ गया।

मजबूर लोगों को अपना घर छोड़ पास में बने अस्थाई ठिकानों पर जाना पड़ा। वो सरकारी बुल्डोज़र आने के पहले ही अपने घरों को तोड़ने लगे। सभी ज़रुरी सामानों की गठरी बांधने लगे। उनकी आंखों में आंसू थे, वो अपने सपनों की जलसामाधि को देख रहे थे।

गांव वालो का कहना है कि वो चले जाते लेकिन उन्हें ज़मीन के बदले ज़मीन चाहिए थी। जो सरकार देना नहीं चाहती। पैसों का हम क्या करेंगे।

1972 में बने एग्रीमेंट में यह लिखा था कि सरकार ज़मीन के बदले जमीन देगी लेकिन 2021 में उत्तराखंड सरकार पलट गई। इसका कारण बताया गया कि अगर लोहारी के लोगों को ज़मीन दी तो बाकि जगह जहां से विस्थापन हुआ है वो भी जमीन मांगेंगे। इतनी ज़मीन का इंतेज़ाम सरकार कहां से करेगी। कानून के मुताबिक अगर अनुसूचित जाति और जनजातीय लोगों से ज़मीन अगर किसी विकास प्रोजेक्ट में ली जाए तो उन्हें उसके बदले जमीन देना ही होगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

यमुना पर बनने वाली यह सबसे बड़ी बांध परियोजना है। इसकी वजह से कई गांव विस्थापित हुए हैं। इसका उद्देश्य बिजली उत्पादन के साथ-साथ गरमियों में आस पास के राज्यों को पानी पहुंचाना भी है। इस प्रोजेक्ट को बनाने में कई पर्यावरण जोखिमों को नज़अंदाज़ किया गया जैसा कि अक्सर होता है। कई विस्थापित लोगों को कंपनसेशन आज तक नहीं मिला है। इन्हें दूसरी जगह बसाने का इंतज़ाम भी उचित नहीं है। टिहरी बांध की वजह से विस्थापित हुए कई लोग आज भी दावा करते हैं कि उन्हें मुआवज़ा नहीं मिला है। इस प्रोजेक्ट की वजह से न सिर्फ इंसान बल्कि एक्वैटिक लाईफ भी प्रभावित हुई है।

इस प्रोजेक्ट के समर्थन में जो दावे हैं, उनके मुताबिक इससे 5 राज्यों को पीने का साफ पानी मुहैया कराया जा सकेगा। खास कर देश की राजधानी दिल्ली को।

लोहारी (Lohari Village) के 90 परिवारों को मिलाकर कुल 6 गांव के 334 परिवार इस परियोजना से विस्थापित हुए हैं। जिला प्रशासन का कहना है कि वो सभी उचित इंतेज़ाम कर रही हैं। सभी को उचित मुआवजा दिया जाएगा, और कई लोगों के अकाउंट में राशि डाल दी गई है।

लोहारी (Lohari Village) के लोगों ने अपना गांव खाली करने से इंकार कर दिया था। वो सभी अपना खेती का कमा छोड़ धरना देते जिसे कोई मीडिया वाला नहीं दिखाता। मुआवज़े के लिए घर का सर्वे करने आए अधिकारियों को अपने घर तक में घुसने नहीं दिया। फिर भी बाहर से ही नाप लेकर इन अधिकारियों ने मुआवज़ा का सर्वे पूरा किया। वो अपनी जमीन बचाने को संघर्ष करते रहे, लेकिन प्रोजेक्ट तो पूरा हो चुका था, बस देर थी बांध के जलस्तर का उस उंचाई तक पहुंचने का जो इस गांव को अपने अंदर समा लेता। और वो दिन जब सामने आया तो पानी का सैलाब बह निकला उन गांव वालों की आंखों से, उनकी आंखों के सामने डूबते रहे उनके घर, बाग, खलिहान और उनकी यादें।

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Author

  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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